उत्तरकाशी: निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग में भूस्खलन का मलबा डी-वाटरिंग में बाधा बना हुआ है. सुरंग का निर्माण शुरू करने के लिए डी-वाटरिंग जरूरी है. लेकिन भूस्खलन के मलबे के कारण कार्यदायी संस्था और निर्माण कंपनी के लोग डी-वाटरिंग का काम शुरू नहीं कर पा रहे हैं. अधिकारियों का कहना है कि डी-वाटरिंग के लिए मजदूरों को ऑगर मशीन से डाले गए पाइपों से अंदर भेजा जाएगा. इसके लिए पहले उनकी सुरक्षा पुख्ता करने का काम किया जा रहा है.
सिलक्यारा सुरंग निर्माण में अब आई ये बाधा: बीते 12 नवंबर माह को यमुनोत्री हाईवे पर निर्माणाधीन सिलक्यारा पोलगांव सुरंग के सिलक्यारा मुहाने के पास भूस्खलन हुआ था. जिससे सुरंग के अंदर काम कर रहे 41 मजदूर अंदर ही फंस गए थे. उनके रेस्क्यू के बाद करीब दो माह से सुरंग का निर्माण बंद था. 23 जनवरी को केंद्र सरकार के केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने कार्यदायी संस्था एनएचआईडीसीएल को सुरंग निर्माण शुरू करने की अनुमति दी. लेकिन यह अनुमति मिले अब एक सप्ताह का समय हो चुका है, बावजूद इसके यहां सुरंग निर्माण के लिए जरूरी डी-वाटरिंग का काम शुरू नहीं हो पाया है.
सुरंग के अंदर से कैसे निकलेगा मलबा और पानी: बताया जा रहा है कि सुरंग के सिलक्यारा मुहाने से 200 मीटर के पास जो भारी भूस्खलन हुआ था, वह इसमें बाधक बना है. इस मलबे के पार जाने का एकमात्र माध्यम ऑगर मशीन से डाले गए वो पाइप हैं, जिनसे अंदर फंसे मजदूरों को बाहर निकाला गया था. लेकिन बिना मजदूरों की सुरक्षा पुख्ता किए कार्यदायी संस्था एनएचआईडीसीएल जोखिम लेने से बच रही है. एनएचआईडीसीएल के महाप्रबंधक कर्नल दीपक पाटिल ने बताया कि मजदूरों की सुरक्षा पुख्ता करने के बाद ही यहां डी-वाटरिंग का काम शुरू किया जाएगा.
एनडीआरएफ या एसडीआरएफ की ली जा सकती है मदद: सुरंग के सिलक्यारा छोर से डी-वाटरिंग के लिए एनडीआरएफ या एसडीआरएफ की मदद ली जा सकती है. सुरंग से मजदूरों को बाहर निकालने के लिए भी पाइपों से एनडीआरएफ के जवान ही अंदर गए थे. ऐसे में एक बार फिर यहां आपात स्थिति के लिए प्रशिक्षित एनडीआरएफ के जवानों की मदद ली जा सकती है. जो ऑगर मशीन से डाले गए पाइपों से अंदर जाकर सुरंग के अंदर जमा पानी चेक कर डी-वाटरिंग चालू करेंगे और अंदर जमा पानी डी-वाटरिंग के पाइपों से बाहर किया जाएगा.
मलबा हटाने में लग सकता है दो माह का समय: सुरंग के अंदर भूस्खलन के मलबे को हटाने में दो माह का समय लग सकता है. 4.5 किमी की सुरंग में अभी 480 मीटर सुरंग का निर्माण शेष है. सिलक्यारा छोर से निर्माण के लिए पहले डी-वाटरिंग की जाएगी और फिर मलबा हटाया जाएगा. अधिकारियों का कहना है कि सुरक्षा के साथ इस काम को पूरा करने में दो माह का समय लग सकता है.
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उधर एनएचआईडीसीएल के अधिकारियों की मानें तो टनल का पूरा काम 2025 तक हो जाएगा. हालांकि अगर हादसा नहीं होता तो 2024 में ही टनल बनकर तैयार हो जाती. अभी लगभग डेढ़ साल और इस टनल को बनने में लग जाएगा. यह टनल 853.79 करोड़ की लागत से बन रही है. चारधाम यात्रा के लिहाज से भी ये टनल बेहद महत्वपूर्ण है. फिलहाल कंपनी के सामने जो सबसे बड़ी मुसीबत आ रही है, वह यह है कि हादसे वाली साइट पर अब कोई काम करना नहीं चाहता.
कई कर्मचारियों ने आने की हामी तो भरी है, लेकिन जो लोग पहले से कम कर रहे थे और जो लोग फंसे थे, उनमें से अधिकतर लोग आने से इनकार कर रहे हैं.
टनल में फंसे सभी कर्मचारियों का हौसला बढ़ाने वाले गब्बर सिंह का कहना है कि वह अभी कुछ दिनों तक कोई काम नहीं करेंगे. उनके घर में कुछ जरूरी काम है और मां की तबीयत भी ठीक नहीं चल रही है. इसके साथ ही बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के कई मजदूरों ने फिलहाल आने में कंपनी को अपनी असमर्थता जताई है.
बंगाल के एक कर्मचारी माणिक जरूर उत्तरकाशी पहुंच गए हैं. कर्मचारियों को लगातार कंपनी की तरफ से फोन जा रहे हैं. बताया जा रहा है कि जो 41 कर्मचारी फंसे थे, उनमें से 20 से अधिक कर्मचारियों ने कंपनी से काम करने से मना कर दिया है. हालांकि कंपनी लगातार कर्मचारियों से संपर्क साध रही है. फिलहाल माना यह भी जा रहा है कि उत्तराखंड में लगातार हो रही बर्फबारी और ठंड की वजह से भी कर्मचारी आने में अपनी असमर्थता जता रहे हैं. कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि जैसे ही मौसम में थोड़ा बदलाव आएगा, वैसे ही काम और तेजी से शुरू किया जाएगा. और ज्यादा दिनों तक काम बंद नहीं रखा जा सकता है. कंपनी को पहले ही काफी नुकसान हो चुका है.
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