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आरक्षित श्रेणी प्रमाणपत्र मामले में SC की कलकत्ता हाईकोर्ट की कार्यवाही पर रोक

Calcutta High Court Judge Vs Judge : उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कलकत्ता उच्च न्यायालय की एकल पीठ द्वारा पारित एक आदेश का स्वत: संज्ञान लिया. एकल पीठ के आदेश में पश्चिम बंगाल में सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस उम्मीदवारों के दाखिले में कथित अनियमितताओं को लेकर खंडपीठ के आदेश को 'अवैध' बताया गया था.

Calcutta High Court Judge Vs Judge
प्रतिकात्मक तस्वीर
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 27, 2024, 10:24 AM IST

Updated : Jan 27, 2024, 12:18 PM IST

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने आरक्षित श्रेणी के प्रमाणपत्र जारी करने में कथित अनियमितताओं को लेकर कलकत्ता उच्च न्यायालय की एकल पीठ के सीबीआई जांच के आदेश पर रोक लगाई. उच्चतम न्यायालय ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के समक्ष सभी कार्यवाहियों पर रोक लगा दी और पश्चिम बंगाल सरकार एवं याचिकाकर्ता को नोटिस जारी किया. उच्चतम न्यायालय आरक्षित श्रेणी के प्रमाणपत्र संबंधी अनियमितता के मामले में 29 जनवरी को सुनवाई करेगा.

बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अभिजीत गंगोपाध्याय की ओर से साथी न्यायाधीश सौमेन सेन के खिलाफ लगाए गए 'कदाचार' के आरोपों पर स्वत: संज्ञान लिया. मामले को आज यानी 27 जनवरी (शनिवार) को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया. न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने न्यायमूर्ति सौमेन सेन पर इस राज्य में कुछ राजनीतिक दल के लिए स्पष्ट रूप से कार्य करने और बंगाल में एक राजनीतिक नेता के पक्ष में दूसरे न्यायाधीश को डराने-धमकाने का आरोप लगाया है.

इस सप्ताह की शुरुआत में, न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने पश्चिम बंगाल में सरकारी मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों में एमबीबीएस उम्मीदवारों के प्रवेश में कथित अनियमितताओं की सीबीआई जांच का आदेश दिया था. उन्होंने माना कि आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए प्रमाण पत्र जारी करने के संबंध में भ्रष्टाचार के एक बड़े हिस्से की अभी तक सीबीआई की ओर से पूरी तरह से जांच नहीं की गई है.

हालांकि, तृणमूल कांग्रेस के नेतृत्व वाली बंगाल सरकार ने न्यायमूर्ति सेन की खंडपीठ का रुख किया, जिसने एकल पीठ के आदेश पर अंतरिम रोक लगाने का आदेश दिया. बाद में, न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने निर्देश दिया कि खंडपीठ के आदेश के बावजूद सीबीआई की ओर से जांच जारी रहेगी.

न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को इस आदेश की एक प्रति भारत के मुख्य न्यायाधीश और कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को तुरंत भेजने का निर्देश दिया. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि न्यायमूर्ति सेन बंगाल में सत्ता में कुछ राजनीतिक दल को बचाने के लिए व्यक्तिगत हित में काम कर रहे हैं.

न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने कहा कि न्यायमूर्ति सेन स्पष्ट रूप से इस राज्य में कुछ राजनीतिक दल के लिए काम कर रहे हैं. इसलिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय को राज्य से जुड़े मामलों में पारित आदेशों को फिर से देखने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि जस्टिस सेन ने आज जो किया है वह इस राज्य में सत्ता में कुछ राजनीतिक दल को बचाने के लिए अपने व्यक्तिगत हित को आगे बढ़ाने के लिए है. इसलिए, उनके कार्य स्पष्ट रूप से कदाचार के समान हैं.

उन्होंने अपने आदेश में आगे लिखा कि मुझे नहीं पता कि एक न्यायाधीश, न्यायमूर्ति सौमेन सेन, जो पिछले दो साल से अधिक समय से सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश (दिनांकित) की अवहेलना करते हुए यहां न्यायाधीश के रूप में कैसे कार्य कर रहे हैं.

न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने यह भी आरोप लगाया कि न्यायमूर्ति सौमेन सेन ने फोन किया और न्यायमूर्ति अमृता सिन्हा को टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी के खिलाफ प्रतिकूल आदेश पारित नहीं करने का निर्देश दिया. उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति सिन्हा ने छुट्टी के समय टेलीफोन पर उन्हें इसकी सूचना दी और इसकी सूचना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को भी दी, जिन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश को भी इसकी सूचना दी थी.

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नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने आरक्षित श्रेणी के प्रमाणपत्र जारी करने में कथित अनियमितताओं को लेकर कलकत्ता उच्च न्यायालय की एकल पीठ के सीबीआई जांच के आदेश पर रोक लगाई. उच्चतम न्यायालय ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के समक्ष सभी कार्यवाहियों पर रोक लगा दी और पश्चिम बंगाल सरकार एवं याचिकाकर्ता को नोटिस जारी किया. उच्चतम न्यायालय आरक्षित श्रेणी के प्रमाणपत्र संबंधी अनियमितता के मामले में 29 जनवरी को सुनवाई करेगा.

बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अभिजीत गंगोपाध्याय की ओर से साथी न्यायाधीश सौमेन सेन के खिलाफ लगाए गए 'कदाचार' के आरोपों पर स्वत: संज्ञान लिया. मामले को आज यानी 27 जनवरी (शनिवार) को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया. न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने न्यायमूर्ति सौमेन सेन पर इस राज्य में कुछ राजनीतिक दल के लिए स्पष्ट रूप से कार्य करने और बंगाल में एक राजनीतिक नेता के पक्ष में दूसरे न्यायाधीश को डराने-धमकाने का आरोप लगाया है.

इस सप्ताह की शुरुआत में, न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने पश्चिम बंगाल में सरकारी मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों में एमबीबीएस उम्मीदवारों के प्रवेश में कथित अनियमितताओं की सीबीआई जांच का आदेश दिया था. उन्होंने माना कि आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए प्रमाण पत्र जारी करने के संबंध में भ्रष्टाचार के एक बड़े हिस्से की अभी तक सीबीआई की ओर से पूरी तरह से जांच नहीं की गई है.

हालांकि, तृणमूल कांग्रेस के नेतृत्व वाली बंगाल सरकार ने न्यायमूर्ति सेन की खंडपीठ का रुख किया, जिसने एकल पीठ के आदेश पर अंतरिम रोक लगाने का आदेश दिया. बाद में, न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने निर्देश दिया कि खंडपीठ के आदेश के बावजूद सीबीआई की ओर से जांच जारी रहेगी.

न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को इस आदेश की एक प्रति भारत के मुख्य न्यायाधीश और कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को तुरंत भेजने का निर्देश दिया. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि न्यायमूर्ति सेन बंगाल में सत्ता में कुछ राजनीतिक दल को बचाने के लिए व्यक्तिगत हित में काम कर रहे हैं.

न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने कहा कि न्यायमूर्ति सेन स्पष्ट रूप से इस राज्य में कुछ राजनीतिक दल के लिए काम कर रहे हैं. इसलिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय को राज्य से जुड़े मामलों में पारित आदेशों को फिर से देखने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि जस्टिस सेन ने आज जो किया है वह इस राज्य में सत्ता में कुछ राजनीतिक दल को बचाने के लिए अपने व्यक्तिगत हित को आगे बढ़ाने के लिए है. इसलिए, उनके कार्य स्पष्ट रूप से कदाचार के समान हैं.

उन्होंने अपने आदेश में आगे लिखा कि मुझे नहीं पता कि एक न्यायाधीश, न्यायमूर्ति सौमेन सेन, जो पिछले दो साल से अधिक समय से सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश (दिनांकित) की अवहेलना करते हुए यहां न्यायाधीश के रूप में कैसे कार्य कर रहे हैं.

न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने यह भी आरोप लगाया कि न्यायमूर्ति सौमेन सेन ने फोन किया और न्यायमूर्ति अमृता सिन्हा को टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी के खिलाफ प्रतिकूल आदेश पारित नहीं करने का निर्देश दिया. उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति सिन्हा ने छुट्टी के समय टेलीफोन पर उन्हें इसकी सूचना दी और इसकी सूचना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को भी दी, जिन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश को भी इसकी सूचना दी थी.

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Last Updated : Jan 27, 2024, 12:18 PM IST
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