शिमला: 15 फरवरी, राज्यसभा चुनाव 2024 को लेकर नामांकन का आखिरी दिन. कांग्रेस ने एक दिन पहले ही जाने-माने वकील और राष्ट्रीय प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी को हिमाचल से राज्यसभा के लिए अपना उम्मीदवार तय किया था. जेपी नड्डा की सीट खाली हो रही है, जो मौजूदा आंकड़ों के हिसाब से कांग्रेस के खाते में जानी थी. कांग्रेस के लिए सबकुछ ठीक चल रहा था लेकिन नामांकन के आखिरी दिन बीजेपी ने अपना उम्मीदवार भी उतार दिया. बीजेपी ने हर्ष महाजन को उम्मीदवार बनाया है जो 45 बरस तक कांग्रेस में रहे और बीते विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के पाले में आ गए. कल तक लग रहा था कि बिना वोटिंग के ही कांग्रेस उम्मीदवार राज्यसभा पहुंच जाएगा लेकिन बीजेपी के कैंडिडेट उतारने से चुनाव में ट्विस्ट आ गया है. अब 27 फरवरी को वोटिंग से ही हार-जीत का फैसला होगा.
क्या बीजेपी 'खेला' करने उतरी है ?
हिमाचल में मौजूदा समय में जो एक सीट खाली हो रही है. वोटों के गणित के हिसाब से जिसे 35 विधायकों के वोट मिलेंगे वो राज्यसभा पहुंचेगा. कल तक ये सीधे कांग्रेस की झोली में जा रही थी लेकिन बीजेपी के उम्मीदवार उतारते ही मुकाबला दिलचस्प हो गया है. राज्य में 40 विधायकों के साथ कांग्रेस की पूर्ण बहुमत वाली सरकार है, जबकि बीजेपी के 25 विधायक हैं और 3 निर्दलीय विधायक भी वोटिंग में हिस्सा लेंगे. अब सवाल है कि अगर ये सीट सीधे-सीधे कांग्रेस के खाते में जा रही थी तो बीजेपी ने उम्मीदवार क्यों उतारा है ? क्या बीजेपी हिमाचल में भी 'खेला' करने की तैयारी में है.
कांग्रेस, कलह और लोकसभा चुनाव
देश के तमाम राज्यों की तरह हिमाचल में भी कांग्रेस की कलह गाथा किसी से छिपी नहीं है. मौजूदा समय में सुधीर शर्मा से लेकर राजेंद्र राणा तक अपनी नाराजगी जाहिर करते रहे हैं. प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह कार्यकर्ताओं की अनदेखी पर अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा करती रहती हैं और कुछ अपनी सरकार में मलाईदार पोस्ट ना मिलने से नाराज हैं. इस बीच राज्यसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव दहलीज पर दस्तक देने को हैं. बीजेपी की मंशा इसी अंतर्कलह का फायदा उठाने की है.
वरिष्ठ पत्रकार नवनीत शर्मा के मुताबिक "आंकड़ों के आइने में हिमाचल की राज्यसभा सीट कांग्रेस के हाथ में दिख रही है लेकिन राजनीति में कभी भी दो और दो चार नहीं होता है. बीजेपी के नजरिये से देखें तो कांग्रेस सरकार और संगठन में तालमेल की कमी है, कुछ बोर्ड निगमों में पद ना मिलने से नाराज हैं तो कुछ का कैबिनेट की कुर्सी का इंतजार खत्म ही नहीं हो रहा. प्रदेश अध्यक्ष अपनी ही सरकार पर कार्यकर्ताओं की अनदेखी का आरोप लगा रही हैं. ऐसे में उम्मीद है कि ये नाराजगी क्रॉस वोटिंग के रूप में सामने आए, जिससे बीजेपी को भले फायदा ना हो लेकिन कांग्रेस को नुकसान जरूर हो जाएगा. जो लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी को बैकफुट पर जरूर ला देगा"
हर्ष महाजन की दावेदारी कितनी मजबूत है ?
राज्यसभा की जंग के लिए एक दिन पहले तक मौन रही बीजेपी ने नामांकन के आखिरी दिन हर्ष महाजन को मैदान में उतारा है. सियासी गलियारों में बीजेपी के इस मूव की तारीफ भी हो रही है, क्योंकि अब तक किसी को कानों कान ख़बर नहीं थी कि बीजेपी उम्मीदवार उतारेगी और वो भी हर्ष महाजन के रूप में.
हर्ष महाजन 4 दशक से ज्यादा वक्त कांग्रेस में रहे हैं लेकिन 2022 में हुए विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने 'हाथ' छोड़कर 'कमल' थाम लिया था. तीन बार चंबा से विधायक रहे हर्ष महाजन की गिनती पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के सबसे करीबियों में होती है. कांग्रेस सरकार में मंत्री से लेकर संगठन में कार्यकारी अध्यक्ष तक की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं. बीजेपी ने भी उन्हें हिमाचल में पार्टी के कोर ग्रुप का सदस्य बनाया है.
नवनीत शर्मा भी मानते हैं कि "हर्ष महाजन को राज्यसभा के रण में उतारना बीजेपी का बेहतरीन मूव है. पार्टी ने कांग्रेस को कांग्रेस से हथियार से ही काटने की सोची है. हर्ष महाजन वीरभद्र सिंह के रणनीतिकारों में रहे हैं और इतने लंबे अरसे तक कांग्रेस में रहने के कारण उनके पार्टी में अच्छे कनेक्शन हैं. जिनका वो कितना फायदा उठा पाएंगे, ये वक्त बताएगा. वैसे उनके लिए ये चुनाव जीतना फिलहाल दूर की कौड़ी लग रहा है, नतीजा उनके पक्ष में हो या नहीं लेकिन उनकी कोशिश कांग्रेस को डेंट करने की रहेगी और बीजेपी भी यही चाहती है".
कांग्रेस की बढ़ी धुकधुकी
राज्यसभा के रण में बीजेपी के ताल ठोकने के साथ ही कांग्रेस की धुकधुकी बढ़ गई है. मौजूदा आंकड़ों के हिसाब से सियासी पंडित आंख बंद करके कांग्रेस की जीत पर दांव लगा रहे हैं लेकिन कांग्रेस की परेशानी जीत और हार से परे वो अंदरूनी कलह है जो एक बार फिर जगजाहिर हो सकती है. वो भी ऐसे मोड़ पर जहां से लोकसभा चुनाव चंद कदम दूर हैं. बीजेपी पहले ही 4-0 से क्लीन स्वीप का दावा कर रही है, इससे पहले 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी हिमाचल की चारों सीटों पर कमल खिला था.
राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार जीत भी जाता है और एक या दो कांग्रेसियों की नाराजगी क्रॉस वोटिंग के जरिये सामने आई तो पार्टी जीतने के बाद भी हार जाएगी, क्योंकि पार्टी को इसके परिणाम लोकसभा चुनाव में झेलने पड़ेंगे.
कांग्रेस अपने कुनबे को एकजुट करने की नसीहत हर मोर्चे पर देती है लेकिन नसीहत की फजीहत अपने ही कर देते हैं. कुछ विधायकों का मिजाज सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक खुलकर सामने आ चुका है. कार्यकर्ताओं की नाराजगी का झंडा खुद प्रतिभा सिंह उठाए हुए है. तीन निर्दलीय विधायकों में से भी दो विधायक ऐसे हैं जो या तो भाजपा के करीब हैं या भाजपा से नाराज होकर चुनाव लड़े थे. मौजूदा गणित के हिसाब से दो, चार अपने विधायकों की नाराजगी और तीन निर्दलीय कांग्रेस की जीत पर तो असर नहीं डाल पाएंगे. लेकिन इससे ज्यादा नाराजगी नंबर गेम में बीजेपी उम्मीदवार को फायदा पहुंचा देगी.
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