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इस मंदिर में नवरात्रि पर महिलाओं की NO ENTRY - Nalanda Maa Ashapuri Mandir

बिहार के नालंदा में मां दुर्गा का एक ऐसा मंदिर है, जहां नवरात्रि में महिलाओं का प्रवेश वर्जित होता है. जानें कारण.

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : 2 hours ago

Updated : 27 minutes ago

No entry for women in temple
मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित (ETV Bharat)

नालंदा: नवरात्रि के मौके पर माता के दरबार में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिल रही है. नौ दिनों के मां दुर्गा के अनुष्ठान के दौरान ईटीवी भारत आपको उन मंदिरों के बारे में बता रहा है, जहां से श्रद्धालुओं की विशेष आस्था जुड़ी हुई है. उन्हीं में से एक मंदिर बिहार के नालंदा में है, जहां नवरात्र के समय महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी है. आखिर मां दुर्गा की पूजा से महिलाओं को ही दूरी क्यों बनानी पड़ रही है, इसके पीछे की वजह क्या है विस्तार से जानें.

माता के इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित: जिले के गिरियक प्रखंड का घोसरामा गांव में मां आशा देवी का भव्य मंदिर है. पालकालीन राजा घोष यहां वास करते थे. इसी वजह से इस गांव का नाम घोसरावां पड़ा. यहां सैकड़ों वर्ष पूर्व से मां आशा देवी की पूजा होते आ रही है. यह जगह जिला मुख्यालय बिहारशरीफ से 15 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है.

No entry for women in temple
मां आशापुरी का भव्य मंदिर (ETV Bharat)

नवरात्रि में महिलाएं नहीं करती प्रवेश: यहां मां आशापुरी का भव्य मंदिर है. जिसे लोग सिद्ध पीठ के नाम से भी जानते हैं. मंदिर के पुजारी अनिल उपाध्याय और पवन कुमार उपाध्याय बताते हैं कि माता के दर्शन के लिए श्रद्धालु देश के कोने कोने से यहां आते हैं और 9 दिनों तक वास कर पूजा अर्चना करते हैं.

"मनोकामना पूर्ण होने पर हर वर्ष परिवार के साथ हर्षोल्लास के साथ प्रसाद चढ़ावा के लिए आते हैं. सच्चे दिल से जो भी श्रद्धालु मां आशादेवी से मन्नत मांगते हैं, उनकी मन्नतें पूर्ण होती है. चैत नवरात्र में इस मंदिर के भीतर महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहता है."- अनिल उपाध्याय, पुजारी

No entry for women in temple
इस मंदिर में होती है तांत्रिक पूजा (ETV Bharat)

"मंदिर में नवरात्र के अवसर पर माता की विशेष पूजा की जाती है, जिसे बाम पूजा या तंत्र पूजा कहा जाता है. नवरात्र के अवसर पर तांत्रिक इस जगह पर आकर सिद्धियां प्राप्त करते हैं. जिसके कारण नवरात्र के मौके पर 9 दिनों तक इस मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी जाती है."- पवन कुमार उपाध्याय, पुजारी

सदियों से चली आ रही परंपरा : नवरात्र के पावन अवसर पर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, जो आज भी जारी है. नवमी के दिन पूजा होती है, और इस पूजा के बाद पशु की बलि दी जाती है. दशमी की रात्रि आरती के बाद ही महिलाओं को माता के दर्शन की अनुमति दी जाती है.

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बिहारशरीफ से 15 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है मंदिर (ETV Bharat)

9वीं शताब्दी में यहां तंत्र यान का फैलाव: मंदिर में देवी माता की दो मुर्तियों के आलावे शिव पार्वती और भगवान बुद्ध की कई मूर्तियां हैं. काले पत्थर की सभी प्रतिमाएं बौध, शुंग और पाल कालीन है. जानकारों की मानें तो ९ वीं शताब्दी में ब्रज्य यान, तंत्र यान,और सहज यान का बहुत तेजी से फैलाव हुआ था. उस समय यह स्थल विश्व का सबसे बड़ा केंद्र रहा था.

No entry for women in temple
पालकालीन राजा घोष यहां वास करते थे (ETV Bharat)

सिद्ध पीठ में से एक है आशा देवी का मंदिर: बौध धर्मालंबियों के सिद्धि के लिए इसी स्थल का उपयोग करते थे. माता के ८४ सिद्धपीठ में से एक सिद्धपीठ इसे भी माना जाता रहा है. ज्ञातक कथाओं में सिद्धि के लिए महिलाओं को बाधक माना गया और सिद्धिपीठ होने की बात उल्लेखनीय है.

महिलाओं को माना जाता है बाधक: चली आ रही परंपरा के अनुसार नवरात्र के मौके पर इस मंदिर में तांत्रिक पूजा होती है और तांत्रिक पूजा में महिलाओं को बाधक माना जाता है. जिसके कारण माता के मंदिर में महिलाओं का प्रवेश बंद कर दिया जाता है और लोग इस बात का विरोध भी नहीं करते हैं. यहां के लोग इस परम्परा से अवगत हैं.

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माता के इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित: जिले के गिरियक प्रखंड का घोसरामा गांव में मां आशा देवी का भव्य मंदिर है. पालकालीन राजा घोष यहां वास करते थे. इसी वजह से इस गांव का नाम घोसरावां पड़ा. यहां सैकड़ों वर्ष पूर्व से मां आशा देवी की पूजा होते आ रही है. यह जगह जिला मुख्यालय बिहारशरीफ से 15 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है.

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मां आशापुरी का भव्य मंदिर (ETV Bharat)

नवरात्रि में महिलाएं नहीं करती प्रवेश: यहां मां आशापुरी का भव्य मंदिर है. जिसे लोग सिद्ध पीठ के नाम से भी जानते हैं. मंदिर के पुजारी अनिल उपाध्याय और पवन कुमार उपाध्याय बताते हैं कि माता के दर्शन के लिए श्रद्धालु देश के कोने कोने से यहां आते हैं और 9 दिनों तक वास कर पूजा अर्चना करते हैं.

"मनोकामना पूर्ण होने पर हर वर्ष परिवार के साथ हर्षोल्लास के साथ प्रसाद चढ़ावा के लिए आते हैं. सच्चे दिल से जो भी श्रद्धालु मां आशादेवी से मन्नत मांगते हैं, उनकी मन्नतें पूर्ण होती है. चैत नवरात्र में इस मंदिर के भीतर महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहता है."- अनिल उपाध्याय, पुजारी

No entry for women in temple
इस मंदिर में होती है तांत्रिक पूजा (ETV Bharat)

"मंदिर में नवरात्र के अवसर पर माता की विशेष पूजा की जाती है, जिसे बाम पूजा या तंत्र पूजा कहा जाता है. नवरात्र के अवसर पर तांत्रिक इस जगह पर आकर सिद्धियां प्राप्त करते हैं. जिसके कारण नवरात्र के मौके पर 9 दिनों तक इस मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी जाती है."- पवन कुमार उपाध्याय, पुजारी

सदियों से चली आ रही परंपरा : नवरात्र के पावन अवसर पर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, जो आज भी जारी है. नवमी के दिन पूजा होती है, और इस पूजा के बाद पशु की बलि दी जाती है. दशमी की रात्रि आरती के बाद ही महिलाओं को माता के दर्शन की अनुमति दी जाती है.

No entry for women in temple
बिहारशरीफ से 15 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है मंदिर (ETV Bharat)

9वीं शताब्दी में यहां तंत्र यान का फैलाव: मंदिर में देवी माता की दो मुर्तियों के आलावे शिव पार्वती और भगवान बुद्ध की कई मूर्तियां हैं. काले पत्थर की सभी प्रतिमाएं बौध, शुंग और पाल कालीन है. जानकारों की मानें तो ९ वीं शताब्दी में ब्रज्य यान, तंत्र यान,और सहज यान का बहुत तेजी से फैलाव हुआ था. उस समय यह स्थल विश्व का सबसे बड़ा केंद्र रहा था.

No entry for women in temple
पालकालीन राजा घोष यहां वास करते थे (ETV Bharat)

सिद्ध पीठ में से एक है आशा देवी का मंदिर: बौध धर्मालंबियों के सिद्धि के लिए इसी स्थल का उपयोग करते थे. माता के ८४ सिद्धपीठ में से एक सिद्धपीठ इसे भी माना जाता रहा है. ज्ञातक कथाओं में सिद्धि के लिए महिलाओं को बाधक माना गया और सिद्धिपीठ होने की बात उल्लेखनीय है.

महिलाओं को माना जाता है बाधक: चली आ रही परंपरा के अनुसार नवरात्र के मौके पर इस मंदिर में तांत्रिक पूजा होती है और तांत्रिक पूजा में महिलाओं को बाधक माना जाता है. जिसके कारण माता के मंदिर में महिलाओं का प्रवेश बंद कर दिया जाता है और लोग इस बात का विरोध भी नहीं करते हैं. यहां के लोग इस परम्परा से अवगत हैं.

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