कोटा. देशभर से कोटा में कोचिंग करने आने वाले कैंडिडेट्स के दम पर ही यहां की अर्थव्यवस्था की धुरी घूमती है. कोटा कोचिंग का इस बार रिजल्ट शानदार रहा है, लेकिन बीते सालों में सुसाइड के चलते कोटा कोचिंग देशभर में बदनाम हुआ और इसका सीधा असर यहां की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है. दूसरी तरफ कोटा की कोचिंग संस्थानों का अन्य कोचिंग संस्थानों से मुकाबले के लिए कई केंद्र देश भर में खुले हैं. इन कारणों के चलते इस बार कोटा में कोचिंग करने आने वाले स्टूडेंट्स की संख्या कम हो गई है.
बताया जा रहा है कि कोटा में इस बार करीब 40 फीसदी कम स्टूडेंट्स कोचिंग के लिए आए हैं. सभी कोचिंग संस्थानों को मिलाकर 1.2 लाख के आसपास ही स्टूडेंट्स कोटा में कोचिंग करने के लिए आए हैं, जबकि यह संख्या बीते सालों में 2 लाख से ज्यादा रही है. इसी के चलते कोटा के कोचिंग क्षेत्र में करोड़ों रुपए की लागत से बने हुए हॉस्टल अब खाली पड़े हुए हैं. यहां पर ऑक्युपेसी 10 से लेकर 30 फीसदी के आसपास ही है, जिससे करोड़ों का इन्वेस्टमेंट करने वाले हॉस्टल मालिक आज परेशान घूम रहे हैं. कई हॉस्टल मालिकों ने तो अपने हॉस्टल्स में ताले लगा दिए हैं, और स्टाफ की भी छुट्टी कर दी है. जिसके चलते लोग बेरोजगार हो गए हैं. कमोबेश कोटा के सभी कोचिंग एरिया में ऐसे ही हालात बने हुए हैं. यहां तक की कई इलाकों में तो हॉस्टल का रूम रेंट काफी नीचे गिर गया है, बेहद कम किराए पर हॉस्टल मालिक रूम देने के लिए तैयार है.
सस्ता हॉस्टल रूम देने के लगा दिए हैं बोर्ड : कोटा के कोचिंग इलाकों में हॉस्टल खाली होने के चलते हॉस्टल मालिक कम दाम में हॉस्टल रूम देने को मजबूर है. ये हॉस्टल रूम 3500 से लेकर 2500 रुपए तक उपलब्ध करवाए जा रहे हैं. हालांकि इनमें केवल हॉस्टल्स में रहने की ही सुविधा दी जा रही है. खाना और अन्य खर्च अलग से जोड़े जा रहे है, लेकिन जहां पर कोचिंग में सामान्य तौर पर 14 से 15 हजार रुपए किराया हुआ करता था. अब हालात इससे काफी उलट हो गए हैं.
हॉस्टल मालिक स्वप्निल शर्मा का कहना है कि सस्ते रूम देने का कारण भी हॉस्टल मालिक की पीड़ा है. करोड़ों रुपए का इन्वेस्टमेंट करने के बाद भी उन्हें सस्ते में रूम देने पड़ रहे हैं. उनके मन में कितना दर्द है. स्टूडेंट्स के नहीं आने से या फिर स्टूडेंट्स के गलत तरीके से हॉस्टलों में भरने से हॉस्टल मालिक परेशान है.
74 कमरों का हॉस्टल, स्टूडेंट्स सिर्फ 15-16 : हॉस्टल मालिक राजनारायण गर्ग का कहना है कि जिला प्रशासन वर्तमान में पीजी और हॉस्टल में एंटी सुसाइड रॉड (हैंगिंग डिवाइस) लगवा रहा है. कुछ समय और ऐसे ही हालात रहे तो करोड़ों रुपए का इन्वेस्टमेंट करने वाले हॉस्टल संचालकों के लिए किस्त चुकाना भी मुश्किल हो जाएगा. कई हॉस्टल संचालकों की हजारों से डेढ़ लाख रुपए महीने की किस्त है, ऐसे में वह नहीं चुका पाएंगे. कोरल पार्क की स्थिति काफी दयनीय है. यहां 3 से 4 हजार स्टूडेंट्स हैं, लेकिन यहां बने हुए हॉस्टल में रूम की संख्या 18 से 20 हजार के आसपास है. अब 5 से 6 हजार में कमरा दिया जा रहा है. इसमें करीब 3 हजार का मैस का खर्चा हो जाता है, स्टूडेंट्स कम होने से खर्च निकालना काफी मुश्किल हो रहा है. मेरा खुद का हॉस्टल 74 कमरों का है, जिसमें 15 से 16 स्टूडेंट्स हैं.
कोचिंग संस्थान के कार्मिकों पर यह आरोप : हॉस्टल संचालक बद्री प्रसाद विजयवर्गीय ने यह भी आरोप लगाया है कि कोचिंग संस्थानों में काम कर रहे कार्मिक हॉस्टल लीज पर लिए हुए हैं. वे इन हॉस्टलों में सीधे स्टूडेंट्स को भेज रहे हैं. इसके चलते हॉस्टल्स में स्टूडेंट्स की संख्या में असंतुलन बना हुआ है. कुछ हॉस्टल्स में अच्छी तादात में स्टूडेंट्स हैं तो कुछ हॉस्टल्स में एक दो स्टूडेंट्स ही है. उनका कहना है कि स्टूडेंट्स कम आए हैं. ऐसे में सभी को बराबरी से स्टूडेंट्स मिल जाए तो साल निकल जाएगा, अन्यथा कुछ हॉस्टल मालिक बर्बादी की कगार पर चले जाएंगे. दूसरी तरफ हम स्टूडेंट्स को कन्वेंस करने के लिए कोचिंग के बाहर खड़े होते हैं तो वहां का स्टाफ हमें दलाल व चोर बता देता है. स्टूडेंट को हमारे झांसे में नहीं आने की बात कहते हैं, जबकि हम करोड़ों का इन्वेस्टमेंट करके मेहनत कर रहे हैं.
जैसी सुविधा वैसा नहीं मिल रहा किराया : हॉस्टल मालिक मुकुल शर्मा का कहना है कि उनका हॉस्टल कोरल पार्क में जून 2023 में बनकर तैयार हो गया था, लेकिन तब स्टूडेंट्स पूरे नहीं आए थे. इसके बाद इस साल स्टूडेंट्स आने चाहिए थे, लेकिन 75 कमरों की स्ट्रेंथ में केवल 11 स्टूडेंट्स उनके पास हैं. हॉस्टल में जिस तरह की सुविधा विकसित की गई है, उसके अनुसार किराया 14 से 15 हजार के बीच होना चाहिए था, लेकिन केवल 7000 रुपए प्रति कमरा ही उन्हें किराया मिल रहा है. खर्चा डेढ़ लाख के आसपास किस्त मिलाकर हो रहा है, लेकिन किराए से होने वाली इनकम इससे भी आधी है. शर्मा का कहना है कि जब हमने हॉस्टल बनाया था तो जमीन भी महंगी थी, इसके अलावा निर्माण लागत भी काफी ज्यादा लगी है. इस एरिया में घंटो लाइट जाती है, इसलिए जनरेटर चलाने का खर्चा भी काफी ज्यादा है.
मालिकों ने लगाया ताले, बेरोजगार हो गए कार्मिक : करोड़ों रुपए की लागत से 109 कमरे का हॉस्टल बनाने वाले कमल गोयल का कहना है कि केवल एक स्टूडेंट हॉस्टल में है, जबकि मैनेजमेंट की पूरी टीम मौजूद है, जिसमें मैनेजर, वार्डन, सिक्योरिटी गार्ड, कुक, स्वीपर और बाई शामिल हैं. स्थिति बहुत दयनीय बन गई है. हम हॉस्टल वालों की बहुत हालत खराब है, पहले तो स्टूडेंट्स सुसाइड कर रहे थे, लेकिन अब लग रहा है कि हॉस्टल वालों का नंबर आ रहा है. बैंक की किस्त के पैसे भी नहीं जा रहे हैं, स्टाफ का खर्चा नहीं निकल रहा है. गोयल का यह भी कहना है कि कुछ हॉस्टल मालिकों ने तो अपने हॉस्टल्स को खाली कर ताले लगा दिए हैं, इसके चलते उनके यहां पर लगा हुआ सभी स्टाफ बेरोजगार हो गया है. कई जगह पर हॉस्टल मालिक ने सैलेरी भी कम कर दी है.
पिता की पेंशन से लेकर सब कुछ दाव पर लगाया : अश्विनी गौतम का कहना है कि पिताजी का रिटायरमेंट हुआ तो सब कुछ हमने हॉस्टल में लगा दिया, लेकिन अब किराया प्रॉपर नहीं मिल रहा है. हम हाथ पर हाथ रखकर बैठे हुए हैं. कोचिंग संस्थानों में कम स्टूडेंट्स आए हैं, उसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. मेरे अलावा कई लोग हैं, जिन्होंने जमीन बेचकर हॉस्टल बनाए हैं. हमारे हॉस्टल में 33 स्टूडेंट्स की क्षमता है, लेकिन अभी 6 से 7 स्टूडेंट्स ही हैं. गौतम का कहना है कि कोरल में 6000 रुपए में खाना सहित हॉस्टल उपलब्ध कराया जा रहा है. इस इनकम पर हॉस्टल चलाना मुश्किल है, लेकिन हॉस्टल मालिक केवल स्टाफ और बिजली का बिल निकल जाए, इसलिए हॉस्टल संचालित कर रहा है.