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एक राष्ट्र-एक चुनाव : त्रिशंकु सदन या अविश्वास प्रस्ताव की स्थिति में क्या होगा, आसान भाषा में समझें सारे सवालों के जवाब

One Nation One Election : अगर पूरे देश में एक साथ लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव हुए, तो क्या होगा ? अगर हंग असेंबली हुई तो क्या फिर से होंगे चुनाव ? अगर गठबंधन के किसी दल ने समर्थन वापस लिया तो सरकार का क्या होगा ? वन नेशन, वन इलेक्शन की रिपोर्ट में इन सारे सवालों के जवाब दिए गए हैं. अगर आप आसान भाषा में इसे समझना चाहते हैं तो पढ़ें पूरी रिपोर्ट.

one nation one election
एक राष्ट्र एक चुनाव
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Mar 14, 2024, 6:12 PM IST

Updated : Mar 15, 2024, 6:18 AM IST

हैदराबाद : पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के नेतृत्व वाली समिति ने 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' पर अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. उच्च स्तरीय समिति (एचएलसी) ने गुरुवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी. 18,626 पेज की विस्तृत रिपोर्ट में 11 अध्याय और 21-खंड अनुबंध शामिल हैं.

'एक राष्ट्र-एक चुनाव' का क्या मतलब?: 'वन नेशन वन इलेक्शन' का अर्थ एक ही समय में लोकसभा, सभी राज्य विधानसभाओं और शहरी और ग्रामीण स्थानीय निकायों (नगर पालिकाओं और पंचायतों) के चुनाव कराना है. अभी की बात करें तो देश में ये सभी चुनाव प्रत्येक व्यक्तिगत निर्वाचित निकाय की शर्तों द्वारा निर्धारित समय-सीमा का पालन करते हुए एक-दूसरे से स्वतंत्र रूप से आयोजित किए जाते हैं.

कब बनी थी समिति, कौन-कौन था इसमें : सितंबर 2023 में समिति का गठन किया गया था. पैनल में गृह मंत्री अमित शाह, राज्यसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद, पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष सी कश्यप, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी सदस्य थे. कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल समिति में विशेष आमंत्रित सदस्य थे.

समिति ने क्या सिफारिश की है? ये कैसे संभव होगा इसके लिए उपाय भी बताए

संविधान में संशोधन: दो चरणों में एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा. पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के एक साथ चुनाव होंगे. इसके लिए संविधान संशोधन के लिए राज्यों के अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होगी. दूसरे चरण में, नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनावों को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के साथ इस तरह से समन्वयित किया जाएगा कि स्थानीय निकाय चुनाव लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के 100 दिनों के भीतर आयोजित किए जाएं. इसके लिए कम से कम आधे राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता होगी.

एकल मतदाता सूची और चुनाव आईडी : समिति ने सिफारिश की है कि सरकार के सभी तीन स्तरों के चुनावों में उपयोग के लिए एक मतदाता सूची और मतदाता फोटो पहचान पत्र तैयार करने चाहिए, संविधान में संशोधन किया जाना चाहिए, ताकि भारत का चुनाव आयोग राज्य चुनाव आयोगों के परामर्श से सिंगल मतदाता सूची और चुनाव आईडी तैयार करे. हालांकि इन संशोधनों के लिए कम से कम आधे राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता होगी.

अगर त्रिशंकु सदन की स्थिति बनी तो क्या होगा : त्रिशंकु सदन, अविश्वास प्रस्ताव या ऐसी किसी घटना की स्थिति में, शेष अवधि के लिए नई लोकसभा या राज्य विधानसभा का गठन करने के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जाने का प्रस्ताव दिया गया है.

एक साथ चुनाव मैनेज कैसे करेंगे? ये बताया उपाय : देशभर में एक साथ चुनाव कराना आसान नहीं है. इसके लिए बड़ी संख्या में ईवीएम और चुनाव प्रबंधन संभालने के लिए पर्याप्त कर्मचारियों की जरूरत होगी. ऐसे में समिति ने सिफारिश की है कि लॉजिस्टिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भारत का चुनाव आयोग, राज्य चुनाव आयोगों के परामर्श से पहले से योजना बनाएगा. वह अनुमान लगाएगा, और जनशक्ति, मतदान कर्मियों, सुरक्षा बलों, ईवीएम की तैनाती के लिए कदम उठाएगा. ताकि सरकार के तीनों स्तरों पर एक साथ स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हो सकें.

तो बड़ा सवाल ये है कि 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' कैसे काम करेगा? जवाब है संविधान में संशोधन के बिना नहीं. और उस संशोधन को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों के साथ-साथ संभवतः प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा अनुमोदित किया जाना है.

कानून के जानकारों का कहना है कि ऐसा करने में कुछ कानूनी दिक्कतें भी आएंगी. अनुच्छेद 83 (संसद का कार्यकाल), अनुच्छेद 85 (राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा का विघटन), अनुच्छेद 172 (राज्य विधानमंडलों का कार्यकाल), और अनुच्छेद 174 (राज्य विधानमंडलों का विघटन), साथ ही अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति का कार्यकाल थोपना) नियम आदि. ये महत्वपूर्ण हैं क्योंकि बड़ी चुनौतियों में से एक यह है कि यदि कोई राज्य, या यहां तक ​​कि केंद्र सरकार, अविश्वास प्रस्ताव विफल हो जाती है या अन्यथा अपना कार्यकाल समाप्त होने से पहले भंग हो जाती है तो क्या होगा. क्योंकि अन्य सभी राज्यों को नए सिरे से चुनाव कराने का आदेश देना असंभव है.

नौ साल पहले ईसीआई ने 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' विचार पर एक व्यवहार्यता रिपोर्ट भी प्रस्तुत की थी, जिसमें उसने सुझाव दिया था कि अविश्वास प्रस्ताव में एक नए मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री का नामांकन शामिल है, जो कि मौजूदा व्यक्ति के हारने की स्थिति में सत्ता संभाल सकता है. नए नेता को तुरंत एक परीक्षा का सामना करना होगा. और शीघ्र विघटन की स्थिति में, केवल एक अल्पकालिक चुनाव - शेष कार्यकाल के लिए सरकार चुनने के लिए - आयोजित किया जाना चाहिए.

वन नेशन-वन इलेक्शन के लिए सरकार इन तर्कों के आधार पर दे रही जोर

  • बार-बार चुनाव होने से सरकारी खजाने पर अतिरिक्त खर्च का बोझ पड़ता है.
  • असमय चुनाव अस्थिरता का कारण बनते हैं, आर्थिक विकास पर असर पड़ता है.
  • असमय चुनाव के कारण सरकारी तंत्र में व्यवधान से नागरिकों को कठिनाई होती है.
  • बार-बार चुनाव कराने से सरकारी अधिकारियों और सुरक्षा बलों उपयोग उनके कर्तव्यों के निर्वहन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है.
  • आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) को बार-बार लागू करने से विकास कार्यक्रमों की गति धीमी हो जाती है.
  • बार-बार चुनाव होने से मतदाताओं का रुझान कम होता है, वोट में भागीदारी कम होती है.

पहले भी हो चुका है ऐसा : भारत में एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव पहली बार नहीं आया है. 1957 में भारत के चुनाव आयोग के साथ केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और राजनीतिक दलों द्वारा किए गए प्रयासों के बाद, सात राज्यों बिहार, बॉम्बे, मद्रास, मैसूर, पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में एक साथ चुनाव हुए थे. 1967 के चौथे आम चुनाव तक एक साथ चुनाव आम तौर पर प्रचलन में थे. हालांकि, चूंकि लगातार केंद्र सरकारों ने अपने कार्यकाल की समाप्ति से पहले राज्य सरकारों को बर्खास्त करने के लिए संवैधानिक प्रावधानों का इस्तेमाल किया, और राज्यों और केंद्र में गठबंधन सरकारें गिरती रहीं, एक पूरे साल देश में अलग-अलग समय पर चुनाव हुए. एचएलसी रिपोर्ट के अनुसार, देश में अब एक वर्ष में पांच से छह चुनाव होते हैं - यदि नगर पालिकाओं और पंचायत चुनावों को भी शामिल कर लिया जाए, तो चुनावों की संख्या कई गुना बढ़ जाएगी.

इस साल कहां-कहां होने हैं चुनाव : आंध्र प्रदेश, सिक्किम और ओडिशा में अप्रैल/मई में लोकसभा चुनाव के साथ ही मतदान होना है. महाराष्ट्र और हरियाणा में इस साल के अंत में मतदान होगा, साथ ही झारखंड में भी चुनाव होने हैं. केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश के अनुरूप, छह साल में अपना पहला विधानसभा चुनाव 30 सितंबर से पहले कराना होगा.

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'एक राष्ट्र-एक चुनाव' का क्या मतलब?: 'वन नेशन वन इलेक्शन' का अर्थ एक ही समय में लोकसभा, सभी राज्य विधानसभाओं और शहरी और ग्रामीण स्थानीय निकायों (नगर पालिकाओं और पंचायतों) के चुनाव कराना है. अभी की बात करें तो देश में ये सभी चुनाव प्रत्येक व्यक्तिगत निर्वाचित निकाय की शर्तों द्वारा निर्धारित समय-सीमा का पालन करते हुए एक-दूसरे से स्वतंत्र रूप से आयोजित किए जाते हैं.

कब बनी थी समिति, कौन-कौन था इसमें : सितंबर 2023 में समिति का गठन किया गया था. पैनल में गृह मंत्री अमित शाह, राज्यसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद, पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष सी कश्यप, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी सदस्य थे. कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल समिति में विशेष आमंत्रित सदस्य थे.

समिति ने क्या सिफारिश की है? ये कैसे संभव होगा इसके लिए उपाय भी बताए

संविधान में संशोधन: दो चरणों में एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा. पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के एक साथ चुनाव होंगे. इसके लिए संविधान संशोधन के लिए राज्यों के अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होगी. दूसरे चरण में, नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनावों को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के साथ इस तरह से समन्वयित किया जाएगा कि स्थानीय निकाय चुनाव लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के 100 दिनों के भीतर आयोजित किए जाएं. इसके लिए कम से कम आधे राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता होगी.

एकल मतदाता सूची और चुनाव आईडी : समिति ने सिफारिश की है कि सरकार के सभी तीन स्तरों के चुनावों में उपयोग के लिए एक मतदाता सूची और मतदाता फोटो पहचान पत्र तैयार करने चाहिए, संविधान में संशोधन किया जाना चाहिए, ताकि भारत का चुनाव आयोग राज्य चुनाव आयोगों के परामर्श से सिंगल मतदाता सूची और चुनाव आईडी तैयार करे. हालांकि इन संशोधनों के लिए कम से कम आधे राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता होगी.

अगर त्रिशंकु सदन की स्थिति बनी तो क्या होगा : त्रिशंकु सदन, अविश्वास प्रस्ताव या ऐसी किसी घटना की स्थिति में, शेष अवधि के लिए नई लोकसभा या राज्य विधानसभा का गठन करने के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जाने का प्रस्ताव दिया गया है.

एक साथ चुनाव मैनेज कैसे करेंगे? ये बताया उपाय : देशभर में एक साथ चुनाव कराना आसान नहीं है. इसके लिए बड़ी संख्या में ईवीएम और चुनाव प्रबंधन संभालने के लिए पर्याप्त कर्मचारियों की जरूरत होगी. ऐसे में समिति ने सिफारिश की है कि लॉजिस्टिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भारत का चुनाव आयोग, राज्य चुनाव आयोगों के परामर्श से पहले से योजना बनाएगा. वह अनुमान लगाएगा, और जनशक्ति, मतदान कर्मियों, सुरक्षा बलों, ईवीएम की तैनाती के लिए कदम उठाएगा. ताकि सरकार के तीनों स्तरों पर एक साथ स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हो सकें.

तो बड़ा सवाल ये है कि 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' कैसे काम करेगा? जवाब है संविधान में संशोधन के बिना नहीं. और उस संशोधन को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों के साथ-साथ संभवतः प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा अनुमोदित किया जाना है.

कानून के जानकारों का कहना है कि ऐसा करने में कुछ कानूनी दिक्कतें भी आएंगी. अनुच्छेद 83 (संसद का कार्यकाल), अनुच्छेद 85 (राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा का विघटन), अनुच्छेद 172 (राज्य विधानमंडलों का कार्यकाल), और अनुच्छेद 174 (राज्य विधानमंडलों का विघटन), साथ ही अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति का कार्यकाल थोपना) नियम आदि. ये महत्वपूर्ण हैं क्योंकि बड़ी चुनौतियों में से एक यह है कि यदि कोई राज्य, या यहां तक ​​कि केंद्र सरकार, अविश्वास प्रस्ताव विफल हो जाती है या अन्यथा अपना कार्यकाल समाप्त होने से पहले भंग हो जाती है तो क्या होगा. क्योंकि अन्य सभी राज्यों को नए सिरे से चुनाव कराने का आदेश देना असंभव है.

नौ साल पहले ईसीआई ने 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' विचार पर एक व्यवहार्यता रिपोर्ट भी प्रस्तुत की थी, जिसमें उसने सुझाव दिया था कि अविश्वास प्रस्ताव में एक नए मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री का नामांकन शामिल है, जो कि मौजूदा व्यक्ति के हारने की स्थिति में सत्ता संभाल सकता है. नए नेता को तुरंत एक परीक्षा का सामना करना होगा. और शीघ्र विघटन की स्थिति में, केवल एक अल्पकालिक चुनाव - शेष कार्यकाल के लिए सरकार चुनने के लिए - आयोजित किया जाना चाहिए.

वन नेशन-वन इलेक्शन के लिए सरकार इन तर्कों के आधार पर दे रही जोर

  • बार-बार चुनाव होने से सरकारी खजाने पर अतिरिक्त खर्च का बोझ पड़ता है.
  • असमय चुनाव अस्थिरता का कारण बनते हैं, आर्थिक विकास पर असर पड़ता है.
  • असमय चुनाव के कारण सरकारी तंत्र में व्यवधान से नागरिकों को कठिनाई होती है.
  • बार-बार चुनाव कराने से सरकारी अधिकारियों और सुरक्षा बलों उपयोग उनके कर्तव्यों के निर्वहन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है.
  • आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) को बार-बार लागू करने से विकास कार्यक्रमों की गति धीमी हो जाती है.
  • बार-बार चुनाव होने से मतदाताओं का रुझान कम होता है, वोट में भागीदारी कम होती है.

पहले भी हो चुका है ऐसा : भारत में एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव पहली बार नहीं आया है. 1957 में भारत के चुनाव आयोग के साथ केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और राजनीतिक दलों द्वारा किए गए प्रयासों के बाद, सात राज्यों बिहार, बॉम्बे, मद्रास, मैसूर, पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में एक साथ चुनाव हुए थे. 1967 के चौथे आम चुनाव तक एक साथ चुनाव आम तौर पर प्रचलन में थे. हालांकि, चूंकि लगातार केंद्र सरकारों ने अपने कार्यकाल की समाप्ति से पहले राज्य सरकारों को बर्खास्त करने के लिए संवैधानिक प्रावधानों का इस्तेमाल किया, और राज्यों और केंद्र में गठबंधन सरकारें गिरती रहीं, एक पूरे साल देश में अलग-अलग समय पर चुनाव हुए. एचएलसी रिपोर्ट के अनुसार, देश में अब एक वर्ष में पांच से छह चुनाव होते हैं - यदि नगर पालिकाओं और पंचायत चुनावों को भी शामिल कर लिया जाए, तो चुनावों की संख्या कई गुना बढ़ जाएगी.

इस साल कहां-कहां होने हैं चुनाव : आंध्र प्रदेश, सिक्किम और ओडिशा में अप्रैल/मई में लोकसभा चुनाव के साथ ही मतदान होना है. महाराष्ट्र और हरियाणा में इस साल के अंत में मतदान होगा, साथ ही झारखंड में भी चुनाव होने हैं. केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश के अनुरूप, छह साल में अपना पहला विधानसभा चुनाव 30 सितंबर से पहले कराना होगा.

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Last Updated : Mar 15, 2024, 6:18 AM IST
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