ETV Bharat / bharat

सुप्रीम कोर्ट ने इलाज में लापरवाही के मामले में अस्पताल को ₹10 लाख देने का निर्देश दिया

SC directs Manipal hospital: सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के मणिपाल अस्पताल पर इलाज में लापरवाही के मामले में हर्जाना भरने को कहा.

Reliance on medical literature not sufficient SC directs Manipal hospital to pay Rs 10 lakh to a patients widow
सुप्रीम कोर्ट ने इलाज में लापरवाही पर अस्पताल को ₹10 लाख देने का निर्देश दिया
author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 21, 2024, 7:35 AM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के मणिपाल अस्पताल को सेवा में कमी के लिए एक मृत मरीज के परिवार के सदस्यों को 10 लाख रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया है. शीर्ष अदालत ने कहा, 'केवल चिकित्सा साहित्य पर निर्भरता अस्पताल को उसके कर्तव्य से मुक्त करने के लिए पर्याप्त नहीं होगी. 2003 में फेफड़े की सर्जरी के बाद मृतक ने अपनी आवाज खो दी थी. वर्ष 2003 के बाद से वर्ष 2015 में अपनी मृत्यु तक बिना पदोन्नति के एक निजी कंपनी के लिए एरिया सेल्स मैनेजर के उसी पद पर बने रहे.

न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा, 'केवल चिकित्सा साहित्य पर निर्भरता अस्पताल को यह सुनिश्चित करने के अपने कर्तव्य से मुक्त करने के लिए पर्याप्त नहीं होगी कि एनेस्थीसिया विभाग के प्रमुख को डबल लुमेन ट्यूब डालनी चाहिए थी. इसके बजाय, वह उपलब्ध नहीं था और यह कार्य एक प्रशिक्षु एनेस्थेटिस्ट को सौंप दिया गया था.'

मृतक के परिवार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने कहा कि मृतक निजी क्षेत्र में एरिया सेल्स मैनेजर के रूप में काम कर रहा था और उसकी आवाज की कर्कशता के कारण उसे पदोन्नति से वंचित कर दिया गया और उसका करियर बर्बाद हो गया. वकील ने कहा कि मृतक ने अपनी आवाज खो दी थी और वह वर्ष 2003 से वर्ष 2015 के अंत में अपनी मृत्यु तक बिना पदोन्नति के उसी पद पर बना रहा.

वह उसी वेतन पर काम कर रहा था जो उस समय उसे दिया जा रहा था. उनके पहले एग्रीमेंट के हिसाब से यानी ₹30,000 प्रति माह. अपीलकर्ता के वकील ने 18 लाख रुपये का मुआवजा मांगा. अस्पताल ने कमी के दावे को खारिज करने के लिए चिकित्सा साहित्य पर भरोसा करने की कोशिश की. शीर्ष अदालत ने मरीज जे डगलस लुइज की विधवा को जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा दिए गए पांच लाख रुपये के मुआवजे को दोगुना कर दिया.

पीठ ने 6 फरवरी को पारित अपने आदेश में कहा कि बेंगलुरु के जिला फोरम को मृतक को उचित मुआवजा देने के लिए इन सभी पहलुओं पर विचार करना चाहिए था, जो कि मौजूदा मामले में नहीं किया गया है. शीर्ष अदालत ने कहा कि चूंकि एनसीडीआरसी के समक्ष कार्यवाही के दौरान शिकायतकर्ता की मृत्यु हो गई है, इसलिए सबूतों की फिर से समीक्षा करने का निर्देश देने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा.

मृतक के परिवार के वकील ने बताया, 'एनसीडीआरसी ने एक प्रशिक्षु एनेस्थेटिस्ट को इतना महत्वपूर्ण कर्तव्य सौंपे जाने पर नाराजगी व्यक्त की और इसे देखभाल के कर्तव्य का उल्लंघन माना.' पीठ ने कहा कि रिकॉर्ड से पता चलता है कि अस्पताल ने मामले में उक्त विशेषज्ञ डॉक्टरों के गवाही देने पर कोई आपत्ति नहीं जताई और न ही अस्पताल ने तत्काल मामले में राय देने के लिए जिला फोरम द्वारा किसी विशेषज्ञ की नियुक्ति के लिए आवेदन दायर किया.

ये भी पढ़ें- SC: शादी के आधार पर महिला अधिकारी को बर्खास्त करना 'जेंडर भेदभाव और असमानता का बड़ा मामला'

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के मणिपाल अस्पताल को सेवा में कमी के लिए एक मृत मरीज के परिवार के सदस्यों को 10 लाख रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया है. शीर्ष अदालत ने कहा, 'केवल चिकित्सा साहित्य पर निर्भरता अस्पताल को उसके कर्तव्य से मुक्त करने के लिए पर्याप्त नहीं होगी. 2003 में फेफड़े की सर्जरी के बाद मृतक ने अपनी आवाज खो दी थी. वर्ष 2003 के बाद से वर्ष 2015 में अपनी मृत्यु तक बिना पदोन्नति के एक निजी कंपनी के लिए एरिया सेल्स मैनेजर के उसी पद पर बने रहे.

न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा, 'केवल चिकित्सा साहित्य पर निर्भरता अस्पताल को यह सुनिश्चित करने के अपने कर्तव्य से मुक्त करने के लिए पर्याप्त नहीं होगी कि एनेस्थीसिया विभाग के प्रमुख को डबल लुमेन ट्यूब डालनी चाहिए थी. इसके बजाय, वह उपलब्ध नहीं था और यह कार्य एक प्रशिक्षु एनेस्थेटिस्ट को सौंप दिया गया था.'

मृतक के परिवार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने कहा कि मृतक निजी क्षेत्र में एरिया सेल्स मैनेजर के रूप में काम कर रहा था और उसकी आवाज की कर्कशता के कारण उसे पदोन्नति से वंचित कर दिया गया और उसका करियर बर्बाद हो गया. वकील ने कहा कि मृतक ने अपनी आवाज खो दी थी और वह वर्ष 2003 से वर्ष 2015 के अंत में अपनी मृत्यु तक बिना पदोन्नति के उसी पद पर बना रहा.

वह उसी वेतन पर काम कर रहा था जो उस समय उसे दिया जा रहा था. उनके पहले एग्रीमेंट के हिसाब से यानी ₹30,000 प्रति माह. अपीलकर्ता के वकील ने 18 लाख रुपये का मुआवजा मांगा. अस्पताल ने कमी के दावे को खारिज करने के लिए चिकित्सा साहित्य पर भरोसा करने की कोशिश की. शीर्ष अदालत ने मरीज जे डगलस लुइज की विधवा को जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा दिए गए पांच लाख रुपये के मुआवजे को दोगुना कर दिया.

पीठ ने 6 फरवरी को पारित अपने आदेश में कहा कि बेंगलुरु के जिला फोरम को मृतक को उचित मुआवजा देने के लिए इन सभी पहलुओं पर विचार करना चाहिए था, जो कि मौजूदा मामले में नहीं किया गया है. शीर्ष अदालत ने कहा कि चूंकि एनसीडीआरसी के समक्ष कार्यवाही के दौरान शिकायतकर्ता की मृत्यु हो गई है, इसलिए सबूतों की फिर से समीक्षा करने का निर्देश देने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा.

मृतक के परिवार के वकील ने बताया, 'एनसीडीआरसी ने एक प्रशिक्षु एनेस्थेटिस्ट को इतना महत्वपूर्ण कर्तव्य सौंपे जाने पर नाराजगी व्यक्त की और इसे देखभाल के कर्तव्य का उल्लंघन माना.' पीठ ने कहा कि रिकॉर्ड से पता चलता है कि अस्पताल ने मामले में उक्त विशेषज्ञ डॉक्टरों के गवाही देने पर कोई आपत्ति नहीं जताई और न ही अस्पताल ने तत्काल मामले में राय देने के लिए जिला फोरम द्वारा किसी विशेषज्ञ की नियुक्ति के लिए आवेदन दायर किया.

ये भी पढ़ें- SC: शादी के आधार पर महिला अधिकारी को बर्खास्त करना 'जेंडर भेदभाव और असमानता का बड़ा मामला'
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.