नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने उस फैसले की रेट्रोस्पेक्टिव एप्लीकेबिलिटी (Retrospective Applicability) के बारे में विशेष शर्तें तय कीं, जिसमें केंद्र सरकार द्वारा लगाई गई रॉयल्टी के अलावा मिनरल्स और मिनरल्स युक्त भूमि पर टैक्स लगाने के लिए राज्यों की विधायी क्षमता की पुष्टि की गई थी. 25 जुलाई को 8:1 के बहुमत वाले फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मिनरल अधिकारों पर टैक्स लगाने की विधायी शक्ति राज्यों के पास है.
पीठ की ओर से फैसला सुनाते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने निर्देश दिया कि राज्य टैक्स की मांग लगा सकते हैं या रेन्यू डिमांड कर सकते हैं. टैक्स की मांग 1 अप्रैल, 2005 से पहले के लेन-देन पर लागू नहीं होगी. टैक्स की डिमांड के भुगतान का समय 1 अप्रैल, 2026 से शुरू होकर 12 साल की अवधि में किश्तों में विभाजित किया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फैसला सुरक्षित रखा था कि खनिज अधिकारों और खनिज युक्त भूमि पर टैक्स लगाने के राज्यों के अधिकार को बरकरार रखने वाले उसके 25 जुलाई के फैसले का पूर्वव्यापी या भावी प्रभाव होगा.
9 जजों की बेंच में कौन कौन शामिल?
बता दें कि फैसला सुनाने वाली 9 जजों की बेंच की अध्यक्षता सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने की और इसमें जस्टिस हृषिकेश रॉय, अभय ओका, बीवी नागरत्ना, जेबी पारदीवाला, मनोज मिश्रा, उज्जल भुयान, एससी शर्मा, जस्टिस बीवी और एजी मसीह शामिल थे. जस्टिस बीवी नागरत्ना ने असहमति वाला फैसला सुनाया.
1989 के उस निर्णय को खारिज किया
इससे पहले कोर्ट ने 25 जुलाई को 1989 के उस निर्णय को खारिज कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि खनिजों और खनिज युक्त भूमि पर रॉयल्टी लगाने का अधिकार केवल केंद्र के पास है. विपक्ष द्वारा शासित कुछ राज्य, जो खनिज समृद्ध भी हैं, अब 1989 के फैसले के बाद से केंद्र द्वारा लगाई गई रॉयल्टी और खनन कंपनियों से टैक्स की वापसी की मांग कर रहे हैं.
केंद्र सरकार ने खनिज संपन्न राज्यों की उस याचिका का सर्वोच्च न्यायालय में कड़ा विरोध किया था जिसमें उसने 1989 से खदानों और खनिज युक्त भूमि पर लगाई गई रॉयल्टी वापस करने की मांग की थी.
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया कि मध्य प्रदेश और राजस्थान, जो भाजपा शासित हैं, चाहते हैं कि फैसले को भावी दृष्टि से लागू किया जाए.
केंद्र सरकार ने जोर देकर कहा कि पूर्वव्यापी प्रभाव से कथित बकाया का भुगतान करने के लिए कहने वाले किसी भी आदेश का बहुध्रुवीय प्रभाव होगा. अदालत ने 31 जुलाई को इस मुद्दे पर फैसला सुरक्षित रख लिया था.