भरतपुर. आंगन में अपनी चहचाहट के साथ खुशनुमा माहौल बनाने वाली गौरेया इन दिनों मानों गायब ही हो गई है. कभी घर की दीवारों पर, छत पर, ताख पर इन घरेलू चिड़ियां को आपने भी फुदकते देखा होगा. सीमेंट के मकान, मोबाइल रेडिएशन और हमारी हर दिन बदलती जीवनशैली इन पक्षियों की संख्या को सीमित करती जा रही है. जिन गौरेया की चहचाहट सुनकर हमारा बचपन बीता था, एक दिन कहीं ऐसा ना हो कि आने वाली पीढ़ी केवल फोटो में ही गौरेया को देखें. यही चिंता के लकीरें अपने मस्तिष्क में रखकर भरतपुर की कविता सिंह ने एक पहल की है, जिसकी चहुं ओर से उन्हें सराहना मिल रही है.
कविता सिंह बताती हैं कि बचपन से एक गाना सुनती आई है. वो ही नहीं बल्कि हर व्यक्ति सुनता आया है. गाने के बोल हैं - ' ओ री चिरैया, नन्ही सी चिड़िया, अंगना में फिर आजा रे....'. गौरेया एक पक्षी ही नहीं, बल्कि एक इमोशन है. आज हमारी ये घरेलु चिड़िया आंगन से गुम होती जा रही है. विशेषज्ञ बताते हैं कि शहरीकरण ने इस पक्षी की संख्या को काफी कम किया है. इसीलिए उन्होंने गौरेया को आंगने में वापस बुलाने का अभियान शुरू किया है. यह अभियान है गौरेया के लिए घोंसले बनाने का.
अब तक आप कितने घोंसले बना चुकीं हैं ?
बीते एक साल में देश के हर राज्य तक कविता ने अपने घोंसले पहुंचाएं हैं. एक साल में 3 हजार से अधिक घोंसलों की डिलिवरी कर चुकी हूं. यही वजह है कि अब कई आंगनों में फिर से गौरैया नजर आने लगी हैं.
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इस अभियान की शुरुआत कैसे हुई ?
खबरों में और इंटरनेट पर कम होती गौरैया की रिपोर्ट पढ़ीं व देखीं. खुद भी महसूस किया कि अब घर में गौरैया आती ही नहीं हैं. सबसे पहले सोशल मीडिया पर गौरैया के घर के बारे में जानकारी जुटाई. इसके बाद इंटरनेट से कुछ बर्ड हाउस मंगवाएं, घरों में लगाएं, लेकिन उनमें गौरेया आई ही नहीं. क्योंकि, वो गौरेया की भावना के अनुरूप बने ही नहीं थे. फिर से मैंने जानकारी जुटाकर घोंसलों के सही आकार और डिजाइन के बारे में पता किया. इसके बाद घर पर ही घोंसला तैयार करवाकर सबसे पहले अपने घर में लगाया. मैंने देखा कि इसके कुछ ही मिनट बाद उसमें गौरैया आकर बैठ गई. उस दिन हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहा.
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अभियान इतना चर्चित कैसे हुआ ?
मैंने गौरैया के घोंसलों के संबंध में पति वीरपाल सिंह से चर्चा की तो उन्होंने भी सहर्ष सहमति दे दी. इसके बाद घर पर घोंसले तैयार कर शहर के एमएसजे कॉलेज परिसर में स्थित हनुमान मंदिर में घोंसले लगाए. इसका एक फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर कर दिया, जिसके बाद देशभर से घोंसलों की मांग आने लगी.
क्या आपको इससे इनकम होती है ?
देखिए हमारा उद्देश्य गौरैया को बचाना है. इसलिए हम घोंसले की लागत ही लेते हैं. इससे फिर और घोंसले तैयार करते हैं. जब देश भर से घोंसलों की डिमांड आने लगी तो हमने घर पर ही घोंसलों का निर्माण शुरू कर दिया. कुछ कारीगर लगाए, लेकिन अब खुद, समय मिलने पर पति और बच्चे भी घोंसले निर्माण में सहयोग करते हैं. जम्मू-कश्मीर से कन्याकुमारी तक ऐसा कोई राज्य नहीं, जहां उनके बनाए हुए घोंसले नहीं पहुंचे. अब तक देश भर में करीब 2000 घरों तक 3000 से अधिक घोंसले पहुंचाए जा चुके हैं. हम हर दिन दस घोंसले तैयार करते हैं. फिलहाल 600 घोंसलों की डिलिवरी करनी है.
इस घोंसले में क्या खास है ?
घोंसले निर्माण के लिए जिस लकड़ी का इस्तेमाल किया जा रहा है, वो वॉटरप्रूफ है. इसके अलावा घोंसले का डिजाइन गौरैया के लिए पूरी तरह अनुकूल है. इसमें अंदर पर्याप्त जगह और अंदर जाने के लिए उचित छेद बनवाया गया है. ताकि कोई बड़ा पक्षी अंदर ना घुस सके. साथ ही इस घोंसले को दीवार में कील ठोक कर और पेड़ में रस्सी पर भी लटकाया जा सकता है.