बागेश्वर: अनवाल अपनी भेड़ों को लेकर मैदानी क्षेत्र से बुग्यालों की ओर लौटने लगे हैं. अनवाल शीतकाल में प्रवास पर भाबर क्षेत्र में जाते हैं. ग्रीष्मकाल में बुग्यालों की ओर लौटते हैं. अनवाल छह महीने हिमालयी क्षेत्र से सटे इलाकोें में भेड़ चराते हैं.
बागेश्वर पहुंचे भेड़ पालक 'अनवाल': भाबर क्षेत्र हल्द्वानी से 26 दिन पहले करीब 800 भेड़ों को लेकर चला अनवालों का दल विभिन्न पड़ावों से होकर बागेश्वर पहुंचा है. बागेश्वर में दल तीन पड़ाव बनाएगा. उसके बाद दल पिथौरागढ़ जिले की सीमा मुनस्यारी में प्रवेश करेगा. इस दल को मुनस्यारी पहुंचने में करीब 12 दिन का समय और लगेगा. एक महीना मुनस्यारी में रहने के बाद दल जोहार के बुग्यालों ने जाएगा. सितंबर महीने के अंत में बुग्यालों से उतरकर नवंबर में फिर से भाबर की यात्रा शुरू करेगा.
गर्मी हुई तो भाबर से चले पहाड़: अनवाल गर्मियों में मुनस्यारी के बुग्याल और शीतकाल में गौलापार के जंगलों में रहते हैं. नवंबर में अनवालों का दल भेड़ों का झुंड लेेकर मुनस्यारी से गौलापार की यात्रा पर निकल पड़ता है. रातिरकेटी गांव कपकोट के मलक सिंह करीब 50 साल से चरवाहे का काम कर रहे हैं. उनके दल में भेड़ों के साथ अलग अलग प्रजातियों के कुत्ते, सामान ढोने के लिए घोड़े और कर्मचारी रहते हैं. दिसंबर में गौलापार पहुंचने के बाद यह दल तीन महीने वहां के जंगलों में गुजारता है. मार्च के दूसरे पखवाड़े में फिर से मुनस्यारी के लिए रवानगी होती है.
अब सिमटते जा रहे अनवालों के भेड़ों के झुंड: सालों से अनवाल का काम कर रहे धाम सिंह बताते हैं कि पहले और अब में काफी अंतर आ चुका है. पहले दल में हजारों की तादात में भेड़ होते थे. अब यह सैकड़ों में सिमट गए हैं. अब इस काम को हर कोई करना भी नहीं चाहता है. अब काम करना काफी मुश्किल हो गया है. उन्होंने कहा कि उनका यह काम पुश्तैनी है. अपने पुस्तैनी काम को कर हम अपना गुजारा करते हैं. पहले हम अपने काम को आराम से करते थे, पर अब विभाग हो या स्थानीय लोग हर जगह काफी परेशान करते हैं. कल भी उनकी बकरी चोरी करने का प्रयास किया गया था.
इस कारण अनवाल होते हैं परेशान: अनवाल पुष्कर सिंह मेहता ने बताया कि रास्ते में अराजक तत्वों के साथ कुछ वन कर्मी भी उनकी परेशानी बढ़ाते हैं. जंगल में जिन स्थानों पर वह दशकों से अपना पड़ाव बनाते रहे हैं, वहां रुकने पर वन विभाग के कर्मचारी भी हमें डराते हैं. जबकि हम वन विभाग से परमिट बनाते हैं, फिर भी हमें काफी परेशान किया जाता है. वह लंबे समय से भेड़ों के साथ ही रहते आ रहे हैं. पहले हमें किसी तरह की दिक्कत नहीं होती थी, लेकिन अब हमें जगह-जगह लोग परेशान करते हैं. कहीं कोई भी रेंजर बन जाता है, और धमकाने लगता है. कल बागेश्वर के बिलोना में भी हमारे साथ मारपीट की गई. पुलिस को शिकायत करने के बाद हमें उनसे छुटकारा मिला.
ये रहता है अनवालों का रास्ता: पहाड़ से मैदान और मैदान से पहाड़ की यात्रा के लिए दल सैकड़ों वर्षों पुराने रास्तों से गुजरता है. बुग्यालों से मुनस्यारी आने के बाद दल का पहला पड़ाव कालामुनि रहता है. यहां से रात्तापानी, ककड़सिंह बैंड, बाखड़ धार होकर बागेश्वर की सीमा में प्रवेश कर अनवाल झोपड़ा में रुकते हैं. झोपड़ा से कपकोट, हरसीला, बिलौना, काफलीगैर, कनगाड़छीना में रुकते हुए अल्मोड़ा जिले के बिनसर, धौलछीना, पत्थरखानी, झांकरसैम, धुड़म, दुबरेली, डोल आश्रम, मोरनौला, नाये, पतलोट, बनोलिया, हरीशताल, ककोड़, डेढ़गांव, चौघान होकर अंतिम पड़ाव सूर्या मंदिर में रहता है. वहां से दल गौलापार हल्द्वानी के जंगलों में पहुंचता है. उसी तरह गर्मियों में वापस भी आता है.
अनवालों को मतदान के लिए जागरूक किया: लोकसभा चुनाव को लेकर बागेश्वर में अनवालों के दल के पहुंचने पर स्वीप टीम ने उनको मतदान के लिए जागरूक किया. स्वीप (Systematic Voters' Education and Electoral Participation) टीम के सहायक नोडल अधिकारी ने उनको घर जाकर 19 अप्रैल को मतदान करने को कहा. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र को मजबूती मतदान करने से ही मिल सकती है. उन्होंने कहा कि अनवाल 6 महीने बुग्यालों और 6 महीने हल्द्वानी के जंगलों में रहते हैं. जिस वजह से वह अपने मत का कम ही प्रयोग कर पाते हैं. आज सभी अनवालों को अपने मत का प्रयोग करने हेतु जागरूक किया गया. इस दौरान कन्हैया वर्मा, दीपक सिंह आदि मौजूद रहे.
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