पटना: कहावत है यदि आपके अंदर प्रतिभा है तो उसे आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता है. यह कहावत प्रसिद्ध कवि शंभू शिखर पर सटीक बैठता है. हास्य कवि शंभू शिखर आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. कवि के रूप में वे आज पूरे देश में एक जाना पहचाना नाम हैं.
साधारण किसान परिवार में हुआ जन्म: शंभू शिखर का जन्म मधुबनी जिले के सौराठ गांव में एक गरीब परिवार में हुआ था. उनके पिताजी बटोही कामत गांव में खेती बाड़ी करते थे. किसी तरह वो अपने परिवार का भरण पोषण करते थे. एक अतिपिछड़ा परिवार में पैदा हुए शंभू शिखर बचपन से ही मेधावी थे. शंभू शिखर की प्रारंभिक शिक्षा उनके ही गांव के सरकारी प्राथमिक विद्यालय से हुई. मैट्रिक की पढ़ाई उन्होंने अपने गांव के सरकारी विद्यालय में की.
ट्यूशन पढ़ाकर निकाला पढ़ाई का खर्चा: शंभू शिखर के पिताजी बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन शंभू शिखर की रुचि पढ़ाई में बचपन से थी. लेकिन घर की माली हालत ठीक नहीं होने के कारण सरकारी स्कूल में पढ़ाई शुरू हुई. जब शम्भू शिखर कक्षा 10 में गए तो आगे की पढ़ाई के लिए उनके पास पैसे नहीं थे. उन्होंने गांव के छोटे-छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का निर्णय लिया.
मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण: गांव के ही तीन-चार छोटे-छोटे बच्चे उनके पास पढ़ने के लिए आने लगे. फीस के तौर पर प्रति बच्चा 50 रु मिलने लगा. इस तरह शंभू शिखर ने आगे की पढ़ाई कैसे पूरी करना था, उसका रास्ता तैयार कर लिया. गांव के ही छोटे-छोटे और बच्चे उनसे ट्यूशन पढ़ने लगे. 1998 में वह मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए. इस तरीके से उन्होंने अपनी पहली मंजिल अपनी मेहनत के बदौलत पार की.
पिता का असमय निधन: मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद शंभू शिखर ने आगे की पढ़ाई दिल्ली जाकर करने का फैसला किया. बेटे के आगे की पढ़ाई को देखते हुए उनके पिताजी ने भी दिल्ली जाकर नौकरी करने का फैसला किया. वहीं पर एक छोटे से कमरे में अपने पुत्र को लेकर रहने लगे. 11वीं में शंभू शिखर का नामांकन दिल्ली के आर के पुरम सेक्टर 7 स्थित सरकारी विद्यालय में हुआ. ईटीवी भारत से बातचीत में शंभू शिखर ने बताया कि उनको इस बात का ज्ञान हो गया था कि आगे की पढ़ाई के लिए भी उनको ट्यूशन का सहारा लेना पड़ेगा. इसी बीच 2001 मे उनके पिताजी की असमय निधन हो गया. इसके बाद शम्भू शिखर के सामने आगे की पढ़ाई पूरी करने क समस्या आ गई.
दिल्ली में ट्यूशन शुरू किया: पिता के निधन के बाद शंभू शिखर के सामने सबसे बड़ी समस्या थी कि वह दिल्ली में कैसे रहें. फिर से उन्होंने दिल्ली में ट्यूशन शुरू किया. दसवीं तक के बच्चों के ट्यूशन के लिए उनको फीस के तौर पर 500 रु मिलता था. बच्चों को घर जाकर पढ़ाने पर 1000 रु मिलते थे. उन्होंने दसवीं तक के बच्चों को ट्यूशन पढ़ना शुरू किया. इस तरीके से महीने का खर्च ट्यूशन से निकलने लगा. अपना खर्चा निकालने के बाद जो कुछ पैसे बच जाता था, वह अपनी मां को गांव भेज दिया करते थे. 12वीं की परीक्षा भी शम्भू शिखर ने अच्छे नंबर से प्रथम श्रेणी से पास की.
मोतीलाल नेहरू कॉलेज में हुआ नामांकन: आगे की पढ़ाई के लिए शंभू शिखर का नामांकन दिल्ली विश्वविद्यालय स्थित मोतीलाल नेहरू कॉलेज में हुआ, जहां से उन्होंने स्नातक और स्नातकोत्तर की पढ़ाई प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की. शंभू शिखर ने बताया कि आय का साधन ट्यूशन के अलावे विश्वविद्यालय में हर एक विभाग में कुछ न कुछ प्रतियोगिता का आयोजन होता रहता था. सृजनात्मक लेखन, वाद विवाद प्रतियोगिता, कविता लेखन, कविता पाठ प्रतियोगिता का आयोजन होता रहता था. इसमें 500 रु से लेकर 1500 रु का पुरस्कार मिलता था. वह सभी प्रतियोगिताओं में भाग लेते थे, जिसमें कई प्रतियोगिता में विजेता होने के कारण उनको इनाम भी मिलता था.
"जब कॉलेज में पढ़ रहा था, उसी समय मन में बना लिया था कि नौकरी नहीं करनी है. आगे का करियर कवि के रूप में ही बनाना है. रामधारी सिंह दिनकर की लिखी हुई कविताओं से प्रेरित था. कवि भी किताब वाले कवि नहीं मंच पर परफॉर्म करने वाले कवि बनने की मन में इच्छा थी. बाद में हास्य कवि की तरफ भी अपनी रचना शुरू की."- शंभू शिखर, हास्य कवि
कवि के रूप में पहचान मिली: शंभू शिखर ने बताया कि स्नातक की पढ़ाई के दौरान ही उनकी कविता के प्रति रुचि बढ़ गयी थी. कॉलेज के सभी कवि सम्मेलन में भाग लेने लगे थे. स्नातक के थर्ड ईयर में पढ़ाई कर रहे थे तब तक उनकी पहचान एक कवि के रूप में हो चुकी थी और कई जगहों पर उनको पैसे देकर बुलाया जाने लगा था. जब वह कवि सम्मेलन में भाग लेने के लिए जा रहे थे तो उस आयोजन में जज की भूमिका में बड़े कवि रहते थे.
अरुण जैमिनी, सुरेंद्र शर्मा, कुमार विश्वास जज की भूमिका में रहते थे. शंभू शिखर की कविता इन लोगों को बहुत पसंद आती थी. वहीं से सफलता मिलनी शुरू हुई और स्नातक खत्म होते तक उनकी पहचान एक कवि के रूप में होने लगी थी. कई संस्थाओं के द्वारा कवि सम्मेलन का आयोजन किया जाता था, उसमें उनको भी निमंत्रण आने लगा. हर आयोजन के लिए 1500 से 2000 रु उनको मिलने लगे. शंभू शिखर ने बताया कि संघर्ष के दिनों में कभी वह विचलित नहीं हुए.
दुबई के कार्यक्रम से पहचान मिली: शंभू शिखर की एक बहुत ही पॉपुलर कविता लोगों के जेहन में है. उन्होंने बिहार के बारे में एक कविता लिखी है कि मैं धरतीपुत्र बिहारी हूं. इस कविता के बारे में याद ताजा करते हुए उन्होंने लिखा कि जब वह कॉलेज में पढ़ते थे तो अन्य प्रदेशों के छात्र बिहार के छात्रों को बिहारी कहकर पुकारते थे. जो उनको बहुत बुरा लगता था. यही सोचते हुए उन्होंने बिहार की ऐतिहासिक धरोहरों को ध्यान में रखते हुए धरतीपुत्र बिहारी कविता लिखी, जो बहुत ही प्रसिद्ध हुई.
लपेटे में नेताजी कार्यक्रम को लोगों ने सराहा: दुबई में हुए कार्यक्रम में जब धरतीपुत्र बिहार कविता का पाठ किया तो मंच पर मौजूद कवि के साथ-साथ दर्शन दीर्घा में बैठे सभी लोग झूम उठे. उनका यह शो सोशल मीडिया पर लोगों को बहुत पसंद आया. इसके बाद एक निजी चैनल पर कार्यक्रम शुरू हुआ था लपेटे में नेताजी उसमें उनको मौका मिला जो लोगों ने काफी पसंद किया.
बिहारी होने पर फक्र: अपने कवि के पेशे में कामयाबी मिलने के बाद भी शंभू शिखर को अपने कल्चर से उतना ही प्यार है. शंभू शिखर ने बताया कि उन्होंने कवि सम्मेलन में कुर्ता और धोती पहन कर मंच पर जाने का फैसला किया. उन्हें इस बात पर फक्र है कि वह बिहार के और खास कर मिथिला के मधुबनी के रहने वाले हैं. यही कारण है कि देश हो या विदेश उन्होंने मिथिला की परंपरागत परिधान धोती कुर्ता को ही अपनाया और इस परिधान में वह कवि सम्मेलन में भाग लेते हैं.
लाफ्टर चैलेंज में भी जाने का मौका: शंभू शिखर की लोकप्रियता धीरे-धीरे बढ़ने लगी. अब शंभू शिखर टेलीविजन के तरफ भी रुख करने लगे. 2007 में ग्रेट लाफ्टर चैलेंज कार्यक्रम में उनका सिलेक्शन हुआ. इसके बाद 2023 में लाफ्टर चैंपियन में भी उन्होंने भाग लिया.
अब लाखों में है फीस: 50 रुपये से ट्यूशन की शुरुआत करने वाले शंभू शिखर अपने मेहनत की बदौलत आज पूरे देश में एक अलग पहचान बन चुके हैं. देश के स्थापित अच्छे कवियों में अब शंभू शिखर की पहचान होती है. शंभू शिखर अब एक कवि सम्मेलन में भाग लेने के लिए लाखों रुपए में फीस लेते हैं. शंभू शिखर ने बताया कि अब कवि सम्मेलन का प्रचलन इतना बढ़ गया है कि कवियों के पास समय की कमी हो गई है. साल में 250 दिन के आसपास वह कवि सम्मेलन में भाग लेते हैं.
'कवि सम्मेलन ने लिया इंडस्ट्री का रूप': शंभू शिखर ने बताया कि कवि सम्मेलन अब एक इंडस्ट्री का रूप ले लिया है. पिछले 10 वर्षों में कवि सम्मेलन की संख्या लगभग 20 गुना से ज्यादा बढ़ी है. पूरे देश में यदि कवि सम्मेलन के टर्नओवर की बात की जाए तो करीब 300 से 400 करोड़ रुपए का टर्नओवर है. कर्मशलाइजेशन के कारण अब कवियों की संख्या भी धीरे-धीरे बढ़ने लगी है.
23 देशों में कवि सम्मेलन में ले चुके हैं भाग : शंभू शिखर ने कहा कि पूरे दुनिया में कवि सम्मेलन का प्रचलन बढ़ा है. अब तक वह 23 देश में 100 से अधिक कवि सम्मेलन में भाग ले चुके हैं. लगातार 2 महीने अमेरिका में 25 कवि सम्मेलन में भाग लेने के बाद पिछले महीने में वह भारत पहुंचे हैं. अमेरिका दुबई वियतनाम बहरीन ओमान सहित 23 देश में अब तक उनका परफॉर्मेंस हो चुका है.
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