देहरादून: उत्तराखंड की राजनीति में धार्मिक मुद्दे बड़ा महत्व रखते हैं. हर राजनीतिक दल इस बात का ध्यान रखतें हैं कि उसे कौन से मुद्दे से फायदा और विपक्षी दल को कौन से मुद्दे से नुकसान पहुंच सकता है. हर चुनाव में उत्तराखंड में एक न एक मुद्दा ऐसा जो मंदिर मस्जिद से जुड़ा होता है. प्रदेश की मौजूदा धामी सरकार भी इस वक्त ऐसे ही एक मुद्दे में फंसी है. धामी सरकार दिल्ली बुराड़ी में बन रहे केदारनाथ धाम मंदिर विवाद में फंसी है. सीएम धामी ने खुद इसका भूमि पूजन किया. जिसके कारण ये विवाद गहरा गया है. इसी के साथ केदारनाथ मंदिर सोना विवाद भी उठ गया है. जिससे धामी सरकार बैकफुट पर है. ये ऐसा पहला मामला नहीं है जब कोई सरकार में किसी धार्मिक मुद्दे को लेकर घिरी हो, उत्तराखंड की पॉलिटिकल हिस्ट्री ऐसे धार्मिक विवादों से भरी है.
सबसे पहले एनडी तिवारी हुए धार्मिक मुद्दे का शिकार: उत्तराखंड बनने के बाद राज्य में चुनावों के बाद सबसे पहले कांग्रेस की सरकार बनी. एनडी तिवारी को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बनाया. सरकार बनते ही एक धार्मिक मुद्दा तिवारी सरकार के गले पड़ गया. दरअसल, मुख्यमंत्री रहते हुए नारायण दत्त तिवारी ने चारधाम मंदिर के लिए एक बोर्ड बनाने का फैसला लिया. इस बोर्ड में बदरीनाथ, केदारनाथ के साथ ही गंगोत्री और यमुनोत्री को भी शामिल किया जाना था. तब अनुसूया प्रसाद मैखुरी मंदिर समिति के अध्यक्ष हुआ करते थे. तिवारी सरकार के फैसले की भनक जैसे ही केदारनाथ और बदरीनाथ मंदिर के पंडा पुरोहितों को लगी, उन्होंने मोर्चा खोल दिया. इसके बाद सरकार और तीर्थ पुरोहितों में ठन गई. मामले की गंभीरता को देख तिवाड़ी ने इस बोर्ड को लेकर अधिकारियों से जानकारी जुटाई. जिसके बाद उन्होंने इस फैसले को वापस ले लिया. जब एनडी तिवारी ने ये फैसला लिया था तब गंगोत्री और यमुनोत्री के तीर्थ पुरोहित उनके साथ थे.
राजनीतिक जानकार भागीरथ शर्मा कहते हैं 'यह बात सही है कि उस वक्त से लेकर आज तक धर्म के नाम पर जिसने भी थोड़ा सा कुछ भी करने की कोशिश की है उसके लिए आफत खड़ी हुई है. तिवारी ने भी उस वक्त इस खतरे को भांप लिया था, इसलिए उन्हें अपना फैसला वापस लेना पड़ा था'.
विजय बहुगुणा को झेलना पड़ा विरोध: कांग्रेस सरकार में एक ऐसा ही मामला उस वक्त बाद सुर्खियों में आया जब विजय बहुगुणा प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. दरअसल, तब श्रीनगर से 14 किलोमीटर दूर एक बांध बनाने की योजना बनाई गई. श्रीनगर में बन रही इस बांध परियोजना के लिए जो झील बनाई जा रही थी उस झील में मां धारी देवी का मंदिर भी डूब रहा था. लोगों ने उस वक्त ना केवल इस बांध का विरोध किया बल्कि गढ़वाल का अधिकतर हिस्सा इस विरोध में आ गया.
आलम यह था कि बीजेपी की वरिष्ठ नेता उमा भारती ने श्रीनगर में आकर धरना प्रदर्शन और विरोध का मोर्चा संभाला. इसके बाद भी परियोजना का काम चलता रहा. तब लाख विरोध के बाद भी धारी देवी का मंदिर अपलिफ्ट किया गया. गढ़वाल के लोग आज भी मानते हैं कि 16 जून 2013 को जब इस मंदिर को अपलिफ्ट किया जा रहा ठीक उसी रात केदारनाथ में भारी प्रलय आई. इस जल प्रलय के बाद लोगों ने विजय बहुगुणा को लेकर खूब टिप्पणी की. आपदा के बाद विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री पद से हटाया गया. उनके बाद हरीश रावत को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाया गया.
हरिद्वार के लिए खंडूरी का प्लान, बहुगुणा ने किया रद्ध:ऐसा ही एक मामला भुवन चंद्र खंडूरी सरकार के दौरान भी सामने आया. खंडूरी सरकार के दौरान हरिद्वार के जिलाधिकारी डी सेंथिल पांडे हुआ करते थे. तब सरकार ने हर की पैड़ी, मनसा देवी मंदिर और चंडी देवी मंदिर को चलाने के लिए सरकारी सिस्टम की पूरी प्रक्रिया तैयार की. उस वक्त हरिद्वार के तीर्थ पुरोहित तत्कालीन मुख्यमंत्री खंडूरी से मिले. जिसके बाद खंडूरी ने इस मामले को ठंडा बस्ते में डाल दिया. उनके बाद राज्य की सत्ता में निशंक आये. उनके बाद विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री बने. विजय बहुगुणा ने अधिकारियों से इस मुद्दे पर चर्चा की. वह इसकी गंभीरता को समझ गए थे. कहा जाता है कि उन्होंने तत्काल प्रभाव से पूरी फाइल को हटाने के ही निर्देश दे दिए. बहुगुणा जानते थे कि अगर इस मुद्दे को छेड़ा गया तो हरिद्वार उनका विरोध शुरू हो जाएगा.
त्रिवेंद्र के पीछे पड़ा देवस्थानम बोर्ड का मुद्दा: उत्तराखंड की राजनीति को बड़ी करीब से जानने वाले जयसिंह रावत बताते हैं ऐसे बहुत सारे मुद्दे हुए जब धार्मिक आड़ में कांग्रेस ने बीजेपी का और बीजेपी ने कांग्रेस का जमकर विरोध किया है. नेताओं को उसका नुकसान भी हुआ. ऐसा ही नुकसान त्रिवेंद्र सिंह रावत को भी झेलना पड़ा. जब त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने उत्तराखंड के चारधामों को व्यवस्थित बनाने और भीड़ को नियंत्रित करने के साथ-साथ अन्य सुविधाजनक काम को एक खांचे में रखने की कोशिश की. इसके लिए त्रिवेंद्र सिंह रावत ने देवस्थानम बोर्ड की स्थापना की. जिसके विरोध में पंडे पुरोहितों ने मोर्चा खोला. आलम यह रहा कि बदरीनाथ, केदारनाथ में त्रिवेंद्र सिंह रावत को रोक दिया गया. राज्यभर में उनका विरोध होने लगा. कांग्रेस ने भी जमकर इस मुद्दे को भुनाया. ये मामला इतना गरमाया कि इसके कारण त्रिवेंद्र सिंह रावत को कुर्सी गंवानी पड़ा. उनके बाद धामी सरकार ने देवस्थानम बोर्ड को रद्द किया.
धामी सरकार में उठे दो विवाद, एक हुआ शांत, दूसरे ने पकड़ा जोर: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी राज्य में सरकार भले ही बेहतर तरीके से चला रहे हो लेकिन धार्मिक मामले में वह भी शायद थोड़ी सी गलती कर बैठे हैं. यह गलती केदारनाथ धाम के दिल्ली स्थित भूमि पूजन में शामिल होने की थी. सीएम धामी के इस कार्यक्रम में शामिल होने के बाद दिल्ली केदारनाथ मंदिर विवाद ने जोर पकड़ लिया है. बदरी केदार के तीर्थ पुरोहितों के साथ ही शंकराचार्य ने भी इस मामले को लेकर मोर्चा खोल दिया है. यह मामला इतना बढ़ गया कि सीएम धामी को इसे लेकर खुद बयान जारी करना पड़ा है. दिल्ली केदारनाथ धाम ट्रस्ट के अध्यक्ष को भी देहरादून आकर इस पूरे मामले पर सफाई देनी पड़ी.
कांग्रेस को बैठे बिठाये मिला मुद्दा: दरअसल, इस मुद्दे को विपक्षी दल कांग्रेस ने बड़ा मुद्दा बना दिया है. कांग्रेस इस मुद्दे के जरिये केदारनाथ विधानसभा में होने वाले उपचुनाव को टारगेट कर रही है. यही कारण है कि इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस फ्रंटफुट पर बैटिंग कर रही है. कांग्रेस ने दिल्ली केदारनाथ मंदिर विवाद के साथ ही केदारनाथ धाम सोना मामला भी उठा दिया है. जिससे धामी सरकार के साथ ही बीजेपी भी बैकफुट पर है.
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