रांचीः देश के अलग-अलग राज्यों में आपराधिक वारदातों को अंजाम देने वाले अपराधियों के राज नफीस (National Automatic Fingerprint Identification System) खोल रहा है. नफीस (NAFIS) यानी नेशनल ऑटोमेटिक फिंगरप्रिंट आईडेंटिफिकेशन सिस्टम. नफीस की वजह से पकड़ा गया अपराधी कब-कब जेल गया था और किन-किन शहरों से उसकी गिरफ्तारी हुई थी ये तमाम जानकारी पुलिस को बस एक क्लिक में मिल जाती है. झारखंड में नफीस की मदद से सबसे ज्यादा सफलता नशे के सौदागरों के खिलाफ पुलिस को मिल रही है.
फिंगरप्रिंट के जरिए हो रही अपराधियों की पहचान
झारखंड में रहकर आपराधिक वारदातों को अंजाम देने वाले वैसे अपराधी जो दूसरे राज्यों में भी आपराधिक कांडों में शामिल रहे हैं उनकी पहचान में नफीस बेहद कारगर साबित हो रहा है. बताते चलें कि नफीस को नेशनल अपराध रिकार्ड ब्यूरो के द्वारा विकसित किया गया है. नफीस की मदद से अपराधियों को पकड़ने और आपराधिक मामलों को सुलझाने में पुलिस को मदद मिल रही है.
फिंगरप्रिंट डेटाबेस से अपराधियों की हो रही पहचान
झारखंड पुलिस के डीजीपी अनुराग गुप्ता के अनुसार नफीस से एकत्रित किए गए फिंगरप्रिंट डेटाबेस की मदद से अपराधियों को पकड़ने में मदद मिल रही है और कई मामलों को इसकी मदद से त्वरित सुलझाया भी जा रहा है.डीजीपी ने बताया कि नफीस की मदद से गिरफ्तार आरोपियों के फिंगरप्रिंट सेंट्रल सर्वर पर अपलोड किए जाते हैं. झारखंड सीआईडी के कार्यालय में नफीस का डेटाबेस तैयार किया जाता है. जिन जिलों में नफीस सॉफ्टवेयर नहीं है, वहां गिरफ्तार अपराधियों के फिंगरप्रिंट्स कागज में लेकर उन्हें रांची कार्यालय में आकर डिजिटली सेव किया जाता है.
साल 2022 नफीस सॉफ्टवेयर लॉन्च हुआ था
डीजीपी के अनुसार साल 2022 में नफीस प्रोजेक्ट को लागू किया गया था. जिसके बाद घटना में शामिल गिरफ्तार अपराधियों और घटनास्थल से बरामद फिंगरप्रिंट्स को नफीस में अपलोड किया जाता है. जिन अपराधियों के फिंगरप्रिंट नफीस में अपलोड हो जाते हैं अगर वह देश के किसी भी हिस्से में अपराध करता है तो पुलिस को इसकी जानकारी मिल जाती है कि अमुक अपराधी के द्वारा घटना को अंजाम दिया गया है.
केस के खुलासे में भी नफीस से मिल रही मदद
दरअसल, दूसरे राज्यों के अपराधी जब झारखंड में आकर आपराधिक वारदातों को अंजाम देते हैं और पुलिस की गिरफ्त में आते हैं, तब उनके फिंगरप्रिंट्स का मिलान नफीस सॉफ्टवेयर में करवाया जाता है. इसके बाद अपराधी की पूरी कुंडली ही खुलकर सामने आ जाती है. पकड़े गए अपराधी के द्वारा किन-किन राज्यों में कौन-कौन से अपराध किए गए हैं इसकी जानकारी पुलिस को मिल जाती है. ऐसे में अगर पकड़ा गया अपराधी किसी अन्य राज्य में वांटेड है तो झारखंड पुलिस के द्वारा उसकी जानकारी संबंधित राज्य की पुलिस को दी जाती है.जिसके बाद दूसरे राज्य में हुई घटना का भी खुलासा हो जाता है.
हर गिरफ्तार अपराधी का फिंगरप्रिंट अपलोड किया जा रहा है
झारखंड के डीजीपी अनुराग गुप्ता के अनुसार झारखंड के किसी भी जिले में गिरफ्तार होने वाले अपराधी का फिंगरप्रिंट नफीस में अपलोड किया जा रहा है. झारखंड में जितने भी एक्टिव अपराधी हैं उनके नाम, पता के अलावा उनके फिंगरप्रिंट अपलोड किए गए हैं. इसका फायदा यह है कि जिन अपराधियों के फिंगरप्रिंट अपलोड किए गए हैं उनमें से अगर कोई जेल से छूटने के बाद किसी भी राज्य में जाकर अपराध करता है तो उसकी पहचान जल्द हो जाती है.
सबसे अधिक नशे के सौदागरों के खिलाफ सफलता
झारखंड में नफीस की मदद से सबसे ज्यादा नशे के सौदागरों को गिरफ्तार करने में सहायता मिली है. यह सभी जानते हैं कि नशे के सौदागरों का नेटवर्क देश भर में फैला हुआ है. उनमें से कुछ झारखंड में भी एक्टिव हैं, जो झारखंड के हर जिले में नशे का कारोबार कर रहे हैं. डीजीपी अनुराग गुप्ता के अनुसार नफीस की मदद से झारखंड में सबसे ज्यादा सफलता नशे के सौदागरों की गिरफ्तारी में मिली है.
झारखंड में पकड़े गए कई अपराधियों की निकाली गई है कुंडली
झारखंड सीआईडी से मिली जानकारी के अनुसार एक दर्जन से ज्यादा नशे के सौदागर जब पकड़े गए और उनका फिंगरप्रिंट जब नफीस से मिलान किया गया तब दिल्ली, मुंबई, पंजाब तक में उनके खिलाफ मामले दर्ज पाए गए. उदाहरण के लिए साल 2023 में चतरा पुलिस ने कुख्यात ड्रग्स पैडलर मनदीप सिंह को गिरफ्तार किया था. गिरफ्तारी के बाद मनदीप अपने आप को बेकसूर बता रहा था, लेकिन जब नफीस पर उसकी कुंडली खंगाली गई तब यह जानकारी मिली कि वह साल 2012 में पंजाब से भी जेल जा चुका है.
इस तरह महिला तस्कर चंद्रावती देवी लातेहार से पकड़ी गई थी. नफीस की मदद से या पता चला कि ओडिशा में भी वह जेल जा चुकी है. नशे के तस्करों के खिलाफ ऐसे दर्जन भर मामले हैं जिनमें नफीस की वजह से उनके कांडों का खुलासा हुआ है.
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