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बदरीनाथ-केदारनाथ समेत कई क्षेत्रों को रडार की दरकार, मानसून सीजन में प्राकृतिक आपदा की चिंता फिर इस बार - Uttarakhand Natural Disasters

Uttarakhand Natural Disasters मानसून उत्तराखंड के दरवाजे तक पहुंच गया है. ऐसे में सरकार की चिंता इस सीजन में प्राकृतिक आपदाओं को लेकर बनी हुई है. खासतौर पर राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में भारी बारिश से पैदा होने वाले खतरे परेशानी को बढ़ा सकते हैं. गौर करने वाली बात यह है कि राज्य में सबसे संवेदनशील चारधाम यात्रा क्षेत्र और हिमालयी इलाके मौसमीय भविष्यवाणी को लेकर अभी पूरी तरह तैयार नहीं हो पाए हैं. लिहाजा मौसम विज्ञानी इन इलाकों में तकनीक को सुदृढ़ करने की पैरवी कर रहे हैं और इस पर सरकार की मंजूरी का फिलहाल इंतजार बाकी है.

UK Meteorological Department
मानसून सीजन को लेकर चिंता (photo- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jun 27, 2024, 1:22 PM IST

Updated : Jun 27, 2024, 2:18 PM IST

मानसून सीजन में प्राकृतिक आपदा की चिंता (video- ETV Bharat)

देहरादून: मानसून सीजन हर साल उत्तराखंड में भारी नुकसान लेकर आता है. लिहाजा स्थितियों से निपटने के लिए हर बार तैयारियां भी की जाती हैं और प्राकृतिक आपदाओं से निपटने का होमवर्क भी होता है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि राज्य के संवेदनशील इलाके आज भी त्वरित मौसमीय भविष्यवाणी को लेकर पूरी तरह तैयार नहीं हो पाए हैं. उत्तराखंड मौसम विज्ञान केंद्र का नया प्रस्ताव कुछ इसी ओर इशारा कर रहा है. हालांकि अभी राज्य सरकार इस प्रस्ताव को लेकर विचार कर रही है और सभी को प्रस्ताव पर अंतिम मोहर लगने का भी इंतजार है.

छोटे रडार लगाने का है मौसम विभाग का प्रस्ताव: उत्तराखंड मौसम विज्ञान केंद्र ने राज्य सरकार को छोटे रडार लगाने का प्रस्ताव दिया है. मौसम विभाग ने यह स्पष्ट किया है कि छोटे रडार लगने से राज्य के ऐसे इलाकों में भी मौसम की सटीक और त्वरित भविष्यवाणी की जा सकेगी, जहां अभी मौसम की जानकारी देने में काफी समय लगता है. इसके लिए मौसम विभाग ने राज्य के चार से पांच इलाकों में छोटे रडार लगाने की पैरवी की है. खास बात यह है कि इन क्षेत्रों को प्राकृतिक आपदा के लिहाज से संवेदनशील भी माना जाता रहा है.

ऊंची चोटियां बनती हैं डॉप्लर रडार के लिए बाधा: उत्तराखंड में वैसे तो पहले ही तीन बड़े डॉप्लर रडार लगाए जा चुके हैं. इसमें पहला डॉप्लर रडार टिहरी जिले के सुरकंडा में लगा है. इसके अलावा पौड़ी जिले के लैंसडाउन और नैनीताल जिले के मुक्तेश्वर में भी डॉप्लर रडार काम कर रहे हैं. इन डॉप्लर रडार में हर एक की क्षमता करीब 100 किलोमीटर है. इस लिहाज से राज्य के अधिकतर क्षेत्रों को इनके जरिए कवर किया जा रहा है, लेकिन चिंता की बात यह है कि चारधाम यात्रा रूट और मुनस्यारी समेत कई दूसरे ऐसे इलाके हैं, जहां ऊंची पहाड़ियों के चलते डॉप्लर रडार की पहुंच कमजोर पड़ रही है. ऊंची चोटियों के पीछे के इलाके डॉप्लर रडार की पकड़ में नहीं आ पा रहे हैं. ऐसे में इन घाटियों में काफी देरी से मौसम की जानकारी वैज्ञानिकों को मिल पाती है.

लोकल सिस्टम का पता लगाना होता है मुश्किल: केदारनाथ या बदरीनाथ की घाटियों में कई बार ऊंची चोटियों के पीछे लोकल सिस्टम तैयार हो जाता है, लेकिन ऊंची पहाड़ियों के पीछे बारिश की स्थितियां पैदा करने वाले ये बादल जब तक उन चोटियों के ऊपर तक नहीं पहुंच जाते, तब तक इसका डाटा मौसम विज्ञान केंद्र को नहीं मिल पाता. जिसके कारण मौसम में आने वाली तब्दीली या बारिश की कंडीशन का समय से पता नहीं चल पाता है. उत्तराखंड मौसम विज्ञान केंद्र के अनुसार बदीनाथ, केदारनाथ और मुनस्यारी के साथ ही देहरादून में भी छोटे रडार लगाए जाने की जरूरत है.

घाटियों में सेटेलाइट सिस्टम पर निर्भर मौसम विज्ञान केंद्र: प्रदेश के उच्च हिमालय क्षेत्र और कई घाटियों में मौसम की भविष्यवाणी को लेकर वैज्ञानिकों को सेटेलाइट सिस्टम पर निर्भर रहना पड़ता है. हालांकि इससे भी मौसम की जानकारी ली जाती रही है, लेकिन तकनीकी के आगे बढ़ने के साथ ही ज्यादा सटीक और त्वरित जानकारी के लिए रडार ही उपयोगी माने जाते रहे हैं. वैज्ञानिक मानते हैं कि सेटेलाइट से वैसे तो मौसम की जानकारी मिल जाती है, लेकिन काफी ज्यादा डेवलपमेंट होने के बाद ही मौसम की सटीक जानकारी को सेटेलाइट सिस्टम से लिया जा सकता है, जबकि रडार मौसम में होने वाले हर छोटे बदलाव को भी बता देता है. इतना ही नहीं कुछ घंटे में ही हो रहे बदलाव का पूरा डाटा भी ये रडार देते हैं.

प्राकृतिक आपदाओं के खतरे को कम कर सकती है तकनीकी: उत्तराखंड जैसे राज्य के लिए मौसम को लेकर ज्यादा से ज्यादा उपकरण और तकनीक का इस्तेमाल प्राकृतिक आपदाओं के खतरों को कम कर सकता है. इसी बात को समझते हुए उत्तराखंड मौसम विज्ञान केंद्र भी राज्य सरकार के फैसले का इंतजार कर रहा है और प्रदेश में छोटे रडार के लगने से मौसम की बेहतर जानकारी मिलने का भी दावा कर रहा है. वहीं, मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक विक्रम सिंह ने बताया कि यूं तो अधिकतर क्षेत्रों में मौजूदा रडार काम कर रहे हैं और सेटेलाइट से भी जानकारी ली जा रही है, लेकिन राज्य के लिए छोटे रडार काफी जरूरी है और इनके लगने से चारधाम यात्रा मार्ग समेत उच्च हिमालय क्षेत्र के मौसम को भी समझा जा सकेगा और इसी आधार पर एक्शन प्लान भी तैयार किया जा सकता है.

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मानसून सीजन में प्राकृतिक आपदा की चिंता (video- ETV Bharat)

देहरादून: मानसून सीजन हर साल उत्तराखंड में भारी नुकसान लेकर आता है. लिहाजा स्थितियों से निपटने के लिए हर बार तैयारियां भी की जाती हैं और प्राकृतिक आपदाओं से निपटने का होमवर्क भी होता है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि राज्य के संवेदनशील इलाके आज भी त्वरित मौसमीय भविष्यवाणी को लेकर पूरी तरह तैयार नहीं हो पाए हैं. उत्तराखंड मौसम विज्ञान केंद्र का नया प्रस्ताव कुछ इसी ओर इशारा कर रहा है. हालांकि अभी राज्य सरकार इस प्रस्ताव को लेकर विचार कर रही है और सभी को प्रस्ताव पर अंतिम मोहर लगने का भी इंतजार है.

छोटे रडार लगाने का है मौसम विभाग का प्रस्ताव: उत्तराखंड मौसम विज्ञान केंद्र ने राज्य सरकार को छोटे रडार लगाने का प्रस्ताव दिया है. मौसम विभाग ने यह स्पष्ट किया है कि छोटे रडार लगने से राज्य के ऐसे इलाकों में भी मौसम की सटीक और त्वरित भविष्यवाणी की जा सकेगी, जहां अभी मौसम की जानकारी देने में काफी समय लगता है. इसके लिए मौसम विभाग ने राज्य के चार से पांच इलाकों में छोटे रडार लगाने की पैरवी की है. खास बात यह है कि इन क्षेत्रों को प्राकृतिक आपदा के लिहाज से संवेदनशील भी माना जाता रहा है.

ऊंची चोटियां बनती हैं डॉप्लर रडार के लिए बाधा: उत्तराखंड में वैसे तो पहले ही तीन बड़े डॉप्लर रडार लगाए जा चुके हैं. इसमें पहला डॉप्लर रडार टिहरी जिले के सुरकंडा में लगा है. इसके अलावा पौड़ी जिले के लैंसडाउन और नैनीताल जिले के मुक्तेश्वर में भी डॉप्लर रडार काम कर रहे हैं. इन डॉप्लर रडार में हर एक की क्षमता करीब 100 किलोमीटर है. इस लिहाज से राज्य के अधिकतर क्षेत्रों को इनके जरिए कवर किया जा रहा है, लेकिन चिंता की बात यह है कि चारधाम यात्रा रूट और मुनस्यारी समेत कई दूसरे ऐसे इलाके हैं, जहां ऊंची पहाड़ियों के चलते डॉप्लर रडार की पहुंच कमजोर पड़ रही है. ऊंची चोटियों के पीछे के इलाके डॉप्लर रडार की पकड़ में नहीं आ पा रहे हैं. ऐसे में इन घाटियों में काफी देरी से मौसम की जानकारी वैज्ञानिकों को मिल पाती है.

लोकल सिस्टम का पता लगाना होता है मुश्किल: केदारनाथ या बदरीनाथ की घाटियों में कई बार ऊंची चोटियों के पीछे लोकल सिस्टम तैयार हो जाता है, लेकिन ऊंची पहाड़ियों के पीछे बारिश की स्थितियां पैदा करने वाले ये बादल जब तक उन चोटियों के ऊपर तक नहीं पहुंच जाते, तब तक इसका डाटा मौसम विज्ञान केंद्र को नहीं मिल पाता. जिसके कारण मौसम में आने वाली तब्दीली या बारिश की कंडीशन का समय से पता नहीं चल पाता है. उत्तराखंड मौसम विज्ञान केंद्र के अनुसार बदीनाथ, केदारनाथ और मुनस्यारी के साथ ही देहरादून में भी छोटे रडार लगाए जाने की जरूरत है.

घाटियों में सेटेलाइट सिस्टम पर निर्भर मौसम विज्ञान केंद्र: प्रदेश के उच्च हिमालय क्षेत्र और कई घाटियों में मौसम की भविष्यवाणी को लेकर वैज्ञानिकों को सेटेलाइट सिस्टम पर निर्भर रहना पड़ता है. हालांकि इससे भी मौसम की जानकारी ली जाती रही है, लेकिन तकनीकी के आगे बढ़ने के साथ ही ज्यादा सटीक और त्वरित जानकारी के लिए रडार ही उपयोगी माने जाते रहे हैं. वैज्ञानिक मानते हैं कि सेटेलाइट से वैसे तो मौसम की जानकारी मिल जाती है, लेकिन काफी ज्यादा डेवलपमेंट होने के बाद ही मौसम की सटीक जानकारी को सेटेलाइट सिस्टम से लिया जा सकता है, जबकि रडार मौसम में होने वाले हर छोटे बदलाव को भी बता देता है. इतना ही नहीं कुछ घंटे में ही हो रहे बदलाव का पूरा डाटा भी ये रडार देते हैं.

प्राकृतिक आपदाओं के खतरे को कम कर सकती है तकनीकी: उत्तराखंड जैसे राज्य के लिए मौसम को लेकर ज्यादा से ज्यादा उपकरण और तकनीक का इस्तेमाल प्राकृतिक आपदाओं के खतरों को कम कर सकता है. इसी बात को समझते हुए उत्तराखंड मौसम विज्ञान केंद्र भी राज्य सरकार के फैसले का इंतजार कर रहा है और प्रदेश में छोटे रडार के लगने से मौसम की बेहतर जानकारी मिलने का भी दावा कर रहा है. वहीं, मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक विक्रम सिंह ने बताया कि यूं तो अधिकतर क्षेत्रों में मौजूदा रडार काम कर रहे हैं और सेटेलाइट से भी जानकारी ली जा रही है, लेकिन राज्य के लिए छोटे रडार काफी जरूरी है और इनके लगने से चारधाम यात्रा मार्ग समेत उच्च हिमालय क्षेत्र के मौसम को भी समझा जा सकेगा और इसी आधार पर एक्शन प्लान भी तैयार किया जा सकता है.

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Last Updated : Jun 27, 2024, 2:18 PM IST
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