ETV Bharat / bharat

इस शरारत के लिए बिहार सरकार को माफ नहीं किया जा सकता, SC की सख्त टिप्पणी, जानें मामला - Supreme Court - SUPREME COURT

Supreme Court on Bihar tinkering with list of Scheduled Castes: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार के तांती-तंतवा जाति को अति पिछड़ी जातियों की सूची से हटाकर अनुसूचित जाति की सूची में पान/सावासी जाति के साथ विलय करने के फैसले को खारिज कर दिया है. अदालत ने कहा कि सरकार के पास अनुसूचित जातियों की सूची में छेड़छाड़ करने की कोई शक्ति नहीं है.

Supreme Court on Bihar tinkering with list of Scheduled Castes
सुप्रीम कोर्ट (ANI)
author img

By Sumit Saxena

Published : Jul 16, 2024, 10:23 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बिहार सरकार द्वारा की गई गड़बड़ी के लिए उसे माफ नहीं किया जा सकता है और संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत अनुसूचित जातियों के सदस्यों को सूची से वंचित करना एक गंभीर मुद्दा है. साथ ही शीर्ष अदालत ने तांती-तंतवा जाति को अत्यंत पिछड़ी जातियों की सूची से हटाकर अनुसूचित जाति की सूची में पान/सावासी जाति के साथ विलय करने के राज्य के फैसले को खारिज कर दिया.

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा कि किसी भी जाति, नस्ल या जनजाति या समूह को जातियों, नस्लों या जनजातियों में शामिल या बहिष्कृत करना चाहे वह समानार्थी हो या नहीं, संसद द्वारा बनाए गए कानून से ही किया जा सकता है, न कि किसी अन्य तरीके या पद्धति से. पीठ ने कहा कि राज्य सरकार और केंद्र सरकार के पास संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत प्रकाशित अनुसूचित जातियों की सूची में छेड़छाड़ करने की कोई क्षमता, अधिकार या शक्ति नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने 01 जुलाई, 2015 को बिहार सरकार द्वारा पारित प्रस्ताव को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि अति-पिछड़ी जाति 'तांती-तंतवा' को अनुसूचित जाति की सूची में 'पान/सवासी' जाति के साथ शामिल किया जाए. अदालत ने 15 जुलाई को दिए अपने फैसले में कहा कि हमें यह मानने में कोई संकोच नहीं है कि 1 जुलाई, 2015 का प्रस्ताव स्पष्ट रूप से असंवैधानिक और त्रुटिपूर्ण था, क्योंकि राज्य सरकार के पास संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत प्रकाशित अनुसूचित जातियों की सूची में छेड़छाड़ करने की कोई क्षमता या अधिकार या शक्ति नहीं है.

पीठ ने कहा कि बिहार सरकार का यह कहना कि प्रस्ताव केवल स्पष्टीकरण के लिए था, यह एक पल के लिए भी विचार करने लायक नहीं है और इसे सिरे से खारिज किया जाना चाहिए. पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले जस्टिस नाथ ने कहा कि चाहे यह अनुसूचित जातियों की सूची की प्रविष्टि-20 का पर्यायवाची या अभिन्न अंग था या नहीं, इसे संसद द्वारा कानून बनाए बिना नहीं जोड़ा जा सकता था.

जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा कि राज्य पिछड़ा आयोग की सिफारिश पर अति पिछड़ा वर्ग की सूची से 'तांती-तंतवा' को हटाने में राज्य को न्यायोचित ठहराया जा सकता है. लेकिन अनुसूचित जातियों की सूची की प्रविष्टि-20 के अंतर्गत 'तांती-तंतवा' को 'पान, सावासी, पंर' के साथ मिलाना दुर्भावनापूर्ण प्रयास से कम नहीं था, चाहे जो भी कारण रहे हों.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में राज्य की कार्रवाई दुर्भावनापूर्ण पाई गई है तथा संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ है. राज्य द्वारा की गई शरारत के लिए उसे माफ नहीं किया जा सकता. संविधान के अनुच्छेद 341 के अंतर्गत सूची में शामिल अनुसूचित जातियों के सदस्यों को वंचित करना गंभीर मुद्दा है.

यह भी पढ़ें- केसीआर की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का तेलंगाना सरकार को आदेश, 'न्याय होना चाहिए, जज को बदला जाए'

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बिहार सरकार द्वारा की गई गड़बड़ी के लिए उसे माफ नहीं किया जा सकता है और संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत अनुसूचित जातियों के सदस्यों को सूची से वंचित करना एक गंभीर मुद्दा है. साथ ही शीर्ष अदालत ने तांती-तंतवा जाति को अत्यंत पिछड़ी जातियों की सूची से हटाकर अनुसूचित जाति की सूची में पान/सावासी जाति के साथ विलय करने के राज्य के फैसले को खारिज कर दिया.

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा कि किसी भी जाति, नस्ल या जनजाति या समूह को जातियों, नस्लों या जनजातियों में शामिल या बहिष्कृत करना चाहे वह समानार्थी हो या नहीं, संसद द्वारा बनाए गए कानून से ही किया जा सकता है, न कि किसी अन्य तरीके या पद्धति से. पीठ ने कहा कि राज्य सरकार और केंद्र सरकार के पास संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत प्रकाशित अनुसूचित जातियों की सूची में छेड़छाड़ करने की कोई क्षमता, अधिकार या शक्ति नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने 01 जुलाई, 2015 को बिहार सरकार द्वारा पारित प्रस्ताव को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि अति-पिछड़ी जाति 'तांती-तंतवा' को अनुसूचित जाति की सूची में 'पान/सवासी' जाति के साथ शामिल किया जाए. अदालत ने 15 जुलाई को दिए अपने फैसले में कहा कि हमें यह मानने में कोई संकोच नहीं है कि 1 जुलाई, 2015 का प्रस्ताव स्पष्ट रूप से असंवैधानिक और त्रुटिपूर्ण था, क्योंकि राज्य सरकार के पास संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत प्रकाशित अनुसूचित जातियों की सूची में छेड़छाड़ करने की कोई क्षमता या अधिकार या शक्ति नहीं है.

पीठ ने कहा कि बिहार सरकार का यह कहना कि प्रस्ताव केवल स्पष्टीकरण के लिए था, यह एक पल के लिए भी विचार करने लायक नहीं है और इसे सिरे से खारिज किया जाना चाहिए. पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले जस्टिस नाथ ने कहा कि चाहे यह अनुसूचित जातियों की सूची की प्रविष्टि-20 का पर्यायवाची या अभिन्न अंग था या नहीं, इसे संसद द्वारा कानून बनाए बिना नहीं जोड़ा जा सकता था.

जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा कि राज्य पिछड़ा आयोग की सिफारिश पर अति पिछड़ा वर्ग की सूची से 'तांती-तंतवा' को हटाने में राज्य को न्यायोचित ठहराया जा सकता है. लेकिन अनुसूचित जातियों की सूची की प्रविष्टि-20 के अंतर्गत 'तांती-तंतवा' को 'पान, सावासी, पंर' के साथ मिलाना दुर्भावनापूर्ण प्रयास से कम नहीं था, चाहे जो भी कारण रहे हों.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में राज्य की कार्रवाई दुर्भावनापूर्ण पाई गई है तथा संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ है. राज्य द्वारा की गई शरारत के लिए उसे माफ नहीं किया जा सकता. संविधान के अनुच्छेद 341 के अंतर्गत सूची में शामिल अनुसूचित जातियों के सदस्यों को वंचित करना गंभीर मुद्दा है.

यह भी पढ़ें- केसीआर की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का तेलंगाना सरकार को आदेश, 'न्याय होना चाहिए, जज को बदला जाए'

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.