हल्द्वानी(उत्तराखंड): बनभूलपुरा हिंसा के जख्मों को आसानी से नहीं भुलाया जा सकता, लेकिन हिंसा के दौरान कुछ ऐसा हुआ जिसने इन जख्मों को लाईलाज रोग बनने से बचा लिया. बात दंगाईयों के बीच घिरे गोपाल मंदिर से शुरू होती है, जो हिंसा का नजदीकी गवाह होने के बाद भी हिंसा से कोसों दूर दिखाई दिया. मंदिर को देखकर कोई नहीं कह सकता कि कुछ दिन पहले ही यहां एक खौफनाक हिंसा को अंजाम दिया गया. आक्रोशित भीड़ ने ना केवल मंदिर के बाहर गाड़ियों में आग लगाई, बल्कि पास के ही एक थाने को भी आग के हवाले कर दिया. इसके बाद भी गोपाल मंदिर पर खरोंच भी नहीं आई.
'मलिक का बगीचा' घटनास्थल के पास स्थित गोपाल मंदिर हल्द्वानी हिंसा का सबसे नजदीकी गवाह रहा. यहां मंदिर के बाहर गोलीबारी होने के साथ दंगाइयों ने पुलिस की गाड़ियों को आग लगाई. हैरानी की बात यह है कि जिस बनभूलपूरा हिंसा को सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है वहां हिंसा पर उतारू भीड़ ने मंदिर को थोड़ा भी नुकसान नहीं पहुंचाया, जबकि मंदिर के बाहर ही दंगाईयों का पुलिस के साथ सीधा टकराव भी हुआ. इतना ही नहीं हिंसा के दौरान पुलिस को उल्टे पांव भागना भी पड़ा. गोपाल मंदिर आक्रोशित भीड़ से घिरे होने के बावजूद भी हिंसा के निशान से अछूता है.
हिंसा का केंद्र रहा गोपाल मंदिर: 'मलिक का बगीचा' इलाके में अवैध निर्माण तोड़ने के दौरान धक्का मुक्की से शुरू हुआ हंगामा पथराव और लाठी चार्ज में बदल गया. घटना के बाद प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा इलाके में नमाज स्थल के शहीद होने का एक संदेश फैलने लगा. देखते ही देखते सैकड़ो की संख्या में लोग सड़कों पर आ गए. अब यह भीड़ पुलिस पर भारी पड़ने लगी. इसके बाद पुलिस को उल्टे पांव वापस दौड़ना पड़ा.. इस दौरान कुछ पुलिसकर्मी भीड़ में फंस गए. इसके बाद पथराव के चलते इन पुलिसकर्मियों के चोटें भी आई. आक्रोशित भीड़ ने यहां से निकलकर थाने की तरफ बढ़ी. पास में ही गोपाल मंदिर मौजूद है. जहां पर मौजूद तिराहे पर खड़ी पुलिस की गाड़ियों को आक्रोशित भीड़ में आग लगा दी. मंदिर पर किसी तरह का कोई पथराव या उसे नुकसान पहुंचाने की कोशिश नहीं की गई. इसके बाद इसी रास्ते से भीड़ थाने तक पहुंची. जिसके बाद थाने को आग लगाने की बात कही जाने लगी. यानी घटनास्थल और थाने के बीच मौजूद गोपाल मंदिर में लोगों की भारी भीड़ ने जमकर हंगामा मचाया, लेकिन इन सबके बीच भी मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ.
सरस्वती शिशु मंदिर भी होता है संचालित: गोपाल मंदिर भवन में ही सरस्वती शिशु मंदिर भी संचालित होता है. ना तो स्कूल परिसर में किसी ने दाखिल होकर घटना को अंजाम देने की कोशिश की और ना ही मंदिर के करीब ही कोई गया. कुल मिलाकर स्कूल और मंदिर को लेकर किसी ने अपना आक्रोश नहीं जताया. हिंसा के दौरान गुस्सा केवल प्रशासन और पुलिस पर ही रहा.
बनभूलपुरा में किसी भी मंदिर को नहीं हुआ नुकसान: वैसे तो इस घटना के सबसे करीब गोपाल मंदिर था, जहां भारी संख्या में आक्रोशित भीड़ ने बाहर मौजूद गाड़ियों में आग लगाई. इस इलाके में करीब चार दूसरे मंदिर भी हैं. जिसमें शिव मंदिर और दुर्गा मंदिर हैं. किसी भी मंदिर में दंगाइयों ने घुसने या नुकसान पहुंचाने की कोशिश नहीं की. गोपाल मंदिर की देखरेख करने वाली महिला कहती हैं मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ. मंदिर के बाहर लोगों ने गाड़ियों को आग लगाई, लेकिन किसी ने भी मंदिर पर कोई भी हमला नहीं किया. उधर इसी इलाके के एक अन्य व्यक्ति ने कहा आक्रोशित भीड़ ने पुलिस के साथ तो गलत किया लेकिन किसी भी मंदिर को नुकसान पहुंचाने की कोशिश नहीं की. उन्होंने कहा हिंदू और मुस्लिम संबंधों की बात करें तो इस क्षेत्र में कभी भी ऐसे हालात नहीं रहे. यहां हिंदू और मुस्लिम दोनों ही हमेशा मिलकर रहते आये हैं.
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