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शाही ईदगाह विवाद: हिंदू पक्ष ने कहा- कृष्ण जन्मभूमि का धार्मिक चरित्र तय करना जरूरी - Allahabad High Court Order - ALLAHABAD HIGH COURT ORDER

श्रीकृष्ण जन्मभूमि शाही ईदगाह विवाद को लेकर बुधवार को भी इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष ने कहा कि कृष्ण जन्मभूमि का धार्मिक चरित्र तय करना जरूरी है. मामले की सुनवाई गुरुवार को भी होगी.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : May 1, 2024, 7:34 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट में मथुरा स्थित कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद मामले में सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी.

बुधवार को भी सीपीसी के आदेश सात नियम 11 के तहत मुकदमे की पोषणीयता पर बहस हुई. मुकदमे की पोषणीयता के बिंदु पर अधिवक्ता राजेंद्र माहेश्वरी, रमा गोयल बंसल और अधिवक्ता हरिशंकर जैन तर्क प्रस्तुत किए. हरिशंकर जैन की बहस गुरुवार को भी जारी रहेगी. सुनवाई के दौरान 1968 में समझौते के प्रश्न पर मुस्लिम पक्ष के तर्कों के उत्तर में हिंदू पक्ष की ओर से कहा गया कि समझौते में देवता पक्ष नहीं थे और न ही 1974 में पारित अदालती डिक्री में समझौता श्री जन्म सेवा संस्थान द्वारा किया गया, जिसे किसी भी समझौते में शामिल होने का अधिकार नहीं था.

संस्थान का उद्देश्य केवल रोजमर्रा की गतिविधियों का प्रबंधन करना था और उसे इस तरह का समझौता करने का कोई अधिकार नहीं था. इससे पहले तस्लीमा अजीज अहमदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से बहस में कहा था कि मुकदमा मियाद अधिनियम से बाधित है. उनके अनुसार पक्षकारों ने 12 अक्टूबर 1968 को समझौता किया था और कहा था कि 1974 में तय किए गए एक दीवानी मुकदमे में समझौते की पुष्टि की गई है.

समझौते को चुनौती देने की सीमा तीन साल है लेकिन मुकदमा 2020 में दायर किया गया है और इस प्रकार यह मुकदमा मियाद अधिनियम से बाधित है. हिंदू पक्ष की ओर से तर्क दिया गया कि मुकदमा विचारणीय है, विचारणीय न होने संबंधी याचिका पर प्रमुख साक्ष्यों के बाद ही निर्णय लिया जा सकता है. यह भी कहा गया कि इस मामले में पूजा स्थल अधिनियम 1991 के प्रावधान लागू नहीं होंगे.

1991 के अधिनियम में धार्मिक चरित्र को परिभाषित नहीं किया गया है. स्थान/संरचना का धार्मिक चरित्र केवल साक्ष्य द्वारा तय किया जा सकता है, जिसे केवल सिविल कोर्ट द्वारा तय किया जा सकता है. इसके लिए ज्ञानवापी मामले में पारित फैसले का भी उल्लेख किया गया, जहां अदालत ने माना था कि धार्मिक चरित्र का फैसला केवल सिविल कोर्ट द्वारा किया जा सकता है.

बुधवार को सुनवाई के दौरान आशुतोष पांडेय व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए. उन्होंने प्रतिवादियों द्वारा पेन ड्राइव को अस्वीकार करने की अर्जी पर आपत्ति प्रस्तुत की, जिसे रिकॉर्ड पर लिया गया है. इसकी प्रतिलिपि प्रतिवादियों के अधिवक्ताओं को दी गई. वाद संख्या चार में वादी संख्या तीन से पांच के अधिवक्ता विनय शर्मा ने आपत्तियों का जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा. कोर्ट ने उन्हें गुरुवार को जवाब दाखिल करने को कहा.

वाद संख्या 13 पर वादी के लिए अधिवक्ता राजेंद्र माहेश्वरी और रमा गोयल बंसल ने बहस की. बाद संख्या नौ में वादी के लिए अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने अपने तर्क प्रस्तुत किए. अधिवक्ता तस्नीम अहमदी, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से और एमिकस क्यूरी मनीष गोयल, नसीरुज्जमां, हरे राम त्रिपाठी, प्रणव ओझा, तनवीर अहमद और मोहम्मद अफजल भी उपस्थित रहे.

ये भी पढ़ें- मतदान केंद्र पर करें हंगामा, मतदान कर्मियों व पुलिस को पैसे देकर कर लें सेटिंग; भाजपा नेता कार्यकर्ताओं को दिए टिप्स


प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट में मथुरा स्थित कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद मामले में सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी.

बुधवार को भी सीपीसी के आदेश सात नियम 11 के तहत मुकदमे की पोषणीयता पर बहस हुई. मुकदमे की पोषणीयता के बिंदु पर अधिवक्ता राजेंद्र माहेश्वरी, रमा गोयल बंसल और अधिवक्ता हरिशंकर जैन तर्क प्रस्तुत किए. हरिशंकर जैन की बहस गुरुवार को भी जारी रहेगी. सुनवाई के दौरान 1968 में समझौते के प्रश्न पर मुस्लिम पक्ष के तर्कों के उत्तर में हिंदू पक्ष की ओर से कहा गया कि समझौते में देवता पक्ष नहीं थे और न ही 1974 में पारित अदालती डिक्री में समझौता श्री जन्म सेवा संस्थान द्वारा किया गया, जिसे किसी भी समझौते में शामिल होने का अधिकार नहीं था.

संस्थान का उद्देश्य केवल रोजमर्रा की गतिविधियों का प्रबंधन करना था और उसे इस तरह का समझौता करने का कोई अधिकार नहीं था. इससे पहले तस्लीमा अजीज अहमदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से बहस में कहा था कि मुकदमा मियाद अधिनियम से बाधित है. उनके अनुसार पक्षकारों ने 12 अक्टूबर 1968 को समझौता किया था और कहा था कि 1974 में तय किए गए एक दीवानी मुकदमे में समझौते की पुष्टि की गई है.

समझौते को चुनौती देने की सीमा तीन साल है लेकिन मुकदमा 2020 में दायर किया गया है और इस प्रकार यह मुकदमा मियाद अधिनियम से बाधित है. हिंदू पक्ष की ओर से तर्क दिया गया कि मुकदमा विचारणीय है, विचारणीय न होने संबंधी याचिका पर प्रमुख साक्ष्यों के बाद ही निर्णय लिया जा सकता है. यह भी कहा गया कि इस मामले में पूजा स्थल अधिनियम 1991 के प्रावधान लागू नहीं होंगे.

1991 के अधिनियम में धार्मिक चरित्र को परिभाषित नहीं किया गया है. स्थान/संरचना का धार्मिक चरित्र केवल साक्ष्य द्वारा तय किया जा सकता है, जिसे केवल सिविल कोर्ट द्वारा तय किया जा सकता है. इसके लिए ज्ञानवापी मामले में पारित फैसले का भी उल्लेख किया गया, जहां अदालत ने माना था कि धार्मिक चरित्र का फैसला केवल सिविल कोर्ट द्वारा किया जा सकता है.

बुधवार को सुनवाई के दौरान आशुतोष पांडेय व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए. उन्होंने प्रतिवादियों द्वारा पेन ड्राइव को अस्वीकार करने की अर्जी पर आपत्ति प्रस्तुत की, जिसे रिकॉर्ड पर लिया गया है. इसकी प्रतिलिपि प्रतिवादियों के अधिवक्ताओं को दी गई. वाद संख्या चार में वादी संख्या तीन से पांच के अधिवक्ता विनय शर्मा ने आपत्तियों का जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा. कोर्ट ने उन्हें गुरुवार को जवाब दाखिल करने को कहा.

वाद संख्या 13 पर वादी के लिए अधिवक्ता राजेंद्र माहेश्वरी और रमा गोयल बंसल ने बहस की. बाद संख्या नौ में वादी के लिए अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने अपने तर्क प्रस्तुत किए. अधिवक्ता तस्नीम अहमदी, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से और एमिकस क्यूरी मनीष गोयल, नसीरुज्जमां, हरे राम त्रिपाठी, प्रणव ओझा, तनवीर अहमद और मोहम्मद अफजल भी उपस्थित रहे.

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