नई दिल्ली: राजधानी में दो हफ्ते से गर्मी अपने चरम पर है और तापमान 50 डिग्री सेल्सियस को छू रहा है. हालात इतने खराब हैं कि लोगों के घरों में लगे एसी भी राहत पहुंचाने में नाकाम साबित हो रहे हैं. लेकिन इस तपिश के बीच कुछ गरीब मजदूर और कामगार सड़क-फुटपाथ पर रहने को मजबूर हैं. रात में तापमान कम तो होता है, लेकिन गर्मी का सितम जारी रहता है. वहीं दिन में जैसे-जैसे पारा चढ़ता है, ये लोग आस-पास में छांव तलाशने लगते हैं. गर्मी में सड़क किनारे रहने के कारण इन्हें कई तरह की बीमारियों का सामना भी करना पड़ता है. 'ईटीवी भारत' ने पश्चिमी दिल्ली में ऐसे लोगों से उनकी समस्याएं जानने की कोशिश की.
गर्मी से महसूस हो रही थकान
सड़कों पर कूड़ा बीनने का काम करने वाले राजेश ने बताया कि वह दिल्ली के मुखर्जी पार्क में रहते हैं. यहां उनका पक्का मकान भी है, लेकिन किसी कारणवश उन्हें परिवार से अलग रहना पड़ रहा है. वह बीते 15 वर्षों से विभिन्न जगहों पर फुटपाथ पर लगी बेंच पर सो रहे हैं. गर्मी के कारण धूप में काम नहीं होता और थकान महसूस होने लगती है. रात को भी खुले आसमान के नीचे सोने पर भी गर्मी लगती है. वहीं उन्होंने रैन बसेरे में रहने का कारण बताया कि वह अच्छी जगह नहीं है. वहां लोग नशा करते हैं. साथ ही चोरी भी बहुत होती है और लड़ाई-मारपीट होना तो आम बात है.
दोपहर में काम करना हुआ मुश्किल: वहीं सुभाष नगर मेट्रो स्टेशन के नीचे फुटपाथ पर रहने वाली शीला देवी ने बताया कि वह बीते 20 वर्षों से यहीं रहती हैं. बीमारी के कारण पति का देहांत हो गया और उनके पास अपना मकान भी नहीं है. गर्मी के कारण उनको काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. फिलहाल वह सिग्नल पर पेन और गुब्बारे बेचकर अपने बच्चों को पाल रही हैं. गर्मी बहुत अधिक होने के चलते उनका दोपहर में काम करना मुश्किल हो रहा है, इसलिए वह सुबह और शाम को ही थोड़ा बहुत सामान बेच पाती हैं.
कम हो रही आमदनी
उनके अलावा रोजगार की तलाश में सालों पहले दिल्ली आईं प्यारी बाई ने बताया कि वह राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले की रहने वाली हैं. उन्होंने बताया कि हर वर्ष मई के महीने में दिल्ली आती हैं और जुलाई में वापस चली जाती हैं. वह सिग्नल पर गुब्बारे बेचती हैं. उनके परिवार में 15 लोग हैं, जो हर वर्ष दिल्ली आते हैं. इस बार भीषण गर्मी के कारण उनका काम करना मुश्किल हो रहा है. वे लोग दोपहर में कहीं छांव देखकर सो जाते हैं. गर्मी के कारण कम संख्या में लोगों के बाहर निकलने से कमाई भी कम हो गई है, जिसके चलते बच्चों का पेट पलना मुश्किल हो रहा है.
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धरे रह जाते चुनावी वादे
वहीं पांच जवान बेटियों के साथ फुटपाथ पर रहने को मजबूर संगीता बताती हैं कि सरकार चुनाव आने से नेता पहले बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन बाद में गरीबों के लिए कुछ नहीं करते. खुद तो एसी में बैठे रहते हैं और गरीबों को सड़क पर मरने के लिए छोड़ देते हैं. हमसे वादा किया गया था कि 2022-23 में जहां झुग्गी है, वहां मकान मिलेगा, लेकिन वह भी नहीं हुआ. हफ्तेभर पहले एक कार सवार ने उनके दोनों के पैरों के पंजों पर पहिये चढ़ा दिए थे, जिससे वो काफी जख्मी हो गईं थी. जवान बेटियां हैं, जिनकी देखरेख के लिए रातभर जागना पड़ता है, क्योंकि उन्हें सुरक्षित रखना भी जरूरी है. इसलिए दोपहर में आराम कर लेते हैं और शाम को काम कर पैसे कमाते हैं.
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