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होलकर शासकों को खिलाते थे पान, अब छठी पीढ़ी भी निभा रही है जायके की रवायत, जानिए क्या हैं पान के 'वरदान' - Sarkari Tamboli Paan Shop

इंदौर के मालवा इलाके में पान खाने और खिलाने की परंपरा सदियों पुरानी है. इंदौर में मौजूद एक पान की दुकान का इतिहास बहुत पुराना है. इसी दुकान से होलकर शासकों के अलावा अहिल्याबाई होलकर के राजवाड़ा में पान भेजा जाता था. फिर इसी वजह से इस दुकान का नाम ही सरकारी तंबोली पड़ गया.

Sarkari Tamboli Paan Shop
इंदौर में 6 पीढ़ी से निभाई जा रही है पान के जायके की परंपरा
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Apr 12, 2024, 1:43 PM IST

इंदौर में 6 पीढ़ी से निभाई जा रही है पान के जायके की परंपरा

इंदौर। पान के जायके को किसी दौर में भले उत्तर प्रदेश और लखनऊ के नवाबों का नवाबी शौक और शगल माना जाता रहा हो, लेकिन मालवा इलाके में पान खाने और खिलाने की परंपरा 6 पीढ़ियों से भी पुरानी है. यहां होलकर शासकों के अलावा अहिल्याबाई होलकर के राजवाड़ा में नियमित पान भेजा जाता था. इतना ही नहीं अपने पान के शौक के कारण होलकर राजघराने ने बाकायदा सरकारी पान की दुकान भी खुलवा रखी थी जो आज भी पान खिलाने की शाही परंपरा को निभा रही है.

होलकर राजवंश को खिलाते थे पान

दरअसल, प्राचीन काल से ही मालवा अंचल में तरह-तरह के पान खाना सिर्फ शौक नहीं बल्कि रिवायत का हिस्सा रहा है. यहां 1860 में बसे चौरसिया परिवार ने 1875 में पान की दुकान लगाई थी. इस परिवार के बच्चू चौरसिया के होलकर राजवंश से संपर्क के कारण राज परिवार के लोग इस दुकान पर पान खाने के लिए आने लगे. इसके बाद राजघराने और राजकीय लोगों के पान उनकी दुकान पर बनने के कारण उनकी दुकान का नाम ही सरकारी तंबोली पड़ गया.

Sarkari Tamboli Paan Shop
इंदौर में 6 पीढ़ी से निभाई जा रही है पान के जायके की परंपरा

पाकिस्तान से आते थे पान

इसके बाद से ही यह परिवार राजा महाराजाओं के अलावा इंदौरी पान के शौकीनों को पान के तरह-तरह के जायके से रू-ब-रू करा रहा है. फिलहाल इंदौर में सरकारी तंबोली के अलावा अन्य करीब 1000 से ज्यादा दुकानें हैं, लेकिन उसके बावजूद अब पान के जायके के स्थान पर पाउच वाले और गुटके ने अपनी जगह बना ली है. लिहाजा किसी जमाने में जो पान पाकिस्तान बेटमा, अंधेरा और उज्जैन के नागदा आदि इलाकों से आता था. वह अब धीरे-धीरे आना बंद हो गया है.

6 पीढ़ियों से चल रही है ये दुकान

फिलहाल, कोलकाता, ओडिशा, बनारस आदि स्थान से इंदौर में पान की आवक हो रही है. सरकारी तंबोली को सातवीं पीढ़ी में चला रहे महेश कुमार चौरसिया बताते हैं कि "अब पहले जैसे पान खाने के शौकीन लोग बहुत कम बचे हैं. 75 प्रतिशत लोगों ने पान खाने के स्थान पर अब पाउच और गुटखा खाना शुरू कर दिया है. नतीजन पर्व की तुलना में पान खाने वालों की संख्या अब 25 फ़ीसदी ही बची है."

अब नहीं मिल रहे ग्राहक

यही स्थिति खुले पान विक्रेताओं की है जो पहले एक-एक दिन में हजारों पान बेचते थे. उन्हें अब तो ग्राहकों के अलावा फुटकर ग्राहक भी नहीं मिल रहे हैं. इसके अलावा जिस गति और तुलना से पान की बिक्री होती थी वह भी अब सिमट गई है. यह बात और है कि आज भी पान के कदरदान कई ऐसे लोग हैं जो दूसरी से तीसरी पीढ़ी में आकर भी सरकारी तंबोली से पान खाना नहीं छोड़ते.

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कई बीमारियों में औषधि का काम करता है पान

पान के पत्तों में प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट व कैल्शियम फास्फोरस लोह तत्व आयोडीन और पोटेशियम पाए जाते हैं. पान को खाने से शरीर को स्फूर्ति मिलती है और थकान महसूस होने पर व शरीर से पसीना ज्यादा आने की शिकायत पर पान के साथ शहद लगाकर खाने की हिदायत दी जाती है. इसके अलावा सर्दी खांसी जुकाम होने पर भी सूखी हुई हल्दी का टुकड़ा पान में डालकर खाने से आराम मिलता है. वहीं, खांसी होने पर भी पान में अजवाइन डालकर खिलाया जाता है.

इंदौर में 6 पीढ़ी से निभाई जा रही है पान के जायके की परंपरा

इंदौर। पान के जायके को किसी दौर में भले उत्तर प्रदेश और लखनऊ के नवाबों का नवाबी शौक और शगल माना जाता रहा हो, लेकिन मालवा इलाके में पान खाने और खिलाने की परंपरा 6 पीढ़ियों से भी पुरानी है. यहां होलकर शासकों के अलावा अहिल्याबाई होलकर के राजवाड़ा में नियमित पान भेजा जाता था. इतना ही नहीं अपने पान के शौक के कारण होलकर राजघराने ने बाकायदा सरकारी पान की दुकान भी खुलवा रखी थी जो आज भी पान खिलाने की शाही परंपरा को निभा रही है.

होलकर राजवंश को खिलाते थे पान

दरअसल, प्राचीन काल से ही मालवा अंचल में तरह-तरह के पान खाना सिर्फ शौक नहीं बल्कि रिवायत का हिस्सा रहा है. यहां 1860 में बसे चौरसिया परिवार ने 1875 में पान की दुकान लगाई थी. इस परिवार के बच्चू चौरसिया के होलकर राजवंश से संपर्क के कारण राज परिवार के लोग इस दुकान पर पान खाने के लिए आने लगे. इसके बाद राजघराने और राजकीय लोगों के पान उनकी दुकान पर बनने के कारण उनकी दुकान का नाम ही सरकारी तंबोली पड़ गया.

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इंदौर में 6 पीढ़ी से निभाई जा रही है पान के जायके की परंपरा

पाकिस्तान से आते थे पान

इसके बाद से ही यह परिवार राजा महाराजाओं के अलावा इंदौरी पान के शौकीनों को पान के तरह-तरह के जायके से रू-ब-रू करा रहा है. फिलहाल इंदौर में सरकारी तंबोली के अलावा अन्य करीब 1000 से ज्यादा दुकानें हैं, लेकिन उसके बावजूद अब पान के जायके के स्थान पर पाउच वाले और गुटके ने अपनी जगह बना ली है. लिहाजा किसी जमाने में जो पान पाकिस्तान बेटमा, अंधेरा और उज्जैन के नागदा आदि इलाकों से आता था. वह अब धीरे-धीरे आना बंद हो गया है.

6 पीढ़ियों से चल रही है ये दुकान

फिलहाल, कोलकाता, ओडिशा, बनारस आदि स्थान से इंदौर में पान की आवक हो रही है. सरकारी तंबोली को सातवीं पीढ़ी में चला रहे महेश कुमार चौरसिया बताते हैं कि "अब पहले जैसे पान खाने के शौकीन लोग बहुत कम बचे हैं. 75 प्रतिशत लोगों ने पान खाने के स्थान पर अब पाउच और गुटखा खाना शुरू कर दिया है. नतीजन पर्व की तुलना में पान खाने वालों की संख्या अब 25 फ़ीसदी ही बची है."

अब नहीं मिल रहे ग्राहक

यही स्थिति खुले पान विक्रेताओं की है जो पहले एक-एक दिन में हजारों पान बेचते थे. उन्हें अब तो ग्राहकों के अलावा फुटकर ग्राहक भी नहीं मिल रहे हैं. इसके अलावा जिस गति और तुलना से पान की बिक्री होती थी वह भी अब सिमट गई है. यह बात और है कि आज भी पान के कदरदान कई ऐसे लोग हैं जो दूसरी से तीसरी पीढ़ी में आकर भी सरकारी तंबोली से पान खाना नहीं छोड़ते.

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पान के पत्तों में प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट व कैल्शियम फास्फोरस लोह तत्व आयोडीन और पोटेशियम पाए जाते हैं. पान को खाने से शरीर को स्फूर्ति मिलती है और थकान महसूस होने पर व शरीर से पसीना ज्यादा आने की शिकायत पर पान के साथ शहद लगाकर खाने की हिदायत दी जाती है. इसके अलावा सर्दी खांसी जुकाम होने पर भी सूखी हुई हल्दी का टुकड़ा पान में डालकर खाने से आराम मिलता है. वहीं, खांसी होने पर भी पान में अजवाइन डालकर खिलाया जाता है.

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