तेजपुर: भारत सरकार की 1643 किलोमीटर लंबी भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने की बहुप्रचारित योजना न केवल दो भौगोलिक सीमाओं को विभाजित करेगी, बल्कि यह वास्तव में लोगों की संस्कृति, जातीयता और समृद्ध इतिहास को भी काटेगी.
लोंगवा गांव के अंग का घर इसका एक उदाहरण है, जहां अगर बाड़ लगती है, तो घर का एक हिस्सा म्यांमार में होगा, जबकि दूसरा हिस्सा भारत के पास रहेगा. बाड़ लगाने से वे लोग विभाजित हो जाएंगे जो पीढ़ियों से एक ही सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत को साझा करते हुए रह रहे हैं.
सीमा के दोनों ओर रिश्तेदार
नगालैंड के मोन जिले स्थित अंग का घर ऐसी जगह पर है, जिसका आधा हिस्सा म्यांमार में और आधा हिस्सा भारत में है. बता दें कि सीमा के दोनों ओर रहने वाले नागा लोगों के लिए पीढ़ियों से स्वतंत्र आवागमन जीवन का तरीका रहा है. भारत और म्यांमार की सीमा के दोनों ओर उनके रिश्तेदार और खेत हैं और उनके बीच बेरोकटोक पहुंच रही है.
सीमा पर बाड़ लगाने के सरकार के फैसले से स्थानीय ग्रामीण नाराज हैं, जिनमें से ज्यादातर कोन्याक नागा हैं, जो निडर शिकारी माने जाते हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि लोंगवा के अंग कई छोटे गांवों को नियंत्रित करते हैं. लोंगवा के अंग के नियंत्रण में 30 छोटे-बड़े गांव हैं.
दस गांव म्यांमार में
अरुणाचल प्रदेश से लोकसभा सांसद तापीर गाओ, जिन्होंने हाल ही में लोंगवा का दौरा किया था. उन्होंने कहा कि इनमें से दस गांव म्यांमार के अंतर्गत आते हैं, जबकि अन्य 20 भारत के क्षेत्र में आते हैं. गाओ ने कहा, " भले ही दस गांव म्यांमार के क्षेत्र में आते हैं, लेकिन इन गांवों के निवासियों का देश से कोई संबंध नहीं है. म्यांमार में निकटतम स्थान तक जाने के लिए उनके पास सड़क भी नहीं है. उन्हें केवल भारतीय प्रशासन से लाभ मिल रहा है."
बाड़ लगाने का विरोध
उल्लेखनीय है कि नागालैंड, अरुणाचल, मणिपुर और मिजोरम में भारत-म्यांमार सीमा पर स्थानीय लोग ऐतिहासिक संबंधों के आधार पर बाड़ लगाने का विरोध कर रहे हैं, जबकि भारत सरकार सीमा पर बाड़ लगाने के मुद्दे पर म्यांमार के साथ सक्रिय रूप से बातचीत कर रही है.
मणिपुर में हाल ही में हुई हिंसा ने भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने के मुद्दे को भी ध्यान में ला दिया है. मणिपुर के एक वर्ग ने आरोप लगाया है कि हिंसा इसलिए शुरू हुई क्योंकि म्यांमार से मणिपुर में लोगों की लगातार आमद जारी है.