जयपुर. राजस्थान में स्वाइन फ्लू समेत अन्य मौसमी बीमारियों के मामलों में बढ़ोतरी होने लगी है. राजस्थान में फिलहाल स्वाइन फ्लू बेकाबू होता हुआ नजर आ रहा है. राजस्थान में स्वाइन फ्लू के तकरीबन 900 से अधिक पॉजिटिव मामले सामने आ चुके हैं, जबकि इस बीमारी से अभी तक मौत के मामले भी लगातार बढ़ रहे हैं. केंद्र सरकार ने इस बार मौसमी बीमारियों को लेकर अलर्ट भी जारी किया है. स्वाइन फ्लू की बात करें तो अभी उदयपुर, जयपुर और बीकानेर में सबसे अधिक मामले देखने को मिले हैं.
ये हैं लक्षण: स्वाइन फ्लू को एच1एन1 के नाम से भी जाना जाता है. इस फ्लू के लक्षण अन्य फ्लू वायरस के समान होते हैं. स्वाइन फ्लू से पीड़ित मरीज में ये लक्षण देखने को मिलते हैं जिसमें बुखार आना, मांसपेशियों में दर्द, ठंड लगना और पसीना आना, खांसी, गला खराब होना, बहती या भरी हुई नाक, पानीदार, लाल आंखें, शरीर में दर्द, सिरदर्द, थकान और कमजोरी, दस्त, पेट में दर्द महसूस होना, उल्टी होना आमतौर पर वायरस के संपर्क में आने के लगभग 1 से 4 दिन बाद फ्लू के लक्षण विकसित होते हैं.
राजस्थान में स्वाइन फ्लू का कहर :
- बीते तीन माह में 945 पॉजिटिव मामले आए सामने
- अभी तक 12 मरीजों की हुई मौत
- सबसे अधिक पॉजिटिव 498 मामले जयपुर में
- इसके अलावा उदयपुर में 121 और बीकानेर में 73 मामले आए सामने
- उदयपुर में 4 जबकि भीलवाड़ा में 3, बीकानेर में 2, कोटा में 2 और चितौड़गढ़ में 1 मरीज की मौत
कंट्रोल रूम शुरू: मामले को लेकर चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव शुभ्रा सिंह का कहना है कि इस बार विभाग मिशन मोड़ पर काम करने जा रहा है. सिंह ने बताया कि भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने इस बार डेंगू, मलेरिया सहित अन्य मौसमी बीमारियों का प्रसार ज्यादा होने की आशंका व्यक्त की है. इसे ध्यान में रखते हुए प्रदेश में मौसमी बीमारियों से बचाव के लिए सभी तैयारियां पुख्ता रूप से की जाएगी.
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सिंह ने निर्देश दिए है कि मौसमी बीमारियों की रोकथाम के लिए सभी संबंधित विभाग पूर्ण समन्वय से साथ काम करते हुए अपने-अपने विभाग से संबंधित गतिविधियों को प्रभावी ढंग से अंजाम दें. इसके साथ ही विभाग एक कंट्रोल रूम भी शुरू कर चुका है, जहां सभी विभाग चेकलिस्ट बनाकर साप्ताहिक समीक्षा करेंगे तथा डेंगू, मलेरिया, स्क्रब टाइफस, स्वाइन फ्लू, चिकनगुनिया सहित अन्य मौसमी बीमारियों की नियमित मॉनिटरिंग होगी. अस्पतालों में जांच, दवा एवं उपचार के पर्याप्त इंतजाम करने, रेपिड रेस्पांस टीम का गठन करने, केसेज की समय पर लाइन लिस्ट तैयार करने, ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल तैयार करने, हाईरिस्क मरीजों को चिन्हित करने सहित सभी आवश्यक तैयारियां समय रहते करने के निर्देश दिए हैं.