देहरादूनः उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) को लागू किए जाने की प्रक्रिया बेहद सुस्त गति से चल रही है. हालांकि, लोकसभा चुनाव से पहले धामी सरकार ने यूनिफॉर्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता) का मसौदा तैयार कर लिया था. ऐसे में अभी नियम बनाए जाने की प्रक्रिया चल रही है. लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे अब यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू किए जाने पर कहीं न कहीं बट्टा लगाते नजर आ रहे हैं. वहीं, नियामावली बना रही समिति की ओर से भी फिलहाल 3 से 4 महीने का और वक्त लगने की बात कही जा रही है. हालांकि, उनका कहना है कि यूसीसी को इस साल किसी भी हाल में लागू कर दिया जाएगा.
लोकसभा चुनाव 2024 संपन्न होने के बाद उत्तराखंड में एक बार फिर यूनिफॉर्म सिविल कोड को प्रदेश में लागू किए जाने के मुद्दे ने तूल पकड़ लिया है. दरअसल, इसके पीछे की मुख्य वजह यही है कि 10 फरवरी 2024 को जब उत्तराखंड सरकार ने यूनिफॉर्म सिविल कोड की नियमावली बनाने के लिए समिति का गठन किया था, उस दौरान इस बात पर सरकार ने जोर दिया गया था कि करीब तीन महीने में नियमावली तैयार करने के साथ ही उत्तराखंड में इसे लागू कर दिया जाएगा. लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हो सका है. हालांकि, अब संभावना जताई जा रही है कि अक्टूबर महीने तक यूनिफॉर्म सिविल कोड को उत्तराखंड में लागू किया जा सकता है. बता दें कि, गठित कमेटी के लिए नियमावली तैयार करने को लेकर कोई समय सीमा तय नहीं की गई थी, बल्कि यथाशीघ्र उसे तैयार करने को कहा गया था.
नियम और उपनियम तैयार करने की प्रक्रिया: उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू किए जाने की शुरुआती प्रक्रिया काफी तेज रही थी-
- साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद धामी सरकार ने तत्परता दिखाते हुए यूनिफॉर्म सिविल कोड का मसौदा तैयार करने के लिए विशेषज्ञ समिति का गठन किया था.
- विशेषज्ञ समिति ने यूनिफॉर्म सिविल कोड का मसौदा तैयार कर राज्य सरकार को सौंप दिया था.
- 7 फरवरी 2024 को विधानसभा बजट सत्र के दौरान राज्य सरकार ने इसे सदन में पारित करते हुए राष्ट्रपति के अनुमोदन के लिए राष्ट्रपति भवन भेज दिया था.
- 11 मार्च 2024 को यूसीसी पर राष्ट्रपति ने अपनी सहमति दी.
- उत्तराखंड सरकार ने 12 मार्च 2024 को गजट नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया था.
- यूनिफॉर्म सिविल कोड को प्रदेश में लागू किए जाने को लेकर नियम तैयार करने के लिए 10 फरवरी 2024 को 5 सदस्यीय समिति का गठन किया गया.
- गठित समिति यूनिफॉर्म सिविल कोड का नियम और उपनियम तैयार कर रही है.
आचार संहिता के कारण हुई देरी: शुरुआती तेज प्रक्रिया के बाद अभी तक भी प्रदेश में यूसीसी लागू नहीं हो पाया है. इसकी मुख्य वजह यूसीसी को लागू करने के लिए नियमावली का तैयार न होना है. हालांकि, जब यूसीसी के नियम तैयार करने के लिए समिति का गठन किया गया था तो उस दौरान इस बात पर जोर दिया गया था कि अगले 3 महीने के भीतर नियम का खाका तैयार कर लिया जाएगा. लेकिन उस दौरान लोकसभा चुनाव के चलते लागू आदर्श आचार संहिता की वजह से अभी तक यूसीसी का नियम और उपनियम तैयार नहीं हो पाया है.
अक्टूबर तक नियमावली तैयार होने की उम्मीद: संभावना जताई जा रही है कि अक्टूबर महीने में यूसीसी उत्तराखंड राज्य में लागू हो जाएगा. दरअसल, प्रक्रिया की बात करें तो यूसीसी का नियम और उपनियम तैयार करने के लिए गठित समिति तैयार नियमावली का फाइनल मसौदा राज्य सरकार को सौपेंगी. ऐसे में इस नियमावली को राज्य सरकार मंत्रिमंडल से मंजूरी मिलने के बाद दोबारा गजट नोटिफिकेशन जारी किया जा सकता है या फिर शासनादेश जारी कर प्रदेश में लागू कर दिया जाएगा. समिति के गठन को 3 महीने से अधिक का वक्त बीत गया है लेकिन अभी तक नियमावली की स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाई है. ऐसे में संभावना यह भी जताई जा रही है कि आदर्श आचार संहिता हटने के बाद अब समिति नियमावली तैयार करने के लिए विधिवत कवायद में जुट गई है.
देश में यूसीसी लागू होना मुश्किल: लोकसभा चुनाव को बेहद करीब से जांचने वाले राजनीतिक मामलों के जानकार जय सिंह रावत ने बताया कि लोकसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देश के तमाम राज्यों में चुनाव प्रचार प्रसार करते हुए यूनिफॉर्म सिविल कोड के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया था. बावजूद इसके देश भर में भाजपा को उम्मीदों के मुताबिक नतीजें नहीं मिले. हालांकि, इतना जरूर है कि केंद्र में भाजपा की गठबंधन वाली सरकार बन गई है. ऐसे में यूनिफॉर्म सिविल कोड को देश में लागू करने की संभावना बेहद कम हो गई है.
क्या बीजेपी को मिलेगा सपोर्ट: जय सिंह रावत ने बताया कि, ऐसा इसलिए भी माना जा रहा है क्योंकि संविधान में संशोधन और यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने के लिए संसद में दो तिहाई बहुमत की जरूरत होगी. दरअसल, बीजेपी के साथ तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) गठबंधन में हैं. जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार काफी पहले से ही यूनिफॉर्म सिविल कोड के विरोध में बोलते रहे हैं. जुलाई 2023 में दिए एक बयान में ही नीतीश ने कहा था कि वो यूसीसी को किसी भी कीमत पर लागू नहीं होने देंगे. ऐसे ही साल 2017 में भी नीतीश ने केंद्र सरकार को एक पत्र के माध्यम से यूसीसी को लेकर विरोध दर्ज करवाया था. इसी तरह तेलुगु देशम पार्टी के अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू भी इसी स्टैंड पर रहे हैं. वो कहते आए हैं कि वो और उनकी पार्टी मुस्लिमों के हितों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाएंगे. ऐसे में केंद्र में भाजपा सरकार उस स्थिति में नहीं है कि वो केंद्र में यूसीसी को लागू कर सके.
क्या UCC का मोटिव सिर्फ चुनाव: राजनीतिक मामलों के जानकार जय सिंह रावत का कहना है कि, यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने का मोटिव सिर्फ चुनाव था. क्योंकि, लोकसभा चुनाव संपन्न होने के बाद भी उत्तराखंड सरकार यूसीसी को लागू करने के लिए कोई तत्परता नहीं दिखा रही है. इसकी एक वजह ये भी है कि लोकसभा चुनाव के नतीजे काफी चौंकाने वाले सामने आए हैं. ऐसे में ये उत्तराखंड में लागू होगा या नहीं, एक बड़ा सवाल है. लेकिन अगर प्रदेश में लागू हो भी जाता है तो कुछ वर्ग के लोग कोर्ट चले जाएंगे. ऐसे में देश में अब यूनिफॉर्म सिविल कोड के लागू होने की संभावना ना के बराबर है. क्योंकि केंद्र में भाजपा की सरकार बैसाखी पर चल रही है. ऐसे में संविधान में संशोधन करना और यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करना असंभव है.
ये कहते हैं समिति के अध्यक्ष: उत्तराखंड के पूर्व मुख्य सचिव और यूसीसी प्रक्रिया नियम समिति के अध्यक्ष शत्रुघ्न सिंह ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बताया कि,
हम ये बात स्वीकार करते हैं कि हमें थोड़ा सा समय लग गया है और इस बात को स्वीकारने में भी कोई गुरेज नहीं है कि अभी थोड़ा और समय लगेगा. लेकिन हम जो भी काम कर रहे हैं वो काम बेहद बारीकी भरा है. अभी हम वेबसाइट और एप्लीकेशन पर काम कर रहे हैं. जितने भी कोड बने हैं और अबतक जिस मामले के बारे में एक या दो लाइनों में सीमित किया गया था, हम उस पर विस्तार से जानकारी देना चाहते हैं. इसलिए थोड़ा सा समय लग रहा है. मुझे लगता है कि हम जल्द ही इस काम को भी पूरा कर देंगे. अभी 3 से 4 महीने का वक्त और लग सकता है. तमाम रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया चूंकि ऑनलाइन रहेगी इसलिए सब कुछ हम एक प्लेटफार्म पर लेकर आ रहे हैं. इतना जरूर है कि राज्य में इसी साल यह ये धरातल पर आ जाएगा.
यूसीसी पर भाजपा फेल: प्रदेश में यूसीसी लागू किए जाने के सवाल पर कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष मथुरा दत्त जोशी ने कहा कि उत्तराखंड सरकार यूसीसी लेकर आई और राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद भी लागू नहीं कर पा रही है. ऐसे में यूसीसी सिर्फ एक चुनावी एजेंडा था. अब चुनाव संपन्न हो गया है, ऐसे में यूसीसी लागू करें या न करें ये सरकार पर निर्भर है. लेकिन राज्य सरकार इसे प्रदेश में लागू नहीं कर पाएगी क्योंकि यूसीसी में कुछ नया प्रावधान नहीं किया गया है. ऐसे में ये यूसीसी नहीं बल्कि भाजपा का अपना सिविल कोड है. भाजपा यूसीसी को उत्तराखंड में ही नहीं देश में भी लागू नहीं कर सकती है क्योंकि केंद्र में भाजपा के पास बहुमत नहीं है. लिहाजा, संविधान में संशोधन और दो तिहाई बहुमत से पारित नहीं कर पाएगी.
कानूनी प्रक्रिया: वहीं, भाजपा के प्रदेश महामंत्री आदित्य कोठारी ने बताया कि यूसीसी का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया. इसके बाद सरकार ने ड्राफ्ट का परीक्षण किया और फिर ड्राफ्ट को मंत्रिमंडल ने पास किया. इसके बाद विधानसभा में यूसीसी विधेयक को पारित करने के साथ ही राष्ट्रपति के अनुमोदन के लिए भेजा गया. ये सब एक कानूनी प्रक्रिया है जिसको पूरा करना पड़ता है. ऐसे में संभावना है कि अक्टूबर महीने तक इन कानूनी प्रक्रिया को पूरा करते हुए प्रदेश में लागू कर दिया जाएगा. आदर्श आचार संहिता की वजह से देरी हुई है.
यूसीसी के किए गए मुख्य प्रावधान:
- समान नागरिक संहिता लागू होने से समाज में बाल विवाह, बहु विवाह, तलाक जैसी सामाजिक कुरीतियों और कुप्रथाओं पर लगाम लगेगी.
- किसी भी धर्म की संस्कृति, मान्यता और रीति-रिवाज इस कानून प्रभावित नहीं होंगे.
- बाल और महिला अधिकारों की सुरक्षा यूसीसी करेगा.
- विवाह का पंजीकरण अनिवार्य होगा. पंजीकरण नहीं होने पर सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं मिलेगा.
- पति-पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह करना प्रतिबंधित रहेगा.
- सभी धर्मों में विवाह की न्यूनतम उम्र लड़कों के लिए 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल निर्धारित.
- वैवाहिक दंपति में यदि कोई एक व्यक्ति बिना दूसरे व्यक्ति की सहमति के अपना धर्म परिवर्तन करता है तो दूसरे व्यक्ति को उस व्यक्ति से तलाक लेने और गुजारा भत्ता लेने का अधिकार होगा.
- पति पत्नी के तलाक या घरेलू झगड़े के समय 5 साल तक बच्चे की कस्टडी बच्चे के माता के पास ही रहेगी.
- सभी धर्मों में पति-पत्नी को तलाक लेने का समान अधिकार होगा.
- सभी धर्म-समुदायों में सभी वर्गों के लिए बेटा-बेटी को संपत्ति में समान अधिकार.
- मुस्लिम समुदाय में प्रचलित हलाला और इद्दत की प्रथा पर रोक लगेगी.
- संपत्ति में अधिकार के लिए जायज और नाजायज बच्चों में कोई भेद नहीं होगा. नाजायज बच्चों को भी उस दंपति का जैविक संतान माना जाएगा.
- किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति में उसकी पत्नी और बच्चों को समान अधिकार मिलेगा. किसी महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे को संपत्ति में अधिकार को संरक्षित किया जाएगा.
- लिव-इन रिलेशनशिप के लिए पंजीकरण अनिवार्य.
- लिव-इन के दौरान पैदा हुए बच्चों को उस युगल का जायज बच्चा ही माना जाएगा. उस बच्चे को जैविक संतान की तरह सभी अधिकार प्राप्त होंगे.
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