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क्यों मनाया जाता है हिमालय दिवस? इतिहास से लेकर महत्व, चुनौतियां के साथ फैक्ट पर एक नजर - Himalaya Diwas 2024 - HIMALAYA DIWAS 2024

Himalaya Diwas 2024 Himalaya Diwas History, Factsof Himalaya हिमालय दिवस की शुरुआत पर्वतराज को बचाने के लिए शुरू की गई थी. पर्वतराज हिमालय की हवा, पानी, जंगल और मिट्टी को बचाने के उद्देश्य से हिमालय दिवस मनाया जाता है.

HIMALAYA DIWAS 2024
हिमालय दिवस 2024 (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Sep 9, 2024, 6:38 AM IST

देहरादून: हर साल 9 सितंबर को हिमालय दिवस मनाया जाता है. ये दिन हिमालयी पारिस्थितिकी और क्षेत्र के संरक्षण के लिए मनाया जाता है. हिमालय वन्यजीवों के संरक्षण और देश को खराब मौसम की स्थिति से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. हिमालय भारत की प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत में बहुत महत्व रखता है. यह पर्वत श्रृंखला भूगोल के साथ-साथ जीव विज्ञान और संस्कृति में भी महत्वपूर्ण है. हिमालय पर्वत पश्चिम-उत्तर पश्चिम से पूर्व-दक्षिण पूर्व तक 2400 किलोमीटर तक फैला हुआ है. इसके पश्चिम में नंगा पर्वत और पूर्व में नमचा बरवा इसके आधार हैं. उत्तरी हिमालय काराकोरम और हिंदू कुश पर्वतों से घिरा हुआ है. सिंधु-त्सांगपो सिवनी एक सीमा के रूप में कार्य करती है, जो 50 से 60 किलोमीटर चौड़ी है, जो इसे उत्तरी दिशा में तिब्बती पठार से अलग करती है.

उत्तराखंड ने लिया इनिशिएटिव: हिमालय दिवस की शुरुआत 2014 में उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने की थी. पर्यावरणविद अनिल जोशी के साथ ही अन्य भारतीय पर्यावरणविदों ने इस विचार को विकसित किया था. सभी हिमालयी राज्यों के लोगों को उनके साझा पर्यावरण के लिए एक मंच पर लाने के प्रयास के लिए इसकी शुरुआत हुई. उत्तराखंड में 2010 के मानसून, बाढ़ और 2013 केदारनाथ आपदा जैसी प्राकृतिक आपदाओं के बाद नाजुक हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने की जरूरत थी, जिसके लिए इस दिन को डेडिकेट किया गया.

हिमालय का महत्व: हिमालय न केवल भारत बल्कि पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण जीवन रेखा के रूप में कार्य करता है. यह पर्वत श्रृंखला भारत की प्रमुख नदियों-गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र - का जन्मस्थान है, जो लाखों लोगों के जीवन के लिए आवश्यक हैं. हिमालय के ग्लेशियर नदियों को पानी प्रदान करते हैं, जिससे उन्हें 'जल संरक्षण का स्रोत' उपनाम मिला है. अपने भौगोलिक महत्व से परे, हिमालय एक अद्वितीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्य रखता है. बदरीनाथ, केदारनाथ, अमरनाथ और कैलाश मानसरोवर जैसे तीर्थ स्थल हिंदू धर्म में पवित्र स्थलों के रूप में पूजनीय हैं. इसके अतिरिक्त, हिमालय पौधों और जानवरों की एक विशाल श्रृंखला का घर है, जिनमें से कई वैज्ञानिक और औषधीय रुचि के हैं.

हिमालय संरक्षण के लिए उठाए गए कदम: इस दिन को मनाने का एक मुख्य उद्देश्य हिमालय के महत्व को पहचानना और इसके संरक्षण के लिए हर संभव प्रयास करना है. इस प्रयास में न केवल सरकार और गैर-सरकारी संगठन शामिल हैं, बल्कि हिमालय के संरक्षण में स्थानीय समुदाय भी शामिल हैं. हिमालय के संरक्षण के लिए उठाए गए कदमों में पेड़ लगाना, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के प्रयास, टिकाऊ पर्यटन को बढ़ावा देना और स्थानीय समुदायों के साथ साझेदारी में रणनीति विकसित करना शामिल है. हिमालयी क्षेत्र के प्राकृतिक पर्यावरण को संरक्षित करने के लक्ष्य के साथ भारत सरकार द्वारा कई पहल भी लागू की जा रही हैं.

हिमालय के फैक्ट

  • हिमालय, जो लगभग 4.2 मिलियन वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है और उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के बाद सबसे अधिक बर्फ और हिम रखता है, को पृथ्वी का तीसरा ध्रुव भी माना जाता है.
  • हिमालय विश्व की सबसे युवा पर्वत श्रृंखला है, जिसका इतिहास लगभग 70 मिलियन वर्ष पुराना है.
  • विश्व में हिमालय की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट ऐसी बर्फ से ढकी हुई है जो कभी पिघलती नहीं.
  • दुनिया की सबसे युवा पर्वत श्रृंखला अभी भी प्रति वर्ष लगभग एक इंच की गति से बढ़ रही है, क्योंकि महाद्वीपों का स्थानांतरण जारी है, जिससे भारत और उत्तर की ओर बढ़ रहा है.
  • हिमालय पृथ्वी की 20% जनसंख्या का भरण-पोषण करता है.

हिमालय दिवस सांस्कृतिक, धार्मिक और महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन के रूप में हिमालय के महत्व को उजागर करता है. यह भविष्य की पीढ़ियों के लिए इन पहाड़ों को संरक्षित करने के लिए सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर देता है. यह दिन हमें अपने पर्यावरण के प्रति सचेत रहने और अपने प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिए कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित करता है. यह न केवल पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वालों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के महत्व के बारे में एक वैश्विक संदेश भी देता है.

पढ़ें-हिमालयवासी सिर्फ आपदाओं को झेलने के लिए नहीं, इकोनॉमी-इकोलॉजी के साथ चलने की जरूरत-अनिल जोशी

देहरादून: हर साल 9 सितंबर को हिमालय दिवस मनाया जाता है. ये दिन हिमालयी पारिस्थितिकी और क्षेत्र के संरक्षण के लिए मनाया जाता है. हिमालय वन्यजीवों के संरक्षण और देश को खराब मौसम की स्थिति से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. हिमालय भारत की प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत में बहुत महत्व रखता है. यह पर्वत श्रृंखला भूगोल के साथ-साथ जीव विज्ञान और संस्कृति में भी महत्वपूर्ण है. हिमालय पर्वत पश्चिम-उत्तर पश्चिम से पूर्व-दक्षिण पूर्व तक 2400 किलोमीटर तक फैला हुआ है. इसके पश्चिम में नंगा पर्वत और पूर्व में नमचा बरवा इसके आधार हैं. उत्तरी हिमालय काराकोरम और हिंदू कुश पर्वतों से घिरा हुआ है. सिंधु-त्सांगपो सिवनी एक सीमा के रूप में कार्य करती है, जो 50 से 60 किलोमीटर चौड़ी है, जो इसे उत्तरी दिशा में तिब्बती पठार से अलग करती है.

उत्तराखंड ने लिया इनिशिएटिव: हिमालय दिवस की शुरुआत 2014 में उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने की थी. पर्यावरणविद अनिल जोशी के साथ ही अन्य भारतीय पर्यावरणविदों ने इस विचार को विकसित किया था. सभी हिमालयी राज्यों के लोगों को उनके साझा पर्यावरण के लिए एक मंच पर लाने के प्रयास के लिए इसकी शुरुआत हुई. उत्तराखंड में 2010 के मानसून, बाढ़ और 2013 केदारनाथ आपदा जैसी प्राकृतिक आपदाओं के बाद नाजुक हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने की जरूरत थी, जिसके लिए इस दिन को डेडिकेट किया गया.

हिमालय का महत्व: हिमालय न केवल भारत बल्कि पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण जीवन रेखा के रूप में कार्य करता है. यह पर्वत श्रृंखला भारत की प्रमुख नदियों-गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र - का जन्मस्थान है, जो लाखों लोगों के जीवन के लिए आवश्यक हैं. हिमालय के ग्लेशियर नदियों को पानी प्रदान करते हैं, जिससे उन्हें 'जल संरक्षण का स्रोत' उपनाम मिला है. अपने भौगोलिक महत्व से परे, हिमालय एक अद्वितीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्य रखता है. बदरीनाथ, केदारनाथ, अमरनाथ और कैलाश मानसरोवर जैसे तीर्थ स्थल हिंदू धर्म में पवित्र स्थलों के रूप में पूजनीय हैं. इसके अतिरिक्त, हिमालय पौधों और जानवरों की एक विशाल श्रृंखला का घर है, जिनमें से कई वैज्ञानिक और औषधीय रुचि के हैं.

हिमालय संरक्षण के लिए उठाए गए कदम: इस दिन को मनाने का एक मुख्य उद्देश्य हिमालय के महत्व को पहचानना और इसके संरक्षण के लिए हर संभव प्रयास करना है. इस प्रयास में न केवल सरकार और गैर-सरकारी संगठन शामिल हैं, बल्कि हिमालय के संरक्षण में स्थानीय समुदाय भी शामिल हैं. हिमालय के संरक्षण के लिए उठाए गए कदमों में पेड़ लगाना, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के प्रयास, टिकाऊ पर्यटन को बढ़ावा देना और स्थानीय समुदायों के साथ साझेदारी में रणनीति विकसित करना शामिल है. हिमालयी क्षेत्र के प्राकृतिक पर्यावरण को संरक्षित करने के लक्ष्य के साथ भारत सरकार द्वारा कई पहल भी लागू की जा रही हैं.

हिमालय के फैक्ट

  • हिमालय, जो लगभग 4.2 मिलियन वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है और उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के बाद सबसे अधिक बर्फ और हिम रखता है, को पृथ्वी का तीसरा ध्रुव भी माना जाता है.
  • हिमालय विश्व की सबसे युवा पर्वत श्रृंखला है, जिसका इतिहास लगभग 70 मिलियन वर्ष पुराना है.
  • विश्व में हिमालय की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट ऐसी बर्फ से ढकी हुई है जो कभी पिघलती नहीं.
  • दुनिया की सबसे युवा पर्वत श्रृंखला अभी भी प्रति वर्ष लगभग एक इंच की गति से बढ़ रही है, क्योंकि महाद्वीपों का स्थानांतरण जारी है, जिससे भारत और उत्तर की ओर बढ़ रहा है.
  • हिमालय पृथ्वी की 20% जनसंख्या का भरण-पोषण करता है.

हिमालय दिवस सांस्कृतिक, धार्मिक और महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन के रूप में हिमालय के महत्व को उजागर करता है. यह भविष्य की पीढ़ियों के लिए इन पहाड़ों को संरक्षित करने के लिए सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर देता है. यह दिन हमें अपने पर्यावरण के प्रति सचेत रहने और अपने प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिए कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित करता है. यह न केवल पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वालों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के महत्व के बारे में एक वैश्विक संदेश भी देता है.

पढ़ें-हिमालयवासी सिर्फ आपदाओं को झेलने के लिए नहीं, इकोनॉमी-इकोलॉजी के साथ चलने की जरूरत-अनिल जोशी

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