हैदराबाद: राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) के अध्यक्ष डॉ. बी.एन. गंगाधर ने कहा कि उनका लक्ष्य चिकित्सा सेवाओं को अधिक लोगों के लिए सुलभ बनाना और चिकित्सा शिक्षा में उच्चतम मानक (Highest Standard) स्थापित करना है. उन्होंने कहा आगे कहा कि मेडिकल कॉलेजों में फर्जी मरीजों और फर्जी (घोस्ट) फैकल्टी को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए गए हैं. उन्होंने कहा कि वे मेडिकल कॉलेजों में बुनियादी ढांचे के सुधार को प्राथमिकता दे रहे हैं और यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि नवीनतम चिकित्सा उपकरण उपलब्ध हों. उन्होंने यह भी कहा कि नियमों में बदलाव इसलिए किया गया है ताकि नए मेडिकल कॉलेज 50 छात्रों के साथ शुरू किया जा सके. उन्होंने कहा कि, 220 बिस्तरों वाला शिक्षण अस्पताल होने पर ही कॉलेजों को शुरू करने की अनुमति है. उन्होंने कहा कि मेडिकल कॉलेज में प्रथम वर्ष की कक्षाएं शुरू होने के समय मरीजों को अस्पताल में पूरी चिकित्सा सेवाएं मिलें, इसके लिए कदम उठाए गए हैं.
आधार बेस्ड टीचिंग कर्मियों के रजिस्ट्रेशन को सफल बताते हुए बी.एन. गंगाधर ने यह भी कहा कि, नए मेडिकल कॉलेजों को अनुमति देते समय एनएमसी प्रत्यक्ष निरीक्षण करेगी. ईटीवी भारत के साथ इंटरव्यू में उन्होंने आगे कहा कि, पीजी मेडिकल सीटें बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. कुल मिलाकर एनएमसी के अध्यक्ष डॉ बीएन गंगाधर का उद्देश्य यह है कि, एक मेडिकल छात्र पढ़ाई के दौरान और उसके बाद एक कुशल डॉक्टर बनकर निकले.
मेडिकल कॉलेजों में स्टैंडर्ड बढ़ाने के लिए किस तरह के उपाय किये जा रहे हैं..?
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के अध्यक्ष डॉ. बी.एन. गंगाधर ने कहा कि, देश में अधिक मेडिकल सीटें उपलब्ध करवाना उनकी प्रथिमिकता है. साथ ही मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के दिशा में ध्यान केंद्रित किया जा रहा है. उन्होंने आगे कहा कि, एमबीबीएस परीक्षा पास करना एक मात्र उद्देश्य नहीं है, बल्कि एक मेडिकल छात्र को चिकित्सा पद्धति के कई पहलुओं में अव्वल होना चाहिए. जिसके लिए हाई स्टैंडर्ड पाठ्यक्रम विकसित किया गया है, जिसका पालन अनिवार्य रूप से किया जाएगा. उन्होंने आगे कहा कि, मेडिकल छात्रों को शीघ्रता से क्लिनिकल एक्सपोजर दिलाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है. यह केवल पाठ्यक्रम सीखने तक ही सीमित नहीं है बल्कि व्यावहारिक ज्ञान को बढ़ाने में भी मदद करता है. उन्होंने कहा कि, 'हमने स्नातक प्रीक्लिनिकल प्रशिक्षण को क्लिनिकल प्रशिक्षण का एक हिस्सा बना दिया है और मेडिकल कॉलेजों में स्किल लैब अनिवार्य कर दी है, जिससे छात्रों को अपने कौशल में सुधार करने के अवसर मिलेंगे.
मेडिकल कॉलेजों में शिक्षण स्टाफ का क्षमता निर्माण?
डॉ. बी.एन. गंगाधर ने आगे कहा कि, शिक्षण स्टाफ की क्षमताओं को बढ़ाने के लिए अतीत में एक फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम चलाया गया है. इसके अलावा, अब प्रशिक्षण के अवसरों को 40 से 45 प्रतिशत तक बढ़ा दिया है. मेडिकल कॉलेजों और शिक्षण स्टाफ की संख्या में वृद्धि के कारण प्रशिक्षण के लिए कई केंद्र खोले गए हैं. साथ ही मुख्य रूप से उन्नत क्षेत्रों में प्रशिक्षण के अवसर प्रदान किये जा रहे हैं.
रैगिंग की रोकथाम कैसे हो?
मेडिकेल कॉलेजों में रैगिंग पर रोकथाम कैसे हो इस पर बातचीत करते हुए डॉ. बी.एन. गंगाधर ने आगे कहा कि, रैगिंग के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा रही है. जिसके लिए एक मेंटर-मेंटी कार्यक्रम चलाया जा रहा है. साथ ही प्रत्येक मेडिकल कॉलेजों में एंटी रैगिंग सेल का निर्माण किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि, किसी भी स्तर पर रैगिंग को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
पीजी मेडिकल सीटों की कमी..?
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के अध्यक्ष डॉ. बी.एन. गंगाधर ने कहा कि, एनएमसी के गठन के बाद पिछले तीन वर्षों से स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में सीटों की संख्या बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है. पांच साल पहले स्थिति अलग थी. अब हमने कई पीजी सीटें उपलब्ध करा दी हैं. इस साल और पिछले साल के बैच के लगभग सभी छात्रों को पीजी सीटें मिलने की संभावना है. हालांकि, इसमें कड़ी प्रतिस्पर्धा है, क्योंकि पुराने बैच भी इसके लिए प्रयास कर रहे हैं.
मेडिकल शिक्षा के स्टैंडर्ड को कैसे बढ़ाया जाए?
उन्होंने कहा कि, राष्ट्रीय स्तर की योग्यता मूल्यांकन (नेशनल एग्जिट टेस्ट-नेक्स्ट) का आयोजन चिकित्सा शिक्षा के मानकों को बढ़ाने में एक गेम चेंजर होगा. हालांकि, इसके कार्यान्वयन में छोटी-मोटी समस्याएं हैं. इसका प्रबंधन शुरू होने पर विद्यार्थियों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होगी. चिकित्सा शिक्षा के गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित करने के लिए सभी मेडिकल कॉलेजों का तृतीय-पक्ष ऑडिट भी किया जाता है. इसके लिए एक विशेष समिति नियुक्त की गयी है.
मेंटर-मेंटी कार्यक्रम के परिणाम..?
मेंटर-मेंटी कार्यक्रम में, परामर्शदाता शिक्षण स्टाफ चार से पांच छात्रों के लिए स्थानीय अभिभावकों के रूप में कार्य करता है। उन छात्रों के संपर्क में रहने से.. उन्हें आवश्यक सहायता प्रदान की जाएगी। वे तनाव और अन्य पहलुओं से राहत दिलाने में मदद करते हैं। प्रत्येक शिक्षक के अधीन चार वर्ष के छात्र होते हैं। उनके बीच भाईचारा बढ़ता है. रैगिंग जैसी चीजों की संभावना भी कम हो जाएगी
मेडिकल छात्रों में आत्महत्या और ड्रॉपआउट जैसी गंभीर समस्याओं का समाधान कैसे होगा?
डॉ. बी.एन. गंगाधर ने कहा कि, किशोरावस्था के बाद के छात्रों के कई विषयों के प्रति आकर्षित होने या उनसे प्रभावित होने की संभावना होती है. छात्रों में तनाव का स्तर अधिक है. इस संदर्भ में एनएमसी ने एक विशेष टास्क फोर्स समिति का गठन किया है. छात्रों में तनाव के स्तर को पहचानना और यह जानना कि वे तनाव में क्यों हैं.... आत्महत्या के कारण, वे ड्रॉपआउट क्यों हो रहे हैं? समिति इन सभी गंभीर विषयों का अध्ययन करेगी. तनाव से बाहर निकालने के लिए छात्रों के लिए योग जैसे कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं.'
डॉक्टरों का मरीजों के साथ व्यवहार, नैतिकता आदि प्राथमिकता है..?
डॉ. बी.एन. गंगाधर ने कहा कि, एक डॉक्टर को मरीजों का इलाज कैसे करना चाहिए, इसके लिए चिकित्सा शिक्षा में नैतिकता को एक विषय के रूप में शामिल किया गया है. यह छात्र को चिकित्सा शिक्षा पूरी करने के बाद एक अच्छे डॉक्टर के रूप में सेवा करने में मदद करता है. इसके साथ ही परिवार गोद लेने का कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं.' इसके तहत प्रत्येक छात्र मेडिकल कॉलेज के पास एक गांव में चार से पांच परिवारों को गोद लेता है. शिक्षा के चार वर्षों के दौरान उन परिवारों के साथ अच्छे रिश्तों का विकास होता है. साथ ही उन परिवारों की स्वास्थ्य समस्याओं की पहचान की जाती है. उन्होंने कहा कि, छात्र खुद मरीज का इलाज नहीं करते...इसके लिए किसी अस्पताल या फिर मेडिकल कॉलेज की सहायता ली जाती है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि वे (मे़डिकल छात्र) जानते हैं कि मरीजों के साथ कैसे व्यवहार करना है.
ये भी पढ़ें: डॉक्टरों और मेडिकल छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य का NMC करा रहा सर्वेक्षण, जानें क्यों