नई दिल्ली: विदेश सचिव विक्रम मिस्री की पहली काठमांडू यात्रा से पहले विदेश मंत्रालय और न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) ने नेपाल द्वारा स्वदेशी रूप से निर्मित मुनाल उपग्रह के प्रक्षेपण के लिए अनुदान सहायता को लेकर एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए. विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने पिछले महीने पदभार संभाला है.
विदेश मंत्रालय की ओर से शनिवार को जारी बयान के अनुसार इस समझौता ज्ञापन पर संयुक्त सचिव (उत्तर) अनुराग श्रीवास्तव और एनएसआईएल के निदेशक अरुणाचलम ए ने हस्ताक्षर किए. इस अवसर पर नेपाल विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अकादमी (NAST) के सचिव रवींद्र प्रसाद ढकाल, नई दिल्ली स्थित नेपाल दूतावास के प्रभारी सुरेंद्र थापा और अन्तरिक्ष्य प्रतिनिधि नेपाल (APN) संस्थापक आभास मास्की मौजूद थे.
विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया, 'मुनल उपग्रह नेपाल में नेपाल विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अकादमी (NAST) के तत्वावधान में विकसित एक स्वदेशी उपग्रह है. नेपाली अंतरिक्ष स्टार्टअप एपीएन ने इस उपग्रह के डिजाइन और निर्माण में नेपाली छात्रों की सहायता की है. इस उपग्रह का उद्देश्य पृथ्वी की सतह पर वनस्पति घनत्व डेटाबेस बनाना है. इस उपग्रह को जल्द ही न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड( NSIL) के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान से प्रक्षेपित किए जाने की उम्मीद है.'
इस साल जनवरी में न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड और नेपाल विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अकादमी द्वारा एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं. जब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सातवें भारत-नेपाल संयुक्त आयोग की बैठक की सह-अध्यक्षता करने के लिए काठमांडू का दौरा किया था. मुनाल नेपाल का पहला पृथ्वी अवलोकन उपग्रह है. इसका नाम हिमालयन मोनाल (स्थानीय रूप से डैनफे के रूप में जाना जाता है) के नाम पर रखा गया है. ये इस क्षेत्र में पाया जाने वाला एक तीतर है और नेपाल का राष्ट्रीय पक्षी भी है.
यह एक नैनो-सैटेलाइट है जो 1यू क्यूबसैट वर्ग में आता है. इसका वजन लगभग एक किलोग्राम है और यह पृथ्वी की सतह की तस्वीरें लेने में सक्षम एक उच्च-रिजॉल्यूशन कैमरा से लैस है. उपग्रह के पृथ्वी की निचली कक्षा में लगभग 500 से 600 किमी की ऊंचाई पर परिक्रमा करने की उम्मीद है.
मुनाल सैटेलाइट प्रोजेक्ट के प्रोजेक्ट मैनेजर और एपीएन में सैटेलाइट रिसर्च फेलो जनार्दन सिलवाल ने ईटीवी भारत को बताया, 'मुनल को एक हाई स्कूल कंसोर्टियम सैटेलाइट परियोजना के तहत विकसित किया गया है. इसमें चार हाई स्कूल शामिल हैं. इसे अन्तरिक्ष प्रतिष्ठान नेपाल द्वारा सुविधा प्रदान की गई है और नेपाल विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अकादमी द्वारा समर्थन दिया गया है. टीम में 16 सदस्य शामिल हैं. सिलवाल ने बताया कि इस परियोजना का उद्देश्य नेपाल की अंतरिक्ष गतिविधियों में सुधार लाना तथा नेपाल में अंतरिक्ष इंजीनियरों और तकनीशियनों की संख्या में सुधार करना है.
उन्होंने आगे बताया, 'प्रोजेक्ट मुनल सफल रहा है, न केवल इस अर्थ में कि उड़ान मॉडल तैयार है, बल्कि यह उपग्रह को तैयार करने के लिए आवश्यक मानक अभ्यास और प्रक्रिया बनाने में सक्षम है. साथ ही विकास चरण के दौरान आने वाली समस्याओं से निपटने के तरीकों को भी नेपाल के संदर्भ में बताया है जो अन्य उभरते अंतरिक्ष राष्ट्रों से बिल्कुल अलग है.'
काठमांडू यूनिवर्सिटी हाई स्कूल (KUHS), चैतन्य सेकेंडरी स्कूल, आजाद सेकेंडरी स्कूल और संजीवनी मॉडल हायर सेकेंडरी स्कूल के छात्र दो साल की इस परियोजना में शामिल हैं. इसे काठमांडू यूनिवर्सिटी हाई स्कूल की स्पेस सिस्टम्स लेबोरेटरी (SSL) में विकसित किया गया है. यह उपग्रह वनों की कटाई, हिमनदों के पिघलने और अन्य पर्यावरणीय परिवर्तनों पर नजर रखने में सहायता करेगा. यह बाढ़, भूस्खलन और भूकंप पर वास्तविक समय के डेटा प्रदान करके आपदा जोखिम को कम करने में मदद करेगा. उपग्रह इमेजरी शहरी क्षेत्रों की योजना बनाने और प्रबंधन के लिए भी उपयोगी होगी.
मुनाल उपग्रह अंतरिक्ष कूटनीति का एक और उदाहरण है. इसे नई दिल्ली दक्षिण एशिया के अन्य देशों के साथ अपना रहा है. दक्षिण एशियाई देशों के साथ भारत का अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी सहयोग मुख्य रूप से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के माध्यम से संचालित होता है. यह सहयोग अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से क्षेत्रीय विकास और एकीकरण को बढ़ावा देने के भारत के व्यापक लक्ष्य के अनुरूप है. यह भारत की पड़ोस प्रथम नीति का भी हिस्सा है, जो दक्षिण एशियाई देशों के साथ मजबूत द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंधों पर जोर देती है.
दक्षिण एशिया के साथ भारत के अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी सहयोग में सबसे महत्वपूर्ण मील के पत्थरों में से एक मई 2017 में दक्षिण एशिया उपग्रह (जीसैट-9) का प्रक्षेपण था. इस भूस्थिर संचार उपग्रह को दक्षिण एशियाई देशों की जरूरतों को पूरा करने के लिए डिजाइन किया गया था, जिससे उन्हें बहुमूल्य संचार, आपदा प्रबंधन और मौसम संबंधी सेवाएं प्रदान की जा सकें.
दक्षिण एशियाई देशों के साथ भारत का अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी सहयोग इसकी क्षेत्रीय कूटनीति का आधार है जो साझा तकनीकी प्रगति के माध्यम से मजबूत संबंधों को बढ़ावा देता है. अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी तक पहुंच प्रदान करके, उपग्रहों को लॉन्च करके और क्षमता निर्माण करके, भारत ने खुद को क्षेत्र के विकास में एक प्रमुख भागीदार के रूप में स्थापित किया है.