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'अभिशाप नहीं वरदान हैं बेटियां', पहले लोग देते थे ताने, आज करते हैं सैल्यूट, वर्दी वाली 7 सिस्टर्स की दिलचस्प कहानी - 7 SISTERS OF CHAPRA

7 Singh Sisters Of Chapra: 'अरे, ये क्या फिर से बेटी हो गई? इतनी सारी बेटियों का खर्चा कैसे चलेगा. जल्दी से सबके हाथ पीले कर दो.' और ना जानें कितना कुछ सुनने के बावजूद ना तो पिता ने हार मानी और ना ही उनकी जिद्दी बेटियों ने. छपरा की 7 वर्दी वाली बहनों के साहस और सफलता की ये दिलचस्प कहानी आज दूसरी बेटियों और मां-बाप के लिए उद्हारण का काम कर रही है.

छपरा की 7 सिंह सिस्टर्स
छपरा की 7 सिंह सिस्टर्स
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Mar 26, 2024, 12:31 PM IST

Updated : Mar 26, 2024, 3:09 PM IST

छपरा की 7 सिंह सिस्टर्स

छपरा: जब मन में ठान लिया है ऊंची उड़ान का, फिर देखना बेफिजूल है कद आसमां का. छपरा जिले की सात वर्दी वाली बहनें, आज बेटियों के लिए किसी मिसाल से कम नहीं हैं. इन बेटियों के साथ-साथ इनके माता-पिता भी काबिले-तारीफ हैं, क्योंकि उन्होंने कभी इन बेटियों को बोझ नहीं समझा, बल्कि उन्हें पढ़ा-लिखा कर इस काबिल बनाया कि आज बिहार पुलिस की वर्दी उनकी शान बढ़ा रहा है.

7 वर्दी वाली बहनों की कहानी: आज भी कुछ ऐसे घर हैं, जहां बेटी का जन्म होता है तो माहौल गमगीन हो जाता है, लोगों को उनके भरण-पोषण की चिंता सताने लगती है. लेकिन छपरा जिले के एकमा के रहने वाले कमल सिंह ने एक या दो नहीं बल्कि सात बेटियों को जन्म दिया. जिसके बाद उन्हें समाज के ताने-बाने सुनने को मिलने लगे. उनके रिश्तेदार उन्हें खरी-खोटी सुनाते थे. बेटियों को अभिशाप कहते थे.

बेटियों के साथ गांव छोड़ने पर मजबूर: काफी सुनने के बाद उन्होंने अपनी बेटियों के साथ सारण जिले के मांझी थाना क्षेत्र के नाचाप का पैतृक घर छोड़ दिया और छपरा के एकमा में बस गए. उस वक्त उनकी परिस्थिति काफी नाजुक थी. सही से खाने का भी नहीं हो पाता था, लेकिन उनका सपना था कि बेटियों को काबिल बनाना है. बेटियों के लालन पालन के लिए आटा चक्की खोली. खूब मेहनत कर इन बच्चियों को अपने पैरों पर खड़ा किया.

भाई के साथ सिंह सिस्टर्स
भाई के साथ सिंह सिस्टर्स

एक-दूसरे की गाइड बनीं बहनें: वर्ष 2006 में बड़ी बहन का सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) में कांस्टेबल पद पर चयन हो गया, जिसके बाद अन्य बहनों का हौसला बढ़ा. दूसरी बहन रानी शादी के बाद 2009 में बिहार पुलिस में कांस्टेबल चुन ली गईं. इसके बाद अन्य पांच बहनें भी विभिन्न बल में नियुक्त हो गईं. बहनें ही एक-दूसरे की शिक्षक और गाइड बनीं. गांव के ही स्कूल में पढ़ीं, और मैदान में जाकर दौड़ की प्रैक्टिस भी करती थी.

एक-एक कर बिहार पुलिस में सातों बेटियां: हालांकि इस बीच भी कई लोगों और रिश्तेदारों ने बेटियों के हाथ पीले करने की बात कही, लेकिन ना तो पिता ने उनकी बातों पर ध्यान दिया और ना उनकी जिद्दी बेटियों ने हार मानी. सभी ने आखिरकार अपने मेहनत और लगन से उस मुकाम को हासिल कर लिया और समाज के लोगों को ये दिखा दिया कि बेटियां अभिशाप नहीं बल्कि वरदान होती हैं.

एक बेटी की हो चुकी है मृत्यु: कमल सिंह ने बताया कि उन्हें सात नहीं आठ बेटियां थी. पहले 5 बेटियां होने के बाद उन्हें दो जुड़वा बेटी हुई. फिर एक बेटा हुआ जिसके बाद एक और सबसे छोटी बेटी हुई. लेकिन एक बेटी की किसी कारणवश मौत हो गई. सभी को उन्होंने शिद्दत के साथ पाला-पोसा और पढ़ाया. किसी को कभी ये एहसास नहीं होने दिया कि वह बोझ हैं.

दूसरों के लिए मिसाल बना यह परिवार
दूसरों के लिए मिसाल बना कमल सिंह का परिवार

'अभिशाप नहीं वरदान हैं बेटियां': कमल सिंह की सातों बेटियां उनके लिए वरदान बनीं और इन बेटियों ने अपने मेहनत के बदौलत सबकी बोलती बंद कर दी. बता दें कि सातों बेटियों ने एसएसबी, जीआरपी, बिहार पुलिस, सीआरपीएफ, एक्साइज पुलिस में भर्ती होकर अपने पिता का मान बढ़ाया है. कमल सिंह ने कहा कि "मुझे तिरछी टोपी काफी अच्छी लगती थी. ऊपर वाले की कृपा से मेरी सभी बेटियां आज इस टोपी को पहनने के लायक हो गई हैं."

पिता को गिफ्ट किया 4 मंजिला मकान: सभी बेटियों ने मिलकर अपने पिता के बुढ़ापे के सहारा के लिए छपरा के एकमा बाजार में भव्य चार मंजिला मकान बना कर गिफ्ट किया है. पिता कमल सिंह बताते हैं कि उन्होंने उस घर को किराए पर दे दिया है, जिससे 18-20 हजार रुपए महीने आ जाते हैं और आज उन्हें पैसों की बिल्कुल दिक्कत नहीं होती.

बचपन में सबको संभालना मुश्किल था- 7 सिस्टर्स की मां: सातों बहनों की मां शारदा देवी ने बताया कि जब सभी छोटी थी, तो उन्हें संभालना काफी मुश्किल था. एक साथ सबको खिलाना-पिलाना, पढ़ाना-लिखाना नहीं हो पाता था. फिर भी किसी तरह से गुजर-बसर कर आज उन्हें इस काबिल बना दिया है, कि वह अपने पैरों पर खड़ी हैं. मां ने कहा कि भगवान की कृपा है, जो सभी अपने मुकाम पर पहुंच गई हैं.

"हमारी परिस्थिति ठीक नहीं थी, तो हमें गांव छोड़ना पड़ा. किसी तरह गुजर-बसर कर इन्हें पढ़ाया-लिखाया. जब तक नौकरी नहीं लगी, इन्होंने भी हार नहीं मानी. आज सातों बेटियां बिहार पुलिस में अपनी सेवा दे रही हैं. भगवान सातों जन्म में यही सात बेटियां मुझे दे. इनसब पर मुझे काफी गर्व है."- कमल सिंह, पिता

"छोटी थी तो बहुत दिक्कत होता था. सबको खिलाना-पिलाना काफी मुश्किल था, लेकिन भगवान की कृपा से सब अपने-अपने जगह पर पहुंच गई. बहुत अच्छा लगता है सबको देखकर."- शारदा देवी, मां

'लोग कहते थे बहनें तुम्हारी संपत्ति ले जाएगी': सातों वर्दी वाली बहनों के इकलौते भाई राजीव सिंह ने बताया कि किस तरह से लोग उसे ताना दिया करते थे. लोग उससे कहते थे 'तुम्हारी तो इतनी सारी बहन है. तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं बचेगा, सब यही लोग ले जाएगी.' वही राजीव अब उन लोगों से कहते हैं कि 'मेरी बहन कुछ ले नहीं जाएगी, बल्कि उन लोगों ने मेरे लिए काफी कुछ बना दिया है. मुझे गर्व है कि मैं सेवन सिंह सिस्टर का भाई हूं.'

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छपरा की 7 सिंह सिस्टर्स

छपरा: जब मन में ठान लिया है ऊंची उड़ान का, फिर देखना बेफिजूल है कद आसमां का. छपरा जिले की सात वर्दी वाली बहनें, आज बेटियों के लिए किसी मिसाल से कम नहीं हैं. इन बेटियों के साथ-साथ इनके माता-पिता भी काबिले-तारीफ हैं, क्योंकि उन्होंने कभी इन बेटियों को बोझ नहीं समझा, बल्कि उन्हें पढ़ा-लिखा कर इस काबिल बनाया कि आज बिहार पुलिस की वर्दी उनकी शान बढ़ा रहा है.

7 वर्दी वाली बहनों की कहानी: आज भी कुछ ऐसे घर हैं, जहां बेटी का जन्म होता है तो माहौल गमगीन हो जाता है, लोगों को उनके भरण-पोषण की चिंता सताने लगती है. लेकिन छपरा जिले के एकमा के रहने वाले कमल सिंह ने एक या दो नहीं बल्कि सात बेटियों को जन्म दिया. जिसके बाद उन्हें समाज के ताने-बाने सुनने को मिलने लगे. उनके रिश्तेदार उन्हें खरी-खोटी सुनाते थे. बेटियों को अभिशाप कहते थे.

बेटियों के साथ गांव छोड़ने पर मजबूर: काफी सुनने के बाद उन्होंने अपनी बेटियों के साथ सारण जिले के मांझी थाना क्षेत्र के नाचाप का पैतृक घर छोड़ दिया और छपरा के एकमा में बस गए. उस वक्त उनकी परिस्थिति काफी नाजुक थी. सही से खाने का भी नहीं हो पाता था, लेकिन उनका सपना था कि बेटियों को काबिल बनाना है. बेटियों के लालन पालन के लिए आटा चक्की खोली. खूब मेहनत कर इन बच्चियों को अपने पैरों पर खड़ा किया.

भाई के साथ सिंह सिस्टर्स
भाई के साथ सिंह सिस्टर्स

एक-दूसरे की गाइड बनीं बहनें: वर्ष 2006 में बड़ी बहन का सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) में कांस्टेबल पद पर चयन हो गया, जिसके बाद अन्य बहनों का हौसला बढ़ा. दूसरी बहन रानी शादी के बाद 2009 में बिहार पुलिस में कांस्टेबल चुन ली गईं. इसके बाद अन्य पांच बहनें भी विभिन्न बल में नियुक्त हो गईं. बहनें ही एक-दूसरे की शिक्षक और गाइड बनीं. गांव के ही स्कूल में पढ़ीं, और मैदान में जाकर दौड़ की प्रैक्टिस भी करती थी.

एक-एक कर बिहार पुलिस में सातों बेटियां: हालांकि इस बीच भी कई लोगों और रिश्तेदारों ने बेटियों के हाथ पीले करने की बात कही, लेकिन ना तो पिता ने उनकी बातों पर ध्यान दिया और ना उनकी जिद्दी बेटियों ने हार मानी. सभी ने आखिरकार अपने मेहनत और लगन से उस मुकाम को हासिल कर लिया और समाज के लोगों को ये दिखा दिया कि बेटियां अभिशाप नहीं बल्कि वरदान होती हैं.

एक बेटी की हो चुकी है मृत्यु: कमल सिंह ने बताया कि उन्हें सात नहीं आठ बेटियां थी. पहले 5 बेटियां होने के बाद उन्हें दो जुड़वा बेटी हुई. फिर एक बेटा हुआ जिसके बाद एक और सबसे छोटी बेटी हुई. लेकिन एक बेटी की किसी कारणवश मौत हो गई. सभी को उन्होंने शिद्दत के साथ पाला-पोसा और पढ़ाया. किसी को कभी ये एहसास नहीं होने दिया कि वह बोझ हैं.

दूसरों के लिए मिसाल बना यह परिवार
दूसरों के लिए मिसाल बना कमल सिंह का परिवार

'अभिशाप नहीं वरदान हैं बेटियां': कमल सिंह की सातों बेटियां उनके लिए वरदान बनीं और इन बेटियों ने अपने मेहनत के बदौलत सबकी बोलती बंद कर दी. बता दें कि सातों बेटियों ने एसएसबी, जीआरपी, बिहार पुलिस, सीआरपीएफ, एक्साइज पुलिस में भर्ती होकर अपने पिता का मान बढ़ाया है. कमल सिंह ने कहा कि "मुझे तिरछी टोपी काफी अच्छी लगती थी. ऊपर वाले की कृपा से मेरी सभी बेटियां आज इस टोपी को पहनने के लायक हो गई हैं."

पिता को गिफ्ट किया 4 मंजिला मकान: सभी बेटियों ने मिलकर अपने पिता के बुढ़ापे के सहारा के लिए छपरा के एकमा बाजार में भव्य चार मंजिला मकान बना कर गिफ्ट किया है. पिता कमल सिंह बताते हैं कि उन्होंने उस घर को किराए पर दे दिया है, जिससे 18-20 हजार रुपए महीने आ जाते हैं और आज उन्हें पैसों की बिल्कुल दिक्कत नहीं होती.

बचपन में सबको संभालना मुश्किल था- 7 सिस्टर्स की मां: सातों बहनों की मां शारदा देवी ने बताया कि जब सभी छोटी थी, तो उन्हें संभालना काफी मुश्किल था. एक साथ सबको खिलाना-पिलाना, पढ़ाना-लिखाना नहीं हो पाता था. फिर भी किसी तरह से गुजर-बसर कर आज उन्हें इस काबिल बना दिया है, कि वह अपने पैरों पर खड़ी हैं. मां ने कहा कि भगवान की कृपा है, जो सभी अपने मुकाम पर पहुंच गई हैं.

"हमारी परिस्थिति ठीक नहीं थी, तो हमें गांव छोड़ना पड़ा. किसी तरह गुजर-बसर कर इन्हें पढ़ाया-लिखाया. जब तक नौकरी नहीं लगी, इन्होंने भी हार नहीं मानी. आज सातों बेटियां बिहार पुलिस में अपनी सेवा दे रही हैं. भगवान सातों जन्म में यही सात बेटियां मुझे दे. इनसब पर मुझे काफी गर्व है."- कमल सिंह, पिता

"छोटी थी तो बहुत दिक्कत होता था. सबको खिलाना-पिलाना काफी मुश्किल था, लेकिन भगवान की कृपा से सब अपने-अपने जगह पर पहुंच गई. बहुत अच्छा लगता है सबको देखकर."- शारदा देवी, मां

'लोग कहते थे बहनें तुम्हारी संपत्ति ले जाएगी': सातों वर्दी वाली बहनों के इकलौते भाई राजीव सिंह ने बताया कि किस तरह से लोग उसे ताना दिया करते थे. लोग उससे कहते थे 'तुम्हारी तो इतनी सारी बहन है. तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं बचेगा, सब यही लोग ले जाएगी.' वही राजीव अब उन लोगों से कहते हैं कि 'मेरी बहन कुछ ले नहीं जाएगी, बल्कि उन लोगों ने मेरे लिए काफी कुछ बना दिया है. मुझे गर्व है कि मैं सेवन सिंह सिस्टर का भाई हूं.'

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Last Updated : Mar 26, 2024, 3:09 PM IST
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