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लाल किला पर हमले के दोषी आतंकी ने डाली दया याचिका, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने की खारिज - President Draupadi Murmu

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By PTI

Published : Jun 12, 2024, 7:52 PM IST

करीब 24 साल पुराने लाल किला हमला मामले में दोषी पाकिस्तानी आतंकवादी मोहम्मद आरिफ उर्फ ​​अशफाक की दया याचिका राष्ट्रपति ने खारिज कर दी है. अधिकारियों ने बुधवार को इसकी जानकारी दी है. राष्ट्रपति द्वारा 25 जुलाई 2022 को पदभार ग्रहण करने के बाद खारिज की गई यह दूसरी दया याचिका है.

President Draupadi Murmu
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (फोटो - ANI Photo)

नई दिल्ली: लगभग 24 साल पुराने लाल किला हमला मामले में दोषी ठहराए गए पाकिस्तानी आतंकवादी मोहम्मद आरिफ उर्फ ​​अशफाक की दया याचिका राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने खारिज कर दी है. 25 जुलाई, 2022 को पदभार ग्रहण करने के बाद राष्ट्रपति द्वारा खारिज की गई यह दूसरी दया याचिका है.

सुप्रीम कोर्ट ने 3 नवंबर, 2022 को आरिफ की समीक्षा याचिका खारिज कर दी थी, जिसमें मामले में उसे दी गई मौत की सजा की पुष्टि की गई थी. हालांकि, विशेषज्ञों का मानना​है कि मौत की सजा पाए दोषी अभी भी संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत लंबे समय तक देरी के आधार पर अपनी सजा कम करने के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं.

अधिकारियों ने राष्ट्रपति सचिवालय के 29 मई के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि 15 मई को प्राप्त आरिफ की दया याचिका 27 मई को खारिज कर दी गई थी. सर्वोच्च न्यायालय ने मौत की सज़ा बरकरार रखते हुए कहा कि आरिफ के पक्ष में कोई भी परिस्थितियां नहीं थीं और इस बात पर ज़ोर दिया कि लाल किले पर हमला देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए सीधा ख़तरा था.

22 दिसंबर, 2000 को हुए इस हमले में घुसपैठियों ने लाल किला परिसर में तैनात 7 राजपूताना राइफल्स यूनिट पर गोलीबारी की थी, जिसके परिणामस्वरूप तीन सैन्यकर्मी मारे गए थे. पाकिस्तानी नागरिक और प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के सदस्य आरिफ को हमले के चार दिन बाद दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था.

शीर्ष अदालत के 2022 के आदेश में कहा गया था कि 'अपीलकर्ता-आरोपी मोहम्मद आरिफ उर्फ​अशफाक एक पाकिस्तानी नागरिक था और अवैध रूप से भारतीय क्षेत्र में घुस आया था.' आरिफ को अन्य आतंकवादियों के साथ मिलकर हमले की साजिश रचने का दोषी पाया गया था और ट्रायल कोर्ट ने अक्टूबर 2005 में उसे मौत की सजा सुनाई थी.

दिल्ली उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय ने बाद की अपीलों में इस फैसले को बरकरार रखा. ट्रायल कोर्ट ने कहा था कि लाल किले पर हमले की साजिश श्रीनगर में दो साजिशकर्ताओं के घर पर रची गई थी, जहां आरिफ 1999 में लश्कर के तीन अन्य आतंकवादियों के साथ अवैध रूप से घुस गया था. स्मारक में घुसने वाले तीन आतंकवादी - अबू शाद, अबू बिलाल और अबू हैदर - अलग-अलग मुठभेड़ों में मारे गए थे.

समीक्षा और उपचारात्मक याचिकाओं सहित कई कानूनी चुनौतियों के बावजूद, आरिफ की दया याचिका को खारिज कर दिया गया, जिससे अपराध की गंभीरता और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा उजागर हुआ. दिल्ली उच्च न्यायालय ने सितंबर 2007 में ट्रायल कोर्ट के फैसले की पुष्टि की थी. इसके बाद आरिफ ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.

अगस्त 2011 में शीर्ष अदालत ने भी उसे दी गई मौत की सजा के आदेश का समर्थन किया था. बाद में, उसकी समीक्षा याचिका सर्वोच्च न्यायालय की दो न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष आई, जिसने अगस्त 2012 में इसे खारिज कर दिया. जनवरी 2014 में एक सुधारात्मक याचिका भी खारिज कर दी गई थी. इसके बाद आरिफ ने एक याचिका दायर कर कहा था कि मृत्युदंड से संबंधित मामलों में पुनर्विचार याचिकाओं की सुनवाई तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा खुली अदालत में की जानी चाहि.

सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने सितंबर 2014 में अपने फैसले में निष्कर्ष निकाला था कि जिन मामलों में उच्च न्यायालय द्वारा मृत्युदंड दिया गया है, ऐसे सभी मामलों को तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाना चाहिए. सितंबर 2014 के फैसले से पहले, मृत्युदंड की सजा पाए दोषियों की समीक्षा और उपचारात्मक याचिकाओं पर खुली अदालतों में सुनवाई नहीं की जाती थी, बल्कि संचलन द्वारा चैंबर कार्यवाही में निर्णय लिया जाता था.

जनवरी 2016 में, एक संविधान पीठ ने निर्देश दिया था कि आरिफ एक महीने के भीतर खुली अदालत में सुनवाई के लिए समीक्षा याचिकाओं को खारिज करने की फिर से मांग करने का हकदार होगा. शीर्ष अदालत ने 3 नवंबर, 2022 को दिए गए अपने फैसले में समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया था. यह फैसला राष्ट्रपति मुर्मू द्वारा पिछले साल एक अलग मामले में एक और दया याचिका को खारिज करने के बाद आया, जो जघन्य अपराधों के मामलों पर एक सख्त रुख दर्शाता है.

नई दिल्ली: लगभग 24 साल पुराने लाल किला हमला मामले में दोषी ठहराए गए पाकिस्तानी आतंकवादी मोहम्मद आरिफ उर्फ ​​अशफाक की दया याचिका राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने खारिज कर दी है. 25 जुलाई, 2022 को पदभार ग्रहण करने के बाद राष्ट्रपति द्वारा खारिज की गई यह दूसरी दया याचिका है.

सुप्रीम कोर्ट ने 3 नवंबर, 2022 को आरिफ की समीक्षा याचिका खारिज कर दी थी, जिसमें मामले में उसे दी गई मौत की सजा की पुष्टि की गई थी. हालांकि, विशेषज्ञों का मानना​है कि मौत की सजा पाए दोषी अभी भी संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत लंबे समय तक देरी के आधार पर अपनी सजा कम करने के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं.

अधिकारियों ने राष्ट्रपति सचिवालय के 29 मई के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि 15 मई को प्राप्त आरिफ की दया याचिका 27 मई को खारिज कर दी गई थी. सर्वोच्च न्यायालय ने मौत की सज़ा बरकरार रखते हुए कहा कि आरिफ के पक्ष में कोई भी परिस्थितियां नहीं थीं और इस बात पर ज़ोर दिया कि लाल किले पर हमला देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए सीधा ख़तरा था.

22 दिसंबर, 2000 को हुए इस हमले में घुसपैठियों ने लाल किला परिसर में तैनात 7 राजपूताना राइफल्स यूनिट पर गोलीबारी की थी, जिसके परिणामस्वरूप तीन सैन्यकर्मी मारे गए थे. पाकिस्तानी नागरिक और प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के सदस्य आरिफ को हमले के चार दिन बाद दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था.

शीर्ष अदालत के 2022 के आदेश में कहा गया था कि 'अपीलकर्ता-आरोपी मोहम्मद आरिफ उर्फ​अशफाक एक पाकिस्तानी नागरिक था और अवैध रूप से भारतीय क्षेत्र में घुस आया था.' आरिफ को अन्य आतंकवादियों के साथ मिलकर हमले की साजिश रचने का दोषी पाया गया था और ट्रायल कोर्ट ने अक्टूबर 2005 में उसे मौत की सजा सुनाई थी.

दिल्ली उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय ने बाद की अपीलों में इस फैसले को बरकरार रखा. ट्रायल कोर्ट ने कहा था कि लाल किले पर हमले की साजिश श्रीनगर में दो साजिशकर्ताओं के घर पर रची गई थी, जहां आरिफ 1999 में लश्कर के तीन अन्य आतंकवादियों के साथ अवैध रूप से घुस गया था. स्मारक में घुसने वाले तीन आतंकवादी - अबू शाद, अबू बिलाल और अबू हैदर - अलग-अलग मुठभेड़ों में मारे गए थे.

समीक्षा और उपचारात्मक याचिकाओं सहित कई कानूनी चुनौतियों के बावजूद, आरिफ की दया याचिका को खारिज कर दिया गया, जिससे अपराध की गंभीरता और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा उजागर हुआ. दिल्ली उच्च न्यायालय ने सितंबर 2007 में ट्रायल कोर्ट के फैसले की पुष्टि की थी. इसके बाद आरिफ ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.

अगस्त 2011 में शीर्ष अदालत ने भी उसे दी गई मौत की सजा के आदेश का समर्थन किया था. बाद में, उसकी समीक्षा याचिका सर्वोच्च न्यायालय की दो न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष आई, जिसने अगस्त 2012 में इसे खारिज कर दिया. जनवरी 2014 में एक सुधारात्मक याचिका भी खारिज कर दी गई थी. इसके बाद आरिफ ने एक याचिका दायर कर कहा था कि मृत्युदंड से संबंधित मामलों में पुनर्विचार याचिकाओं की सुनवाई तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा खुली अदालत में की जानी चाहि.

सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने सितंबर 2014 में अपने फैसले में निष्कर्ष निकाला था कि जिन मामलों में उच्च न्यायालय द्वारा मृत्युदंड दिया गया है, ऐसे सभी मामलों को तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाना चाहिए. सितंबर 2014 के फैसले से पहले, मृत्युदंड की सजा पाए दोषियों की समीक्षा और उपचारात्मक याचिकाओं पर खुली अदालतों में सुनवाई नहीं की जाती थी, बल्कि संचलन द्वारा चैंबर कार्यवाही में निर्णय लिया जाता था.

जनवरी 2016 में, एक संविधान पीठ ने निर्देश दिया था कि आरिफ एक महीने के भीतर खुली अदालत में सुनवाई के लिए समीक्षा याचिकाओं को खारिज करने की फिर से मांग करने का हकदार होगा. शीर्ष अदालत ने 3 नवंबर, 2022 को दिए गए अपने फैसले में समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया था. यह फैसला राष्ट्रपति मुर्मू द्वारा पिछले साल एक अलग मामले में एक और दया याचिका को खारिज करने के बाद आया, जो जघन्य अपराधों के मामलों पर एक सख्त रुख दर्शाता है.

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