ETV Bharat / bharat

किंग मेकर कोल्हान का सियासत में वर्चस्व, इस चुनाव में बदली-बदली है यहां की हवा!

झारखंड की सियासत में संथाल के बाद कोल्हान का दखल काफी है. इस बार झामुमो के गढ़ में बदला समीकरण, कैसे, जानें इस रिपोर्ट से.

Why Kolhan more important than Santhal in Jharkhand assembly election 2024
ग्राफिक्स इमेज (Etv Bharat)
author img

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Oct 10, 2024, 8:20 PM IST

Updated : Oct 11, 2024, 12:19 PM IST

रांचीः झारखंड की राजनीति संथाल के ईर्द-गिर्द घूमती रहती है. इस इलाके को झामुमो का गढ़ कहा जाता है. लेकिन सही मायने में झामुमो का असली गढ़ कोल्हान है. झारखंड की राजनीति में कोल्हान का वर्चस्व भी रहा है.

अब तक मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे सात नेताओं में सबसे ज्यादा चार नेता कोल्हान के ही रहे हैं. उनके नाम हैं, अर्जुन मुंडा, मधु कोड़ा, रघुवर दास और चंपाई सोरेन. रघुवर दास के रुप में पहला गैर-आदिवासी सीएम देने का श्रेय भी कोल्हान के नाम है. शेष तीन में शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन का वास्ता संथाल जबकि सीएम रहते बाबूलाल मरांडी रामगढ़ का नेतृत्व कर चुके हैं. रामगढ़ के विधायक रहे सबीर अहम कुरैशी के निधन के बाद हुए उपचुनाव में बाबूलाल मरांडी ने सीपीआई की नादरा बेगम को हराया था.

why-kolhan-more-important-than-santhal-in-jharkhand-assembly-election-2024
कोल्हान की सियासी डेमोग्राफी (ETV Bharat)

कोल्हान में कुल 14 सीटों में से 9 सीटें एसटी, एक सीट एससी और चार सीटें अनारक्षित हैं. बेशक, 2019 के चुनाव में झामुमो, कांग्रेस और राजद के गठबंधन ने इस क्षेत्र से भाजपा का सूपड़ा साफ कर दिया था. लेकिन 2014 और 2009 के चुनाव में तस्वीर कुछ और थी. एक वक्त था जब कोल्हान में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी हुआ करती थी. इस बार का समीकरण बिल्कुल अलग है. लिहाजा, झामुमो के लिए वर्चस्व को बनाए रखना और भाजपा के लिए पुनर्वापसी बड़ी चुनौती है.

2019 में कोल्हान में चारों खाने चित हुई थी भाजपा

संथाल के मुकाबले कोल्हान में पैठ जमाना भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित होती रही है. कोल्हान प्रमंडल में तीन जिलें हैं, पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर मुख्यालय), पश्चिमी सिंहभूम (चाईबासा मुख्यालय) और सरायकेला-खरसांवा. इस प्रमंडल की कुछ 14 सीटों में से बहरागोड़ा, घाटशिला, पोटका, जुगसलाई, ईचागढ़, सरायकेला, चाईबासा, मझगांव, मनोहरपुर, चक्रधरपुर और खरसांवा यानी यानी 11 सीटों पर झामुमो ने 2019 के चुनाव में कब्जा जमाकर रिकॉर्ड बनाया था. शेष तीन सीटों में जमशेदपुर पश्चिमी और जगन्नाथपुर सीट पर कांग्रेस जीती थी. शेष एक सीट यानी जमशेदपुर पूर्वी में सरयू राय बतौर निर्दलीय जीते थे. इस लिहाज से पूरे कोल्हान से भाजपा का सफाया हो गया था.

why-kolhan-more-important-than-santhal-in-jharkhand-assembly-election-2024
2009 में था भाजपा का दबदबा (ETV Bharat)

2014 में कोल्हान में एनडीए का था दबदबा

2014 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर का असर कोल्हान में दिखा था. यहां की 14 में से 6 सीटें यानी बहरागोड़ा, घाटशिला, पोटका, जमशेदपुर पूर्वी, जमशेदपुर पश्चिमी और ईचागढ़ में भाजपा की जीत हुई थी. झामुमो ने भी सरायकेला, चाईबासा, मझगांव, मनोहरपुर, चक्रधरपुर और खरसांवा को मिलाकर 6 सीटों पर जीत दर्ज की थी. शेष दो सीटों में एनडीए की सहयोगी आजसू को जुगसलाई और बतौर निर्दलीय गीता कोड़ा ने जगन्नाथपुर सीट पर जीत हासिल की थी.

why-kolhan-more-important-than-santhal-in-jharkhand-assembly-election-2024
2014 में मोदी लहर का कोल्हान पर असर (ETV Bharat)

इससे साफ है कि 2014 में कोल्हान की जनता ने एनडीए को ज्यादा तवज्जो दिया था. खास बात है कि कोल्हान की कुल 14 सीटों में से 9 सीटें एसटी के लिए रिजर्व हैं. इनमें से सिर्फ दो सीटें पोटका और घाटशिला में भाजपा जबकि 6 सीटें यानी खरसांवा, चक्रधरपुर, मनोहरपुर, मझगांव, चाईबासा और सरायकेला में झामुमो की जीत हुई थी. एक एसटी सीट पर गीता कोड़ा जीती थीं. जुगसलाई की एससी सीट पर आजसू की जीत हुई थी.

2009 में कोल्हान में भाजपा का था वर्चस्व

2009 के चुनाव के वक्त कोल्हान में एनडीए का दबदबा था. जीत के मामले में भाजपा टॉप पर थी. भाजपा ने 14 में से 6 सीटों पर जीत दर्ज की थी. वो सीटों हैं, पोटका, जमशेदपुर पूर्वी, मझगांव, मनोहरपुर, चक्रधरपुर, खरसांवा. तब झामुमो की सिर्फ 4 सीटों यानी बहरागोड़ा, घाटशिला, सरायकेला और चाईबासा में जीत हुई थी. कांग्रेस ने जमशेदपुर पश्चिमी, आजसू ने जुगसलाई, जेवीएम ने ईचागढ़ और बतौर निर्दलीय गीता कोड़ा जगन्नाथपुर सीट से विजयी हुई थीं.

why-kolhan-more-important-than-santhal-in-jharkhand-assembly-election-2024
2019 में झामुमो ने बनाया रिकॉर्ड (ETV Bharat)

कोल्हान ने ही दिया पहला गैर आदिवासी सीएम

आज भी इस बात की चर्चा होती है कि अगर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने 2014 में खरसांवा सीट जीत ली होती तो रघुवर दास को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचना आसान नहीं होता. गाहे-बगाहे रघुवर दास के भाग्य की रेखा को झामुमो ने ही मजबूत किया था. इसी पार्टी के दशरथ गगराई ने अर्जुन मुंडा को हराकर झारखंड की राजनीति बदल दी थी.

अबकी बार बदल चुका है कोल्हान का समीकरण

लिहाजा, पिछले तीन चुनावों के नतीजे बताते हैं कि कोल्हान में बेशक 2019 के चुनाव में झामुमो के नेतृत्व वाली महागठबंधन ने भाजपा का सूपड़ा साफ कर दिया था लेकिन 2009 और 2014 के चुनाव में तस्वीर कुछ और थी. इस बार कोल्हान का समीकरण भी बदल गया है. झामुमो के दिग्गत नेता और सरायकेला से लगातार विधायक रहे पूर्व सीएम चंपाई सोरेन भाजपा में आ गये हैं. जगन्नाथपुर सीट पर वर्चस्व रखने वाले कोड़ा परिवार की गीता कोड़ा भी भाजपा में आ चुकी हैं.

झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 में भाजपा से अलग होकर पूरा सीटिंग सीएम रघुवर दास को जमशेदपुर पूर्वी में हराने वाले सरयू राय जदयू में आ गये हैं. इस बार जदयू भी एनडीए गठबंधन का हिस्सा बन गया है. इसबार आजसू भी एनडीए में है. इससे साफ है कि झामुमो का गढ़ कहा जाने वाले कोल्हान में एनडीए को असीम संभावनाएं दिख रहीं हैं. खुद पीएम मोदी 15 सितंबर को भारी बारिश के बावजूद सड़क मार्ग जमशेदपुर जाकर पार्टी के लिए कोल्हान की अहमियत बता चुके हैं.

दूसरी तरफ झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने चंपाई सोरेन के भाजपा में जाने के बाद उनकी जगह घाटशिला के रामदास सोरेन को मंत्री पद देकर अपनी प्राथमिकता बता दी है. कोल्हान से झामुमो के दीपक बिरुआ भी कैबिनेट में मंत्री हैं. जबकि कांग्रेस कोटे से मंत्री बन्ना गुप्ता लगातार जमशेदपुर पश्चिमी सीट पर मेहनत कर रहे हैं. अब कोल्हान लाइम लाइट में है. अब सियासी ऊंट किस करवट बैठेगा, ये तो आने वाला वक्त ही तय करेगा.

इसे भी पढे़ं- कोल्हान की वह सात विधानसभा सीटें जहां भाजपा को इस बार निश्चित दिख रही है जीत! जानिए, क्या है वजह - Jharkhand Assembly Election 2024

इसे भी पढ़ें- कोल्हान का किला बचाने में जुटा JMM! बनाई खास रणनीति, भाजपा ने बताया किला ढहने का डर - Jharkhand Assembly Election

इसे भी पढ़ें- चंपाई सोरेन के विकल्प की तलाश, सरायकेला में एक्टिव मोड में झामुमो! - JMM meeting

इसे भी पढ़ें- झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में इन नेताओं का टिकट फिक्स! जानें, कैसा है इनका दबदबा

रांचीः झारखंड की राजनीति संथाल के ईर्द-गिर्द घूमती रहती है. इस इलाके को झामुमो का गढ़ कहा जाता है. लेकिन सही मायने में झामुमो का असली गढ़ कोल्हान है. झारखंड की राजनीति में कोल्हान का वर्चस्व भी रहा है.

अब तक मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे सात नेताओं में सबसे ज्यादा चार नेता कोल्हान के ही रहे हैं. उनके नाम हैं, अर्जुन मुंडा, मधु कोड़ा, रघुवर दास और चंपाई सोरेन. रघुवर दास के रुप में पहला गैर-आदिवासी सीएम देने का श्रेय भी कोल्हान के नाम है. शेष तीन में शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन का वास्ता संथाल जबकि सीएम रहते बाबूलाल मरांडी रामगढ़ का नेतृत्व कर चुके हैं. रामगढ़ के विधायक रहे सबीर अहम कुरैशी के निधन के बाद हुए उपचुनाव में बाबूलाल मरांडी ने सीपीआई की नादरा बेगम को हराया था.

why-kolhan-more-important-than-santhal-in-jharkhand-assembly-election-2024
कोल्हान की सियासी डेमोग्राफी (ETV Bharat)

कोल्हान में कुल 14 सीटों में से 9 सीटें एसटी, एक सीट एससी और चार सीटें अनारक्षित हैं. बेशक, 2019 के चुनाव में झामुमो, कांग्रेस और राजद के गठबंधन ने इस क्षेत्र से भाजपा का सूपड़ा साफ कर दिया था. लेकिन 2014 और 2009 के चुनाव में तस्वीर कुछ और थी. एक वक्त था जब कोल्हान में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी हुआ करती थी. इस बार का समीकरण बिल्कुल अलग है. लिहाजा, झामुमो के लिए वर्चस्व को बनाए रखना और भाजपा के लिए पुनर्वापसी बड़ी चुनौती है.

2019 में कोल्हान में चारों खाने चित हुई थी भाजपा

संथाल के मुकाबले कोल्हान में पैठ जमाना भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित होती रही है. कोल्हान प्रमंडल में तीन जिलें हैं, पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर मुख्यालय), पश्चिमी सिंहभूम (चाईबासा मुख्यालय) और सरायकेला-खरसांवा. इस प्रमंडल की कुछ 14 सीटों में से बहरागोड़ा, घाटशिला, पोटका, जुगसलाई, ईचागढ़, सरायकेला, चाईबासा, मझगांव, मनोहरपुर, चक्रधरपुर और खरसांवा यानी यानी 11 सीटों पर झामुमो ने 2019 के चुनाव में कब्जा जमाकर रिकॉर्ड बनाया था. शेष तीन सीटों में जमशेदपुर पश्चिमी और जगन्नाथपुर सीट पर कांग्रेस जीती थी. शेष एक सीट यानी जमशेदपुर पूर्वी में सरयू राय बतौर निर्दलीय जीते थे. इस लिहाज से पूरे कोल्हान से भाजपा का सफाया हो गया था.

why-kolhan-more-important-than-santhal-in-jharkhand-assembly-election-2024
2009 में था भाजपा का दबदबा (ETV Bharat)

2014 में कोल्हान में एनडीए का था दबदबा

2014 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर का असर कोल्हान में दिखा था. यहां की 14 में से 6 सीटें यानी बहरागोड़ा, घाटशिला, पोटका, जमशेदपुर पूर्वी, जमशेदपुर पश्चिमी और ईचागढ़ में भाजपा की जीत हुई थी. झामुमो ने भी सरायकेला, चाईबासा, मझगांव, मनोहरपुर, चक्रधरपुर और खरसांवा को मिलाकर 6 सीटों पर जीत दर्ज की थी. शेष दो सीटों में एनडीए की सहयोगी आजसू को जुगसलाई और बतौर निर्दलीय गीता कोड़ा ने जगन्नाथपुर सीट पर जीत हासिल की थी.

why-kolhan-more-important-than-santhal-in-jharkhand-assembly-election-2024
2014 में मोदी लहर का कोल्हान पर असर (ETV Bharat)

इससे साफ है कि 2014 में कोल्हान की जनता ने एनडीए को ज्यादा तवज्जो दिया था. खास बात है कि कोल्हान की कुल 14 सीटों में से 9 सीटें एसटी के लिए रिजर्व हैं. इनमें से सिर्फ दो सीटें पोटका और घाटशिला में भाजपा जबकि 6 सीटें यानी खरसांवा, चक्रधरपुर, मनोहरपुर, मझगांव, चाईबासा और सरायकेला में झामुमो की जीत हुई थी. एक एसटी सीट पर गीता कोड़ा जीती थीं. जुगसलाई की एससी सीट पर आजसू की जीत हुई थी.

2009 में कोल्हान में भाजपा का था वर्चस्व

2009 के चुनाव के वक्त कोल्हान में एनडीए का दबदबा था. जीत के मामले में भाजपा टॉप पर थी. भाजपा ने 14 में से 6 सीटों पर जीत दर्ज की थी. वो सीटों हैं, पोटका, जमशेदपुर पूर्वी, मझगांव, मनोहरपुर, चक्रधरपुर, खरसांवा. तब झामुमो की सिर्फ 4 सीटों यानी बहरागोड़ा, घाटशिला, सरायकेला और चाईबासा में जीत हुई थी. कांग्रेस ने जमशेदपुर पश्चिमी, आजसू ने जुगसलाई, जेवीएम ने ईचागढ़ और बतौर निर्दलीय गीता कोड़ा जगन्नाथपुर सीट से विजयी हुई थीं.

why-kolhan-more-important-than-santhal-in-jharkhand-assembly-election-2024
2019 में झामुमो ने बनाया रिकॉर्ड (ETV Bharat)

कोल्हान ने ही दिया पहला गैर आदिवासी सीएम

आज भी इस बात की चर्चा होती है कि अगर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने 2014 में खरसांवा सीट जीत ली होती तो रघुवर दास को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचना आसान नहीं होता. गाहे-बगाहे रघुवर दास के भाग्य की रेखा को झामुमो ने ही मजबूत किया था. इसी पार्टी के दशरथ गगराई ने अर्जुन मुंडा को हराकर झारखंड की राजनीति बदल दी थी.

अबकी बार बदल चुका है कोल्हान का समीकरण

लिहाजा, पिछले तीन चुनावों के नतीजे बताते हैं कि कोल्हान में बेशक 2019 के चुनाव में झामुमो के नेतृत्व वाली महागठबंधन ने भाजपा का सूपड़ा साफ कर दिया था लेकिन 2009 और 2014 के चुनाव में तस्वीर कुछ और थी. इस बार कोल्हान का समीकरण भी बदल गया है. झामुमो के दिग्गत नेता और सरायकेला से लगातार विधायक रहे पूर्व सीएम चंपाई सोरेन भाजपा में आ गये हैं. जगन्नाथपुर सीट पर वर्चस्व रखने वाले कोड़ा परिवार की गीता कोड़ा भी भाजपा में आ चुकी हैं.

झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 में भाजपा से अलग होकर पूरा सीटिंग सीएम रघुवर दास को जमशेदपुर पूर्वी में हराने वाले सरयू राय जदयू में आ गये हैं. इस बार जदयू भी एनडीए गठबंधन का हिस्सा बन गया है. इसबार आजसू भी एनडीए में है. इससे साफ है कि झामुमो का गढ़ कहा जाने वाले कोल्हान में एनडीए को असीम संभावनाएं दिख रहीं हैं. खुद पीएम मोदी 15 सितंबर को भारी बारिश के बावजूद सड़क मार्ग जमशेदपुर जाकर पार्टी के लिए कोल्हान की अहमियत बता चुके हैं.

दूसरी तरफ झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने चंपाई सोरेन के भाजपा में जाने के बाद उनकी जगह घाटशिला के रामदास सोरेन को मंत्री पद देकर अपनी प्राथमिकता बता दी है. कोल्हान से झामुमो के दीपक बिरुआ भी कैबिनेट में मंत्री हैं. जबकि कांग्रेस कोटे से मंत्री बन्ना गुप्ता लगातार जमशेदपुर पश्चिमी सीट पर मेहनत कर रहे हैं. अब कोल्हान लाइम लाइट में है. अब सियासी ऊंट किस करवट बैठेगा, ये तो आने वाला वक्त ही तय करेगा.

इसे भी पढे़ं- कोल्हान की वह सात विधानसभा सीटें जहां भाजपा को इस बार निश्चित दिख रही है जीत! जानिए, क्या है वजह - Jharkhand Assembly Election 2024

इसे भी पढ़ें- कोल्हान का किला बचाने में जुटा JMM! बनाई खास रणनीति, भाजपा ने बताया किला ढहने का डर - Jharkhand Assembly Election

इसे भी पढ़ें- चंपाई सोरेन के विकल्प की तलाश, सरायकेला में एक्टिव मोड में झामुमो! - JMM meeting

इसे भी पढ़ें- झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में इन नेताओं का टिकट फिक्स! जानें, कैसा है इनका दबदबा

Last Updated : Oct 11, 2024, 12:19 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.