देहरादून: ट्रांसजेंडर एक ऐसा शब्द है, जिसको सुनकर लोगों के जहन में 'ताली बजाते' और 'शादी में बधाई' मांगते हुए दृश्य सामने आ जाते हैं, लेकिन आज हम आपको ऐसी ट्रांसजेंडर के बारे में बताएंगे, जो दकियानूसी सोच को दरकिनार कर स्वावलंबी बनने की दिशा में आगे बढ़ रही हैं. कहते हैं, कि अगर आपके अंदर कुछ कर गुजरने की चाहत हो, तो नामुकिन चीज को भी मुमकिन किया जा सकता है. यही कर दिखाया है उत्तरकाशी के एक छोटे से गांव से ताल्लुक रखने वाली अदिति शर्मा ने, जिन्होंने देहरादून आईएसबीटी कारगी चौक के पास एक फूड ट्रक की शुरुआत की है. इस खास शुरुआत के मौके पर खाद्य जिला ग्राम उद्योग अधिकारी डॉ. अलका पांडे व राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष कुसुम कंडवाल भी मौजूद रहीं.
प्रदेश का पहला अनोखा फूड ट्रक: अदिति शर्मा ने आज से ही देहरादून आईएसबीटी कारगी चौक के नजदीक एक फूड ट्रक की शुरुआत की है, जिसका नाम रखा है 'प्यार का निवाला'. इस फूड ट्रक का शुभांरभ खाद्य जिला ग्राम उद्योग अधिकारी डॉ. अलका पांडे ने किया. इसी बीच अदिति शर्मा के कई फ्रेंड्स भी मौजूद रहे. देहरादून की सड़क पर इस अनोखे फूड ट्रक की शुरुआत होने से पहले दिन ही लोगों की भारी भीड़ नजर आई. इस अनोखे फूड ट्रक में पत्ते वाली मैगी, मोमोज, चाऊमीन, अरहर की दाल और चावल, मुंबईया थाली और कलर वाली चाय मिलेगी.
PMEGP प्रधानमंत्री रोजगार योजना से अदिति को मिला लोन: इस मौके पर खाद्य जिला ग्राम उद्योग अधिकारी डॉ. अलका पांडे ने बताया कि अदिति शर्मा लंबे समय से विभाग से संपर्क कर रही थीं कि उन्हें अगर सहायता मिलती है, तो वह अन्य ट्रांसजेंडर की तरह काम ना करके खुद अपना कोई ऐसा काम करेंगी, जिसके बाद समाज उन्हें स्वीकार कर सके. उन्होंने कहा कि अदिति शर्मा को पीएमईजीपी प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के तहत लोन दिया गया है, जिससे उन्होंने अपना ये काम शुरू किया है.
परिवार और समाज ने नहीं दिया साथ: अदिति शर्मा कभी सुनील कुमार हुआ करती थीं. उनका जन्म उत्तरकाशी के मोरी ब्लॉक के एक छोटे से गांव में हुआ था. उनके परिवार में माता-पिता और भाई-बहन हैं. अदिति शर्मा ने बताया कि बचपन से ही उन्हें बहन के कपड़े और मां के कपड़े पहनने का शौक था. घर के कामकाज करना उन्हें अच्छा लगता था. रसोई में वह अक्सर अपनी मां के साथ काम करवाती थी. धीरे-धीरे उन्हें यह मालूम हो गया कि वह अन्य लड़कों की तरह नहीं है और फिर एक दिन उन्होंने अपने घर से दिल्ली जाने का फैसला लिया.
ग्रेजुएट हैं अदिति शर्मा: अदिति ने बताया कि दिल्ली पहुंचने के बाद उन्होंने वहीं कुछ काम किया और फिर देहरादून आकर अपनी बाकी की पढ़ाई पूरी की. वह ग्रेजुएट हैं. देहरादून आकर उन्होंने अपना एक बुटीक भी चलाया, लेकिन समय के साथ वह बंद हो गया. उन्होंने बताया कि उनपर इस बात का दबाव था कि वह अपने साथियों के साथ वही काम करें जो वो करते हैं. कई बार उनके साथ उनके साथियों ने मारपीट भी की, लेकिन वह डरी नहीं.
कुछ अलग करने की चाह ने नहीं रुकने दिए कदम: अदिति ने बताया कि वह घर-घर जाकर बधाई नहीं मांगना चाहती थीं, बल्कि कुछ ऐसा काम करना चाहती थीं, जो उन्हें नई पहचान दे सके. इसके लिए उन्होंने अपने कई दोस्तों की मदद मिली, लेकिन उन्हें वो सफलता नहीं मिल पाई. इसी दौरान उन्होंने सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने शुरू किए, लेकिन सरकारी दफ्तरों ने भी उनका साथ नहीं दिया. ये देखकर उन्होंने हिम्मत और कोशिश छोड़ दी थी. तभी उनकी मुलाकात खाद्य जिला ग्राम उद्योग अधिकारी डॉ. अलका पांडे से हुई, जिन्होंने अदिति की बात को गंभीरता से सुना और उनका साथ देते हुए उन्हेंं PMEGP प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत लोन दिलाया.
खाद्य जिला ग्राम उद्योग अधिकारी अदिति के लिए बनीं मसीहा: अदिति ने बताया कि खाद्य जिला ग्राम उद्योग अधिकारी ने केवल सरकारी लोन नहीं दिलाया बल्कि नगर निगम के अधिकारियों से बातचीत करके उन्हें एक ऐसा स्थान भी प्रदान किया, जहां पर वह अपना काम अच्छे से कर सकती हैं. अदिति कहती है कि वो आज बेहद खुश हैं क्योंकि जिस काम को करने के लिए वह कई महीनों से प्रयास कर रही थीं, आज इसकी शुरुआत हो गई है. अदिति चाहती हैं कि वो अपने अन्य साथियों और दोस्तों को इस तरह के कामों से जोड़ें.
अदिति का साथ देने पहुंची दोस्त: अदिति शर्मा की दोस्त करिश्मा ने बताया कि उन्हें बेहद खुशी है कि आज उनकी दोस्त एक नई शुरुआत करने जा रही है. ऐसे में वो खुद चाहती हैं कि अदिति की तरह वो भी अपना कुछ काम करें, ताकि वो समाज की धारणा को बदल सकें. उन्होंने कहा कि हम हमेशा लोगों को दुआएं देते हैं. आज लोगों को अदिति शर्मा और उनके जैसे ट्रांसजेंडर लोगों की जरूरत है, ताकि सभी मुख्यधारा से जुड़ सकें.
2021 में अदिति शर्मा को मिली थी पहचान: बता दें, ये वही अदिति शर्मा हैं, जिन्हें साल 2021 में उत्तराखंड में पहली बार कानूनी पहचान मिली थी. एक लंबी लड़ाई के बाद अदिति शर्मा और देहरादून निवासी काजल उर्फ विक्रम थापा को समाज कल्याण विभाग देहरादून में प्रमाण पत्र दिया गया था. दिल्ली में सर्जरी करवाने के बाद वह कानूनी रूप से पहचान चाहती थीं. अदिति शर्मा ने ग्रेजुएशन तक किसी को यह महसूस नहीं होने दिया था कि वह ट्रांसजेंडर हैं, लेकिन फिर उन्होंने यह फैसला किया कि वह समाज से नहीं डरेंगी और जो हकीकत है वह सबको बताएंगी. हालांकि, इस फैसले के बाद उनके परिवार ने उन्हें कभी स्वीकार नहीं किया.
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