रायपुर : छत्तीसगढ़ की बस्तर लोकसभा सीट बीजेपी के कब्जे में है.ये वो सीट थी जिस पर कांग्रेस अपनी जीत पक्की मानकर चल रही थी.वजह थी कवासी लखमा का नक्सल क्षेत्र और लोगों की बीच पहुंच.कांग्रेस को यकीन था कि कवासी लखमा ही वो चेहरा है जिसके बूते बस्तर की लड़ाई लड़ी जा सकती है.बस्तर की जंग में कवासी लखमा को कमान देने से पहले दीपक बैज को चुनावी मैदान से हटाया गया.तब भी ये ही माना जा रहा था कि कवासी लखमा के लिए बस्तर जीतना मुश्किल काम ना होगा,लेकिन जनता के मन में क्या चलता है ये कोई नहीं जानता,तभी तो कवासी के सामने बीजेपी के कैंडिडेट पर जनता भरोसा जताया और जीत का सेहरा महेश कश्यप के सिर बांध दिया.
लखमा पर भरोसा करना पड़ा भारी : कवासी लखमा भूपेश सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं. इसके पहले भी विधानसभा चुनाव लगातार का कवासी लखमा जीतते आए हैं. वहीं लोकसभा चुनाव 2019 की बात की जाए तो उस दौरान भी बस्तर लोकसभा सीट से कांग्रेस ने जीत हासिल की थी. उस समय जनता ने दीपक बैज को जनता ने संसद में भेजा था. लेकिन 2024 के चुनाव में बस्तर लोकसभा से अचानक ही कांग्रेस ने कैंडिडेट बदलकर चौंका दिया.जिस पर एक रैली में लखमा ने कहा था कि वो दिल्ली गए तो थे बेटे के लिए बहू मांगने गए थे लेकिन पार्टी ने बेटी पकड़ा दी. कवासी लखमा की जीत कांग्रेस पक्की मान रही थी, लेकिन जिस तरह से चुनाव परिणाम सामने आए हैं , उसमें साफ हो गया की जनता जनार्दन ने कांग्रेस को बस्तर में वोट नहीं दिया.
क्यों हारी कांग्रेस ?: वरिष्ठ पत्रकार राम अवतार तिवारी का कहना है कि बस्तर शुरू से कांग्रेस का गढ़ रहा है. कवासी लखमा की बात की जाए तो वह बस्तर लोकसभा सीट से कांग्रेस के सबसे मजबूत कैंडिडेट थे. लेकिन पिछले कुछ महीनों में जिस तरह के बस्तर में समीकरण बदले हैं, उसका असर लोकसभा चुनाव पर भी पड़ा है.
''बीजेपी की सरकार बनते ही 3 महीने में ही नक्सलियों के खिलाफ जो मुहिम चलाई गई है.उसके बाद दो साल में प्रदेश को नक्सल से मुक्त कराने का दावा भी किया है. उसका प्रभाव लोकसभा चुनाव में देखने को मिला. इसके अलावा भी कई ऐसे कारण है जिस वजह से बस्तर लोकसभा से कांग्रेस हार गई.'' रामावतार तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार
अंदरूनी कलह भी बड़ा कारण : बस्तर में कांग्रेस के अंदर अंदरुनी कलह से इनकार नहीं किया जा सकता.दीपक बैज का टिकट कटने के बाद समर्थक शायद उतना जुड़ाव कवासी के साथ नहीं रख पाए जितना बैज के साथ था.साथ ही साथ पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम के विधानसभा चुनाव हारने के कारण उन्होंने भी उतना जोर नहीं लगाया जितना लगाना चाहिए था. दो बड़े नेताओं का लोकसभा चुनाव के दौरान कैंपेन ना करना भी बस्तर में कांग्रेस का हार का कारण बना है.अब देखना ये होगा कि जिस नक्सलवाद के सफाया की गारंटी देकर बीजेपी ने बस्तर से कांग्रेस का बस्ता बांधा है,क्या वो हकीकत में हो पाता है या नहीं.