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गाजे-बाजे के साथ ननिहाल में विराजे गजानन, फूलों से सजा भगवान शिव का ससुराल - Ganesh Chaturthi 2024

Ganesh Chaturthi 2024: आज गणेश चतुर्थी है. देशभर में आज गाजे-बाजे के साथ भक्त घरों और सोसायटी में भगवान गणेश को विराजमान कर रहे हैं. भगवान गणेश अपने नाना राजा दक्ष के नगरी में भी विराज चुके हैं.

Ganesh Chaturthi 2024:
गाजे-बाजे के साथ ननिहाल में विराजे गजानन (PHOTO- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Sep 7, 2024, 6:14 PM IST

Updated : Sep 7, 2024, 6:50 PM IST

गाजे-बाजे के साथ ननिहाल में विराजे गजानन (VIDEO-ETV Bharat)

देहरादूनः उत्तराखंड के कण-कण में देवी-देवताओं का वास है. इसलिए उत्तराखंड को देवभूमि भी कहा जाता है. यहां के धार्मिक स्थलों का ग्रंथों और पुराणों में भी जिक्र है. कहा जाता है कि भगवान गणेश का जन्म भी देवभूमि उत्तराखंड में ही हुआ है. उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के डोडीताल धार्मिक स्थल में भगवान गणेश का जन्म हुआ है. इतना ही नहीं, भगवान गणेश का ननिहाल भी उत्तराखंड में ही है. हरिद्वार के कनखल क्षेत्र में भगवान गणेश का ननिहाल है, जिसे भगवान दक्ष की नगरी कहा जाता है.

कनखल, वही स्थान है जहां राजा दक्ष ने सभी देवी देवताओं को बुलाकर एक यज्ञ का आयोजन करवाया था. लेकिन उन्होंने भगवान शिव को नहीं बुलाया था, जिससे माता सती नाराज हो गई थी. इसीलिए वजह से माता सती अग्नि में समाई थी. जिसके बाद भगवान शिव ने क्रोध में यज्ञ विध्वंस कर दिया था. लिहाजा, दक्ष की नगरी होने की वजह से कनखल भगवान गणेश का ननिहाल भी है. इसीलिए आज गणेश चतुर्थी के मौके पर दक्ष प्रजापति मंदिर में भगवान गणपति को स्थापित किया गया है. भगवान गणेश अगले 10 दिन तक अपने ननिहाल में विराजमान रहेंगे.

श्रावण में शिव और अब विनायक विराजे: ग्रंथों में हरिद्वार के कनखल का बड़ा महत्व है. कनखल में राजा दक्ष का भव्य मंदिर है, जिसमें भगवान शिव विराजते हैं. कहा जाता है कि श्रावण माह भगवान शिव सृष्टि का संचालन राजा दक्ष की नगरी से ही बैठकर करते हैं. श्रावण खत्म होने के बाद गणेश चतुर्थी में भगवान गणेश इस जगह पर आ जाते हैं. हर बालक को अपने नाना नानी का घर बेहद प्रिय लगता है. ऐसे में भगवान गणेश को लाने के लिए उनके ननिहाल के लोग भी खास तैयारी करते हैं. गणेश चतूर्थी पर कनखल के अलग-अलग स्थानों पर भगवान गणपति की मूर्ति स्थापित की गई.

भगवान शिव और गणेश का मिलेगा आशीर्वाद: गजानन यानी गणेश का ननिहाल कहे जाने वाले धर्मनगरी हरिद्वार के कनखल में भी गणेश चतुर्थी धूमधाम से मनाई जा रही है. यहां के दक्ष प्रजापति मंदिर में भगवान गणेश की भव्य प्रतिमा वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच पूरे विधि-विधान से स्थापित की गई है. बड़ी संख्या में लोग गणपति पंडाल में पूजा पाठ के लिए पहुंचने शुरू हो गए हैं. पुराणों के अनुसार, कनखल माता सती का मायका और देवों के देव महादेव का ससुराल है. इसलिए मान्यता है कि भगवान गणेश का यह ननिहाल है. ऐसे में अपने ननिहाल में भगवान गणेश को पूरे हर्षोल्लास के साथ स्थापित किया गया है.

हरिद्वार में जगह-जगह गणेश पंडालों में सुबह से लोग पूजा अर्चना कर सिद्धिविनायक को प्रसन्न करने में लगे हैं. महानिर्वाणी अखाड़ा के सचिव महंत रविंद्र पुरी ने बताया कि 10 दिनों तक भगवान गणेश के ननिहाल में रौनक रहेगी.

कैसी है इस बार की मूर्ति: इस बार दक्ष प्रजापति के प्रांगण में गणेश की खास मूर्ति को स्थापित किया गया है. उनीकी चार भुजाएं हैं. हल्के नीले कलर के दिखने वाले गणेश के माथे पर स्वर्ण रूपी मुकुट सजाया हुआ है. खास तरह के फूलों से भगवान गणपति के पंडाल को सजाने के साथ-साथ आराम की मुद्रा में बैठी बाबा गणपति की मूर्ति बड़ी ही मनमोहक लग रही है. अगले 10 दिनों तक भगवान गणपति की आराधना तो यहां पर होगी ही, साथ ही रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन भी होगा.

त्रिवेणी पर गणपति की छटा: दक्ष नगरी कनखल के साथ-साथ उत्तराखंड में कई जगहों पर भगवान गणपति की मूर्ति स्थापित की गई है. हिमालय से निकलकर गंगा जब मैदानी भाग में दाखिल होती है तो सबसे पहला स्थान ऋषिकेश ही होता है. इसलिए ऋषिकेश में भी गणेश चतुर्थी की धूम मची है. बड़ी-बड़ी मूर्तियां यहां पर भी पंडालों में स्थापित की गई है. ऋषिकेश के प्रसिद्ध त्रिवेणी घाट पर भी भगवान गणपति को विराजा गया है.

ये भी पढ़ेंः Ganesh Chaturthi 2023: नाना के घर विराजे गणपति, मनमोहक मूर्ति से सजा शिव का ससुराल

गाजे-बाजे के साथ ननिहाल में विराजे गजानन (VIDEO-ETV Bharat)

देहरादूनः उत्तराखंड के कण-कण में देवी-देवताओं का वास है. इसलिए उत्तराखंड को देवभूमि भी कहा जाता है. यहां के धार्मिक स्थलों का ग्रंथों और पुराणों में भी जिक्र है. कहा जाता है कि भगवान गणेश का जन्म भी देवभूमि उत्तराखंड में ही हुआ है. उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के डोडीताल धार्मिक स्थल में भगवान गणेश का जन्म हुआ है. इतना ही नहीं, भगवान गणेश का ननिहाल भी उत्तराखंड में ही है. हरिद्वार के कनखल क्षेत्र में भगवान गणेश का ननिहाल है, जिसे भगवान दक्ष की नगरी कहा जाता है.

कनखल, वही स्थान है जहां राजा दक्ष ने सभी देवी देवताओं को बुलाकर एक यज्ञ का आयोजन करवाया था. लेकिन उन्होंने भगवान शिव को नहीं बुलाया था, जिससे माता सती नाराज हो गई थी. इसीलिए वजह से माता सती अग्नि में समाई थी. जिसके बाद भगवान शिव ने क्रोध में यज्ञ विध्वंस कर दिया था. लिहाजा, दक्ष की नगरी होने की वजह से कनखल भगवान गणेश का ननिहाल भी है. इसीलिए आज गणेश चतुर्थी के मौके पर दक्ष प्रजापति मंदिर में भगवान गणपति को स्थापित किया गया है. भगवान गणेश अगले 10 दिन तक अपने ननिहाल में विराजमान रहेंगे.

श्रावण में शिव और अब विनायक विराजे: ग्रंथों में हरिद्वार के कनखल का बड़ा महत्व है. कनखल में राजा दक्ष का भव्य मंदिर है, जिसमें भगवान शिव विराजते हैं. कहा जाता है कि श्रावण माह भगवान शिव सृष्टि का संचालन राजा दक्ष की नगरी से ही बैठकर करते हैं. श्रावण खत्म होने के बाद गणेश चतुर्थी में भगवान गणेश इस जगह पर आ जाते हैं. हर बालक को अपने नाना नानी का घर बेहद प्रिय लगता है. ऐसे में भगवान गणेश को लाने के लिए उनके ननिहाल के लोग भी खास तैयारी करते हैं. गणेश चतूर्थी पर कनखल के अलग-अलग स्थानों पर भगवान गणपति की मूर्ति स्थापित की गई.

भगवान शिव और गणेश का मिलेगा आशीर्वाद: गजानन यानी गणेश का ननिहाल कहे जाने वाले धर्मनगरी हरिद्वार के कनखल में भी गणेश चतुर्थी धूमधाम से मनाई जा रही है. यहां के दक्ष प्रजापति मंदिर में भगवान गणेश की भव्य प्रतिमा वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच पूरे विधि-विधान से स्थापित की गई है. बड़ी संख्या में लोग गणपति पंडाल में पूजा पाठ के लिए पहुंचने शुरू हो गए हैं. पुराणों के अनुसार, कनखल माता सती का मायका और देवों के देव महादेव का ससुराल है. इसलिए मान्यता है कि भगवान गणेश का यह ननिहाल है. ऐसे में अपने ननिहाल में भगवान गणेश को पूरे हर्षोल्लास के साथ स्थापित किया गया है.

हरिद्वार में जगह-जगह गणेश पंडालों में सुबह से लोग पूजा अर्चना कर सिद्धिविनायक को प्रसन्न करने में लगे हैं. महानिर्वाणी अखाड़ा के सचिव महंत रविंद्र पुरी ने बताया कि 10 दिनों तक भगवान गणेश के ननिहाल में रौनक रहेगी.

कैसी है इस बार की मूर्ति: इस बार दक्ष प्रजापति के प्रांगण में गणेश की खास मूर्ति को स्थापित किया गया है. उनीकी चार भुजाएं हैं. हल्के नीले कलर के दिखने वाले गणेश के माथे पर स्वर्ण रूपी मुकुट सजाया हुआ है. खास तरह के फूलों से भगवान गणपति के पंडाल को सजाने के साथ-साथ आराम की मुद्रा में बैठी बाबा गणपति की मूर्ति बड़ी ही मनमोहक लग रही है. अगले 10 दिनों तक भगवान गणपति की आराधना तो यहां पर होगी ही, साथ ही रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन भी होगा.

त्रिवेणी पर गणपति की छटा: दक्ष नगरी कनखल के साथ-साथ उत्तराखंड में कई जगहों पर भगवान गणपति की मूर्ति स्थापित की गई है. हिमालय से निकलकर गंगा जब मैदानी भाग में दाखिल होती है तो सबसे पहला स्थान ऋषिकेश ही होता है. इसलिए ऋषिकेश में भी गणेश चतुर्थी की धूम मची है. बड़ी-बड़ी मूर्तियां यहां पर भी पंडालों में स्थापित की गई है. ऋषिकेश के प्रसिद्ध त्रिवेणी घाट पर भी भगवान गणपति को विराजा गया है.

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Last Updated : Sep 7, 2024, 6:50 PM IST
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