देहरादून: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज इगास बग्वाल पर्व मनाने के लिए बीजेपी सांसद अनिल बलूनी के आवास पर पहुंचे. जहां उन्होंने इगास पर्व मनाया और पूरे उत्तराखंड वासियों को बधाई दी. इस मौके पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़, जेपी नड्डा, योग गुरु बाबा रामदेव, बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र शास्त्री समेत तमाम वीआईपी मेहमान भी पहुंचे.
बीजेपी सांसद अनिल बलूनी के घर पर पीएम मोदी ने मनाया इगास पर्व: बीजेपी सांसद अनिल बलूनी के आवास पहुंचने पर पीएम मोदी का भव्य स्वागत किया. जहां उन्होंने इगास पर्व मनाया. इस मौके उत्तराखंड की सिंगर प्रियंका मेहर की टीम ने शानदार प्रस्तुतियां दी. साथ ही पारंपरिक वेशभूषा में कलाकारों ने नृत्य किया. जिससे पूरा माहौल देवभूमि के रंग में रंगा नजर आया. महिलाएं और लड़कियां पारंपरिक परिधान में नजर आईं.
#WATCH | Union Minister and BJP National President JP Nadda attends the Igaas program at the BJP MP from Pauri Garhwal, Anil Baluni's residence in Delhi
— ANI (@ANI) November 11, 2024
Baba Ramdev also present at the event pic.twitter.com/2EvVAkx1tf
दिल्ली सरकार ने आयोजित किया इगास पर खास कार्यक्रम: उधर, पटपड़गंज विधानसभा में दिल्ली सरकार की ओर से इगास-बूढ़ी दिवाली के विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया. जिसमें आप नेता मनीष सिसोदिया समेत तमाम लोग शामिल शामिल हुए. कार्यक्रम में शिरकत करने के बाद मनीष सिसोदिया ने कहा कि उत्तराखंड की मिट्टी की खुशबू और वीरता का सम्मान महसूस हुआ.
उत्तराखंड के माननीय मुख्यमंत्री श्री @pushkardhami जी ने अपने व्यस्त चुनाव प्रचार कार्यक्रम से समय निकालकर दिल्ली स्थित मेरे आवास पर आयोजित ईगास कार्यक्रम में सम्मिलित होकर मेरे आमंत्रण और उत्तराखंड की लोक संस्कृति के प्रति अपना आदर प्रकट किया।
— Anil Baluni (@anil_baluni) November 12, 2024
आपका इसलिए भी आभार कि आपके द्वारा… pic.twitter.com/xfhOXUvIcL
इगास केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि यह हमारे पूर्वजों के साहस और बलिदान की अमर गाथा है, जो हमें उनकी वीरता और निष्ठा का स्मरण कराती है. उन्होंने ढोल-दमाऊं की गूंज, झोड़ा-चांचरी के गीत और भैलो का प्रकाश उन वीरों के सम्मान में जलता है, जिन्होंने हमारी सांस्कृतिक पहचान को जीवित रखा.
धन्यवाद प्रधानमंत्री जी, हम उत्तराखंड वासियों के लिए आज का दिन बहुत विशेष है। मेरे दिल्ली स्थित आवास पर आयोजित ईगास के संक्षिप्त कार्यक्रम को आपकी उपस्थिति ने विराट भव्यता ही नहीं दी, बल्कि लगभग लुप्त हो चुके हमारे इस लोकपर्व के आयोजन को नई पहचान भी दी। pic.twitter.com/JsKii1GWls
— Anil Baluni (@anil_baluni) November 11, 2024
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में दीपावली के ठीक 11 दिन बाद एक पर्व मनाया जाता है, जिसे इगास बग्वाल कहते है. दूसरे शब्दों में कहे तो इगास बग्वाल देवभूमि उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर है. ये पर्व बूढ़ी दीपावली के नाम से भी जाना जाता है. इस साल 12 नवंबर 2024 को उत्तराखंड में बूढ़ी दीपावली मनाई जाएगी.
हम कार्यकर्ताओं को सदैव अपने स्नेह से अभिसिंचित करने वाले माननीय रक्षा मंत्री श्री @rajnathsingh जी ने मेरे दिल्ली आवास पर आयोजित ईगास कार्यक्रम में सम्मिलित होकर हमारा मनोबल बढ़ाया। आप पूर्व में भी ईगास कार्यक्रम में आकर अपना स्नेह और लोकपर्वों के प्रति अपना सम्मान भाव प्रकट कर… pic.twitter.com/E5jy1q8tMv
— Anil Baluni (@anil_baluni) November 12, 2024
क्या है इगास? इगास बग्वाल न सिर्फ उत्तराखंड का पारंपरिक पर्व है, बल्कि उत्तराखंड की लोक संस्कृति का प्रतीक भी है. उत्तराखंड में इगास बग्वाल को मनाने की पीछे एक कहानी काफी प्रचलित है. बताया जाता है कि गढ़वाल में भगवान श्रीराम के वनवास के बाद अयोध्या लौटने का समाचार देरी से पहुंचा था और पहाड़ में लोगों ने तभी दीपावली मनाई थी. तभी से ये परंपरा इसी तरह चली आ रही है.
पटपड़गंज विधानसभा में दिल्ली सरकार द्वारा आयोजित इगास-बूढ़ी दिवाली के विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम में शामिल होकर अपने उत्तराखंड की मिट्टी की खुशबू और वीरता का सम्मान महसूस किया।
— Manish Sisodia (@msisodia) November 11, 2024
इगास केवल एक त्योहार नहीं, यह हमारे पूर्वजों के साहस और बलिदान की अमर गाथा है, जो हमें उनकी वीरता और… pic.twitter.com/zPXrkPJbdc
वहीं, इगास बग्वाल मनाने को लेकर एक बात और कही जाती है. बताया जाता है कि गढ़वाल के सैनिकों ने वीर योद्धा माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व तिब्बत युद्ध जीता था और दीपावली के 11 दिन पर अपने गांव में लौटे थे. तब लोगों के दीप जलाकर उत्सव मनाया था, जो इगास का रूप बन गया.
चीड़ के लकड़ी से जलाई जाती है भैलो: इगास पर्व में मुख्य आकर्षण का केंद्र मशाल होती है. चीड़ की लकड़ी से बनी मशाल (भैलो) जलाई जाती है. जिसे घुमाते हुए लोग गीतों और नृत्य का आनंद लेते हैं. इस दौरान पारंपरिक पकवान भी बनाए जाते हैं.
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