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छत्तीसगढ़ में पहली बार हुई गिद्धों की गिनती, जटायु संरक्षण अभियान को मिलेगी मजबूती - vultures save Work begins In india - VULTURES SAVE WORK BEGINS IN INDIA

देश में 99 प्रतिशत तक विलुप्त हो चुके गिद्धों को बचाने की पहल की जा रही है. इसे लेकर कई जगहों पर गिद्धों की गणना की जा रही है. सोमवार से कवर्धा में गिद्धों के सर्वे का काम शुरू हुआ है.

vultures save Work begins In india
गिद्ध को बचाने की कवायद तेज
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Apr 12, 2024, 8:39 PM IST

कवर्धा: भारत में 99 प्रतिशत विलुप्त हो चुके गिद्ध को बचाने के लिए गिद्धों की गणना शुरू की गई है. गिद्धों की गणना कर उनके अनुकूल वातावरण बनाने और उनके पसंदीदा चीजों को उनके इलाके में उपलब्ध कराने की ओर अब ध्यान दिया जा रहा है. ताकि देशभर में विलुप्त हो चुके गिद्ध पक्षी को बचाया जा सके. इसके लिए वल्चर कंजर्वेशन एसोसिएशन की टीम खास अभियान चला रही है. खास बात यह है कि गिद्धों की गणना की शुरुआत अचानकमार टाइगर रिजर्व से शुरू हुई है. अचानकमार टाइगर रिजर्व क्षेत्र से लगे 500 किलोमीटर दायरे में आने वाले मध्यप्रदेश के 10 जिले और छत्तीसगढ़ के 5 जिलों में इसकी गणना की जाएगी.

कवर्धा में सर्वे का काम शुरू: मिली जानकारी के मुताबिक गिद्धों की गणना की शुरुआत 8 अप्रैल को अचानकमार टाइगर रिजर्व से की गई है, जो कि बिलासपुर, मुंगेली, कटघोरा वन मंडल के बाद अब कबीरधाम जिले में जणना का काम किया जा रहा है. इस बारे में अचानकमार टाइगर रिजर्व वल्चर कंजर्वेशन एसोसिएट अभिजीत शर्मा ने मीडिया को जानकारी दी कि, "कबीरधाम के वन मंडल अंतर्गत पूर्व में व्हाइट रम्प्ड वल्चर यानी कि बंगाल का गिद्ध पाए जाने की सूचना मिली थी. वर्तमान सर्वे में इजिप्शियन वल्चर यानी कि सफेद गिद्ध पाया गया है. इस लिहाज से उम्मीद है कि इस विलुप्त प्रजाति का गिद्ध इस क्षेत्र पाया जा सकता है. यही कारण है कि यहां सर्वे कराया जा रहा है."

साल 1990 के पहले गिद्ध बहुत ही आसानी से देखे जाते थे, लेकिन साल 1990 से साल 2008 के बाद गिद्ध कम दिखने लगे. इसका प्रमुख कारण मवेशियों पर जहरीली दवाओं का इस्तेमाल करना है. सस्ती होने के कारण यह दवाई बाजार में आसानी से मिल जाती है. इसका गंभीर असर गिद्धों पर पड़ा. मृत मवेशियों के शरीर में डाइक्लोफिनेक मांस के जरिए गिद्धों की पेट में ये दवाइयां पहुंची और गिद्धों की किडनी पर असर डालने लगा. इससे गिद्धों की मौत होने लगी. लेकिन जैसे ही इसकी जानकारी भारत सरकार को मिली तो, डाइक्लोफिनेक, एसिक्लोफेनेक और केटोप्रोफेन दवा को गिद्धों के लिए खतरनाक पाए जाने पर बैन कर दिया गया.-अभिजीत शर्मा, प्रमुख अधिकारी, सर्वे टीम

एक सप्ताह तक चलेगा सर्वे: इस पूरे मामले में कबीरधाम जिले के वन मंडल अधिकारी शशि कुमार ने कहा कि, "जिले के वनांचल क्षेत्र में गिद्धों का सर्वे किया जा रहा है. यह काम सोमवार से शुरू किया गया है. सर्वे का काम एक सप्ताह तक चलेगा. पूरे देश में विलुप्त हो चुके गिद्धों के संरक्षण का काम किया जा रहा है." ऐसे में ये साफ है कि गिद्धों की संख्या बढ़ाने पर अब ध्यान दिया जा रहा है. कवर्धा में सोमवार से सर्वे का काम शुरू हुआ है. एक सप्ताह में ये सर्वे पूरा हो जाएगा.

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कवर्धा: भारत में 99 प्रतिशत विलुप्त हो चुके गिद्ध को बचाने के लिए गिद्धों की गणना शुरू की गई है. गिद्धों की गणना कर उनके अनुकूल वातावरण बनाने और उनके पसंदीदा चीजों को उनके इलाके में उपलब्ध कराने की ओर अब ध्यान दिया जा रहा है. ताकि देशभर में विलुप्त हो चुके गिद्ध पक्षी को बचाया जा सके. इसके लिए वल्चर कंजर्वेशन एसोसिएशन की टीम खास अभियान चला रही है. खास बात यह है कि गिद्धों की गणना की शुरुआत अचानकमार टाइगर रिजर्व से शुरू हुई है. अचानकमार टाइगर रिजर्व क्षेत्र से लगे 500 किलोमीटर दायरे में आने वाले मध्यप्रदेश के 10 जिले और छत्तीसगढ़ के 5 जिलों में इसकी गणना की जाएगी.

कवर्धा में सर्वे का काम शुरू: मिली जानकारी के मुताबिक गिद्धों की गणना की शुरुआत 8 अप्रैल को अचानकमार टाइगर रिजर्व से की गई है, जो कि बिलासपुर, मुंगेली, कटघोरा वन मंडल के बाद अब कबीरधाम जिले में जणना का काम किया जा रहा है. इस बारे में अचानकमार टाइगर रिजर्व वल्चर कंजर्वेशन एसोसिएट अभिजीत शर्मा ने मीडिया को जानकारी दी कि, "कबीरधाम के वन मंडल अंतर्गत पूर्व में व्हाइट रम्प्ड वल्चर यानी कि बंगाल का गिद्ध पाए जाने की सूचना मिली थी. वर्तमान सर्वे में इजिप्शियन वल्चर यानी कि सफेद गिद्ध पाया गया है. इस लिहाज से उम्मीद है कि इस विलुप्त प्रजाति का गिद्ध इस क्षेत्र पाया जा सकता है. यही कारण है कि यहां सर्वे कराया जा रहा है."

साल 1990 के पहले गिद्ध बहुत ही आसानी से देखे जाते थे, लेकिन साल 1990 से साल 2008 के बाद गिद्ध कम दिखने लगे. इसका प्रमुख कारण मवेशियों पर जहरीली दवाओं का इस्तेमाल करना है. सस्ती होने के कारण यह दवाई बाजार में आसानी से मिल जाती है. इसका गंभीर असर गिद्धों पर पड़ा. मृत मवेशियों के शरीर में डाइक्लोफिनेक मांस के जरिए गिद्धों की पेट में ये दवाइयां पहुंची और गिद्धों की किडनी पर असर डालने लगा. इससे गिद्धों की मौत होने लगी. लेकिन जैसे ही इसकी जानकारी भारत सरकार को मिली तो, डाइक्लोफिनेक, एसिक्लोफेनेक और केटोप्रोफेन दवा को गिद्धों के लिए खतरनाक पाए जाने पर बैन कर दिया गया.-अभिजीत शर्मा, प्रमुख अधिकारी, सर्वे टीम

एक सप्ताह तक चलेगा सर्वे: इस पूरे मामले में कबीरधाम जिले के वन मंडल अधिकारी शशि कुमार ने कहा कि, "जिले के वनांचल क्षेत्र में गिद्धों का सर्वे किया जा रहा है. यह काम सोमवार से शुरू किया गया है. सर्वे का काम एक सप्ताह तक चलेगा. पूरे देश में विलुप्त हो चुके गिद्धों के संरक्षण का काम किया जा रहा है." ऐसे में ये साफ है कि गिद्धों की संख्या बढ़ाने पर अब ध्यान दिया जा रहा है. कवर्धा में सोमवार से सर्वे का काम शुरू हुआ है. एक सप्ताह में ये सर्वे पूरा हो जाएगा.

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