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सरोगेसी कानून से जुड़ी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब - provision of surrogacy law plea

SC seeks Centres response : सुप्रीम कोर्ट ने सरोगेसी कानून से जुड़ी याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा है. याचिका ऐसे लोगों से संबंधित है जिनके एक बच्चा पहले से है और वह सेरोगेसी की मदद से दूसरा बच्चा चाहते हैं.

SC seeks Centres response
सुप्रीम कोर्ट
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By Sumit Saxena

Published : Apr 19, 2024, 9:44 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सरोगेसी कानून के उस प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है, जो उन विवाहित जोड़ों को सरोगेसी के माध्यम से दूसरा बच्चा पैदा करने से रोकता है, जिनका पहला बच्चा स्वस्थ है.

न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 की धारा 4(iii)(सी)(ii) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक दंपति द्वारा दायर याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया.

सरोगेसी कानून द्वितीयक बांझपन (गर्भ धारण करने में असमर्थता या पहले बच्चे को जन्म देने के बाद बच्चा पैदा करने में असमर्थता) का सामना कर रहे जोड़ों को सरोगेसी का लाभ लेने से बाहर करता है.

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि विवाहित जोड़ों को दूसरे बच्चे को जन्म देने के लिए सरोगेसी का लाभ उठाने का अधिकार है. याचिका में तर्क दिया गया कि राज्य को नागरिकों के निजी जीवन में अनावश्यक हस्तक्षेप बंद करना चाहिए. याचिकाकर्ताओं ने विवादित प्रावधान को 'तर्कहीन, भेदभावपूर्ण और बिना किसी ठोस निर्धारण सिद्धांत के' बताया है.

याचिका में तर्क दिया गया कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत प्रदत्त महिला के प्रजनन अधिकारों का घोर उल्लंघन है. वाणिज्यिक सरोगेसी पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाओं का एक समूह पहले से ही शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित है.

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सुप्रीम कोर्ट अविवाहित महिलाओं के सरोगेसी का लाभ उठाने पर लगे प्रतिबंध के खिलाफ याचिका पर विचार के लिए सहमत

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सरोगेसी कानून के उस प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है, जो उन विवाहित जोड़ों को सरोगेसी के माध्यम से दूसरा बच्चा पैदा करने से रोकता है, जिनका पहला बच्चा स्वस्थ है.

न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 की धारा 4(iii)(सी)(ii) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक दंपति द्वारा दायर याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया.

सरोगेसी कानून द्वितीयक बांझपन (गर्भ धारण करने में असमर्थता या पहले बच्चे को जन्म देने के बाद बच्चा पैदा करने में असमर्थता) का सामना कर रहे जोड़ों को सरोगेसी का लाभ लेने से बाहर करता है.

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि विवाहित जोड़ों को दूसरे बच्चे को जन्म देने के लिए सरोगेसी का लाभ उठाने का अधिकार है. याचिका में तर्क दिया गया कि राज्य को नागरिकों के निजी जीवन में अनावश्यक हस्तक्षेप बंद करना चाहिए. याचिकाकर्ताओं ने विवादित प्रावधान को 'तर्कहीन, भेदभावपूर्ण और बिना किसी ठोस निर्धारण सिद्धांत के' बताया है.

याचिका में तर्क दिया गया कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत प्रदत्त महिला के प्रजनन अधिकारों का घोर उल्लंघन है. वाणिज्यिक सरोगेसी पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाओं का एक समूह पहले से ही शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित है.

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