देहरादून: उत्तरकाशी जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हो रही बारिश के कारण सहस्त्र ताल ट्रैक का रेस्क्यू ऑपरेशन रोक दिया गया है. रेस्क्यू ऑपरेशन में मौसम बार-बार चुनौती बन रहा है. आज 5 जून बुधवार दोपहर तीन बजे के बाद से ही उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बारिश हो रही है, जिस कारण एसडीआरएफ और वायु सेना को रेस्क्यू ऑपरेशन रोकना पड़ा. अभी भी चार शवों को सहस्त्र ताल से निकाला जाना है. सहस्त्र ताल ट्रैक पर खराब मौसम के कारण 9 लोगों की जान गई थी. जिसमें से पांच शव ही अभी तक मिल पाए है. वहीं, 13 टैकर्स का एसडीआरएफ और वायुसेना ने सुरक्षित रेस्क्यू कर लिया था.
सहस्त्र ताल ट्रैक रेस्क्यू ऑपरेशन से जुड़ी तमाम जानकारियां देते हुए उत्तराखंड माउंटेनियर संगठन के अध्यक्ष बिष्णु प्रसाद सेमवाल ने बताया कि जैसे ही प्रशासन को सहस्त्र ताल पर ट्रैकर्स के फंसे होने की सूचना मिली तो चंद घंटे के अंदर ही रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू कर दिया गया. यहीं कारण है कि 22 सदस्यीय टैकर्स दल में 13 लोगों का सुरक्षित रेस्क्यू कर लिया गया, जबकि 9 लोगों की मौत हो गई, जिसमें से भी पांच शव को नीचे लाया गया है, लेकिन चार शव अभी भी वहीं फंसे हुए है, जिन्हें निकालने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है, लेकिन दोपहर तीन बजे के बाद खराब हुए मौसम के कारण रेस्क्यू ऑपरेशन रोक दिया गया.
कैसे पता चला सहस्त्र ताल में ट्रैकर्स फंस गए: विष्णु प्रसाद सेमवाल करीब 25 साल से माउंटेनियर के क्षेत्र में काम कर रहे है. उन्होंने बताया कि चार जून दोपहर को करीब तीन बजे उनके व्हाट्सएप ग्रुप पर एक पत्र आया पत्र था. उसमें किसी व्यक्ति विशेष का नाम तो नहीं लिखा था, लेकिन उसमें लिखी हुई बातों को पढ़कर यह अंदाजा लगाया जा सकता था कि कुछ लोग जो ट्रैकिंग पर गए हैं, वह सुरक्षित नहीं है और वो किसी बड़ी मुसीबत में फंसे हुए है. उन्हें जल्द से जल्द मदद की जरूरत है.
विष्णु प्रसाद सेमवाल ने बताया कि उन्होंने तत्काल इस पत्र को संबंधित अधिकारियों को भेजा. विष्णु प्रसाद सेमवाल ने प्रशासन के काम की सराहना करते हुए बताया कि उनके पत्र भेजने के कुछ ही देर बाद रेस्क्यू तंत्र सक्रिय हो गया. हालांकि सवाल ये है कि क्या सहस्त्र ताल में मोबाइल काम करता है. इस पर विष्णु प्रसाद सेमवाल का कहना है कि उन्हें पूरी उम्मीद है कि टैकर्स ग्रुप में से कोई व्यक्ति 11000 फीट की ऊंचाई पर स्थित कुशु कल्याणी ट्रैक तक आया होगा और वहीं से किसी के मोबाइल से उन्होंने यह पत्र शहर तक भिजवाया है.
विष्णु प्रसाद सेमवाल ने बताया कि इस पत्र के मिलने के बाद ही एसडीआरएफ की टीम ने मोर्चा संभाला और रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया. इतना ही नहीं वायुसेना की भी मदद ली गई. वायुसेना ने अपने दो हेलीकॉप्टर चेतक और चीता के साथ रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया. जिसका परिणाम ये हुआ है कि समय रहते 13 लोगों का सुरक्षित रेस्क्यू कर लिया गया. हालांकि फिर भी 9 लोगों की जान चली गई.
क्या लिखा था पत्र में: दरअसल, विष्णु प्रसाद सेमवाल के व्हाट्सएप ग्रुप पर जो पत्र आया था, उसमें लिखा था कि 29 मई से लेकर सात जून तक हम 22 लोगों ने ट्रैकिंग का परमिट लिया था, लेकिन मौसम खराब होने की वजह से यहां पर हालात बेहद खराब है. पत्र में यह भी लिखा हुआ था कि तीन जून को ही दोपहर 12:00 बजे तक कई ट्रैकर्स की मौत भी हो चुकी है. जल्द से जल्द हमें रेस्क्यू कर बचाया जाए. जिस जगह पर यह सभी ट्रैकर्स फंसे हुए है, वहां की हाइट 14000 फीट है. ऐसे में आम रेस्क्यू ऑपरेशन संभव नहीं था. लिहाजा तलहटी से 20 से 25 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ने वाले वायु सेना के चेतक और चीता चॉपर से ही यह ऑपरेशन संभव हो पाएंगा.
विष्णु प्रसाद सेमवाल ने बताया कि फिलहाल रेस्क्यू ऑपरेशन रुका हुआ है. हालांकि राहत की बात ये है कि एक टीम को घटनास्थल पर उतार दिया गया है, अगर वहां पर भी मौसम खराब होगा तो अनुभवी टीम अभी किसी तरह का कोई ऑपरेशन नहीं करेगी और न ही उन्हें इसमें कोई सफलता रात को मिल पाएगी. इसीलिए सुबह दोबार से रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया जाएगा. अभी भी चार शवों को घटनास्थल से लाया जाना है, जिन्हें ढूंढना बड़ी चुनौती होती है.
रेस्क्यू किए गए ट्रैकर्स की आपबीती: सहस्त्रताल ट्रैक से रेस्क्यू कर देहरादून लाए गए ट्रैकर्स ने बताया कि तीन जून को सहस्त्रताल में भारी बर्फबारी के साथ 90 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार से हवाएं चल रही थी, जिस कारण वो रास्ता भटक गए है और उसकी तूफान में उन्होंने अपने 9 साथियों को खो दिया.
द्रौपदी का डंडा में गई थी 29 लोगों की जान: चार अक्टूबर 2022 में उत्तरकाशी जिले के ही द्रौपदी का डंडा ट्रैक पर बड़ा हादसा हुआ था. यहां एवलांच की चपेट में आने ने 29 पर्वतारोहियों की जान चली गई थी. यहां भी रेस्क्यू ऑपरेशन करीब सात दिनों तक चला था. इस दौरान रेस्क्यू टीम 14 लोगों की ही जान बचा पाई थी, लेकिन 29 लोग एवलांच में दब कर मर गए थे.
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