गोड्डा: झारखंड में संथाल की राजनीति अलग तेवर की होती है. विधानसभा चुनाव में जो तस्वीर दिखती है वो लोकसभा चुनाव में नहीं दिखती. संथाल में राजनीतिक घरानों की महिलाओं दबदबा रहा है. विधानसभा की अलग-अलग सीटें महिलाएं जीतती रही हैं, लेकिन लोकसभा के चुनाव में मात खानी पड़ी है. इस मिथक को तोड़ने के लिए गुरुजी के घराने की बहू सीता सोरेन को भाजपा ने मैदान में उतारा है. संथाल में किन-किन सीटों पर महिलाओं को मिली है जीत. क्या कहता है इतिहास. हिट और फ्लॉप की पूरी कहानी बताती रिपोर्ट
शिबू सोरेन परिवार की महिलाओं का दबदबा
इस घराने की सबसे बड़ी बहू दुर्गा सोरेन की पत्नी सीता सोरेन हैं. 2009 से जामा विधानसभा सीट पर हुए तीन चुनाव बतौर झामुमो प्रत्याशी जीतती आ रही हैं. अभी चंद दिन पहले उन्होंने भाजपा ज्वाइन किया है और पार्टी ने अपने घोषित उम्मीदवार सह निवर्तमान सांसद सुनील सोरेन का टिकट काटकर सीता सोरेन को मैदान में उतारा है.
सीता सोरेन लगातार झामुमो पर उपेक्षा का आरोप लगाती रही हैं. जिसे भाजपा भुनाना चाहेगी. सीता सोरेन राज्यसभा चुनाव में हॉर्स ट्रेडिंग मामले में सात महीने जेल में रह चुकी हैं. दुमका लोकसभा सीट से शिबू सोरेन आठ बार सांसद रहे हैं. वहां से INDIA का उम्मीदवार कौन होगा अभी साफ नहीं हुआ है. हालांकि चर्चा हेमंत सोरेन के जेल से चुनाव लड़ने की है, लेकिन अगर सोरेन परिवार से देवर- भाभी एक दूसरे के सामने होंगे तो परिणाम जो भी हो, इसका असर झारखंड की राजनीति पर व्यापक असर छोड़ेगा.
वहीं, चर्चा ये भी है कि झामुमो किसी बड़े दिग्गज को मैदान में उतार सकती है. लेकिन सीता सोरेन की राह आसान नहीं है. क्योंकि दुमका लोकसभा सीट पर शिबू सोरेन की पत्नी रूपी सोरेन 1999 में लड़ चुकी हैं. जहां उन्हें भाजपा के बाबूलाल मरांडी से लगभग 4500 मतों हार का सामना करना पड़ा था. उस वक्त शिबू सोरेन राज्यसभा के सदस्य थे. जाहिर है कि सीता सोरेन के सामने इस मिथक को तोड़ने की चुनौती होगी. गौर करने वाली बात है कि एक तरफ सीता अपने नई पारी खेलने दुमका में उतरी हैं तो वहीं हेमंत की पत्नी कल्पना सोरेन गांडेय विधानसभा उपचुनाव के जरिए बड़ी राजनीतिक पारी शुरु करने में लगी हुई है.
साइमन मरांडी के परिवार की महिला
साइमन मरांडी राजमहल लोकसभा से दो बार सांसद रहे हैं. इससे पूर्व विधायक लिट्टीपाड़ा से चुनाव लड़ चुके हैं. कुछ दिनों के लिए भाजपा में गए फिर वापस झामुमो से आकर लिट्टीपाड़ा से विधायक भी बने. उनकी पत्नी सुशीला हांसदा लिट्टीपाड़ा से 1989 से 2009 तक लगातार चार बार विधायक रहीं. उन्हें उत्कृष्ट विधायक पुरस्कार से भी नवाजा गया. सुशीला हांसदा विधायक बनने से पूर्व एक शिक्षिका थीं और लिट्टीपाड़ा विधायक रहने के बाद वो लिट्टीपाड़ा की प्रमुख भी रहीं. हालांकि बाद में पंसस से चुनाव हार गई. बताते चले कि सुशीला हांसदा के पुत्र दिनेश विलियम मरांडी फिलहाल लिट्टीपाड़ा से विधायक हैं.
दीपिका पांडेय सिंह का परिवार
दीपिका पांडेय सिंह शुरुआत से ही कांग्रेस से जुड़ी रहीं. वे पहले कांग्रेस यूथ विंग से जुड़ी और प्रदेश महासचिव के लिए निर्वाचित हुए फिर राष्ट्रीय महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय सचिव बनीं. फिलहाल वे कांग्रेस की राष्ट्रीय सचिव हैं और महगामा से कांग्रेस की विधायक हैं. दीपिका पांडेय सिंह ने महगामा में ससुर अवध बिहारी सिंह की जमीन सालों बाद वापस दिलाई.
दीपिका पांडेय सिंह के ससुर महगामा विधानसभा से सर्वाधिक चार बार 1972, 1980, 1985 और 1995 में चुनाव जीत कर बिहार सरकार में मंत्री और विधायक रहे हैं. अवध बिहारी सिंह के बड़े बेटे रत्नेश्वर सिंह की दीपक पांडेय सिंह पत्नी हैं. वहीं दीपिका पांडेय सिंह के पिता अरुण पांडेय और मां प्रतिभा पांडेय भी कांग्रेसी रही हैं. अरुण पांडेय संयुक्त बिहार में पार्षद रहे हैं वहीं, माता प्रतिभा पांडेय झारखंड में समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं.
हिम्मत सिंह का परिवार की बहू राजकुमारी
गोड्डा लोकसभा के पहले सांसद प्रभु दयाल सिंह हिम्मतसिंघका के भाई रामजीवन सिंह हिम्मतसिंघका की बहू राजकुमारी हिम्मतसिंघका ने 1990 में नाला विधान सभा से कांग्रेस से चुनाव जीता और विधायक बनीं. ये संथाल के वो राजनीतिक परिवार हैं जिनके घर की महिलाओं ने विधायकी में जीत का परचम लहराया. लेकिन लोकसभा चुनाव में असफल रहीं.
इनके अलावा दो महिला जिनके परिवार की राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं रहने के बावजूद चुनावी जीत कर अपना लोहा मनवाया इनमें एक नाम लुइस मरांडी का है, जिन्होंने एक बार दुमका से भाजपा के टिकट से चुनाव जीता और वो रघुवर सरकार में मंत्री भी रहीं, हालांकि वो कुल चार चुनाव लड़ चुकी हैं. लुइस मरांडी दुमका विश्वविद्यालय में संथाली की प्राध्यापक भी रहीं हैं.
वहीं, दूसरा नाम वीणा रानी का है जो देवघर सुरक्षित सीट से 1977 जनता पार्टी के राज में चुनाव जीत कर विधायक बनी थीं. बताते कि चले कि वीणा रानी एक छात्र नेता के रूप में उभरी थी एक जुझारू नेत्री की छवि रही थी.
अब देखने वाली बात होगी कि झामुमो से बगावत कर भाजपा का टिकट से मैदान में आई सीता सोरेन ये मिथक तोड़ पहली संथाल से पहली महिला सांसद बनेंगी या नहीं.
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