पलामू: राख में तब्दील हो रहे जंगलों को उम्मीद की किरण तब दिखी जब एक आदिवासी महिला ने ठान लिया कि अब वह जंगल को आग नहीं लगने देगी. काफी मेहनत और गांव वालों की मदद से आखिरकार एक वक्त ऐसा आया कि जिस जंगल में आग लगती रहती थी, वहां आगजनी की एक भी घटना नहीं हुई. यह कहानी है झारखंड के पलामू टाइगर रिजर्व में स्थित बढ़निया की. 2023-24 में बढ़निया में आगजनी की शून्य घटनाएं दर्ज की गई हैं. इसके पीछे मैरी सुरीन नाम की महिला की भूमिका सबसे अहम रही है.
ग्लोबल वार्मिंग के दौर में जंगलों को बचाना एक बड़ी चुनौती है. दुनिया के कई हिस्सों से जंगलों में आग लगने की खबरें आती रहती हैं. झारखंड में भी कई इलाके ऐसे हैं, जहां गर्मी के दिनों में जंगलों में आग लग जाती है. ग्रामीण महुआ इकट्ठा करने के लिए आग जलाते हैं और धीरे-धीरे यह जंगलों में फैल जाती है.
लातेहार के बरवाडीह के बढ़निया में भी लगातार इसी तरह जंगल में आग लगती रहती थी, लेकिन अब इसी गांव की रहने वाली मैरी सुरीन लगातार जंगलों को आग से बचा रही हैं. जंगलों को आग से बचाने के साथ-साथ मैरी सुरीन जल संरक्षण में भी सफल रही हैं. जिस इलाके में वे जंगलों को आग से बचा रही हैं, वह पलामू टाइगर रिजर्व के अंतर्गत आता है और यह इलाका घोर नक्सल प्रभावित माना जाता है.
आग से बचाने के लिए ग्रामीणो को किया एकजुट
मैरी सुरीन पलामू टाइगर रिजर्व के बढ़निया इको डेवलपमेंट समिति से जुड़ी हुई हैं. वह जिस इलाके में रहती हैं, वहां हर साल 200 से ज्यादा आगजनी की घटनाएं दर्ज की जाती रही हैं. महुआ चुनने से पहले ग्रामीण उसके पेड़ के नीचे मौजूद खरपतवार को नष्ट करने के लिए आग जलाते हैं. यही आग जंगलों में फैल जाती है.
मैरी सुरीन ने बढ़निया इलाके में ग्रामीणों की एक चेन तैयार की है. इस चेन के जरिए महुआ पेड़ के नीचे के हिस्से की सफाई की गई और ग्रामीणों को पर्यावरण बचाने की मुहिम से जोड़ा गया. गर्मी में जल संकट से निपटने के लिए मैरी सुरीन ने ग्रामीणों को एकजुट कर इलाके में आधा दर्जन से ज्यादा चेकडैम भी बनाए. सभी चेकडैम ग्रामीणों ने श्रमदान करके बनाए हैं.
मैरी सुरीन बताती हैं कि आग लगाने पर पहले ग्रामीणों को जागरूक किया गया. जिसके बाद अब ग्रामीण फॉरेस्ट विभाग के कर्मियों के साथ मिलकर आग बुझाते हैं.
"जंगल में आग लगने के बाद अब ग्रामीण और फॉरेस्ट विभाग के सिपाही मिलकर आग बुझाते हैं. ग्रामीणों को इसके लिए जागरूक किया गया है. मैंने समिति के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर ग्रामीणों के साथ इसे लेकर बैठक की और उन्हें आग लगाने से रोका. ग्रामीणों की मदद से ही श्रमदान कर दो चेकडैम भी बनवाए गए हैं. कई जगहों पर पत्थर रखकर पानी रोकने का प्रयास किया गया है, ताकि जंगली जानवरों को पानी मिल सके" - मैरी सुरीन, अध्यक्ष, इको डेवलपमेंट समिति, बढ़निया
पीटीआर के फॉरेस्ट गार्ड भी बताते हैं कि अब जंगल में आगजनी की घटनाएं कम हुई हैं. मैरी सुरीन की इसमें मुख्य भूमिका रही है.
"ग्रामीणों को जागरूक किया गया है, जिससे आगजनी की घटनाएं कम हुई हैं. मैरी सुरीन की इसमें अहम भूमिका रही है." - अविनाश एक्का, फॉरेस्ट गार्ड
पीटीआर के अधिकारी भी मैरी सुरीन के योगदान की तारीफ करते हैं. अधिकारियों का कहना है कि मैरी सुरीन पर सभी को गर्व है. उनके सहयोग से जंगलों में आग लगने की घटना शुन्य हो गई है. चेक डैम बनाने में उनकी भुमिका सराहनीय है.
"मैरी सुरीन ने पर्यावरण संरक्षण में बहुत अच्छा काम किया है. उनकी भूमिका के कारण 2023-24 में बढ़निया क्षेत्र में जंगल में आग लगने की घटनाओं की संख्या शून्य हो गई. मैरी सुरीन ने जल संचयन में भी प्रमुख भूमिका निभाई है. श्रमदान से कई चेक डैम का निर्माण किया है. जंगल को आग से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए मैरी सुरीन को मुख्यमंत्री द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है. पलामू टाइगर रिजर्व को मैरी सुरीन पर गर्व है, जिनकी बदौलत जंगल को बचाया जा रहा है." - प्रजेशकांत जेना, उप निदेशक, पीटीआर
नक्सल घटनाओं के लिए जाना जाता है बढ़निया का इलाका
बढ़निया का इलाका छिपादोहर उत्तरी वन क्षेत्र के अंतर्गत आता है. गर्मी के दिनों में इलाके में शिकार की घटनाएं थम सी गई हैं. बढ़निया का इलाका घोर नक्सल प्रभावित माना जाता है. 2007 में बढ़निया पूरे देश में चर्चा का केंद्र बना था. उस समय नक्सलियों के खिलाफ सर्च ऑपरेशन के दौरान सुरक्षा बलों पर आरोप लगा था कि उन्होंने ग्रामीणों को खड़ा करके गोली मार दी थी. इस घटना के विरोध में पहली बार नक्सलियों ने इलाके में पैसेंजर ट्रेन को हाईजैक कर लिया था. इस घटना के बाद बढ़निया पूरे देश में चर्चित हो गया था.
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