Semliya Palace Ratlam Old Tradition: स्मार्टफोन और डिजिटल वॉच के युग में लोग अब समय देखने के लिए अपने हाथ की घड़ी या दीवार पर टंगी घड़ी की तरफ नहीं देखते हैं. बल्कि गूगल या एलेक्सा से टाइम क्या हुआ पूछते हैं, लेकिन मध्य प्रदेश के रतलाम जिले में एक गांव ऐसा है. जहां आज भी पैलेस में लगी पारंपरिक घड़ी से ही समय का निर्धारण और दैनिक कार्यों की शुरुआत होती है. जी हां सेमलिया पैलेस में लगे घंटे की आवाज सुनकर ही लोग समय क्या हुआ है यह पता करते हैं.
हर एक घंटे में बजाया जाता है पारंपरिक घंटा
खासकर गांव में पशुओं का दूध निकालने का समय, मजदूरी पर जाने का समय, दोपहर में मजदूरों के लंच का समय, चाय का समय, मजदूरी से छुट्टी का समय आदि कामों के लिए आज भी पैलेस में लगे घंटे के बजने का इंतजार किया जाता है. इस घंटे को हर 1 घंटे में बजाया जाता है. उदाहरण के तौर पर यदि भारतीय समय अनुसार दोपहर के 2:00 बजे हैं, तो पैलेस में लगे इस घंटे को दो बार बजाया जाता है. इसी प्रकार यदि शाम के 5:00 बज गए हैं, तो घंटे को पांच बार बजाया जाता है. इस प्रक्रिया को प्रातः 5:00 बजे से लेकर रात्रि 8:00 बजे तक हर दिन दोहराया जाता है. करीब 100 वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है. जिसका संचालन राज परिवार के सदस्य आज भी कर रहे हैं.
100 सालों से अधिक समय से जारी है परंपरा
वर्तमान में सेमलिया राठौर राज परिवार के सदस्य गिरिराज सिंह इस अनोखी परंपरा का संचालन करवा रहे हैं. गिरिराज सिंह राठौर बताते हैं की उनके ग्रेट ग्रेंडफादर महाराजा छत्रपाल सिंह राठौर ने इस घंटे की स्थापना सेमलिया पैलेस के द्वार पर करवाई थी. सेमलिया ठिकाने की जागीर के पांच गांवों तक इस घंटे की आवाज पहुंचती थी. उस दौर में गांव में घड़ी नहीं होती थी. लोग सूर्योदय और सूरज की स्थिति देख कर ही समय का अनुमान लगाते थे. इसके लिए महाराज ने पेंडुलम वाली घड़ी की स्थापना सेमलिया पैलेस के मुख्य द्वार पर करवाई. अधिक से अधिक लोगों को वास्तविक समय का पता चल सके.
इसे बजाने एक कर्मचारी नियुक्त
इसके लिए मिश्र धातु से निर्मित इस घंटे को भी गढ़ के द्वार पर स्थापित करवाया गया. हर घंटे इसे बजाने के लिए एक कर्मचारी की नियुक्ति भी की गई. सुबह के 5:00 से लेकर रात्रि 8:00 बजे तक इस घंटे की आवाज से लोगों को समय की जानकारी लग जाती है. 100 वर्षों से अधिक समय से चली आ रही इस परंपरा का निर्वाहन आज भी राज परिवार के सदस्य कर रहे हैं. बकायदा आज भी इस घंटे को बजाने के लिए कर्मचारी की नियुक्ति की गई है.
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अलार्म और आपातकालीन स्थिति की सुचना देने होता है प्रयोग
घंटे को बजाकर समय की जानकारी देने के अलावा यह लोगों के लिए अलार्म का काम भी करता है. सुबह जल्दी 5:00 बजे उठना हो या सुबह जल्दी की कोई ट्रेन- बस पकड़ना हो सेमलिया गांव के लोग आज भी इस घंटे की आवाज को अलार्म के तौर पर उपयोग करते हैं. यही नहीं आपातकाल, दुर्घटना या गांव से सामूहिक मदद मांगने की स्थिति में कोई भी व्यक्ति इस घंटे को लगातार बजाकर सभी लोगों को एकत्रित कर सकता है. बीते कुछ महीनों पूर्व ही गांव में आगजनी और बस दुर्घटना के समय सेमलिया पैलेस में लगे इस घंटे को बजाकर लोगों ने एकत्रित होकर पीड़ित व्यक्तियों को मदद पहुंचाई है.
बहरहाल आज के भाग दौड़ भरे आधुनिक युग में घड़ी की प्रासंगिकता जरूर कम हो गई है, लेकिन सेमलिया गांव में जारी घड़ी की यह परंपरा आज भी महत्व रखती है और गांव के लोग गढ़ के घंटे की आवाज पर ही अपने सभी दैनिक और कृषि से जुड़े कार्य संपादित करते हैं.