नई दिल्ली: देश में आज से नए आपराधिक कानून - भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम आधिकारिक रूप से अमल में आ गए हैं. इसी के साथ एक सदी से भी अधिक पुराने औपनिवेशिक युग (अंग्रेजी शासन) के आपराधिक कानून खत्म हो गए. तीन नए आपराधिक कानून ब्रिटिश युग के भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे. ऐसा माना जा रहा है कि जैसे-जैसे नए कानून अमल आएंगे, इससे कुछ हद तक अनिश्चितता पैदा होगी और देश भर में विभिन्न अदालतों में मुकदमे की सुनवाई के दौरान वकीलों के बहस करते समय भी मुद्दे सामने आएंगे. हालांकि, कानूनी विशेषज्ञों की राय इस बात पर बंटी हुई है कि क्या नई संहिताएं न्याय दिलाने में कारगर साबित होंगी, और क्या नागरिकों के लिए न्याय का मार्ग आसान होगा.
वकीलों के लिए चुनौती पेश करने वाले नए कानून पर वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि वकील नए आपराधिक कानूनों के लागू होने से उत्पन्न होने वाली किसी भी चुनौती का सामना करने में असमर्थ हैं. पिछले कई दशकों से हम (वकील) विभिन्न क्षेत्रों में नए कानूनों का सामना कर रहे हैं. 1950 में भारत का संविधान ही नया था. आईबीसी नया था. नया भूमि अधिग्रहण अधिनियम था. इसलिए, नए आपराधिक कानूनों से भी कोई समस्या नहीं है. द्विवेदी ने कहा कि इसके अलावा आपराधिक कानून के मूलभूत सिद्धांत गाइड के रूप में मौजूद हैं. अदालतें भी नए मुद्दों को संभालने के लिए अच्छी तरह से सुसज्जित हैं. आजकल अनुवाद तेजी से हो रहे हैं. दक्षिणी राज्य अंग्रेजी में अच्छे हैं और इसके चलन के पक्ष में हैं. निजी तौर पर मैं नए कानूनों का स्वागत करता हूं.
कुछ प्रावधानों में अस्पष्ट भाषा से समस्याएं उत्पन्न होंगी...
वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े का कहना है कि वकीलों और जजों के लिए नए कानूनों का अध्ययन करना और उनकी शब्दावली का स्मरण करना निस्संदेह एक चुनौती होगी. उन्होंने कहा कि कुछ प्रावधानों में इस्तेमाल की गई अस्पष्ट भाषा से समस्याएं उत्पन्न होंगी, जिससे अनिश्चितता पैदा होगी. ये समस्याएं सिस्टम के जरिये आगे बढ़ेंगी और दशकों तक मुकदमेबाजी के बाद ही हल होंगी. उन्होंने कहा कि स्थापित कानून को अस्थिर करने के परिणाम तुरंत दिखाई नहीं देते हैं, लेकिन फिर भी भविष्य को प्रभावित करते रहते हैं.
लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा पुराने कानूनों का...
पुराने आईपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य कानून में बदलाव से वकीलों के सामने आने वाली चुनौतियों के पहलू पर वरिष्ठ अधिवक्ता सुनील फर्नांडीस ने कहा कि निस्संदेह मुझे लगता है कि तीन आपराधिक कानूनों के जल्दबाजी में लागू होने के कारण बहुत सी शुरुआती समस्याएं होंगी, न केवल वकीलों के लिए बल्कि जजों, पुलिस और आम जनता के लिए भी. उन्होंने जोर देकर कहा कि तीनों नए कानूनों में शायद ही कुछ नया है. लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा पुराने कानूनों का ही लिया गया है. केवल धाराओं को याद रखा जाता है, जिससे सभी हितधारकों को भारी और अनावश्यक असुविधा होती है.
जब उनसे पूछा गया कि कुछ मामलों में जल्दी फैसला होगा, उदाहरण के लिए सामुदायिक सेवा, छोटे अपराधों के लिए संक्षिप्त सुनवाई वगैरह, फर्नांडीस ने कहा कि सामुदायिक सेवा आदि जैसे उपायों को पेश करने के लिए सभी आपराधिक कानूनों को खत्म करने और नए कानून लाने की आवश्यकता नहीं है, उन्हें मौजूदा कानूनों में संशोधन के माध्यम से पेश किया जा सकता था. इन सभी दशकों के दौरान सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने निर्णयों के माध्यम से तय किए गए कानून इन नए कानूनों के कारण अप्रभावी हो जाएंगे.
सबसे ज्यादा पुलिस के लिए होगी चुनौती...
इधर, वरिष्ठ अधिवक्ता बलबीर सिंह ने कहा कि 1 जुलाई से लागू होने वाले नए आपराधिक कानून वकीलों के साथ-साथ देश की अदालतों और सबसे ज्यादा पुलिस के लिए चुनौती होंगे और नए कानूनों के कार्यान्वयन ने वर्तमान में देश में दो समानांतर आपराधिक न्याय व्यवस्थाएं बनाई हैं. उन्होंने आगे कहा कि हालांकि, मोटे तौर पर नए कानूनों में आपराधिक कानून का सिद्धांत बरकरार है और कुछ नए प्रावधानों की शुरुआत से कुछ छोटे अपराधों का तेजी से निपटारा हो सकेगा. हमारे देश ने पहले भी पुराने कंपनी अधिनियम, 1956 से नए कंपनी अधिनियम, 2013; एमआरटीपी अधिनियम 1969 से प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 आदि में बदलाव देखा है, इसलिए मेरी राय में सभी हितधारकों को इस बदलाव से निपटने के लिए तैयार होने में कुछ समय लग सकता है.
करंजावाला एंड कंपनी की प्रिंसिपल एसोसिएट निहारिका करंजावाला ने कहा कि कानूनों में इस तरह के बड़े बदलाव के साथ, तार्किक बाधाएं लाजमी हैं और कार्यान्वयन में समस्याओं से बचने के लिए इन बाधाओं से कुशलतापूर्वक और तेजी से निपटना होगा. क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद ऐसी ही एक बाधा है. हालांकि, यह संभव है कि राज्य सरकारों ने यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए हैं कि नए कानूनों का सही और सटीक अनुवाद किया गया है और यह आसानी से उपलब्ध होगा. ऐसा न करने पर निश्चित रूप से नए कानूनों के कार्यान्वयन में बाधाएं आएंगी.
अधिकारियों द्वारा दुरुपयोग की संभावना बढ़ेगी...
तमिलनाडु के वरिष्ठ अधिवक्ता और अतिरिक्त महाधिवक्ता (एएजी) अमित आनंद तिवारी ने कहा कि नए दंड संहिता का मूल पाठ काफी हद तक एक जैसा ही है, इसलिए मेरे विचार से वकीलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती नई धाराओं और नंबरों से खुद को परिचित करना और मिसाल कायम करना होगा. उन्होंने जोर देकर कहा कि नए कानूनों में जोड़े गए नए प्रावधानों की अस्पष्टता और अतिव्यापक प्रकृति के कारण उनके लागू होने के बारे में अनिश्चितता पैदा होगी और अधिकारियों द्वारा उनका दुरुपयोग की संभावना भी बढ़ेगी.
सरकार के अनुसार, देश भर में नए आपराधिक कानूनों के सुचारू कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों और तकनीकी सुधार सहित व्यापक तैयारियां की गई हैं. जहां अंग्रेजों के जमाने के कानूनों की नए कानून लाने के फैसले को सराहा गया है, वहीं विपक्ष ने इसमें कई खामियां गिनाई हैं.
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