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...तो इसलिए हिंसक हुए भेड़िये! बहराइच के भेड़ियों से कैसे अलग हैं महुआडांड़ वुल्फ सेंचुरी के भेड़िये - Why wolves became violent

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Sep 14, 2024, 7:41 PM IST

Mahuadanr Wolf Sanctuary. उत्तर प्रदेश के बहराइच में भेड़िए के हमले की कई खबरे आई हैं. इसके बाद सवाल उठने लगे कि आखिर भेड़िए हिंसक क्यों हो गए. इस जवाब को जानने के लिए वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव से बात की गई.

Mahuadanr Wolf Sanctuary
ईटीवी भारत ग्राफिक्स इमेज (ईटीवी भारत)

पलामू: उत्तर प्रदेश के बहराइच इलाके में भेड़ियों द्वारा इंसानों पर हमला करने की कई खबरें सामने आई हैं. पूरे भारत में बचे भेड़ियों की संख्या बाघों से भी कम है. बहराइच की घटना को लेकर भेड़ियों को लेकर कई बातें सामने आ रही हैं. बहराइच की घटना देश की पहली ऐसी घटना है, जब इंसानों पर भेड़ियों ने लगातार हमला किया है. देश में भेड़ियों के लिए एकमात्र संरक्षित क्षेत्र झारखंड का लातेहार का महुआडांड़ वुल्फ सेंचुरी है.

वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव से बात करते संवाददाता नीरज कुमार (ईटीवी भारत)

यह वुल्फ सेंचुरी 63 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. महुआडांड़ इलाके में बहराइच जैसी घटना पहले कभी नहीं हुई है. ऐसे में ईटीवी भारत ने वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव से भेड़ियों के हमले समेत कई बिंदुओं पर बात की है. प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव 1970 से वन्यजीव संरक्षण अभियान से जुड़े हैं.

बहराइच में भेड़ियों के प्रवास को किया गया प्रभावित

प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव कहते हैं कि बहराइच इलाका हिमालय की तराई में है. पूरे इलाके में गन्ने की खेती होती है. गन्ने की खेती की वजह से भेड़ियों का प्रवास प्रभावित हुआ है. भेड़िये उस इलाके में खरगोश और बड़े चूहे खाते हैं. लेकिन अब किसान गन्ने की खेती में कीटनाशक का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे खरगोश और चूहे नहीं मिल रहे हैं. झुंड की रखवाली के लिए किसानों ने कुत्ते भी पाल रखे हैं, जिससे भेड़ियों के झुंड को नुकसान हो रहा है. वे बताते हैं कि इसके अलावा स्थानीय ग्रामीण भेड़ियों के प्रवास को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं.

बदले की भावना से हमला कर रहे हैं भेड़िये

प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव कहते हैं कि भेड़ियों का प्रवास प्रभावित होने से वे बदले की भावना से काम कर रहे हैं. इस संघर्ष में भेड़ियों को ही नुकसान उठाना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि अगर भेड़ियों का प्रवास प्रभावित नहीं किया जाता है तो वे किसी इंसान पर हमला नहीं करेंगे. प्रोफेसर कहते हैं कि झारखंड के महुआडांड़ भेड़िया अभ्यारण्य में स्थिति अलग है. यहां भेड़ियों का प्रवास काफी बेहतर और सुरक्षित है. भेड़िये को यहां सुरक्षा मिल रही है और भोजन भी मिल रहा है.

झुंड के होते हैं नियम

प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव बताते हैं कि भेड़ियों के झुंड के अपने नियम होते हैं. भारत में कई जगहों पर देखा गया है कि एक भेड़िया झुंड में करीब पांच भेड़िये होते हैं, हालांकि, कई इलाकों में इनकी संख्या इससे ज्यादा भी होती है. झुंड में एक राजा भेड़िया होता है जबकि एक रानी भेड़िया होती है. रानी भेड़िया को ही बच्चे पैदा करने का अधिकार होता है. बच्चे के जन्म के बाद पूरा झुंड मिलकर बच्चों का पालन-पोषण करता है. बच्चे को जन्म देने से पहले सुरक्षित मांद की तलाश की जाती है. बच्चे तीन से चार महीने में बड़े हो जाते हैं जिसके बाद झुंड बच्चे को लेकर दूसरे इलाके में चला जाता है.

विश्व के अन्य भेड़ियों से अलग हैं भारत के भेड़िए

भारत में पाई जाने वाली भेड़ियों की प्रजाति इंडियन ग्रे वुल्फ है. इंडियन ग्रे वुल्फ अमेरिकी, साइबेरियन और दुनिया के दूसरे इलाकों में पाए जाने वाले भेड़ियों से अलग हैं. प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव बताते हैं कि भारत में मौजूद भेड़िए बहुत छोटे आकार के होते हैं जबकि दुनिया के दूसरे इलाकों के भेड़िए आकार में बहुत बड़े होते हैं. इनके झुंड में संख्या भी बहुत ज्यादा होती है.

यह भी पढ़ें:

यूपी के बहराइच के बाद रांची में भेड़ियों का आतंक, बकरी चराने गए ग्रामीणों पर किया हमला - Terror of wolves in Ranchi

1970 के बाद पहली बार हो रहा भेड़ियों का सर्वे, झारखंड में हैं 70 दुर्लभ प्रजाति के इंडियन ग्रे वुल्फ - Survey of wolves

भेड़िये आदमखोर क्यों बन रहे हैं? खाने के कमी या कुछ और है वजह, जानें - Why do wolves become man eaters

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वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव से बात करते संवाददाता नीरज कुमार (ईटीवी भारत)

यह वुल्फ सेंचुरी 63 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. महुआडांड़ इलाके में बहराइच जैसी घटना पहले कभी नहीं हुई है. ऐसे में ईटीवी भारत ने वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव से भेड़ियों के हमले समेत कई बिंदुओं पर बात की है. प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव 1970 से वन्यजीव संरक्षण अभियान से जुड़े हैं.

बहराइच में भेड़ियों के प्रवास को किया गया प्रभावित

प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव कहते हैं कि बहराइच इलाका हिमालय की तराई में है. पूरे इलाके में गन्ने की खेती होती है. गन्ने की खेती की वजह से भेड़ियों का प्रवास प्रभावित हुआ है. भेड़िये उस इलाके में खरगोश और बड़े चूहे खाते हैं. लेकिन अब किसान गन्ने की खेती में कीटनाशक का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे खरगोश और चूहे नहीं मिल रहे हैं. झुंड की रखवाली के लिए किसानों ने कुत्ते भी पाल रखे हैं, जिससे भेड़ियों के झुंड को नुकसान हो रहा है. वे बताते हैं कि इसके अलावा स्थानीय ग्रामीण भेड़ियों के प्रवास को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं.

बदले की भावना से हमला कर रहे हैं भेड़िये

प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव कहते हैं कि भेड़ियों का प्रवास प्रभावित होने से वे बदले की भावना से काम कर रहे हैं. इस संघर्ष में भेड़ियों को ही नुकसान उठाना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि अगर भेड़ियों का प्रवास प्रभावित नहीं किया जाता है तो वे किसी इंसान पर हमला नहीं करेंगे. प्रोफेसर कहते हैं कि झारखंड के महुआडांड़ भेड़िया अभ्यारण्य में स्थिति अलग है. यहां भेड़ियों का प्रवास काफी बेहतर और सुरक्षित है. भेड़िये को यहां सुरक्षा मिल रही है और भोजन भी मिल रहा है.

झुंड के होते हैं नियम

प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव बताते हैं कि भेड़ियों के झुंड के अपने नियम होते हैं. भारत में कई जगहों पर देखा गया है कि एक भेड़िया झुंड में करीब पांच भेड़िये होते हैं, हालांकि, कई इलाकों में इनकी संख्या इससे ज्यादा भी होती है. झुंड में एक राजा भेड़िया होता है जबकि एक रानी भेड़िया होती है. रानी भेड़िया को ही बच्चे पैदा करने का अधिकार होता है. बच्चे के जन्म के बाद पूरा झुंड मिलकर बच्चों का पालन-पोषण करता है. बच्चे को जन्म देने से पहले सुरक्षित मांद की तलाश की जाती है. बच्चे तीन से चार महीने में बड़े हो जाते हैं जिसके बाद झुंड बच्चे को लेकर दूसरे इलाके में चला जाता है.

विश्व के अन्य भेड़ियों से अलग हैं भारत के भेड़िए

भारत में पाई जाने वाली भेड़ियों की प्रजाति इंडियन ग्रे वुल्फ है. इंडियन ग्रे वुल्फ अमेरिकी, साइबेरियन और दुनिया के दूसरे इलाकों में पाए जाने वाले भेड़ियों से अलग हैं. प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव बताते हैं कि भारत में मौजूद भेड़िए बहुत छोटे आकार के होते हैं जबकि दुनिया के दूसरे इलाकों के भेड़िए आकार में बहुत बड़े होते हैं. इनके झुंड में संख्या भी बहुत ज्यादा होती है.

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