नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार 8 जुलाई को मास्को पहुंचे. वह 22वें वार्षिक शिखर सम्मेलन के लिए रूसी के राष्ट्रपति के निमंत्रण पर 8-9 जुलाई तक मास्को की आधिकारिक यात्रा पर हैं. रूस के उपप्रधानमंत्री डेनिस मंटुरोव ने प्रधानमंत्री का स्वागत किया. उप प्रधानमंत्री मंटुरोव प्रधानमंत्री मोदी के साथ हवाई अड्डे से होटल तक जाएंगे. इसके बाद राष्ट्रपति पुतिन प्रधानमंत्री के लिए एक निजी डिनर का आयोजन करेंगे.
प्रधानमंत्री मंगलवार को रूस में भारतीयों के साथ बातचीत करेंगे. इस संबंध में विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने बताया कि प्रधानमंत्री क्रेमलिन में अज्ञात सैनिक की समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित करेंगे और फिर मॉस्को में एक एग्जीबिशन का दौरा करेंगे.
हालांकि, सवाल यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा पर पश्चिमी देशों की क्या प्रतिक्रिया है? मोदी की रूस यात्रा पर पश्चिमी देशों का क्या रुख है? हालांकि, पश्चिमी नेताओं ने अभी तक मोदी की यात्रा पर खुलकर कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन गुरुवार को भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने कहा कि उनका देश रूस को जवाबदेह ठहराने के लिए मिलकर काम करने के बारे में भारत के साथ लगातार संपर्क में है.
जाहिर है, यूरोप और अमेरिका दोनों ही मोदी और पुतिन को साथ देखकर खुश नहीं होंगे. दोनों का मानना है कि यूक्रेन पर आक्रमण के कारण यूरोपीय उथल-पुथल के लिए पुतिन जिम्मेदार हैं. हालांकि, आधिकारिक तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूसी राष्ट्रपति पुतिन के निमंत्रण पर 22वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन के लिए रूस जा रहे हैं। पिछले तीन साल के दौरान दोनों देशों के बीच कोई द्विपक्षीय बैठक नहीं हुई है.
ईटीवी भारत से बात करते हुए इंटरनेशनल पॉलिटिक्ल इकोनॉमिक फॉरेन पॉलिसी एक्स्पर्ट के मुताबिक विदेश नीति विशेषज्ञ डॉ सुव्रोकमल दत्ता ने कहा, "प्रधानमंत्री की रूस यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण होगी. यह अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के भू-राजनीतिक और भू-रणनीतिक क्रम की रूपरेखा को बदल देगी. भारत और रूस कई आर्थिक व्यापार और रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर करेंगे, जो पश्चिम में कई भौंहें चढ़ाएंगे.
उन्होंने कहा कि यह कड़वी सच्चाई है कि पश्चिम अब भारत के समर्थन के बिना इंडो-पैसिफिक में भारत की उपेक्षा या विरोध नहीं कर सकता है और चीन फैक्टर को बेअसर नहीं कर सकता है. आज की दुनिया में पश्चिम को भारत की अधिक आवश्यकता है.
बैठक का एजेंडा
रूस ने दोनों नेताओं के बीच एजेंडे के बारे में बात करते हुए कहा कि पुतिन और मोदी पारंपरिक रूप से मैत्रीपूर्ण रूसी-भारतीय संबंधों के आगे विकास की संभावनाओं के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय एजेंडे के रेलेवेंट मुद्दों पर चर्चा करेंगे. मोदी की रूस यात्रा से कई पश्चिमी देश असहज हैं. उन्हें आश्चर्य है कि इस बैठक का और क्या मतलब हो सकता है.
डॉ. दत्ता आगे कहते हैं कि पश्चिमी देशों की यह अपेक्षा कि भारत रूस-यूक्रेन युद्ध पर रूस की निंदा करे, किसी भी हालत में पूरी नहीं होने वाली है. भारत पश्चिमी देशों की आंखों और कानों को खुश करने के लिए नहीं है. भारत के लिए अपने राष्ट्रीय हित अहम हैं.
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी शांति कायम करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं और इस घातक रूस-यूक्रेन संघर्ष को हल कर सकते हैं, बशर्ते रूस, नाटो, यूक्रेन और अमेरिका सहित सभी हितधारक इसे हल करने में रुचि लें. अगर पश्चिम को लगता है कि व्लादिमीर पुतिन को अज्ञानता के कारण वैश्विक स्तर पर अलग-थलग कर दिया गया है, तो ऐसा नहीं है. लैटिन अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, पश्चिम एशिया, मध्य पूर्व, मध्य एशिया के कई देश, अफ्रीका के कई देश, दक्षिण पूर्व एशिया, पूर्वी यूरोप के कुछ देश, दक्षिण एशिया के देश, चीन, ईरान रूस के साथ अच्छे संबंध बनाए हुए हैं. केवल नाटो, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जापान और दक्षिण कोरिया के देश ही रूस के साथ विवाद में हैं, इसलिए यह कहना कि रूस अलग-थलग है, पश्चिम और उसके पश्चिमी मीडिया का एक झूठ और झूठी कहानी है."
यह ध्यान देने योग्य है कि मोदी ने 2019 में आर्थिक शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए रूसी शहर व्लादिवोस्तोक का दौरा किया था. पुतिन और मोदी की आखिरी मुलाकात 2022 में उज्बेकिस्तान में एससीओ शिखर सम्मेलन में हुई थी. पुतिन ने आखिरी बार 2021 में दिल्ली का दौरा किया था. मोदी की रूस यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगी रूस को वैश्विक रूप से अलग-थलग करने और देश पर कड़े प्रतिबंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं.
रूस-भारत की दशकों पुरानी दोस्ती
1960 के दशक से लेकर 1980 के दशक तक भारत में पले-बढ़े किसी भी व्यक्ति के लिए सोवियत प्रभाव से बच पाना असंभव लगता था. भारत के कई सबसे बड़े स्टील प्लांट रूस ने स्थापित किए थे. रूस ने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों में भी मदद की. सोवियत रूस ने मुश्किल परिस्थितियों में भी भारत का साथ दिया. यह सोवियत रूस ही था जिसने 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच ऐतिहासिक ताशकंद समझौते पर बातचीत की थी.
जब पुतिन पहली बार 2000 में राष्ट्रपति चुने गए थे, तब दोनों देशों ने रणनीतिक साझेदारी पर घोषणा के तहत रक्षा, अंतरिक्ष और आर्थिक समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे. विदेश मंत्रालय के अनुसार भारत-रूस संबंध 77 साल से अधिक समय से पारस्परिक रूप से लाभकारी राजनयिक संबंधों के साथ एक दीर्घकालिक और टाइम- टेस्टिड रिलेशन है.
दोनों पक्षों ने 1971,1993 और 2000 में कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए और 2010 में संबंधों को विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी के स्तर तक बढ़ाया. दिसंबर 2021 में आयोजित 21वें द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन में भी राष्ट्रपति पुतिन नई दिल्ली आए थे. पिछले 10 साल में पीएम मोदी और राष्ट्रपति पुतिन 16 बार मिल चुके हैं. दोनों नेताओं के बीच आखिरी आमने-सामने की मुलाकात सितंबर 2022 में उज्बेकिस्तान के समरकंद में एससीओ शिखर सम्मेलन के दौरान हुई थी. इसके अलावा रूस ने पीएम मोदी को 2019 में सर्वोच्च रूसी राज्य सम्मान (ऑर्डर ऑफ द होली एपोस्टल एंड्रयू द फर्स्ट) से सम्मानित किया था.
विदेश मंत्री जयशंकर ने दिसंबर 2023 में रूस की 5 दिवसीय यात्रा की, जिसके दौरान उन्होंने राष्ट्रपति पुतिन से भी मुलाकात की. विदेश मंत्री और विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने 2023 में 7 बैठकें कीं. वहीं, विदेश मंत्री लावरोव ने सितंबर 2023 में जी20 शिखर सम्मेलन के लिए नई दिल्ली का दौरा किया. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने हाल ही में अप्रैल 2024 में सेंट पीटर्सबर्ग का दौरा किया. फरवरी 2023 में मॉस्को की अपनी यात्रा के दौरान, एनएसए ने राष्ट्रपति पुतिन से भी मुलाकात की थी.
यह भी पढे़ं- पीएम मोदी का रूस दौरा: मॉस्को में प्रधानमंत्री के स्वागत को तैयार भारतीय