नई दिल्ली : चुनावी बॉन्ड स्कीम मामले में शीर्ष अदालत के फैसले का राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से संदर्भ लेने का आग्रह करने के कुछ दिनों बाद, ऑल इंडिया बार एसोसिएशन (एआईबीए) के अध्यक्ष ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ (सीजेआई) को एक पत्र लिखकर स्वत: संज्ञान लेने का अनुरोध किया है. दानदाताओं की पहचान और उनके योगदान के खुलासे के मुद्दे के संबंध में बॉन्ड मामले में पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा दिए गए फैसले की समीक्षा करने की अपील की है.
पत्र में कहा गया है कि एआईबीए के अध्यक्ष आदिश अग्रवाल वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष भी हैं. 'कॉर्पोरेट दानदाताओं के नाम और दान की राशि का खुलासा करने से कॉर्पोरेट उत्पीड़न के प्रति संवेदनशील हो जाएंगे. उन पार्टियों द्वारा उन्हें अलग कर दिए जाने की संभावना, जिन्हें उनसे कम या कोई योगदान नहीं मिला.'
पत्र में कहा गया है कि 'यदि कॉर्पोरेट दानदाताओं के नाम और विभिन्न पार्टियों को उनके द्वारा दिए गए दान की मात्रा का खुलासा किया जाता है, तो और अधिक उत्पीड़न से इनकार नहीं किया जा सकता है. यह उनका स्वैच्छिक दान स्वीकार करते समय दिए गए वादे से मुकरना होगा.' आज, अग्रवाल ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष इस पत्र का उल्लेख किया. सीजेआई ने अग्रवाल से सोमवार को मामले का उल्लेख करने को कहा.
उन्होंने कहा कि 'दान के समय कॉर्पोरेट दानकर्ता को पूर्ण जानकारी थी कि दान के बाद उसकी पहचान, दान की राशि और दान प्राप्तकर्ता राजनीतिक दल का विवरण सार्वजनिक नहीं किया जाएगा और गोपनीय रखा जाएगा.'
पत्र में कहा गया है कि 'गोपनीयता का यह प्रावधान संबंधित योजना में इस उद्देश्य से किया गया था कि दानदाताओं को किसी अन्य राजनीतिक दल द्वारा उत्पीड़न का शिकार नहीं होना पड़ेगा, जिसे दानकर्ता ने योजना के तहत दान नहीं दिया है.'
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि संविधान पीठ के 15 फरवरी, 2024 के आदेश में कॉर्पोरेट दानदाताओं की पहचान, दान की राशि और दान प्राप्तकर्ता राजनीतिक दल का अचानक खुलासा करने का निर्देश देने से उक्त कॉर्पोरेट दानकर्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.
इस सप्ताह की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) की कार्यकारी समिति ने अपने अध्यक्ष, वरिष्ठ अधिवक्ता आदिश सी अग्रवाल द्वारा लिखे गए एक पत्र की निंदा की थी, जिसमें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से चुनावी बांड योजना मामले में शीर्ष अदालत के फैसले का राष्ट्रपति संदर्भ लेने का आग्रह किया गया था. और यह भी कि जब तक शीर्ष अदालत मामले की दोबारा सुनवाई न कर ले, तब तक इसे प्रभावी न किया जाए.
मंगलवार को अग्रवाल ने राष्ट्रपति को लिखे अपने पत्र में कहा, विभिन्न राजनीतिक दलों को योगदान देने वाले कॉरपोरेट्स के नामों का खुलासा करने से कॉरपोरेट्स उत्पीड़न के लिए असुरक्षित हो जाएंगे.
एससीबीए ने अग्रवाल के पत्र से खुद को अलग करते हुए कहा कि पूरा सात पेज का पत्र, ऑल इंडिया बार एसोसिएशन के लेटरहेड पर मुद्रित होने के कारण, ऐसा प्रतीत होता है कि इसे आदिश सी. अग्रवाल ने ऑल इंडिया बार एसोसिएशन के अध्यक्ष के रूप में लिखा है.
एससीबीए की कार्यकारी समिति द्वारा जारी एक प्रस्ताव में कहा गया है, 'हालांकि, यह देखा गया है कि उक्त पत्र पर अपने हस्ताक्षर के नीचे उन्होंने अन्य बातों के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष के रूप में अपने पद का उल्लेख किया है.'
एससीबीए की कार्यकारी समिति ने कहा कि उसके लिए यह स्पष्ट करना जरूरी हो गया है कि समिति के सदस्यों ने न तो अध्यक्ष को ऐसा कोई पत्र लिखने के लिए अधिकृत किया है और न ही वे उसमें व्यक्त किए गए उनके विचारों से सहमत हैं.
एससीबीए के प्रस्ताव में कहा गया है, 'सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की कार्यकारी समिति इस अधिनियम के साथ-साथ इसकी सामग्री को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार को खत्म करने और कमजोर करने के प्रयास के रूप में देखती है और स्पष्ट रूप से इसकी निंदा करती है.'