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दिल्ली दंगे में घरों को जलाने और लूटपाट के आरोपी पिता और पुत्र बरी, कोर्ट ने पुलिसकर्मियों के बयान पर उठाया सवाल - Delhi riots Case

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : 3 hours ago

दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने दोनों पिता-पुत्रों को संदेह का लाभ देते हुए दोनों पिता पुत्र को बरी करने का आदेश दिया. कोर्ट ने पिता मिठन सिंह और पुत्र जॉनी को बरी करने का आदेश दिया. दोनों पर 25 फरवरी 2020 को खजूरी खास इलाके में चार घरों में आग लगाने, तोड़फोड़ और लूटपाट करने का आरोप है.

दिल्ली दंगे में घरों को जलाने और लूटपाट के आरोपी पिता और पुत्र बरी
दिल्ली दंगे में घरों को जलाने और लूटपाट के आरोपी पिता और पुत्र बरी (ETV Bharat)

नई दिल्लीः दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के दौरान खजूरी खास इलाके में मकानों में आग लगाने और लूटपाट के मामले में पिता और पुत्र दोनों को बरी कर दिया है. एडिशनल सेशंस जज पुलस्त्य प्रमाचल ने इस मामले में दो पुलिसर्मियों के बयान को असामान्य माना जिनकी शिकायत पर एफआईआर दर्ज की गई और उन्होंने आरोपियों को पहचानने से इनकार कर दिया.

कोर्ट ने दोनों पिता-पुत्रों को संदेह का लाभ देते हुए दोनों पिता पुत्र को बरी करने का आदेश दिया. कोर्ट ने पिता मिठन सिंह और पुत्र जॉनी को बरी करने का आदेश दिया. दोनों पर 25 फरवरी 2020 को खजूरी खास इलाके में चार घरों में आग लगाने, तोड़फोड़ और लूटपाट करने का आरोप है.

कोर्ट ने कहा कि इस मामले में चारो शिकायतकर्ता अपने बयानों से मुकर गए, यहां तक कि सभी स्वतंत्र गवाहों ने भी दोनों आरोपियों को पहचानने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने दो पुलिसकर्मियों के बयान पर हैरानी जताई जिन्होंने दोनों आरोपियों को 9 मार्च 2020 को लॉकअप में देखने के बाद जांच अधिकारी को सूचित किया था कि दोनों दंगों में शामिल था। कोर्ट के सामने दिए बयान में बीट कांस्टेबल कलिक तोमर ने कहा कि उन्होंने दोनों आरोपियों को पहली बार लॉकअप में देखा था. क्रास-एग्जामिनेश के दौरान कलिक तोमर ने कहा कि दंगे के दूसरे मामले में दोनों पिता-पुत्रों को गिरफ्तार करने वाली टीम का वो हिस्सा थे। कोर्ट ने कहा कि आश्चर्य है कि दोनों ही मामलों का जांच अधिकारी एक ही है और उसकी टीम में शामिल होने के बाद भी इस केस के बारे में इन पुलिसकर्मियों पता नहीं हो.

कोर्ट ने दूसरे पुलिसकर्मी प्रदीप कुमार के बयान का जिक्र किया जिसमें कहा गया था कि जब दोनों पिता पुत्र 5 मार्च 2020 को गिरफ्तार हुए तो वो उन्हें पहचान नहीं सका. कोर्ट ने कहा कि प्रदीप कुमार की शिकायत पर ही एफआईआर दर्ज की गई है. ऐसा कैसे हो सकता है कि उसकी शिकायत पर एफआईआर दर्ज हुई हो और वो पहचानने से इनकार कर रहा हो. कोर्ट ने कहा कि दोनों पुलिसकर्मियों के बयान असामान्य हैं। ऐसे में दोनों आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया जाता है.

ये भी पढ़ेंः लालू प्रसाद यादव के खिलाफ चलेगा मुकदमा, गृह मंत्रालय से CBI को मिली मंजूरी

नई दिल्लीः दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के दौरान खजूरी खास इलाके में मकानों में आग लगाने और लूटपाट के मामले में पिता और पुत्र दोनों को बरी कर दिया है. एडिशनल सेशंस जज पुलस्त्य प्रमाचल ने इस मामले में दो पुलिसर्मियों के बयान को असामान्य माना जिनकी शिकायत पर एफआईआर दर्ज की गई और उन्होंने आरोपियों को पहचानने से इनकार कर दिया.

कोर्ट ने दोनों पिता-पुत्रों को संदेह का लाभ देते हुए दोनों पिता पुत्र को बरी करने का आदेश दिया. कोर्ट ने पिता मिठन सिंह और पुत्र जॉनी को बरी करने का आदेश दिया. दोनों पर 25 फरवरी 2020 को खजूरी खास इलाके में चार घरों में आग लगाने, तोड़फोड़ और लूटपाट करने का आरोप है.

कोर्ट ने कहा कि इस मामले में चारो शिकायतकर्ता अपने बयानों से मुकर गए, यहां तक कि सभी स्वतंत्र गवाहों ने भी दोनों आरोपियों को पहचानने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने दो पुलिसकर्मियों के बयान पर हैरानी जताई जिन्होंने दोनों आरोपियों को 9 मार्च 2020 को लॉकअप में देखने के बाद जांच अधिकारी को सूचित किया था कि दोनों दंगों में शामिल था। कोर्ट के सामने दिए बयान में बीट कांस्टेबल कलिक तोमर ने कहा कि उन्होंने दोनों आरोपियों को पहली बार लॉकअप में देखा था. क्रास-एग्जामिनेश के दौरान कलिक तोमर ने कहा कि दंगे के दूसरे मामले में दोनों पिता-पुत्रों को गिरफ्तार करने वाली टीम का वो हिस्सा थे। कोर्ट ने कहा कि आश्चर्य है कि दोनों ही मामलों का जांच अधिकारी एक ही है और उसकी टीम में शामिल होने के बाद भी इस केस के बारे में इन पुलिसकर्मियों पता नहीं हो.

कोर्ट ने दूसरे पुलिसकर्मी प्रदीप कुमार के बयान का जिक्र किया जिसमें कहा गया था कि जब दोनों पिता पुत्र 5 मार्च 2020 को गिरफ्तार हुए तो वो उन्हें पहचान नहीं सका. कोर्ट ने कहा कि प्रदीप कुमार की शिकायत पर ही एफआईआर दर्ज की गई है. ऐसा कैसे हो सकता है कि उसकी शिकायत पर एफआईआर दर्ज हुई हो और वो पहचानने से इनकार कर रहा हो. कोर्ट ने कहा कि दोनों पुलिसकर्मियों के बयान असामान्य हैं। ऐसे में दोनों आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया जाता है.

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