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जानें क्यों मनाया जाता है विश्व कुष्ठ रोग दिवस, कब तक इस बीमारी के खात्मे का है लक्ष्य - Zero Discrimination

World Leprosy Day : कुष्ठ की बीमारी आज भी हमारे समाज में विराजमान है. साथ ही इसका फ्री में इलाज सभी जगहों पर उपलब्ध है. बस जरूरत है बीमारी को छुपाएं नहीं. बीमार दिखे तो उससे घृणा नहीं किया जाए. पढ़ें पूरी खबर..

World Leprosy Day
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 27, 2024, 6:04 PM IST

हैदराबाद : कुष्ठ रोग के बारे में फैली भ्रांतियों को दूर कर इसे जड़ से समाप्त किया जा सकता है. इस बारे में व्यापक जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल विश्व कुष्ठ रोग दिवस मनाया जाता है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार कुष्ठ रोग मानवता के लिए ज्ञात सबसे पुरानी बीमारियों में से एक है. अनुमान के मुताबिक यह रोग कम से कम 4000 वर्ष पुराना है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का लक्ष्य 2030 तक दुनिया से इसे समाप्त करना है. वहीं भारत सरकार का लक्ष्य तीन साल पहले 2027 तक कुष्ठ रोग मुक्त भारत तैयार करना है.

पूरी दुनिया में विश्व कुष्ठ रोग दिवस जनवरी के अंतिम रविवार को मनाया जाता है. इस साल यह आयोजन 28 जनवरी को होगा. भारत में यह दिवस 30 जनवरी को महात्मा गांधी की पुण्य तिथि के साथ मनाया जाता है. इस अवसर पर विभिन्न स्तरों पर स्कूल-कॉलेजों के छात्रों के अलाव विभिन्न संगठनों की ओर से जागरूकता रैली, पेंटिंग प्रतियोगिता सहित कई आयोजन किये जाते हैं.

विश्व कुष्ठ रोग दिवस 2024 के लिए थीम का विषय- कुष्ठ रोग को हराओ तय किया गया है. इस विषय के निर्धारण में 2 उद्देश्य पूरे होते हैं. पहला कुष्ठ रोग से जुड़े कलंक को समाप्त करना. दूसरा प्रभावित लोगों के सम्मान को बढ़ावा देना. बता दें कि बीट लेप्रोसी इस बीमारी को खत्म करने के लिए चिकित्सा सुविधाओं के साथ-साथ इससे जुड़े सामाजिक-मनोवैज्ञानिक पहलुओं से जुड़ा है. थीम हमें यह संदेश देता है कि आज के समय कुष्ठ रोग एक कलंक नहीं है. साथ ही यह करुणा व सम्मान प्रदर्शित करने का समय है.

कोविड से पहले हर साल 2 लाख लोगों में कुष्ठ के मरीजों की पहचान होती थी. वहीं महामारी के बाद कुष्ठ रोग कार्यक्रमों में व्यावधान के कारण इसकी संख्या में 30 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. खासकर दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका एशिया में लाखों लोग कुष्ठ रोग के कारण दिव्यांगता में जीवन गुजार रहे हैं.

चिकित्सकों के अनुसार मल्टी ड्रग थेरेपी (Multi Drug Therapy) नामक एंटीबायोटिक दवाओं की मदद से कुष्ठ रोग का इलाज संभव है. यह इलाज दुनिया भर में मुफ्त उपलब्ध है. यदि समय पर कुष्ठ रोग का इलाज नहीं किया जाता है तो यह कई जटिलताओं का कारण बन सकता है.

संयुक्त राष्ट्र की ओर से सतत विकास लक्ष्य के तहत कुष्ठ उन्मूलन के लिए 2030 का समय निर्धारित किया है. वहीं भारत में इसे समाप्त करने के लिए तीन साल पहले यानि 2027 का समय तय किया गया है. अपने लक्ष्य को पाने के लिए भारत की अलग-अलग एजेंसियां अपने-अपने तरीके काम कर रही है. इसी कड़ी में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से पॉसी-बेसिलरी मामलों के लिए 6 महीने के लिए 2 दवा देने का प्रावधान था. अब 6 महीने के लिए 2 के बदले 3 दवा उपलब्ध कराने का लक्ष्य है.

कैसे होता है यह रोग- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कुष्ठ एक क्रोनिक संक्रामक रोग है. यह Mycobacterium Leprae नामक बैक्टीरिया के कारण होता है. यह मुख्य रूप से स्कीन और नर्वस सिस्टम को धीरे-धीरे डैमेज करता है. अंततः यह दिव्यांगता सहित कई रोगों का कारण बन जाता है. चिकित्सकों के अनुसार इलाज नहीं होने पर कुष्ठ रोग पीड़ित व्यक्ति से नाक और मुंह से निकलकर उनके निकट और बार-बार संपर्क में आने वाले लोग संक्रमित हो सकते हैं.

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हैदराबाद : कुष्ठ रोग के बारे में फैली भ्रांतियों को दूर कर इसे जड़ से समाप्त किया जा सकता है. इस बारे में व्यापक जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल विश्व कुष्ठ रोग दिवस मनाया जाता है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार कुष्ठ रोग मानवता के लिए ज्ञात सबसे पुरानी बीमारियों में से एक है. अनुमान के मुताबिक यह रोग कम से कम 4000 वर्ष पुराना है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का लक्ष्य 2030 तक दुनिया से इसे समाप्त करना है. वहीं भारत सरकार का लक्ष्य तीन साल पहले 2027 तक कुष्ठ रोग मुक्त भारत तैयार करना है.

पूरी दुनिया में विश्व कुष्ठ रोग दिवस जनवरी के अंतिम रविवार को मनाया जाता है. इस साल यह आयोजन 28 जनवरी को होगा. भारत में यह दिवस 30 जनवरी को महात्मा गांधी की पुण्य तिथि के साथ मनाया जाता है. इस अवसर पर विभिन्न स्तरों पर स्कूल-कॉलेजों के छात्रों के अलाव विभिन्न संगठनों की ओर से जागरूकता रैली, पेंटिंग प्रतियोगिता सहित कई आयोजन किये जाते हैं.

विश्व कुष्ठ रोग दिवस 2024 के लिए थीम का विषय- कुष्ठ रोग को हराओ तय किया गया है. इस विषय के निर्धारण में 2 उद्देश्य पूरे होते हैं. पहला कुष्ठ रोग से जुड़े कलंक को समाप्त करना. दूसरा प्रभावित लोगों के सम्मान को बढ़ावा देना. बता दें कि बीट लेप्रोसी इस बीमारी को खत्म करने के लिए चिकित्सा सुविधाओं के साथ-साथ इससे जुड़े सामाजिक-मनोवैज्ञानिक पहलुओं से जुड़ा है. थीम हमें यह संदेश देता है कि आज के समय कुष्ठ रोग एक कलंक नहीं है. साथ ही यह करुणा व सम्मान प्रदर्शित करने का समय है.

कोविड से पहले हर साल 2 लाख लोगों में कुष्ठ के मरीजों की पहचान होती थी. वहीं महामारी के बाद कुष्ठ रोग कार्यक्रमों में व्यावधान के कारण इसकी संख्या में 30 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. खासकर दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका एशिया में लाखों लोग कुष्ठ रोग के कारण दिव्यांगता में जीवन गुजार रहे हैं.

चिकित्सकों के अनुसार मल्टी ड्रग थेरेपी (Multi Drug Therapy) नामक एंटीबायोटिक दवाओं की मदद से कुष्ठ रोग का इलाज संभव है. यह इलाज दुनिया भर में मुफ्त उपलब्ध है. यदि समय पर कुष्ठ रोग का इलाज नहीं किया जाता है तो यह कई जटिलताओं का कारण बन सकता है.

संयुक्त राष्ट्र की ओर से सतत विकास लक्ष्य के तहत कुष्ठ उन्मूलन के लिए 2030 का समय निर्धारित किया है. वहीं भारत में इसे समाप्त करने के लिए तीन साल पहले यानि 2027 का समय तय किया गया है. अपने लक्ष्य को पाने के लिए भारत की अलग-अलग एजेंसियां अपने-अपने तरीके काम कर रही है. इसी कड़ी में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से पॉसी-बेसिलरी मामलों के लिए 6 महीने के लिए 2 दवा देने का प्रावधान था. अब 6 महीने के लिए 2 के बदले 3 दवा उपलब्ध कराने का लक्ष्य है.

कैसे होता है यह रोग- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कुष्ठ एक क्रोनिक संक्रामक रोग है. यह Mycobacterium Leprae नामक बैक्टीरिया के कारण होता है. यह मुख्य रूप से स्कीन और नर्वस सिस्टम को धीरे-धीरे डैमेज करता है. अंततः यह दिव्यांगता सहित कई रोगों का कारण बन जाता है. चिकित्सकों के अनुसार इलाज नहीं होने पर कुष्ठ रोग पीड़ित व्यक्ति से नाक और मुंह से निकलकर उनके निकट और बार-बार संपर्क में आने वाले लोग संक्रमित हो सकते हैं.

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