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देश का सबसे कर्जदार राज्य कौन सा है ? जानें क्या है आपके राज्य का हाल ? - Debt on States - DEBT ON STATES

Debt on States: देश का लगभग हर राज्य कर्ज के दलदल में फंसा हुआ है. क्या आप जानते हैं कि देश का सबसे बड़ा कर्जदार राज्य कौन सा है ? छोटे और पहाड़ी राज्यों में किस राज्य पर सबसे ज्यादा कर्ज है ? इस कर्ज के बढ़ने की वजह और इसका क्या समाधान है. जानने के लिए पढ़ें डिटेल स्टोरी

किस राज्य पर कितना है कर्ज का बोझ ?
किस राज्य पर कितना है कर्ज का बोझ ? (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jul 1, 2024, 7:30 PM IST

Debt on States: भारत के लगभग सभी राज्य कर्ज के दलदल में फंसते जा रहे हैं. विकास कार्यों से लेकर अपनी जरूरतों के अनुसार राज्यों द्वारा समय-समय पर केंद्र सरकार, RBI या अन्य वित्तीय एजेंसियों से कर्ज लिया जाता है. राज्यों की ओर से लिए गए कर्ज का पहाड़ साल दल साल ऊंचा होता जा रहा है. जिसकी अदायगी के लिए राज्यों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है.

ये हैं सबसे बड़े कर्जदार राज्य

RBI की ओर से जारी आंकड़ों और केंद्र सरकार की ओर से लोकसभा में दिए गए आंकड़ों के मुताबिक देश में सबसे ज्यादा कर्ज तमिल नाडु पर है. जो वित्त वर्ष 2024-25 की समाप्ति तक 8 लाख 34 हजार 543 करोड़ के पार पहुंच जाएगा. दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश (7,69,245.3 करोड़), तीसरे नंबर पर महाराष्ट्र (7,22,887.3 करोड़), चौथे नंबर पर पश्चिम बंगाल (6,58,426.2 करोड़), पांचवें नंबर पर कर्नाटक (5,97,618.4 करोड़), छठे नंबर पर राजस्थान (5,62,494.9 करोड़), सातवें नबंर पर आंध्र प्रदेश (4,85,490.8 करोड़), आठवें नबंर पर गुजरात (4,67,464.4 करोड़), नौवें नंबर पर केरल (4,29,270.6 करोड़), दसवें नंबर पर (मध्य प्रदेश 4,18,056 करोड़), ग्यारहवें नंबर पर तेलंगाना (3,89,672.5 करोड़) और 12वें नंबर पर बिहार (3,19,618.3 करोड़) शामिल है.

सबसे बड़े कर्जदार राज्यो
सबसे बड़े कर्जदार राज्यो (ETV Bharat)

छोटे राज्यों का भी बुरा हाल

कर्ज लेने के मामले में छोटे राज्य भी पीछे नहीं हैं. कर्ज के दलदल में फंसे कुछ छोटे राज्यों ने तो कुछ बड़े राज्यों से भी अधिक कर्ज लिया है. छोटे राज्यों में कर्ज लेने के मामले में पंजाब टॉप पर है. पंजाब पर वित्त वर्ष 2024-25 तक की समाप्ति पर 3,51,130.2 करोड़ का कर्ज हो जाएगा. इसी तरह दूसरे नंबर पर मौजूद हरियाणा पर भी 3,36,253 करोड़ का कर्ज हो जाएगा. खास बात ये है कि पंजाब और हरियाणा का कर्ज बड़े राज्यों की सूची में शुमार बिहार से अधिक है. छोटे राज्यों की लिस्ट में तीसरे नंबर पर असम (1,50,900.4 करोड़), चौथे नंबर पर झारखंड (1,31,455.6 करोड़), पांचवें नंबर पर छत्तीसगढ़ (1,22,164.1 करोड़), छठे नंबर पर ओडिशा (1,20,986.9 करोड़) और सातवें नंबर पर गोवा (34758.4 करोड़) है.

छोटे राज्यों पर कर्ज का बड़ा बोझ
छोटे राज्यों पर कर्ज का बड़ा बोझ (ETV Bharat)

पहाड़ी राज्यों पर कर्ज

देश के छोटे-छोटे पहाड़ी राज्य भी कर्ज के दलदल में धंसते जा रहे हैं. इनमें से सबसे बुरा हाल हिमाचल प्रदेश का है. आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक मौजूदा वित्त वर्ष की समाप्ति तक हिमाचल पर 94,992.2 करोड़ का कर्ज हो जाएगा. कर्ज के बोझ तले दबते हिमाचल में आलम ये है कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू कह चुके हैं कि उन्हें कर्ज चुकाने के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा है. ये हाल उस प्रदेश का है जहां कि आबादी महज 70 लाख के करीब है. जो इस सूची में दूसरे नंबर पर मौजूद उत्तराखंड से भी कम है. उत्तराखंड पर वित्त वर्ष 2024-25 की समाप्ति पर कर्जका बोझ 89466 करोड़ हो जाएगा. कर्जदार पहाड़ी राज्यों की सूची में तीसरे नंबर पर त्रिपुरा (26505.8 करोड़), चौथे नंबर पर अरुणाचल प्रदेश (21654.2 करोड़), पांचवें नंबर पर मेघालय (20029.9 करोड़), छठे नंबर पर मणिपुर (19245.8 करोड़), सातवें नंबर पर नागालैंड (18165.8 करोड़), आठवें नंबर पर सिक्किम (15529.5 करोड़) और नौवें नंबर पर मिजोरम (14039.3 करोड़) शामिल है.

कर्ज के दलदल में डूबते पहाड़ी राज्य
कर्ज के दलदल में डूबते पहाड़ी राज्य (ETV Bharat)

कर्ज के बढ़ते बोझ की वजह

वैसे तो कर्ज का प्रावधान विकास कार्यों के लिए होता है लेकिन राज्यों में सब्सिडी और धुआंधार बंटती मुफ्त की रेवड़ियों ने आज लगभग हर राज्य को कर्ज के दलदल में फंसा दिया है. भारतीय रिजर्व बैंक से लेकर CAG की ओर से लगातार बताया गया है कि राज्य सरकारों का सब्सिडी पर खर्च लगातार बढ़ रहा है. कई जगह सब्सिडी की जगह मुफ्त की रेवड़ियां बांटी जा रही है. सरकारें पैसा ऐसी जगह खर्च रही हैं जहां से कमाई जीरो होगी. मुफ्त बिजली-पानी से लेकर बस यात्रा जैसी तमाम ऐसी योजनाएं लाई जा रही हैं. जिनका मकसद सिर्फ और सिर्फ चुनाव जीतना और सत्ता पाना होता है. ऐसे ही कदम राज्यों को कर्ज के जाल में फंस रहे हैं. इस अलावा राज्य सरकारों के बजट का एक बड़ा हिस्सा सरकारी कर्मचारियों की सैलरी और पेंशन में जा रहा है. फिर चाहे पंजाब हो या हिमाचल या फिर तमिल नाडु हो या मध्य प्रदेश. उत्तर से लेकर दक्षिण तक हर राज्य का यही हाल है.

हिमाचल प्रदेश के पूर्व वित्त सचिव केआर भारती का मानना है कि खर्च ज्यादा और आय कम तो इसी पर विचार करने की जरूरत है. नेताओं का जोर सत्ता पाने के लिए सिर्फ और सिर्फ मुफ्त रेवड़ियों पर है. जिससे सरकार पर आर्थिक बोझ पड़ता है और जरूरतें पूरी करने के लिए कर्ज लेना पड़ता है. केआर भारती कहते हैं कि राज्यों को सब्सिडी और मुफ्त बिजली, पानी बांटने की बजाय आर्थिक संसाधन जुटाने की ओर गंभीरता से सोचना चाहिए. वो हिमाचल के संदर्भ में हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट, बागवनी, कृषि और पर्यटन को बढ़ावा देने की बात कहते हैं. इसी तरह अन्य राज्यों को भी अपनी क्षमताओं के देखते हुए संसाधन जुटाने की नसीहत देते हैं.

केआर भारती के मुताबिक राज्यों को बेवजह के खर्चों के साथ-साथ लोकलुभावन घोषणाओं पर भी लगाम लगानी होगी. इसपर हर सियासी दल को एक मंच पर आना होगा क्योंकि ये राज्य के भविष्य का सवाल है. केआर भारती कहते हैं कि राज्यों में एक मंत्री के पास कई विभाग होते हैं लेकिन उसके काफिले में हर विभाग की गाड़ियां अटैच होती हैं, जिन्हें कम किया जा सकता है. मंत्रियों का लाव-लश्कर के साथ चलना और वीआईपी कल्चर को कम करने की सलाह भी देते हैं. इस तरह के छोटे-छोटे प्रभावी कदम बड़ा बदलाव भी ला सकते हैं.

ये भी पढ़ें: हिमाचल में पड़ेंगे सैलरी व पेंशन के लाले, पांच साल में वेतन को चाहिए 1.21 लाख करोड़, पेंशन का खर्च होगा 90 हजार करोड़

Debt on States: भारत के लगभग सभी राज्य कर्ज के दलदल में फंसते जा रहे हैं. विकास कार्यों से लेकर अपनी जरूरतों के अनुसार राज्यों द्वारा समय-समय पर केंद्र सरकार, RBI या अन्य वित्तीय एजेंसियों से कर्ज लिया जाता है. राज्यों की ओर से लिए गए कर्ज का पहाड़ साल दल साल ऊंचा होता जा रहा है. जिसकी अदायगी के लिए राज्यों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है.

ये हैं सबसे बड़े कर्जदार राज्य

RBI की ओर से जारी आंकड़ों और केंद्र सरकार की ओर से लोकसभा में दिए गए आंकड़ों के मुताबिक देश में सबसे ज्यादा कर्ज तमिल नाडु पर है. जो वित्त वर्ष 2024-25 की समाप्ति तक 8 लाख 34 हजार 543 करोड़ के पार पहुंच जाएगा. दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश (7,69,245.3 करोड़), तीसरे नंबर पर महाराष्ट्र (7,22,887.3 करोड़), चौथे नंबर पर पश्चिम बंगाल (6,58,426.2 करोड़), पांचवें नंबर पर कर्नाटक (5,97,618.4 करोड़), छठे नंबर पर राजस्थान (5,62,494.9 करोड़), सातवें नबंर पर आंध्र प्रदेश (4,85,490.8 करोड़), आठवें नबंर पर गुजरात (4,67,464.4 करोड़), नौवें नंबर पर केरल (4,29,270.6 करोड़), दसवें नंबर पर (मध्य प्रदेश 4,18,056 करोड़), ग्यारहवें नंबर पर तेलंगाना (3,89,672.5 करोड़) और 12वें नंबर पर बिहार (3,19,618.3 करोड़) शामिल है.

सबसे बड़े कर्जदार राज्यो
सबसे बड़े कर्जदार राज्यो (ETV Bharat)

छोटे राज्यों का भी बुरा हाल

कर्ज लेने के मामले में छोटे राज्य भी पीछे नहीं हैं. कर्ज के दलदल में फंसे कुछ छोटे राज्यों ने तो कुछ बड़े राज्यों से भी अधिक कर्ज लिया है. छोटे राज्यों में कर्ज लेने के मामले में पंजाब टॉप पर है. पंजाब पर वित्त वर्ष 2024-25 तक की समाप्ति पर 3,51,130.2 करोड़ का कर्ज हो जाएगा. इसी तरह दूसरे नंबर पर मौजूद हरियाणा पर भी 3,36,253 करोड़ का कर्ज हो जाएगा. खास बात ये है कि पंजाब और हरियाणा का कर्ज बड़े राज्यों की सूची में शुमार बिहार से अधिक है. छोटे राज्यों की लिस्ट में तीसरे नंबर पर असम (1,50,900.4 करोड़), चौथे नंबर पर झारखंड (1,31,455.6 करोड़), पांचवें नंबर पर छत्तीसगढ़ (1,22,164.1 करोड़), छठे नंबर पर ओडिशा (1,20,986.9 करोड़) और सातवें नंबर पर गोवा (34758.4 करोड़) है.

छोटे राज्यों पर कर्ज का बड़ा बोझ
छोटे राज्यों पर कर्ज का बड़ा बोझ (ETV Bharat)

पहाड़ी राज्यों पर कर्ज

देश के छोटे-छोटे पहाड़ी राज्य भी कर्ज के दलदल में धंसते जा रहे हैं. इनमें से सबसे बुरा हाल हिमाचल प्रदेश का है. आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक मौजूदा वित्त वर्ष की समाप्ति तक हिमाचल पर 94,992.2 करोड़ का कर्ज हो जाएगा. कर्ज के बोझ तले दबते हिमाचल में आलम ये है कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू कह चुके हैं कि उन्हें कर्ज चुकाने के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा है. ये हाल उस प्रदेश का है जहां कि आबादी महज 70 लाख के करीब है. जो इस सूची में दूसरे नंबर पर मौजूद उत्तराखंड से भी कम है. उत्तराखंड पर वित्त वर्ष 2024-25 की समाप्ति पर कर्जका बोझ 89466 करोड़ हो जाएगा. कर्जदार पहाड़ी राज्यों की सूची में तीसरे नंबर पर त्रिपुरा (26505.8 करोड़), चौथे नंबर पर अरुणाचल प्रदेश (21654.2 करोड़), पांचवें नंबर पर मेघालय (20029.9 करोड़), छठे नंबर पर मणिपुर (19245.8 करोड़), सातवें नंबर पर नागालैंड (18165.8 करोड़), आठवें नंबर पर सिक्किम (15529.5 करोड़) और नौवें नंबर पर मिजोरम (14039.3 करोड़) शामिल है.

कर्ज के दलदल में डूबते पहाड़ी राज्य
कर्ज के दलदल में डूबते पहाड़ी राज्य (ETV Bharat)

कर्ज के बढ़ते बोझ की वजह

वैसे तो कर्ज का प्रावधान विकास कार्यों के लिए होता है लेकिन राज्यों में सब्सिडी और धुआंधार बंटती मुफ्त की रेवड़ियों ने आज लगभग हर राज्य को कर्ज के दलदल में फंसा दिया है. भारतीय रिजर्व बैंक से लेकर CAG की ओर से लगातार बताया गया है कि राज्य सरकारों का सब्सिडी पर खर्च लगातार बढ़ रहा है. कई जगह सब्सिडी की जगह मुफ्त की रेवड़ियां बांटी जा रही है. सरकारें पैसा ऐसी जगह खर्च रही हैं जहां से कमाई जीरो होगी. मुफ्त बिजली-पानी से लेकर बस यात्रा जैसी तमाम ऐसी योजनाएं लाई जा रही हैं. जिनका मकसद सिर्फ और सिर्फ चुनाव जीतना और सत्ता पाना होता है. ऐसे ही कदम राज्यों को कर्ज के जाल में फंस रहे हैं. इस अलावा राज्य सरकारों के बजट का एक बड़ा हिस्सा सरकारी कर्मचारियों की सैलरी और पेंशन में जा रहा है. फिर चाहे पंजाब हो या हिमाचल या फिर तमिल नाडु हो या मध्य प्रदेश. उत्तर से लेकर दक्षिण तक हर राज्य का यही हाल है.

हिमाचल प्रदेश के पूर्व वित्त सचिव केआर भारती का मानना है कि खर्च ज्यादा और आय कम तो इसी पर विचार करने की जरूरत है. नेताओं का जोर सत्ता पाने के लिए सिर्फ और सिर्फ मुफ्त रेवड़ियों पर है. जिससे सरकार पर आर्थिक बोझ पड़ता है और जरूरतें पूरी करने के लिए कर्ज लेना पड़ता है. केआर भारती कहते हैं कि राज्यों को सब्सिडी और मुफ्त बिजली, पानी बांटने की बजाय आर्थिक संसाधन जुटाने की ओर गंभीरता से सोचना चाहिए. वो हिमाचल के संदर्भ में हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट, बागवनी, कृषि और पर्यटन को बढ़ावा देने की बात कहते हैं. इसी तरह अन्य राज्यों को भी अपनी क्षमताओं के देखते हुए संसाधन जुटाने की नसीहत देते हैं.

केआर भारती के मुताबिक राज्यों को बेवजह के खर्चों के साथ-साथ लोकलुभावन घोषणाओं पर भी लगाम लगानी होगी. इसपर हर सियासी दल को एक मंच पर आना होगा क्योंकि ये राज्य के भविष्य का सवाल है. केआर भारती कहते हैं कि राज्यों में एक मंत्री के पास कई विभाग होते हैं लेकिन उसके काफिले में हर विभाग की गाड़ियां अटैच होती हैं, जिन्हें कम किया जा सकता है. मंत्रियों का लाव-लश्कर के साथ चलना और वीआईपी कल्चर को कम करने की सलाह भी देते हैं. इस तरह के छोटे-छोटे प्रभावी कदम बड़ा बदलाव भी ला सकते हैं.

ये भी पढ़ें: हिमाचल में पड़ेंगे सैलरी व पेंशन के लाले, पांच साल में वेतन को चाहिए 1.21 लाख करोड़, पेंशन का खर्च होगा 90 हजार करोड़

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