देहरादून (उत्तराखंड): देशभर में लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 102 सीटों के लिए मतदान हुआ. इसमें तमिलनाडु की 39 सीटें, राजस्थान 12, उत्तर प्रदेश की आठ, मध्य प्रदेश की छह, उत्तराखंड की सभी पांच, महाराष्ट्र की पांच, असम और बिहार की चार-चार, पश्चिम बंगाल की तीन, मणिपुर, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश की दो-दो, छत्तीसगढ़, मिजोरम और त्रिपुरा की एक-एक सीट शामिल थी. इन सभी सीटों पर कुम मिलाकर 60.03% वोटिंग हुई. ये आंकड़ा पिछली बार की तुलना में कम है.
पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले कम हुई वोटिंग: वहीं, बात अगर उत्तराखंड की करें तो यहां पिछले लोकसभा चुनाव के हिसाब से कम वोटिंग हुई है. उत्तराखंड में 57.24% वोटिंग हुई है. सबसे ज्यादा वोटिंग लक्षद्वीप में हुई. दूसरे नंबर पर त्रिपुरा में 80.17 %फीसदी वोटिंग हुई. इसके बाद पश्चिम बंगाल में 77.57 %, मेघालय में 74.21% , पुडुचेरी में 73.50 %, असम में 72.10 % फीसदी वोटिंग हुई. वहीं, बात यूपी की करें तो, यहां की 8 सीटों के लिए 60.25 फीसदी वोटिंग हुई.
सबसे कम वोटिंग की लिस्ट में बिहार और उत्तराखंड : सबसे कम वोटिंग की बात करें तो इसमें बिहार और उत्तराखंड का नाम सबसे ऊपर रहा. बिहार में 48.88% मतदान हुआ. उत्तराखंड में भी पांच सीटों के लिए 57.24% वोटिंग हुई है. राजनीतिक दल विभिन्न क्षेत्रों में हुई वोटिंग के आधार पर राजनीतिक आकलन करने में जुटे हुए हैं. वैसे तो राजनीतिक दल मतदान प्रतिशत के कम रहने को लेकर कुछ संशय में दिखाई दे रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद खुद की जीत पर दलों का भरोसा बरकरार है और इसके पीछे पार्टी नेता तर्क भी दे रहे हैं.
राजनीतिक दलों की समीक्षा शुरू: राजनीतिक दलों के साथ-साथ आम लोगों को 4 जून को चुनावीं परिणाम पता चलेंगे, लेकिन परिणाम के आने से पहले परिणाम जानने के लिए राजनीतिक दलों का समीक्षा का दौर शुरू हो गया है. भारतीय जनता पार्टी इस मामले में कुछ आशंकित दिखाई देती है. ऐसा इसलिए, क्योंकि पार्टी ने कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा तैयारी का दावा किया था और राज्य में 11000 से ज्यादा बूथों पर पन्ना प्रमुख अभियान चलाकर ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपने पक्ष में मतदान करवाने की बात कही थी.
उत्तराखंड में हुआ कुल 57.24% मतदान: उत्तराखंड में कुल 57.24% मतदान हुआ है. इसमें सबसे ज्यादा मतदान हरिद्वार लोकसभा सीट पर हुआ है. यहां पर 62.36 प्रतिशत मतदान हुआ, जबकि सबसे कम मतदान अल्मोड़ा लोकसभा सीट पर रिकॉर्ड किया गया. यहां पर 46.94% ही मतदान हुआ. सबसे कम मतदान वाली लोकसभा सीट में पौड़ी गढ़वाल लोकसभा सीट भी है, यहां पर महज 50.84% मतदान हुआ है. इसके अलावा टिहरी लोकसभा सीट पर 52.57% और नैनीताल लोकसभा सीट पर 61.35 प्रतिशत मतदान हुआ है.
सल्ट, रानीखेत में हुआ सबसे ज्यादा कम मतदान: अल्मोड़ा लोकसभा सीट पर सल्ट, रानीखेत और अल्मोड़ा विधानसभा में सबसे कम मतदान हुआ है. यहां पर क्रमशः 32%, 41.50 प्रतिशत और 44% मतदान हुआ है, जबकि सबसे ज्यादा मतदान वाली विधानसभाओं में चंपावत विधानसभा है, यहां पर 56% मतदान हुआ है. कपकोट विधानसभा में 51.43% और बागेश्वर विधानसभा में 51% मतदान हुआ है.
पौड़ी लोकसभा सीट में लैंसडाउन विधानसभा मतदान में रही पीछे: पौड़ी लोकसभा सीट में मतदान को लेकर सबसे खराब परफॉर्मेंस लैंसडाउन, चौबट्टाखाल और देवप्रयाग विधानसभा की रही. यहां पर क्रमश 40.1 0%, 40.62% और 41.78% मतदान हुआ. गढ़वाल लोकसभा सीट पर रामनगर में 61.60 प्रतिशत, कोटद्वार में 58.5 0% और केदारनाथ में 56.70% मतदान हुआ है. हरिद्वार लोकसभा सीट में ऋषिकेश में 51.80% धर्मपुर में 51.80% और हरिद्वार विधानसभा में 54.84% मतदान हुआ, जो कि इस लोकसभा में सबसे कम प्रतिशत रहा, जबकि हरिद्वार ग्रामीण में 73.21% लक्सर में 72% और पिरान कलियर में 70.01 प्रतिशत मत पड़े.
सितारगंज विधानसभा में सबसे ज्यादा रहा मत प्रतिशत: नैनीताल लोकसभा सीट में सबसे ज्यादा मत प्रतिशत सितारगंज विधानसभा में रहा. यहां 70.15% मत पड़े. इसके अलावा गदरपुर में 67.92 प्रतिशत और नानकमत्ता में 65.71% मत पड़े. लोकसभा में सबसे फिसड्डी विधानसभा नैनीताल रही, क्योंकि यहां पर 51.67% मतदान हुआ. इसके बाद भीमताल में भी महज़ 55.50% और काशीपुर में 56.70 प्रतिशत मतदान हुआ.
टिहरी लोकसभा सीट पर 52.5 7 प्रतिशत हुआ मतदान : टिहरी लोकसभा सीट को लेकर मतदान की स्थिति देखें तो यहां पर ओवरऑल 52.5 7 प्रतिशत मतदान हुआ है. जिसमें सबसे कम मतदान घनसाली, प्रताप नगर और टिहरी विधानसभा में हुआ. घनसाली में 41.5, प्रताप नगर 41.65% और टिहरी में 44.16 प्रतिशत ही मतदान हुआ. उधर इस लोकसभा में सबसे ज्यादा मतदान विकास नगर में 64.60 प्रतिशत रहा, जबकि सहसपुर में 62.12% और पुरोला में 57.5 0% मतदान हुआ.
भाजपा के गढ़ में हुआ कम मतदान: उत्तराखंड में मतदान प्रतिशत कम रहने के बाद किन-किन क्षेत्रों में मतदान कम हुआ है. इस पर भी आकलन किया जा रहा है. जिन क्षेत्रों को भाजपा का गढ़ माना जाता है. वहां पर मतदान प्रतिशत कम रहने की स्थिति में भारतीय जनता पार्टी को इसका खासा नुकसान होना माना जा रहा है. उत्तराखंड में भाजपा ने राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के मुद्दे पर चुनाव लड़ा. राम मंदिर को लेकर जो उत्सव भारतीय जनता पार्टी ने पूरे देश में मनाया है. उसमें उत्तराखंड भी शुमार है. इन्हीं स्थितियों को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी को इस बार चुनाव में इसका बेहद ज्यादा लाभ होने की बात कही जा रही थी और मतदान प्रतिशत में भी बढ़ोतरी की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा होता हुआ नजर नहीं आ रहा है.
राज्य निर्वाचन आयोग ने 75% मतदान करने का रखा था लक्ष्य: राज्य निर्वाचन आयोग ने 75% मतदान करने का लक्ष्य रखा था, लेकिन अपने लक्ष्य से कोसों दूर निर्वाचन आयोग लोगों को मतदान केंद्रों तक लाने में असफल साबित हुआ. हालांकि इसके लिए कई वजह बताई गई हैं, लेकिन हकीकत यह है कि जागरूकता कार्यक्रम कामयाब नहीं हो पाए और लोग मतदान करने के लिए आगे नहीं आए.
मतदान प्रतिशत कम को अपने पक्ष में मान रही कांग्रेस: कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता शीशपाल बिष्ट ने कहा कि सरकार के खिलाफ यह लोगों का गुस्सा ही था कि लोगों ने मतदान देने के लिए घरों से बाहर निकलना मुनासिब नहीं समझा. उन्होंने कहा कि सरकार की नीतियों के खिलाफ आकर्षित भाजपा का कैडर भी घरों में ही रहा और ये भी मतदान कम रहने की वजह रही.
भाजपा बोली विपक्षी दलों के वोटर्स का ना उम्मीद होना कारण: उत्तराखंड भाजपा के मीडिया प्रभारी मनवीर चौहान ने बताया कि भाजपा के कैडर वोट ने मतदान केंद्रों तक अपनी पहुंच बनाई है और मतदान प्रतिशत कम होने के पीछे विपक्षी दलों के वोटर्स का ना उम्मीद होना है. जिसके चलते वो वोट देने ही नहीं गए. उन्होंने कहा कि पहाड़ी जिलों में ज्यादा शादियों के कार्यक्रम भी मतदान प्रतिशत में कमी का बड़ा कारण है.
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