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वायुमंडल का बढ़ता तापमान भविष्य के लिए बड़ा खतरा! उत्तराखंड में सालाना 15 से 20 मीटर तक पिघल रहे ग्लेशियर - Heat Wave in India

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Apr 4, 2024, 4:31 PM IST

Updated : Apr 4, 2024, 10:57 PM IST

Climate Change in India उत्तराखंड समेत देश के कई राज्यों के लोगों को इस साल झुलसाने वाली गर्मी का सामना करना पड़ सकता है. दरअसल, पिछले कुछ दशकों से लगातार तापमान में इजाफा हो रहा है. जिससे न केवल लोग हलकान होंगे. बल्कि, जंगल भी खूब धधकेंगे. साथ ही ग्लेशियर पर भी इसका सीधा असर देखने को मिलेगा. जिसे लेकर मौसम वैज्ञानिक, ग्लेशियर विशेषज्ञ और पर्यावरणविद् वैज्ञानिक चिंता जाहिर कर रहे हैं. ऐसे में जानते हैं भीषण गर्मी पड़ने की क्या है वजह और क्या कहते हैं पर्यावरणविद्?

Climate Change in India
वायुमंडल का तापमान

वायुमंडल का बढ़ता तापमान भविष्य के लिए बड़ा खतरा!

देहरादून (उत्तराखंड): देश दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग एक गंभीर समस्या बनी हुई है. मौजूदा स्थिति ये है कि लगातार तापमान में बढ़ोतरी देखी जा रही है. तापमान में अचानक बढ़ोतरी नहीं हुई है बल्कि, पिछले कुछ दशकों से तापमान में तेजी से वृद्धि हो रही है. यही वजह है कि वैज्ञानिक इस बात का दावा कर रहे हैं कि साल 2024 में भीषण गर्मी पड़ने की संभावना है. मौसम विज्ञान केंद्र की मानें तो इस साल देश में अप्रैल से जून महीने के बीच काफी ज्यादा गर्मी पड़ेगी. यानी तापमान सामान्य से 2 से 3 डिग्री ज्यादा रहने वाला है. जिसका असर सीधे लोगों पर देखने को मिलेगा.

उत्तराखंड की बात करें तो प्रदेश में भी पिछले कुछ दशकों से तापमान में बढ़ोतरी हो रही है, जिसके चलते पर्वतीय क्षेत्रों पर भी असर पड़ता दिखाई दे रहा है. देश के तमाम हिस्सों में अगर तापमान बढ़ता है तो हिमालयी राज्यों पर भी इसका असर पड़ेगा. इससे उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मौजूद ग्लेशियर के पिघलने की संभावना भी तेज हो जाएगी. साथ ही जंगलों में आग लगने की घटनाओं के भी बढ़ने की संभावना है. दरअसल, तापमान बढ़ने का मुख्य वजह ग्लोबल वार्मिंग है, जिसके चलते ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. अगर पारा चढ़ेगा तो ग्लेशियर के पिघलने गति भी तेज होने की संभावना है.

सालाना 15 से 20 मीटर पीछे खिसक रहे ग्लेशियर: वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान देहरादून (Wadia Institute of Himalayan Geology) के वैज्ञानिकों की मानें तो उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में करीब एक हजार ग्लेशियर मौजूद हैं, लेकिन गंगोत्री बेसिन में मौजूद ग्लेशियर काफी तेजी से मेल्ट यानी पिघल रहा है. साल 1935 से 2022 के बीच गंगोत्री ग्लेशियर करीब 1726.9 मीटर तक पिघल गया है. यानी पिछले 87 सालो में गंगोत्री ग्लेशियर 1726.9 मीटर ऊपर की ओर खिसक गया है.

Climate Change in India
पिघल रहे ग्लेशियर

वाडिया संस्थान से मिली अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, साल 2017-22 के बीच गंगोत्री ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार काफी तेज रही. क्योंकि, इस दौरान करीब 169 मीटर ग्लेशियर पिघली है, लेकिन उत्तराखंड रीजन में मौजूद सभी ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार की बात करें तो प्रदेश के ग्लेशियर सालाना 15 से 20 मीटर तक पिघल रहे हैं. जो ग्लेशियर के संकट की ओर इशारा कर रहा है.

Climate Change in India
ग्लेशियर पर नजर

हिमालयी क्षेत्रों का बढ़ रहा तापमान: वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के डायरेक्टर कालाचंद साईं ने बताया कि लगातार बढ़ते तापमान को देखते हुए हिमालयी क्षेत्रों में मौजूद ग्लेशियर का अध्ययन किया गया. जिससे पता चला है कि न सिर्फ ग्लेशियर पिघल रहे हैं. बल्कि, ग्लेशियर झील भी बड़े हो रहे हैं. हिमालयी क्षेत्रों में साल 1993 से 2022 के बीच करीब 0.028°C (डिग्री सेल्सियस) तापमान में बढ़ोतरी हुई है.

इसी तरह से साल 2013 से 2022 के बीच 0.079°C (डिग्री सेल्सियस) तापमान में बढ़ोतरी हुई है. यानी हर 10 साल में दो से तीन गुना औसतन तापमान में बढ़ोतरी हो रही है. अगर ऐसे ही तापमान में बढ़ोतरी होती रही तो अगले 50 सालों में कोई आपदा आने की आशंका होगी तो वो आपदा 50 साल से काफी पहले आ सकती है.

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गंगोत्री ग्लेशियर

पद्मभूषण अनिल जोशी बोले- बारिश के पानी का संग्रहण जरूरी: लगातार बढ़ रहे तापमान के सवाल पर पद्मश्री और पद्मभूषण पर्यावरणविद् अनिल प्रकाश जोशी का कहना है कि इस साल बहुत ज्यादा गर्मी पड़ेगी. क्योंकि, अल नीनो (EL-Nino एक जटिल मौसम पैटर्न है, जो प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में समुद्र के तापमान में बदलाव के कारण घटित होते हैं) अपनी जगह बना रहा है. ऐसे में अगर समुद्री तापक्रम बढ़ेगा तो यहां भी तापमान बढ़ेगा.

ऐसे में जून तक हालात बेहद खराब हो जाएंगे. तापमान बढ़ने से जल स्रोतों पर असर पड़ने के साथ ही जंगलों में आग की घटनाएं भी बढ़ेगी. जो कई जगहों पर देखने को मिलेगा. खासकर एशिया में इसका असर ज्यादा देखने को मिलेगा. ग्लोबल वार्मिंग का असर जो भी हो, लेकिन स्थानीय स्तर पर लोगों को काम करने की जरूरत है. ताकि, बारिश के पानी का संग्रहण किया जा सके.

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हिमालय

उत्तराखंड में 5 अप्रैल के बाद बारिश संभावना कम: उत्तराखंड मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक विक्रम सिंह ने बताया कि मौसम विज्ञान केंद्र भारत सरकार ने जो आउटलुक जारी किया है, उसके अनुसार देश के तमाम हिस्सों में तापमान बढ़ने के साथ ही गर्म हवाओं की अवधि बढ़ने की संभावना जताई गई है. ग्रीष्मकाल अप्रैल और जून महीने में पीक पर रहता है. ऐसे में सभी जगह पर तापमान बढ़ेंगे.

उत्तराखंड में अगले एक हफ्ते के भीतर तापमान में उतार चढ़ाव रहेगा. क्योंकि, जब उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बारिश की एक्टिविटी होती है तो तापमान ज्यादा नहीं बढ़ता है. इसी कड़ी में 5 अप्रैल को पहाड़ों पर हल्की-फुल्की बारिश होने की संभावना है. इसके बाद बारिश की संभावना कम हो जाएगी, जिससे तापमान बढ़ेगा, लेकिन सामान्य से करीब 2 से 3 डिग्री सेल्सियस तक ही बढ़ेगा.

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जंगलों में आग

ग्लेशियरों के सेहत पर असर: वायुमंडल का तापमान जिस रफ्तार से बढ़ रहा है, आने वाले समय में कई गंभीर समस्याओं को उत्पन्न कर सकता है. खासकर मैदानी क्षेत्र की बात करें तो तापमान बढ़ने से जहां एक ओर आम जनजीवन प्रभावित होगी तो वहीं दूसरी ओर जंगलों में आग लगने समेत हिमालय क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियर के पिघलने के रूप में देखने को मिलेगा.

वर्तमान स्थिति ये है कि पिछले कुछ दशकों से जिस तरह से तापमान में वृद्धि हो रही है. जिसके चलते हिमालय क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. साथ ही तापमान बढ़ने की वजह से कई अन्य चीजें भी प्रभावित हो रहे हैं. जिसमें मुख्य रूप से देखें तो ग्लेशियर पिघलने के चलते इसका सीधा असर जनजीवन पर भी पड़ता दिखाई दे रहा है.

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हिमालय की घाटी

तापमान बढ़ने की वजह से उच्च हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियर ऊपर की ओर खिसक रहे हैं. आसान भाषा में समझे तो उच्च हिमालय क्षेत्र के जिन हिस्सों में पहले बर्फबारी हुआ करती थी, अब वहां बर्फबारी की जगह बारिश हो रही है. यही वजह है कि उच्च हिमालय क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियर ऊपर की ओर सिकुड़ते जा रहे हैं.

इसके अलावा पर्वतीय क्षेत्रों में मौजूद पारंपरिक जल स्रोत जिन्हें हम स्प्रिंग्स भी कहते हैं, वो भी लगातार डेड होते जा रहे हैं. ऐसे में अगर लगातार तापमान में बढ़ोतरी होती रही तो आने वाले समय में न सिर्फ ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार तेज होगी. बल्कि, तमाम पारंपरिक स्रोत जो अभी जीवंत हैं, वो भी डेड हो जाएंगे.

Climate Change in India
पिघलती बर्फ

उच्च हिमालय क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियर हमारे लिए एक पानी का भंडार हैं. जिसके पिघलने से नदियों में पानी का फ्लो बना रहता है. जिसका इस्तेमाल आम जीवन में सभी जीव करते हैं, लेकिन अगर तेजी से ग्लेशियर पिघलेंगे तो आने वाले समय में पानी की किल्लत होना लाजमी है.

इसके साथ ही ग्लेशियर तापमान को बैलेंस करने में भी एक बड़ी भूमिका निभाता है. क्योंकि, गर्मियों के दौरान ग्लेशियर की वजह से खासकर हिमालय क्षेत्र में तापमान सामान्य ही बना रहता है, लेकिन अगर तेजी से ग्लेशियर पिघलने लगे तो हिमालय क्षेत्र में गर्मी का असर भी ज्यादा महसूस होगा. जिससे जीव जंतुओं के साथ ही जंगलों पर भी इसका बड़ा असर पड़ेगा.

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देहरादून (उत्तराखंड): देश दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग एक गंभीर समस्या बनी हुई है. मौजूदा स्थिति ये है कि लगातार तापमान में बढ़ोतरी देखी जा रही है. तापमान में अचानक बढ़ोतरी नहीं हुई है बल्कि, पिछले कुछ दशकों से तापमान में तेजी से वृद्धि हो रही है. यही वजह है कि वैज्ञानिक इस बात का दावा कर रहे हैं कि साल 2024 में भीषण गर्मी पड़ने की संभावना है. मौसम विज्ञान केंद्र की मानें तो इस साल देश में अप्रैल से जून महीने के बीच काफी ज्यादा गर्मी पड़ेगी. यानी तापमान सामान्य से 2 से 3 डिग्री ज्यादा रहने वाला है. जिसका असर सीधे लोगों पर देखने को मिलेगा.

उत्तराखंड की बात करें तो प्रदेश में भी पिछले कुछ दशकों से तापमान में बढ़ोतरी हो रही है, जिसके चलते पर्वतीय क्षेत्रों पर भी असर पड़ता दिखाई दे रहा है. देश के तमाम हिस्सों में अगर तापमान बढ़ता है तो हिमालयी राज्यों पर भी इसका असर पड़ेगा. इससे उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मौजूद ग्लेशियर के पिघलने की संभावना भी तेज हो जाएगी. साथ ही जंगलों में आग लगने की घटनाओं के भी बढ़ने की संभावना है. दरअसल, तापमान बढ़ने का मुख्य वजह ग्लोबल वार्मिंग है, जिसके चलते ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. अगर पारा चढ़ेगा तो ग्लेशियर के पिघलने गति भी तेज होने की संभावना है.

सालाना 15 से 20 मीटर पीछे खिसक रहे ग्लेशियर: वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान देहरादून (Wadia Institute of Himalayan Geology) के वैज्ञानिकों की मानें तो उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में करीब एक हजार ग्लेशियर मौजूद हैं, लेकिन गंगोत्री बेसिन में मौजूद ग्लेशियर काफी तेजी से मेल्ट यानी पिघल रहा है. साल 1935 से 2022 के बीच गंगोत्री ग्लेशियर करीब 1726.9 मीटर तक पिघल गया है. यानी पिछले 87 सालो में गंगोत्री ग्लेशियर 1726.9 मीटर ऊपर की ओर खिसक गया है.

Climate Change in India
पिघल रहे ग्लेशियर

वाडिया संस्थान से मिली अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, साल 2017-22 के बीच गंगोत्री ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार काफी तेज रही. क्योंकि, इस दौरान करीब 169 मीटर ग्लेशियर पिघली है, लेकिन उत्तराखंड रीजन में मौजूद सभी ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार की बात करें तो प्रदेश के ग्लेशियर सालाना 15 से 20 मीटर तक पिघल रहे हैं. जो ग्लेशियर के संकट की ओर इशारा कर रहा है.

Climate Change in India
ग्लेशियर पर नजर

हिमालयी क्षेत्रों का बढ़ रहा तापमान: वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के डायरेक्टर कालाचंद साईं ने बताया कि लगातार बढ़ते तापमान को देखते हुए हिमालयी क्षेत्रों में मौजूद ग्लेशियर का अध्ययन किया गया. जिससे पता चला है कि न सिर्फ ग्लेशियर पिघल रहे हैं. बल्कि, ग्लेशियर झील भी बड़े हो रहे हैं. हिमालयी क्षेत्रों में साल 1993 से 2022 के बीच करीब 0.028°C (डिग्री सेल्सियस) तापमान में बढ़ोतरी हुई है.

इसी तरह से साल 2013 से 2022 के बीच 0.079°C (डिग्री सेल्सियस) तापमान में बढ़ोतरी हुई है. यानी हर 10 साल में दो से तीन गुना औसतन तापमान में बढ़ोतरी हो रही है. अगर ऐसे ही तापमान में बढ़ोतरी होती रही तो अगले 50 सालों में कोई आपदा आने की आशंका होगी तो वो आपदा 50 साल से काफी पहले आ सकती है.

Climate Change in India
गंगोत्री ग्लेशियर

पद्मभूषण अनिल जोशी बोले- बारिश के पानी का संग्रहण जरूरी: लगातार बढ़ रहे तापमान के सवाल पर पद्मश्री और पद्मभूषण पर्यावरणविद् अनिल प्रकाश जोशी का कहना है कि इस साल बहुत ज्यादा गर्मी पड़ेगी. क्योंकि, अल नीनो (EL-Nino एक जटिल मौसम पैटर्न है, जो प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में समुद्र के तापमान में बदलाव के कारण घटित होते हैं) अपनी जगह बना रहा है. ऐसे में अगर समुद्री तापक्रम बढ़ेगा तो यहां भी तापमान बढ़ेगा.

ऐसे में जून तक हालात बेहद खराब हो जाएंगे. तापमान बढ़ने से जल स्रोतों पर असर पड़ने के साथ ही जंगलों में आग की घटनाएं भी बढ़ेगी. जो कई जगहों पर देखने को मिलेगा. खासकर एशिया में इसका असर ज्यादा देखने को मिलेगा. ग्लोबल वार्मिंग का असर जो भी हो, लेकिन स्थानीय स्तर पर लोगों को काम करने की जरूरत है. ताकि, बारिश के पानी का संग्रहण किया जा सके.

Climate Change in India
हिमालय

उत्तराखंड में 5 अप्रैल के बाद बारिश संभावना कम: उत्तराखंड मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक विक्रम सिंह ने बताया कि मौसम विज्ञान केंद्र भारत सरकार ने जो आउटलुक जारी किया है, उसके अनुसार देश के तमाम हिस्सों में तापमान बढ़ने के साथ ही गर्म हवाओं की अवधि बढ़ने की संभावना जताई गई है. ग्रीष्मकाल अप्रैल और जून महीने में पीक पर रहता है. ऐसे में सभी जगह पर तापमान बढ़ेंगे.

उत्तराखंड में अगले एक हफ्ते के भीतर तापमान में उतार चढ़ाव रहेगा. क्योंकि, जब उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बारिश की एक्टिविटी होती है तो तापमान ज्यादा नहीं बढ़ता है. इसी कड़ी में 5 अप्रैल को पहाड़ों पर हल्की-फुल्की बारिश होने की संभावना है. इसके बाद बारिश की संभावना कम हो जाएगी, जिससे तापमान बढ़ेगा, लेकिन सामान्य से करीब 2 से 3 डिग्री सेल्सियस तक ही बढ़ेगा.

Climate Change in India
जंगलों में आग

ग्लेशियरों के सेहत पर असर: वायुमंडल का तापमान जिस रफ्तार से बढ़ रहा है, आने वाले समय में कई गंभीर समस्याओं को उत्पन्न कर सकता है. खासकर मैदानी क्षेत्र की बात करें तो तापमान बढ़ने से जहां एक ओर आम जनजीवन प्रभावित होगी तो वहीं दूसरी ओर जंगलों में आग लगने समेत हिमालय क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियर के पिघलने के रूप में देखने को मिलेगा.

वर्तमान स्थिति ये है कि पिछले कुछ दशकों से जिस तरह से तापमान में वृद्धि हो रही है. जिसके चलते हिमालय क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. साथ ही तापमान बढ़ने की वजह से कई अन्य चीजें भी प्रभावित हो रहे हैं. जिसमें मुख्य रूप से देखें तो ग्लेशियर पिघलने के चलते इसका सीधा असर जनजीवन पर भी पड़ता दिखाई दे रहा है.

Climate Change in India
हिमालय की घाटी

तापमान बढ़ने की वजह से उच्च हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियर ऊपर की ओर खिसक रहे हैं. आसान भाषा में समझे तो उच्च हिमालय क्षेत्र के जिन हिस्सों में पहले बर्फबारी हुआ करती थी, अब वहां बर्फबारी की जगह बारिश हो रही है. यही वजह है कि उच्च हिमालय क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियर ऊपर की ओर सिकुड़ते जा रहे हैं.

इसके अलावा पर्वतीय क्षेत्रों में मौजूद पारंपरिक जल स्रोत जिन्हें हम स्प्रिंग्स भी कहते हैं, वो भी लगातार डेड होते जा रहे हैं. ऐसे में अगर लगातार तापमान में बढ़ोतरी होती रही तो आने वाले समय में न सिर्फ ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार तेज होगी. बल्कि, तमाम पारंपरिक स्रोत जो अभी जीवंत हैं, वो भी डेड हो जाएंगे.

Climate Change in India
पिघलती बर्फ

उच्च हिमालय क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियर हमारे लिए एक पानी का भंडार हैं. जिसके पिघलने से नदियों में पानी का फ्लो बना रहता है. जिसका इस्तेमाल आम जीवन में सभी जीव करते हैं, लेकिन अगर तेजी से ग्लेशियर पिघलेंगे तो आने वाले समय में पानी की किल्लत होना लाजमी है.

इसके साथ ही ग्लेशियर तापमान को बैलेंस करने में भी एक बड़ी भूमिका निभाता है. क्योंकि, गर्मियों के दौरान ग्लेशियर की वजह से खासकर हिमालय क्षेत्र में तापमान सामान्य ही बना रहता है, लेकिन अगर तेजी से ग्लेशियर पिघलने लगे तो हिमालय क्षेत्र में गर्मी का असर भी ज्यादा महसूस होगा. जिससे जीव जंतुओं के साथ ही जंगलों पर भी इसका बड़ा असर पड़ेगा.

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Last Updated : Apr 4, 2024, 10:57 PM IST
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