रांची: भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने लोकसभा चुनाव 2024 के लिए झारखंड से मैदान में उतरने वाले 13 प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर दी है. झारखंड में लोकसभा की 14 सीटें हैं. जिसमें से गिरिडीह लोकसभा सीट सहयोगी आजसू पार्टी के लिए छोड़ा गया है.
झारखंड में जिन नेताओं को लोकसभा के चुनावी समर में उतारा गया है उन 13 उम्मीदवारों में से 10 ऐसे हैं तो दूसरे दलों से भाजपा में आये हुए हैं या फिर कभी न कभी भाजपा को छोड़कर दूसरे दलों में चले गए थे और फिर वापस लौटे हैं. ऐसे में वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में यह साफ दिखता है कि पार्टी की नीति और सिद्धांतों को अपनी थाती समझकर पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता कहीं पीछे छूट गए.
झारखंड में भाजपा के दूसरे दलों के नेताओं से प्रेम और अपनों पर सितम को झामुमो ने राजनीतिक शुचिता में हो रही गिरावट बताया है. झामुमो के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडेय ने कहा कि अब बीजेपी का मतलब बाहरी जनता पार्टी हो गई है. वहीं, भारतीय जनता पार्टी के मीडिया प्रभारी शिवपूजन पाठक कहते हैं कि झामुमो और महागठबंधन अपनी चिंता करें.
झारखंड में भाजपा के सिंबल पर 2024 लोकसभा चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों पर
विद्युत वरण महतो: जमशेदपुर से लोकसभा के लिए तीसरी बार भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रत्याशी बनाये गए विद्युत वरण महतो की गिनती 2014 से पहले एक कद्दावर झामुमो नेता के रूप में होती थी. 2014 लोकसभा चुनाव के ठीक पहले उन्होंने मोदी लहर की नब्ज पहचान ली और तीर धनुष छोड़ कमल थाम लिया. उसके बाद से वह भाजपा से सांसद हैं.
ढुल्लू महतो: बाघमारा से भारतीय जनता पार्टी के विधायक ढुल्लू महतो को भाजपा ने धनबाद से अपने सिटिंग सांसद पी एन सिंह का टिकट काट कर उम्मीदवार बनाया है. राज्य के बाहुबली राजनेताओं में से एक ढुल्लू महतो पहले झारखंड विकास मोर्चा में हुआ करते थे. उन्होंने जेवीएम (पी) के सिंबल पर विधानसभा चुनाव भी लड़ा था.
कालीचरण सिंह: चतरा लोकसभा सीट से भी सिटिंग सांसद सुनील सिंह को बदल कर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने स्थानीय कालीचरण सिंह को उम्मीदवार बनाया है. भारतीय जनता किसान मोर्चा के राष्ट्रीय मंत्री रहने वाले कालीचरण सिंह ने भी दो दो बार भाजपा छोड़ी और झाविमो में शामिल हुए और फिर वापस लौटे.
संजय सेठ: रांची के सांसद संजय सेठ भी अपने राजनीतिक जीवन में भाजपा छोड़ चुके हैं, वह भाजपा छोड़ झाविमो में चले गए थे और झाविमो ने उन्हें केंद्रीय प्रवक्ता भी बनाया था. केंद्रीय प्रवक्ता के रूप में भाजपा पर कई बार तीखा हमला बोलने वाले संजय सेठ ने बाद में घर वापसी की और 2019 में भाजपा के टिकट पर रांची से सांसद बने.
ताला मरांडी: भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे ताला मरांडी को इस बार राजमहल लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया गया है. 2019 में राजमहल से उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाए जाने और प्रदेश अध्यक्ष रहते रघुवर सरकार की कई नीतियों का विरोध करने की वजह से बोरियो से उनका टिकट काटा गया था. ऐसे में वह आजसू पार्टी में शामिल हो गए थे और बोरियो से विधानसभा चुनाव लड़ा था, जिसमें उनकी हार हुई थी. 2022 में वह वापस भाजपा में लौट आये और 2024 में राजमहल से लोकसभा का टिकट भी पा लिया.
गीता कोड़ा: मोदी लहर में भी सिंहभूम लोकसभा सीट से 2019 में कांग्रेस का परचम लहराने वाली झारखंड प्रदेश कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष गीता कोड़ा इसी वर्ष कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुई हैं. पार्टी ने उन्हें सिंहभूम लोकसभा सीट से उम्मीदवार भी बनाया है.
मनीष जायसवाल: हजारीबाग लोकसभा सीट से इस बात भाजपा ने सिटिंग सांसद जयंत सिन्हा का टिकट काटकर मनीष जायसवाल को उम्मीदवार बनाया है.
मनीष जायसवाल भी पहले झारखंड विकास मोर्चा में थे. वर्ष 2011 में टेकलाल महतो के निधन के बाद खाली हुई मांडू विधानसभा उपचुनाव उपचुनाव में मनीष जायसवाल ने झारखंड विकास मोर्चा के सिंबल पर चुनाव लड़ा था और तीसरे स्थान पर रहकर जेपी पटेल के हाथों पराजित हुए थे. 2013 में मनीष जायसवाल जेवीएम छोड़ भाजपा में शामिल हुए थे और 2014 के भाजपा के टिकट पर हजारीबाग से विधायक भी बनें.
सीता सोरेन: दूसरे दलों से आकर भाजपा में टिकट पाने वालों में सबसे नया नाम दिशोम गुरु शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन का है. सीता सोरेन को दुमका की हाई प्रोफाइल सीट से उम्मीदवार बनाने के लिए भाजपा ने अपने पूर्व घोषित उस उम्मीदवार सुनील सोरेन को बदल दिया, जिन्होंने कई प्रयास के बाद 2019 में दुमका में शिबू सोरेन को हराया था.
अन्नपूर्णा देवी: भाजपा ने इस बार भी कोडरमा लोकसभा सीट से अन्नपूर्णा देवी को अपना उम्मीदवार बनाया है. 2019 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले राजद की प्रदेश अध्यक्ष रही अन्नपूर्णा देवी भाजपा में शामिल हो गयीं थी. लालू प्रसाद के बेहद भरोसेमंद नेताओं में से एक अन्नपूर्णा देवी का भाजपा में जाना तब लालू प्रसाद और राजद के लिये बड़ा झटका से कम नहीं था. दूसरे दल से आने के बाद भी अन्नपूर्णा भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की इतनी भरोसेमंद हो गयी कि उन्हें केंद्र में शिक्षा राज्यमंत्री भी बना दिया गया.
अर्जुन मुंडा: राज्य की नई पीढ़ी के युवा और वोटर को शायद कम ही पता हो कि राज्य में कई बार भाजपा शासनकाल में मुख्यमंत्री की बागडोर संभालने वाले वर्तमान केंद्रीय आदिवासी कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा ने भी अपनी राजनीति की शुरुआत झामुमो से की थी. संयुक्त बिहार में उन्होंने 1995 में झामुमो की टिकट पर खरसावां से विधानसभा चुनाव भी लड़ा था और विधायक बने थे.
सिर्फ ये उम्मीदवार ऐसे हैं जिन्होंने नहीं थामा दूसरे दलों का झंडा
झारखंड में भाजपा ने 13 लोकसभा क्षेत्र के लिए जिन जिन प्रत्याशियों को टिकट दिया है उसमें से सिर्फ 03 नाम ऐसे हैं जिसके बारे में यह कहा जा सकता है कि वह खांटी भाजपाई हैं या उन्होंने कभी दूसरे दलों के नेताओं के जयकारे नहीं लगाए हैं.
आईपीएस अधिकारी और डीजीपी रह चुके पलामू के प्रत्याशी बीडी राम ने सर्विस के बाद अपना राजनीतिक जीवन भाजपा से शुरू किया. वहीं, लोहरदगा से इस बार उम्मीदवार बनाये गए समीर उरांव भी किसी दूसरे दल में न तो गए और न ही राजनीतिक जीवन की शुरुआत दूसरे दल से की. इस कड़ी में तीसरा नाम गोड्डा से वर्तमान सांसद और उम्मीदवार निशिकांत दुबे का है, उनका राजनीतिक जीवन भी भाजपा के साथ ही रहा है.
आईपीएस अधिकारी से राजनीति में आये बीडी राम और एस्सार ग्रुप के निदेशक पद पर रहे निशिकांत दुबे की राजनीति में प्रवेश छोड़ दें तो सिर्फ समीर उरांव ही एक राजनीतिज्ञ हैं जो कभी दूसरी पार्टी में नहीं गए.
भाजपा के लिए लोकसभा जीत ही पहली प्राथमिकता
झारखंड और भाजपा की राजनीति को लंबे दिनों से बेहद करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार कहते हैं कि चाहे जो भी चुनाव हो, राजनीतिक दल के लिए जीत ही पहली प्राथमिकता होती है. भाजपा में पिछले दिनों दूसरे दलों के नेताओं का आगमन बढ़ा है, एक स्वभाविक आकर्षण है. भाजपा नेतृत्व को भी बाहर से नेता लाने में दोहरा लाभ नजर आता है, उन्हें लगता है कि एक तो जनाधार वाले नेता को दूसरे दल से तोड़ कर लाने से विपक्ष का जनाधार कम होगा और भाजपा का बढ़ेगा.
दूसरा यह कि कहीं न कहीं पार्टी नेतृत्व को लगता है कि जातीय और सामाजिक समीकरण को साधने के लिए उनके पास उस कद का नेता नहीं हैं, तो वह दूसरे दल से नेता लाकर उस कमी को पूरा करती है. वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार कहते हैं कि प्रायः सभी दलों में चुनाव के समय दूसरे दल के आयातित नेताओं को महिमामंडित किया जाता है. भाजपा के साथ पॉजिटिव बात यह है कि वह कैडर आधारित पार्टी है ऐसे में बाहरी नेताओं को भी भाजपा के कैडर स्वीकार कर लेते हैं.
बाहरी जनता पार्टी होकर रह गयी है भाजपा-JMM
भारतीय जनता पार्टी के लोकसभा के 13 घोषित उम्मीदवारों में से 10 पर किसी न किसी रूप में कभी न कभी दूसरे राजनीतिक दलों से संबंध रखने का हवाला देकर झामुमो ने तंज कसा है. झामुमो के केंद्रीय प्रवक्ता ने कहा कि झारखंड में BJP का मतलब बाहरी जनता पार्टी हो गया है. भाजपा में या तो बाहरी यानी दूसरी पार्टी के नेताओं को मौका मिलता है या फिर दूसरे राज्य के लोगों को. उन्होंने कहा कि जनसंघ और अटल आडवाणी के समय से भाजपा समर्पित कार्यकर्ता की कोई पूछ नहीं है.
हमारी चिंता छोड़, अपनी परवाह करे झामुमो- भाजपा
भाजपा को बाहरी जनता पार्टी बनाने वाले झामुमो के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रदेश भाजपा के मीडिया प्रभारी शिवपूजन पाठक ने कहा कि महागठबंधन और झामुमो अपनी चिंता करे. भाजपा में लोकतांत्रिक व्यवस्था है और एक ही लक्ष्य है अबकी बार 400 पार. राज्य की 14 की 14 सीट जीतने का लक्ष्य लेकर पार्टी का एक एक कार्यकर्ता समर्पित होकर कमल फूल खिलायेगा, यह तय है.
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