नई दिल्ली : संसद की एक समिति ने सरकार से कृषि उपज के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लागू करने की सिफारिश की है. समिति ने तर्क दिया है कि इस तरह के उपाय से किसानों के आत्महत्या के मामलों में काफी कमी आ सकती है और उनकी (किसानों को) वित्तीय स्थिति बेहतर की जा सकती है.
कांग्रेस सांसद चरणजीत सिंह चन्नी की अध्यक्षता वाली कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण पर संसद की स्थायी समिति ने मंगलवार को कानूनी रूप से गारंटीशुदा एमएसपी के संभावित लाभ पर प्रकाश डालते हुए संसद को एक व्यापक रिपोर्ट सौंपी. रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘समिति दृढ़ता से अनुशंसा करती है कि कृषि और किसान कल्याण विभाग जल्द से जल्द कानूनी गारंटी के रूप में एमएसपी को लागू करने के लिए एक रूपरेखा घोषित करे.’’
मौजूदा समय में, सरकार कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों के आधार पर 23 उत्पादों के लिए एमएसपी तय करती है. समिति ने तर्क दिया कि कानूनी रूप से बाध्यकारी एमएसपी न केवल किसानों की आजीविका की रक्षा करेगा बल्कि ग्रामीण आर्थिक विकास को भी बढ़ावा देगा और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को बढ़ाएगा.
समिति की प्रमुख सिफारिशों में - किसानों की आत्महत्या को कम करने के लिए एक मजबूत एमएसपी प्रणाली को लागू करना, फसल अवशेष के प्रबंधन के लिए किसानों को मुआवजा प्रदान करना, खेत मजदूरों को न्यूनतम जीवनयापन मजदूरी के लिए राष्ट्रीय आयोग की स्थापना करना, किसानों एवं खेत मजदूरों के लिए ऋण माफी योजना शुरू करना और कृषि विभाग का नाम बदलकर उसमें खेत मजदूरों को शामिल करना है.
समिति ने इस बात पर जोर दिया कि एमएसपी के माध्यम से सुनिश्चित आय किसानों को कृषि कामकाज में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करेगी, जिससे उत्पादकता और स्थिरता में वृद्धि हो सकती है. समिति ने यह भी सुझाव दिया कि सरकार प्रत्येक फसल मौसम के बाद संसद में एक बयान दे, जिसमें एमएसपी पर उपज बेचने वाले किसानों की संख्या बताई जाए तथा एमएसपी और बाजार मूल्य के बीच अंतर का विवरण दिया जाए.
उल्लेखनीय है कि कृषि उपज के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी वर्ष 2021 में आंदोलन करने वाले किसानों की प्रमुख मांगों में से एक थी. किसानों के आंदोलन के कारण सरकार को तीन कृषि कानूनों को वापस लेने और एमएसपी मामले पर गौर करने के लिए एक समिति गठित करने के लिए मजबूर होना पड़ा था.
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