आगरा: दीवानी स्थित लघुवाद न्यायालय में बुधवार दोपहर श्रीकृष्ण जन्मभूमि बनाम शाही जामा मस्जिद वाद की सुनवाई हुई. वादी श्रीकृष्ण जन्मभूमि संरक्षित सेवा ट्रस्ट के अधिवक्ता विनोद कुमार शुक्ला ने अदालत में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के प्रारंभिक ऑब्जेक्शन का जवाब दिया. सुनवाई में एएसआई के अधिवक्ता ने अदालत से मौखिक अनुरोध किया कि उच्च न्यायलय ने जामा मस्जिद से संबंधित लोअर कोर्ट की प्रोसिडिंग स्थगित कर दी है. उच्च न्यायलय से स्थगन आदेश की कॉपी जमा करने का समय दिया जाए. वादी अधिवक्ता विनोद कुमार शुक्ला ने बताया कि कोर्ट ने इस मामले में एएसआई के समय मांगने पर सुनवाई की अगली तारीख 6 सितंबर 2024 नियत की है. वर्तमान में प्रभु श्रीकृष्ण विग्रह के दो वाद माननीय न्यायाधीश मृत्युंजय कुमार श्रीवास्तव के न्यायालय में विचाराधीन चल रहे हैं.
बता दें कि न्यायालय सिविल जज (प्रवर खण्ड) में आगरा जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबे भगवान श्रीकृष्ण के विग्रह निकालने का मामला विचाराधीन है. जिसमें वादी श्रीकृष्ण जन्मभूमि संरक्षित सेवा ट्रस्ट ने इंतजामिया कमेटी शाही मस्जिद, उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और एएसआई को प्रतिवादी बनाया है. वादी श्रीकृष्ण जन्मभूमि संरक्षित सेवा ट्रस्ट की जामा मस्जिद की सीढ़ियों का जीपीआर सर्वे कराने का प्रार्थना पत्र अभी तक विचाराधीन है.
कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर का ये दावा: मशहूर कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर का दावा है कि मुगल शासक औरंगजेब ने 1670 में मथुरा कृष्ण जन्मभूमि से भगवान केशवदेव के विग्रह आगरा की जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबा दिए थे. कोर्ट से मांग है कि पहले जामा मस्जिद की सीढ़ियों से लोगों का आवागमन बंद कराए. इसके बाद जमा मस्जिद की सीढ़ियों का एएसआई सर्वे कराया जाए. इसके साथ ही भगवान् श्रीकृष्ण की मूर्तियां निकाली जाएं.
औरंगजेब लाया था मथुरा से विग्रह और पुरावशेष : वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि मुगल शहंशाह शाहजहां की सबसे प्रिय बेटी जहांआरा ने अपने वजीफे के पांच लाख रुपये से सन् 1643 से 1648 के बीच जामा मस्जिद का निर्माण कराया था. 16 वीं शताब्दी के सातवें दशक में मुगल बादशाह औरंगजेब ने मथुरा के केशवदेव मंदिर के साथ ही अन्य जगहों पर मंदिर ध्वस्त किए थे. औरंगजेब ने केशवदेव मंदिर समेत अन्य मंदिरों की मूर्तियां और तमाम पुरावशेष आगरा मंगवाकर जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबवाए थे. यह तमाम इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में इसके बारे में लिखा है. जिसमें औरंगजेब के सहायक रहे मुहम्मद साकी मुस्तइद्दखां ने अपनी पुस्तक 'मआसिर-ए-आलमगीरी' में, प्रसिद्ध इतिहासकार जदुनाथ सरकार की पुस्तक 'ए शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ औरंगजेब' में, मेरी पुस्तक 'तवारीख़-ए-आगरा' में और मथुरा के महशहूर साहित्यकार प्रो. चिंतामणि शुक्ल की पुस्तक ' मथुरा जनपद का राजनीतिक इतिहास' में भी जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे मूर्तियां दबाने का विस्तार से जिक्र किया है.